इतिहास क्या है इतिहास की परिभाषा सिद्धांत और महत्व का वर्णन करें? - itihaas kya hai itihaas kee paribhaasha siddhaant aur mahatv ka varnan karen?

भारत के इतिहास का स्वरूप - The Structure of Indian History

भूतकालिक 3000 वर्षों के लंबे अंतराल में प्रख्यात इतिहासकारों और इतिहास के शोधकों द्वारा इतिहास का जो स्वरूप सामने आया है उससे कई भ्रम उत्पन्न हुए हैं। अतः इतिहास का निश्चित स्वरूप जान लेने की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। प्रत्येक विषय की उल्लेखनीय विशेषताएँ होती हैं, निश्चित स्वरूप होता है, निश्चित आयाम होते हैं एवं निश्चित स्वरूप के स्थायी लक्षण होते हैं और निश्चित कार्यप्रणाली होती है इतिहास भी इसी तरह एक विषय है। अन्य विषयों से इतिहास की कुछ समानता और कुछ असमानता का आकलन करने के लिए उसके स्वरूप को समझना होगा।

इतिहास के स्वरूप के दो पक्ष हैं। प्रथम मूल अथवा स्थायी और द्वितीय समय के साथ परिवर्तनशील इनमें से मूल अथवा स्थायी पक्ष इतिहास के आधारभूत स्वरूप को प्रकट करता है। इतिहास से सामान्यतया तीन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होते हैं क्या कैसे और क्यों? अर्थात क्या हुआ? कैसे हुआ? और क्यों हुआ? अतः स्पष्ट है कि इतिहास पूर्वकालिक है और वर्तमान काल और भविष्य काल से इतिहास का सीधा संबंध नहीं है। इसी तरह ये प्रश्न मनुष्य के जीवन से जुड़े हैं पूर्वकाल के मनुष्य का जीवन इतिहास का विषय है और इसलिए इतिहास को मानवशास्त्र की एक शाखा माना आता है। अतः इतिहास पूर्वकालीन मनुष्य के जीवन का वर्णन है और यही इतिहास का प्रथम पक्ष है।

इसी तरह मनुष्य के जीवन के लौकिक पक्ष का विचार इतिहास में आता है। मनुष्य के जीवन में घटने वाली घटनाएं ही इतिहास का विषय होता है। पारलौकिकता के लिए इतिहास में स्थान नहीं है। काल और स्थान ही इतिहास के दो प्रमुख आयाम है और इनकी सीमाओं में ही इतिहास का कार्य चलता है। प्रकृति भी इतिहास का अंग नहीं है। मानव जीवन इतिहास का केंद्र होने के कारण प्रकृति के वन्यजीवों, वनस्पतियों, नदियों, पर्वतों का मानव जीवन से संबंध मात्र ही इतिहास में सम्मिलित होता है। इतिहास के स्वरूप से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूर्वकालीन मानव जीवन इतिहास का विषय होने पर भी प्रतिदिन के मानव जीवन की सभी बातों का वर्णन इतिहास में अपेक्षित नहीं है। मनुष्य के जीवन की महत्वपूर्ण एवं स्मरणीय घटनाएँ इतिहास का विषय होती है। इसी कारण यूनानी इतिहासकार थ्यूसि डाइड्स कहता है History is a story of things worthy to be retmembered. (इतिहास स्मरणीय घटनाओं की रोचक कथा है।) सामान्य घटनाओं का विचार इतिहासकार नहीं करता, क्योंकि उससे कोई विशेष लाभ नहीं होता और न ही उससे भविष्य के लिए कोई शिक्षा प्राप्त होती है। इसलिए कहा जाता है कि 'History is a narration of unique events (इतिहास अद्भुत पटनाओं का विवरण है। इसका अर्थ यह कि इतिहासकार भूतकालिक घटनाओं में से चयन कर उसे महत्वपूर्ण लगने वाली घटनाओं को ही इतिहास में सम्मिलित करता है, अर्थात् पटनाओं का चयन ही इतिहास का स्वरूप है। इस तरह के चयन से इतिहासकार का दृष्टिकोण व्यक्त होता है एवं उससे इतिहास का स्वरूप तय होता है। किंतु बीसवीं सदी में सामाजिक इतिहास लेखन तथा संपूर्ण इतिहास की नई पद्धति प्रचलित होने लगी। अतः इस तरह का इतिहास मानव जीवन की सामान्य सी बातों का भी अध्ययन और वर्णन करने लगा।

"भूतकालिक जीवन की कहानी अर्थात् इतिहास' यह इतिहास की सामान्य एवं सरल परिभाषा है। किंतु इतिहास का स्वरूप वर्णनात्मक अथवा निवेदनात्मक नहीं है इतिहास अर्थपूर्ण हो इसीलिए वर्णित विषय के अभिप्राय खोजना इतिहासकार के लिए आवश्यक होता है। पूर्वकालीन घटनाओं का स्पष्टीकरण करना, उन पर भाष्य करना, उसका मर्म उजागर करना अच्छे इतिहास का लक्षण है। इसलिए ई. एच. कार ने कहा है कि पटनाएँ नहीं बोलती, इतिहासकार उन्हें बोलने लगाता है। इसी अर्थ में डब्ल्यू. एच. वॉल्श ने इतिहास को 'पूर्वकालीन घटनाओं का अर्थपूर्ण निवेदन प्रतिपादित किया (History is not just a plain record of past events, but a significant record) ( सिर्फ भूतकालिक घटनाओं का साधारण लेखा नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण लेखा-जोखा है।)

सत्य का अवलोकन एवं निष्कर्ष ही इतिहास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्वरूप है। भूतकाल में हुई वास्तविक घटनाएँ ही इतिहास का विषय होती है। उन घटनाओं के लिए सत्यता का ठोस आधार आवश्यक होता है इतिहास में उन्हीं घटनाओं का स्थान होता है जो प्रमाणों के आधार पर प्रमाणित की। जा सका किसी भी व्यक्ति से सुनी सुनाई बातों, काल्पनिक बातों अथवा मिथकों को इतिहास में स्थान नहीं है। इसीलिए ई. एच. कार ने कहा है- History consists of ascertainable facts (इतिहास प्रमाणित तथ्यों का समावेश है।)। जिस ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर लेखन करना हो उसकी सत्यता का परीक्षण करने के उपरांत प्राप्त सत्य को इतिहास लेखन में सम्मिलित किया जाता है अर्थात् सर्वप्रथम सत्य की खोज और तत्पश्चात् सत्य कथन ही इतिहास के स्वरूप की आत्मा होते हैं। दो महत्वपूर्ण आयाम अर्थात् काल एवं स्थान, ये जिस तरह इतिहास का स्वरूप निश्चित करते हैं, उसी तरह निरंतरता तथा परिवर्तन इतिहास का स्वरूप निर्धारित करते हैं। भूतकालीन मानव जीवन इतिहास का वर्णित विषय होने से एवं निरंतरता तथा परिवर्तन मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलू होने से मानव जीवन का स्थायी एवं परिवर्तनशील स्वरूप उजागर करना ही इतिहास का स्वरूप है।

सत्यता की तरह ही वस्तुनिष्ठता भी इतिहास के स्वरूप का महत्त्वपूर्ण अंग है। ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करते समय उनका महत्व उजागर करते समय अथवा तर्कपूर्ण कड़ियाँ स्पष्ट करते समय इतिहासकार को तटस्थता का दृष्टिकोण अपनाकर बीक्षक की भूमिका का निर्वाह करना होता है। भूतकालीन घटनाओं का सत्य एवं यथार्थ प्रस्तुत करने के लिए वस्तुनिष्ठता महत्वपूर्ण होती है। वस्तुनिष्ठता न होने पर सौ प्रतिशत सत्य उजागर नहीं हो सकेगा लेकिन इस तरह की सौ प्रतिशत वस्तुनिष्ठता इतिहास लेखन में संभव नहीं है क्योंकि इतिहास भूतकाल एवं वर्तमान काल के मध्य निरंतर चलने वाला संवाद है और इसलिए ई एच. कार ने बीसवीं सदी में यह विचार प्रस्तुत किया कि इतिहास को स्पष्ट करते समय इतिहासकार का स्वयं का मत भी उसमें दिखाई देना अनिवार्य है। आर. जी. कॉलिंगवुड ने भी ई. एच. कार के विचार का समर्थन किया है।

मानव जीवन के भूतकाल के सत्य को खोजना उस सत्य की सामग्री को वैज्ञानिक पद्धति से संकलित करना और प्राप्त जानकारी को तार्किक रूप से कालगणना को ध्यान में रखकर व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना इतिहास का एक अन्य स्वरूप है एवं उसे प्रभावी परिणामजनक एवं व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना भी इतिहास के स्वरूप का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसी कारण Approaches to History नामक ग्रंथ में फाइन बर्ग कहते हैं कि “भूतकाल की मृत जानकारी को नीरस तरीके से प्रस्तुत करना इतिहास लेखन की विशेषता नहीं होनी चाहिए, बल्कि उस जानकारी पर भाष्य कर उस ऐतिहासिक प्रसंग का वर्णन रोचक ढंग से कर घटना को जीवंत कर देना ही इतिहास का स्वरूप होना चाहिए" (The writing of history is not simply a question of communicating dead information in a suitably dead manner, but of interpreting and bringing to life historical situations) ( इतिहास लेखन मात्र मृत जानकारी को बेजान तरीके से व्यक्त करना नहीं है बल्कि ऐतिहासिक परिस्थितियों को समझने और जीवंत बनाने का उत्तरदायित्व है। अतः स्पष्टतः इसका अर्थ यह कि इतिहास का स्वरूप दो प्रकार का होता है वैज्ञानिक एवं कलात्मक अर्थात् इतिहास विज्ञान भी है और कला भी।

इतिहास की मौलिक एवं भूतकालिक विशेषताओं की तरह ही उसकी कुछ तात्कालिक विशेषताएं भी हैं। ऐतिहासिक जानकारी पर विचार करते समय एक ही घटना के भिन्न-भिन्न तात्पर्य, एक ही विषय का स्पष्टीकरण भिन्न-भिन्न तरीके से प्रस्तुत होते दिखाई देता है। इस तरह का विचार काल का अनुगामी, काल के अनुसार बदलने वाला होता है एवं इससे इतिहास का तात्कालिक स्वरूप प्रकट होता है।

इसी तरह इतिहास लेखन के लिए चुने गए विषय का स्वरूप भी काल के अनुसार बदलता दिखाई देता है। पहले केवल राजनीतिक घटनाओं तथा महान व्यक्तियों के कार्यों को ही इतिहास में स्थान मिलता था लेकिन वर्तमान में सर्वांगीण मानव जीवन ही इतिहास का स्वरूप बन गया है।

इतिहास में सत्य तथ्यों को खोजने के प्रयास एवं वैज्ञानिक ढंग से नीतिमूल्यों के आधार पर उनका मूल्यांकन इतिहास का तात्कालिक स्वरूप प्रदर्शित करता है इतिहास के शोधक के लिए इतिहास के स्वरूप के पूर्वकालिक एवं तात्कालिक दोनों पक्षों को ध्यान में रखना इतिहास के समग्र प्रस्तुतीकरण हेतु अत्यंत आवश्यक है।

प्रमुख विद्वानों द्वारा इतिहास के स्वरूप को निम्नानुसार प्रस्तुत किया गया है। हेगल ने इतिहास के स्वरूप को एक बुद्धिसंगत प्रक्रिया के रूप में किंतु प्रकृति से भिन्न स्वरूप में स्वीकार किया है और कहा है कि इतिहास का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिसमें प्रक्रिया रेखावत् चलती हो एवं आवृत्तियों में नवीनता भी पायी जाती हो।

हेगेल का उपरोक्त कथन सत्य प्रतीत नहीं होता क्योंकि उनके कथन की समीक्षा करने पर उसमें  इतिहास के स्वरूप विश्लेषणान्तर्गत यह कमी पायी जाती है कि उन्होंने बुद्धि और भावना, दोनों को एक सी मानते हुए यह कहने की भूल की है कि सभी कर्म बुद्धि पर आश्रित होते हैं, तथापि यह विशेष प्रशंसनीय भी है कि इतिहास की प्रकृति को उन्होंने विश्व इतिहास में फलीभूत होते देखकर इतिहास के स्वरूप को व्यापक बनाने का प्रयास किया है।

जॉन डिवी के अनुसार इतिहास का स्वरूप निरंतर परिवर्तनशील और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार सदैव विकसित होता रहा है। विकसित होने पर जब वह विस्तृत हो जाता है।

तब अध्ययन की सुविधा के लिए उसके स्वरूप को छोटे-छोटे भागों में बाँटकर ही अध्ययन करने में सुगमता रहती है। इस आशय से वह इतिहास के स्वरूप निर्माण में इतिहासकार की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हैं। किंतु, उनका यह कथन उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि अनेक विद्वानों के अनुसार इतिहास में पुनरावृत्ति नहीं होती है।

कार्ल मार्क्स के विषय में प्रसिद्ध है कि इतिहास के स्वरूप विश्लेषण में वह हेगल का एक अर्थ में अनुयायी था तो दूसरे अर्थ में विरोधी था। अनुयायी इसलिए कि उसने अपने इतिहास दर्शन में हेगेल की द्वन्दात्मक पद्धति को स्वीकार किया था और विरोधी इस अर्थ में कि उसने विज्ञानवाद को भौतिकवाद से स्थापित किया था। इस तरह वह दार्शनिक व्याख्याओं के स्थान पर ऐतिहासिक व्याख्या करना चाहता था। कार्ल मार्क्स के अनुसार इतिहास का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो सतत् विकसित व परिवर्तित होता रहो उनके इतिहास का स्वरूप आधुनिक समस्याग्रस्त किंतु प्रयत्नशील कर्मठ श्रमिकों से संबद्ध है।

स्पेंगलर के अनुसार इतिहास का स्वरूप प्रकृति-विषयक और इतिहास विषयक, दोनों है। वह इसका निर्धारण सभ्यता और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में करते हैं। टायन्बी भी चुनौती और प्रतिक्रिया के आधार पर सभ्यता और संस्कृति को ही इतिहास के स्वरूप से संबद्ध करते हैं।

कॉलिंगवुड के अनुसार इतिहास का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि उसमें सुनिश्चित लक्ष्य एवं दिशा वाले बौद्धिक चिंतन द्वारा प्रस्तुत विचारों को समाहित किया गया हो, किंतु प्रत्येक विचार को नहीं।

यह केवल विज्ञान अथवा कला नहीं अपितु दोनों है। उनके इतिहास के वैज्ञानिक स्वरूप की सबसे बड़ी विशेषता वर्तमान के परिवेश में अतीत की व्याख्या है, अतः वे इतिहास को कैची और गोंद का स्वरूप प्रदान करके उसे विज्ञान की श्रेणी में रखे जाने को नहीं मानते और उसे विज्ञान माने जाने को एक 'भ्रम' की संज्ञा देते हैं। कॉलिंगवुड के अनुसार इतिहास केवल विज्ञान ही नहीं अपितु एक कला भी है प्रो. कार ने इतिहास के स्वरूप को अतीत की पटनाओं एवं कारण और परिणाम के पारस्परिक संबंधों को क्रम से प्रस्तुत किए जाने से संबद्ध किया है।

डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार इतिहास का स्वरूप उसे यथावत् स्वीकार कर लेने से संबद्ध न होकर घटनाओं के कारणों की वैज्ञानिक विधि से खोज से संबंधित होता है।

डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार ने इतिहास के स्वरूप को सत्य के अन्वेषण से संबद्ध किया है। डॉ. डी. डी. कौसाम्बी के अनुसार इतिहास का स्वरूप उत्पादन के संसाधनों एवं संबंधों में उत्तरोत्तर परिवर्तनों के तिथिक्रमानुसार प्रस्तुतिकरण से संबद्ध होता है।

आचार्य नरेन्द्रदेव की दृष्टि में इतिहास का स्वरूप सत्याचरण एवं संस्कारयुक्त मानव समाज से संबद्ध है। वह इतिहास के राष्ट्रीय समाजवादी स्वरूप को विशेष आदर देते थे और लोकतंत्र में संघर्ष से भी अनुराग रखते थे।

पं. जवाहरलाल नेहरू ने इतिहास के स्वरूप को भारत एक खोज एवं विश्व इतिहास की एक झलक में देखने का यथासंभव प्रयास किया था।

इसी प्रकार से विभिन्न विद्वानों ने इतिहास के स्वरूप को अपने अपने विचारानुसार वर्णित किया है। किंतु, सभी वर्णन हमें इतिहास को मुख्यतया दो स्वरूपों में सामने लाते हैं। प्रथम इतिहास का वैज्ञानिक स्वरूप एवं द्वितीय इतिहास का कलात्मक स्वरूप

इतिहास क्या है परिभाषित करें?

इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है। या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।

इतिहास क्या है और इसका महत्व?

इतिहास हमें विभिन्न देशों और सभ्यताओं के लोगों की संस्कृति के बारे में सिखाता है। यह हमें सभी समाजों और संस्कृतियों को समझने और उनका सम्मान करने में मदद करता है। इस प्रकार, इतिहास हमें दुनिया के सच्चे नागरिक बनना सिखाता है। ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस को 'इतिहास के पिता' के रूप में जाना जाता है।

इतिहास से क्या समझते हैं इतिहास की प्रकृति और महत्व का वर्णन करें?

आइए विस्तार से बात करते हैंइतिहास की प्रकृति अतीत की घटनाओं, लोगों और संस्कृतियों का अध्ययन है। यह मानवीय अनुभव को समझने का एक तरीका है। इतिहास का उपयोग अतीत के विभिन्न पहलुओं, जैसे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है।

इतिहास का सिद्धांत क्या है?

उनकी मान्यता थी कि इतिहास के अन्तर्गत हम अतीत की सामाजिक , सांस्कृतिक , आर्थिक और राजनीतिक जानकारी की अपेक्षा करते हैं और उसके कारणों की भी जानकारी की इच्छा रखते हैं। उनकी यह भी मान्यता है कि इतिहास किसी घटना के घटित होने का कोई एक कारण नहीं होता अपितु उसमें अनेक कारणों का योगदान होता है।