हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का द्वितीय चरण द्विवेदी युग या जागरण सुधार काल के नाम से जाना जाता है।द्विवेदी युग का नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर किया गया है। इसका कालक्रम 1903-1918ई. रहा। उन्नीसवीं शती के अंत तक भारतेन्दुकालीन समस्यापूर्ति व नीरस तुकबंदियों से लोग विमुख होने लगे तथा लम्बे समय से काव्य की भाषा रही ब्रज का आकर्षण भी अब लुप्त होने लगा और उसका स्थान खड़ी बोली हिन्दी ने ले लिया। आचार्य शुक्ल इस काल को हिंदी काव्य की नई धारा कहते हैं।नई धारा से अभिप्राय रीतिकालीन श्रृंगारिक,प्रवृतियों,अभिव्यंजना, रूढ़ियों, एवं संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुकरण पर आधारित रीतिबद्ध शास्त्रीय रचना को छोड़कर नयी अभिव्यक्ति और नयी अभिव्यंजना शेली के ग्रहण से है। Show
हिंदी साहित्य में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन व आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का उसका सम्पादक बनना एक महत्वपूर्ण घटना है सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई. में प्रारंभ हुआ तथा 1903ई. महावीरप्रसाद द्विवेदी इसके सम्पादक बने। द्विवेदी जी ने इस पत्रिका के द्वारा भाषा व साहित्य दोनों का परिष्कार किया । इसके माध्यम से ज्ञान का प्रचार हुआ,नये लेखक व कवि प्रकाश में आए, भाषा संस्कार,समाज सुधार, देश प्रेम,चरित्र निर्माण की भावनाएं विकसित हुई। द्विवेदी युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। इन्होने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। इनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है।इन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में इनकी उल्लेखनीय भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।द्विवेदी जी ने विपुल साहित्य रचना की। इनके छोटे-बड़े ग्रंथों की संख्या कुल मिलाकर ८१ है। पद्य के मौलिक-ग्रंथों में काव्य-ग्रन्थों में काव्य मंजूषा, कविता देवी-स्तुति, शतक आदि प्रमुख है। गंगालहरी, ॠतु तरंगिणी, कुमार संभव सार आदि इनके अनूदित पद्य-ग्रंथ हैं।गद्य के मौलिक ग्रंथों में तरुणोपदेश, नैषध चरित्र चर्चा, हिंदी कालिदास की समालोचना, नाटय शास्त्र, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, कालीदास की निरंकुशता आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अनुवादों में वेकन विचार, रत्नावली, हिंदी महाभारत, वेणी संहार आदि प्रमुख हैं। द्विवेदी जी की प्रमुख साहित्यिक रचनाएं निम्न है- मौलिक पद्य रचनाएँ देवी स्तुति-शतक (1892 ई.) कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898 ई.) समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898 ई.) नागरी (1900 ई.) कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई.) काव्य मंजूषा (1903 ई.) सुमन (1923 ई.) द्विवेदी काव्य-माला (1940 ई.) कविता कलाप (1909 ई.) पद्य (अनूदित) विनय विनोद (1889 ई.)- भर्तृहरि के 'वैराग्यशतक' का दोहों में अनुवाद विहार वाटिका (1890 ई.)- गीत गोविन्द का भावानुवाद स्नेह माला (1890 ई.)- भर्तृहरि के 'शृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद श्री महिम्न स्तोत्र (1891 ई.)- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र' का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद गंगा लहरी (1891 ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगालहरी' का सवैयों में अनुवाद ऋतुतरंगिणी (1891 ई.)- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद सोहागरात (अप्रकाशित)- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद कुमारसम्भवसार (1902 ई.)- कालिदास के 'कुमारसम्भवम्' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश मौलिक गद्य रचनाएँ नैषध चरित्र चर्चा (1899 ई.) तरुणोपदेश (अप्रकाशित) हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1901 ई.) वैज्ञानिक कोश (1906ई.), नाट्यशास्त्र (1912ई.) विक्रमांकदेवचरितचर्चा (1907ई.) हिन्दी भाषा की उत्पत्ति (1907ई.) सम्पत्ति-शास्त्र (1907ई.) कौटिल्य कुठार (1907ई.) कालिदास की निरकुंशता (1912ई.) वनिता-विलाप (1918ई.) औद्यागिकी (1920ई.) रसज्ञ रंजन (1920ई.) कालिदास और उनकी कविता (1920ई.) सुकवि संकीर्तन (1924ई.) अतीत स्मृति (1924ई.) साहित्य सन्दर्भ (1928ई.) अदभुत आलाप (1924ई.) महिलामोद (1925ई.) आध्यात्मिकी (1928ई.) वैचित्र्य चित्रण (1926ई.) साहित्यालाप (1926ई.) विज्ञ विनोद (1926ई.) कोविद कीर्तन (1928ई.) विदेशी विद्वान (1928ई.) प्राचीन चिह्न (1929ई.) चरित चर्या (1930ई.) पुरावृत्त (1933ई.) दृश्य दर्शन (1928ई.) आलोचनांजलि (1928ई.) चरित्र चित्रण (1929ई.) पुरातत्त्व प्रसंग (1929ई.) साहित्य सीकर (1930ई.) विज्ञान वार्ता (1930ई.) वाग्विलास (1930ई.) संकलन (1931ई.) विचार-विमर्श (1931ई.) गद्य (अनूदित) भामिनी-विलास (1891ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद अमृत लहरी (1896ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद बेकन-विचार-रत्नावली (1901ई.)- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद शिक्षा (1906ई.)- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एजुकेशन' का अनुवाद जल चिकित्सा (1907ई.)- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद हिन्दी महाभारत (1908ई.)-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर रघुवंश (1912ई.)- कालिदास के 'रघुवंशम्' महाकाव्य का भाषानुवाद वेणी-संहार (1913ई.)- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद कुमार सम्भव (1915ई.)- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद मेघदूत (1917ई.)- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद किरातार्जुनीय (1917ई.)- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद प्राचीन पण्डित और कवि (1918ई.)- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय आख्यायिका सप्तक (1927ई.)- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद। श्रीधर पाठक (11 जनवरी 1858- 13 सितंबर 1928) इनकी रचनाये मनोविनोद (भाग-1,2,3), धन विनय (1900), गुनवंत हेमंत (1900), वनाष्टक (1912), देहरादून (1915), गोखले गुनाष्टक (1915)। अन्य रचनाएँ हैं- बाल भूगोल, जगत सचाई सार, एकांतवासी योगी, काश्मीरसुषमा, आराध्य शोकांजलि, जार्ज वंदना, भक्ति विभा, श्री गोखले प्रशस्ति, श्रीगोपिकागीत, भारतगीत, तिलस्माती मुँदरी और विभिन्न स्फुट निबंध तथा पत्रादि। अनुवाद ऊजड़ग्राम(डेजर्टेज विलेज) रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) कृतियाँ मिलन (1918) 13दिनों में रचित पथिक (1920) 21 दिनों में रचित मानसी (1927) और स्वप्न (1929) 15दिनों में रचित इसके लिए इन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। पं. रामनरेश त्रिपाठी जी की अन्य प्रमुख कृतियां - मुक्तक - मारवाड़ी मनोरंजन, आर्य संगीत शतक, कविता-विनोद, क्या होम रूल लोगे, मानसी। काव्य: मिलन, पथिक, स्वप्न। कहानी : तरकस, आखों देखी कहानियां, स्वपनों के चित्र, नखशिख, उन बच्चों का क्या हुआ..? 21 अन्य कहानियाँ। उपन्यास : वीरांगना, वीरबाला, मारवाड़ी और पिशाचनी, सुभद्रा और लक्ष्मी। नाटक : जयंत, प्रेमलोक, वफ़ाती चाचा, अजनबी, पैसा परमेश्वर, बा और बापू, कन्या का तपोवन। व्यंग्य : दिमाग़ी ऐयाशी, स्वप्नों के चित्र। अनुवाद : इतना तो जानो (अटलु तो जाग्जो - गुजराती से), कौन जागता है (गुजराती नाटक)। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) रचनाएँ अधखिला फूल , हिंदी भाषा और साहित्य का विकास आदि ग्रंथों की भी रचना की, प्रिय प्रवास 1914 ई . कवि सम्राट वैदेही वनवास 1940 ई . पारिजात 1937 ई . रस-कलश 1940 ई . चुभते चौपदे 1932 ई., चौखे चौपदे 1924 ई . ठेठ हिंदी का ठाठ अध खिला फूल रुक्मिणी परिणय हिंदी भाषा और साहित्य का विकास बाल साहित्य बाल विलास फूल पत्ते चन्द्र खिलौना खेल तमाशा उपदेश कुसुम बाल गीतावली चाँद सितारे पद्य प्रसून जगन्नाथदास रत्नाकर (1866 - 21 जून 1932) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि थे। रत्नाकर जी की रचनाएँ- गंगावतरण 1923 (पुराख्यान काव्य), उद्धवशतक (प्रबंध काव्य), हिंडोला1894 (मुक्तक), कलकाशी (मुक्तक) समालोचनादर्श (पद्यनिबंध) श्रृंगारलहरी, गंगालहरी, विष्णुलहरी (मुक्तक), रत्नाष्टक (मुक्तक), वीराष्टक (मुक्तक), प्रकीर्णक पद्यावली (मुक्तक संग्रह)। गद्य रोला छंद के लक्षण, महाकवि बिहारीलाल की जीवनी, बिहारी सतसई संबंधी साहित्य, साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री बिहारी सतसई की टीकाएँ, बिहारी पर स्फुट लेख। ऐतिहासिक लेख – महाराज शिवाजी का एक नया पत्र, शुगवंश का एक शिलालेख, शुंग वंश का एक नया शिलालेख, एक ऐतिहासिक पापाणाश्व की प्राप्ति, एक प्राचीन मूर्ति, समुद्रगुप्त का पाषाणाश्व, घनाक्षरी निय रत्नाकर, वर्ण, सवैया, छंद आदि। संपादित रचनाएँ कविकुल कंठाभरण, दीपप्रकाश, सुंदरश्रृंगार, नृपशंमुकृत नखशिख, हम्मीर हठ, रसिक विनोद, समस्यापूर्ति (भाग 1), हिततरंगिणी, केशवदासकृत नखशिख, सुजानसागर, बिहारी रत्नाकर, सूरसागर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886 – 12 दिसम्बर 1964) कृतियाँ महाकाव्य- साकेत, यशोधरा खण्डकाव्य- जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल , जय भारत, युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र, वक संहार , शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला , प्रदक्षिणा, दिवोदास , भूमि-भाग नाटक – रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव , विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री , स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में, काविताओं का संग्रह - उच्छवास पत्रों का संग्रह - पत्रावली रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) काव्य बारदोली-विजय संदेश (1928), प्रणभंग (1929) रेणुका (1935), हुंकार (1938) रसवन्ती (1939),द्वंद्वगीत (1940) कुरूक्षेत्र (1946), धूप-छाँह (1947) सामधेनी (1947), बापू (1947) इतिहास के आँसू (1951),धूप और धुआँ (1951) मिर्च का मज़ा (1951), रश्मिरथी (1952) दिल्ली (1954),नीम के पत्ते (1954) नील कुसुम (1955), सूरज का ब्याह (1955) चक्रवाल (1956),कवि-श्री (1957) सीपी और शंख (1957),नये सुभाषित (1957) लोकप्रिय कवि दिनकर (1960),उर्वशी (1961) परशुराम की प्रतीक्षा (1963),आत्मा की आँखें (1964) कोयला और कवित्व (1964),मृत्ति-तिलक (1964) और दिनकर की सूक्तियाँ (1964),हारे को हरिनाम (1970) संचियता (1973), दिनकर के गीत (1973) रश्मिलोक (1974),उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974) गद्य मिट्टी की ओर 1946,चित्तौड़ का साका 1948 अर्धनारीश्वर 1952,रेती के फूल 1954 हमारी सांस्कृतिक एकता 1955,भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955 संस्कृति के चार अध्याय 1956,उजली आग 1956 देश-विदेश 1957,राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955 काव्य की भूमिका 1958,पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958 वेणुवन 1958,धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969 वट-पीपल 1961,लोकदेव नेहरू 1965 शुद्ध कविता की खोज 1966, साहित्य-मुखी 1968 संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970,भारतीय एकता 1971 मेरी यात्राएँ 1971,दिनकर की डायरी 1973 चेतना की शिला 1973,विवाह की मुसीबतें 1973 आधुनिक बोध 1973
कृतियाँ बिखरे मोती (1932) उन्मादिनी (1934) सीधे साधे चित्र (1947) कविता संग्रह मुकुल त्रिधारा जीवनी 'मिला तेज से तेज' द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृतियाँ- राष्ट्रीयता की भावना: सामाजिक समस्याओं का चित्रण: इतिवृत्तात्मकता: अनूदित रचनाएं: काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग: द्विवेदी युग को पुनर्जागरण काल क्यों कहा जाता है?द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम “द्विवेदी युग” पड़ा। इसे “जागरण सुधारकाल” भी कहा जाता है।
द्विवेदी युग का दूसरा नाम क्या है?नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही यह काल 'द्विवेदी युग' के नाम से जाना जाता है। इसे 'जागरण-सुधारकाल' भी कहा जाता है।
द्विवेदी युग को सुधारवादी युग क्यों कहा जाता है?इसका मुख्य कारण है ऐसे आलोचक का रचनाकार और रचना पर फतवे जारी करना। यही कारण है कि रामचंद्र शुक्ल ने द्विवेदी जी के विचारों को, उनके संचित ज्ञान-राशि पर ध्यान नहीं दिया और उनकी भाषा पर विचार किया।
द्विवेदी युग का महत्व क्या है?द्विवेदी युग का गद्य साहित्य:
इस काल में निबंध, उपन्यास, कहानी, नाटक एवं समालोचना का अच्छा विकास हुआ। इस युग के निबंधकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी, माधव प्रसाद मिश्र, श्याम सुंदर दास, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बाल मुकंद गुप्त और अध्यापक पूर्ण सिंह आदि उल्लेखनीय हैं। इनके निबंध गंभीर, ललित एवं विचारात्मक हैं।
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