धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र क्या हैं? - dharm ke samaajashaastr ke kshetr kya hain?

 धर्म के समाजशास्त्र की विषय-वस्तु , धर्म के प्रकार - Subject matter of the sociology of religion , types of religion

धर्म का समाजशास्त्र में किसी भी धर्म के दर्शन और उसके सत्व का अध्ययन नहीं किया जाता है। • यदि कोई समाजशास्त्री इस तरह का प्रयास करता है तो उससे इस क्षेत्र में दक्ष होना चाहिए जो कि सामान्यता उनमें नहीं होता। क्योंकि हर धर्म में कुछ घटनाएं होती हैं, कुछ विशेषताएं होती हैं इनका अध्ययन समाजशास्त्र में समाजशास्त्री के द्वारा नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए हिंदू धर्म में एक पुनर्जन्म का सिद्धांत है और यह पूरा दर्शन है और समाज शास्त्री इसके अध्ययन पर ध्यान नहीं देता। धर्म से उत्पन्न या धर्म जनित अंतर क्रियाओं एवं व्यवहार ओं का अध्ययन धर्म का समाजशास्त्र करता है। जुलियेन फ्रेड ने वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की व्याख्या अधित रूप से की है जब कोई धर्मावलंबी किसी धर्म के संदर्भ में अर्थ पूर्ण व्यवहार करता है

तो उसका अध्ययन समाजशास्त्र के अंतर्गत आता है। यह समाजशास्त्री का काम नहीं है कि वह किसी धार्मिक संप्रदाय के धर्म संबंधी दर्शन का उसकी वैधता और उपयोगिता का अध्ययन करें। धर्म का समाजशास्त्र निश्चित रूप से धार्मिक व्यवहार को मनुष्य की लौकिक गतिविधि के रूप में अध्ययन करता है इस तरह की गतिविधि का रुझान या झुकाव धर्म के प्रति होता है।

वेबर के अनुसार “धार्मिक व्यवहार या अंतः क्रिया का प्रभाव नैतिकता, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ता है। यही नहीं धार्मिक व्यवहार का प्रभाव हमें सामाजिक संघर्षों में भी देखने को मिलता है। धर्म का समाजशास्त्रीय अध्ययन इस प्रकार आर्थिक और राजनीतिक अध्ययन भी बन जाता है और विशेषकर के नैतिक अध्ययन। मैक्स वेबर के धर्म के अध्ययनों का प्रारंभ आर्थिक अंतर क्रियाओं के अध्ययन से होता है उन्होंने धर्म के समाजशास्त्र को अपने जीवन में अंतिम वर्षों में अत्याधिक प्राथमिकता दी वेबर ने प्राथमिक रूप से यह देखने का प्रयास किया कि धार्मिक व्यवहार का प्रभाव आचार और अर्थव्यवस्था पर कितना और किस तरह से पड़ता है।

मैक्स बेवर यह भी मानते हैं कि धर्म और जादुई व्यवहार में तार्किकता होती है और ऐसा व्यवहार धार्मिक व्यवहार के अंतर्गत आता है।

धर्म के प्रकार (Types of Religion)

यह निश्चित करने के बाद की धर्म का दर्शन या उसका सत्व धार्मिक व्यवहार से भिन्न है वेबर ने धार्मिक व्यवहारों का संबंध धार्मिक प्रकारों से किया है धार्मिक व्यावहारों को लौकिक और पारलौकिक व्यवहार के रूप में देखा जाता। वेबर ने ने धर्म से जुड़े हुए दो प्रकारों का उल्लेख किया है

1. विश्वास मूलक धर्म या मुक्ति धर्म (Religion of Conviction or Salvation) - धर्म व्यक्ति के व्यवहार से जुड़े होते हैं और व्यक्ति का व्यवहार धर्म के समाजशास्त्र की विषय वस्तु है। जब मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यक्ति गतिविधियां करता है तब उसकी भावनाएं पवित्र और द होती है जिसके कारण व तपस्या करते हैं ऐसी स्थिति में वह केवल पवित्र कानून का ही पालन नहीं करता है बल्कि अपनी द धारणा के कारण वह यह सब कार्य करता है। वह कई कर्मकांड करता है जैसे व्रत, उपवास, एक पैर पर खड़े होकर पूजा करना आदि और उसे विश्वास रहता है कि उसके द्वारा किए गए कार्य उसे मोक्ष दिलाएंगे। इस तरह विभिन्न धर्म के समर्थकों की क्रिया के मोक्ष से जुड़ी होती है और उनका व्यवहार नीतिशास्त्रीय हो जाता है। मैक्स वेवर का कहना है कि मोक्ष मार्गीय धर्म के समर्थक तीन प्रकार की क्रियाओं को करते हैं.

1. मुक्ति मार्ग के समर्थक विशुद्ध रूप से कर्मकांडीय क्रिया या अनुष्ठान को करते हैं जिससे उनका व्यक्तिगत करिश्मा और रहस्य बढ़ जाता है।

2. यह समर्थक ऐसे सामाजिक कार्य करते हैं जिससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है जैसे समाज के प्रत्येक व्यक्ति के साथ भाईचारे का व्यवहार रखना और नीतिपरक व्यवहार करना और सभी व्यक्ति को सामान्य दृष्टि से देखना।

3. अपने आप को पूर्ण बनाने का प्रयास करना पूर्णता की प्राप्ति का यह प्रयास उनको मोक्ष के निकट ले जाता है।

इस तरह बेवर का कहना है कि मोक्ष प्राप्त करने वाले व्यक्ति अपने आप को मध्यम स्थिति में मानते हैं यह सामान्य जीवन से उठे होते हैं असाधारण धार्मिक जीवन से नीचे होते है। हालांकि यह सही है कि मुक्ति धर्म किसी को मोक्ष प्राप्ति नहीं दे पाता ऐसे व्यक्ति अपने आप को करिश्माई या रहस्य पूर्ण जरूर बना लेते हैं।

धर्म का समाजशास्त्र मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों के द्वारा जो क्रिया की जाती है उनका नैतिकता राजनीति और अर्थ पर क्या प्रभाव पड़ता है, का अध्ययन करता है।

2. कर्मकांड से जुड़ा धर्म- यह धर्म का दूसरा प्रकार है इस धर्म में धर्म का समर्थक कर्म कांडी होता है। इस का सबसे अच्छा उदाहरण चीन के कन्फ्यूशियस धर्म और यहूदी बाद में देखने को मिलता है। यह धर्म ऐसे हैं जो एक संप्रदाय की तरह स्थापित है और इनकी विश्वास और धारणाएं रुढीगत है इनके लिए धर्म के जो भी नियम है वह पवित्र है इन धर्मों में परंपराओं का दबाव इतना अधिक होता है कि इनके समर्थक की नैतिकता केवल धार्मिक व्यवहार तक ही सीमित हो जाती है। धार्मिक क्षेत्र के बाहर नैतिक व्यवहार को ताक पर रख देते हैं। इन लोगों लिए दुनिया का अर्थ द्वितीयक हो जाता है और कर्मकांड प्राथमिक होता है यह धर्म के रहस्यवाद को भूल जाते हैं ये धार्मिक संस्कारों को केवल संस्कार ही मानते हैं। 


  धर्म के समाजशास्त्र का प्रमुख आधार - The major basis of the sociology of religion

A. धार्मिक तथा आर्थिक घटना एक दूसरे से संबंधित और एक दूसरे पर निर्भर हैं। इनमें से किसी को भी दूसरे का निर्णायक मान लेना उचित नहीं होगा वास्तव में यह दोनों एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं।

B. मैक्स वेबर के अनुसार हमें हमेशा किसी भी प्रकार की एकतरफा विवेचना से बचना चाहिए कोई भी के एक तरफा दृष्टिकोण पद्धति या व्याख्या अवैज्ञानिक और गलत हैं। ना तो केवल इतिहास की आर्थिक व्याख्या और ना ही समस्त सामाजिक घटनाओं की धार्मिक आधार पर की गई व्याख्या व विवेचना सत्य और यथार्थ है क्योंकि यह दोनों कारक एक दूसरे से संबंधित और एक दूसरे पर आधारित होते हैं। इन दो कारकों के अतिरिक्त अन्य अन्य अनेक दूसरे कारण भी हैं जो मानव समाज के अस्तित्व तथा निरंतरता के लिए उत्तरदायी है।

C. मैक्स वेबर के अनुसार अध्ययन पद्धति के आधार के रूप में इस में से किसी एक कारक को एक परिवर्तनीय तत्व माना जा सकता है। मैक्स वेबर धार्मिक कार्य को इस प्रकार का एक परिवर्तनीय तत्व मानकर उसका आर्थिक तथा अन्य सामाजिक घटनाओं पर प्रभाव मालूम करने का प्रयत्न करते हैं।

D. मैक्स वेबर ने अपने अध्ययन में सभी धर्म से संबंधित समस्त तथ्यों का स्पष्टीकरण करके केवल आदर्श प्रारूपों को निश्चित रूप से पृथक करते हुए उनके कार्य कारण प्रभाव तथा महत्व की व्याख्या की हैं। इस प्रकार आर्थिक कारक में भी आपने आदर्शात्मक प्रारूपों को तुलनात्मक अध्ययन के लिए चुना है।

धर्म के अधिकारों के अंतर्गत मैक्स वेबर ने वर्ण से संबंधित विभिन्न आध्यात्मिक सिद्धांतों और विचारों को भी नहीं बल्कि पश्चिम के समस्त व्यावहारिक तरीकों को भी सम्मिलित किया है जो कि एक धर्म अपने सदस्यों के लिए निश्चित करता है।

इस सब को प्रमाणित करने के लिए मैक्स वेबर ने विश्व के महान धर्मों को चुना हैं। मैक्स वेबर ने में धार्मिक और आर्थिक कारकों के संबंधों को जानने के लिए विश्व के 6 प्रमुख धर्मों का अध्ययन किया।

यह धर्म है हिंदू, बौद्ध, इसाई, कन्फ्यूशियस, इस्लाम और यहूदी उन्होंने प्रत्येक धर्म में पाए जाने वाले आर्थिक विचारों का अध्ययन किया जो उस धर्म से संबंधित लोगों के आर्थिक व सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। इन अध्ययनों के आधार पर वेबर ने स्पष्ट किया कि केवल प्रोटेस्टेण्ट धर्म में ही कुछ ऐसी आर्थिक आचार पाए जाते हैं जिन्होंने आधुनिक पूंजीवाद को जन्म दिया। हालांकि इसके लिए कई अन्य कारण भी उत्तरदायी रहे हैं। वेबर कहते हैं कि यूरोप में जब रोमन कैथोलिक धर्म प्रचलित था। तब पूंजीवाद नहीं पनपा। किंतु धार्मिक सुधार आंदोलन के कारण प्रोटेस्टेण्ट धर्म का उदय हुआ तभी आधुनिक पूंजीवाद का उदय हुआ। 

पूंजीवाद का सार (Essence of Capitilism)

मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक द प्रोटेस्टेण्ट एथिक्स एंड द स्पिरिट ऑफ कैपीटलिज्म इसमें धर्म संबंधी विचारों की विवेचना में पूंजीवाद और प्रोटेस्टेण्ट नीति को अधिक महत्व दिया है।

मैक्स वेबर ने मानव के आर्थिक आचरणों पर धार्मिक प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए 1904 और 1905 में जो लेख लिखे थे। उन्हीं लेखों के आधार पर यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी और इसी पुस्तक में मैक्स वेबर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीतियां पूंजीवाद के विकास को प्रभावित करती है।

इसका प्रमुख उदाहरण मैक्स वेबर को अपने परिवार में ही देखने को मिला मैक्स वेबर ने पाया कि उनके पारिवारिक जीवन में ही व्यक्तिवाद तथा आर्थिक आचरण से संबंध नैतिकता का एक अनूठा मिश्रण देखने को मिल रहा है। मैक्स वेबर के चाचा कॉल डेविड वेबर एक ऐसे उद्यम के संस्थापक थे। जो गांव के घरेलू उद्योगों पर आधारित था। मैक्स वेबर ने देखा कि उनमें कठिन परिश्रम, दिखावे का आभाव रहन सहन के सहज तरीके, दयालुता और तर्क निपुणता आदि ऐसे गुण समाहित थे जो आधुनिक पूंजीवाद के बड़े उद्यम कर्ताओं में झलकते थे। मैक्स वेबर ने अपने अध्ययन में पाया की पूंजीवाद एक विशेष प्रकार की नैतिकता है। जिसमें अनेक विचारों का समावेश देखा जा सकता है।

मैक्स वेबर के अनुसार आधुनिक औद्योगिक जगत के मनुष्य की एक विशेषता है कि उसे कठोर परिश्रम करना चाहिए। उन्हीं के अनुसार कठोर कार्य एक कर्तव्य है और इसका फल इसी में निहित है। किसी भी मनुष्य को अपने व्यवसाय में कार्य इस भावना से नहीं करना चाहिए कि उसे यह काम करना पड़ रहा है बल्कि उसकी सोच यह होनी चाहिए कि वह ऐसा चाहता है और यही मनुष्य के शील और व्यक्तिगत संतुष्टि का आधार है। अमेरिका में एक प्रसिद्ध कहावत है “यदि कोई काम करने योग्य है तो उसे सबसे अच्छे ढंग से पूरा करना चाहिए।”

मैक्स वेबर के अनुसार यह कहावत पूंजीवाद का निचोड़ है क्योंकि इस घटना का संबंध व्यक्ति को आर्थिक जीवन में मिलने वाली सफलता से है। इसलिए मैक्स वेबर ने पूंजीवाद के इस सार को स्पष्ट करने के लिए इसकी तुलना अन्य आर्थिक क्रिया से की है। जिसका नाम उन्होंने परम्परावाद दिया आर्थिक क्रियाओं में परम्परावाद वह स्थिति है। जिसमें व्यक्ति कम काम और प्रतिफल अधिक चाहता है। काम के दौरान आराम अधिक पसंद करता है और किसी भी नई प्रविधियों का उपयोग नहीं करता और ना ही उपयोग करने की इच्छा रखता है। वह कम आय से संतुष्ट हो जाता है। सैद्धांतिक रूप से धन संचय का प्रयास करता है और अकस्मात धन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है यह सारी विशेषताएं पूंजीवाद के सार के विपरीत है।

मैक्स वेबर के अनुसार पूंजीवाद के सार का गुण केवल पश्चिमी समाजों का ही एक मात्र गुण नहीं है। अन्य समाजों में भी ऐसे लोग हुए हैं। जिन्होंने अपने व्यापार को सुचारु रुप से चलाने के लिए कठिन परिश्रम किया और जो अपनी बचत को व्यापार को बढ़ाने में लगाते हैं और उनका जीवन आडंबर रहित था। इस तरह की विशेषताएं पश्चिमी समाजों में ही अधिक देखने को मिलती है। उन समाजों में यह एक व्यक्तिगत गुण ना होकर जीवन यापन का एक सामान्य तरीका हो गया है। इस प्रकार जनसामान्य में व्याप्त कठोर परिश्रम व्यापारिक आचार सार्वजनिक ऋण व्यवस्था पूंजी का निरंतर विनियोजन तथा परिश्रम के प्रति स्वैच्छिक प्रवृत्ति पूंजीवाद का सार है।

इसके विपरीत अचानक आर्थिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करना परिश्रम को बोझ और अभिशाप समझकर उससे दूर भागना सिद्धांतहीन रूप से पूंजी का संचय करना तथा जीवन यापन के लिए साधारण आय से संतुष्ट हो जाना सामान्य आर्थिक परिस्थितियां अथवा परम्परावाद है। 

प्रोटेस्टेण्ट नीति (Protestant Ethics )

पूंजीवाद सार को स्पष्ट करने के बाद मैक्स वेबर ने ऐसे कारणों को भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया जिसके आधार पर पूंजीवाद की उत्पत्ति को धार्मिक सुधार आंदोलनों के विचारों में खोजा जा सके। मैक्स वेबर से पहले पेटी (Petty), मॉन्टेस्क्यू (Montesquieu), बकल (Buckle), किट्स(Keats) आदि ने प्रोटेस्टेण्ट धर्म तथा व्यापारिक प्रवृत्ति के विकास के सहसंबंधों पर अपने विचार प्रकट किए थे। अपने विचारों की प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लिए मैक्स वेबर ने अपने एक विद्यार्थी वडेन (Baden) के द्वारा एक राज्य में धार्मिक संबंधों और शिक्षा के चुनाव पर अध्ययन करने के लिए कहा। बडेन ने अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म के विद्यार्थी कैथोलिक धर्म के विद्यार्थियों की तुलना में उन संस्थाओं में अधिक प्रवेश लेते थे जो कि औद्योगिक जीवन से संबंधित थे।

उसने अपने निष्कर्ष में यह भी बताया कि उस समय यूरोप से कुछ अल्पसंख्यक समूहों ने कठोर परिश्रम करके अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कमियों को पूरा कर लिया था। जबकि कैथोलिक धर्म के अनुयायियों ने ऐसा कुछ नहीं किया। बडेन के इस निष्कर्ष के आधार पर वेबर ने यह निष्कर्ष दिया कि धार्मिक नीति और आर्थिक क्रियाओं व आर्थिक विकास के बीच एक सहसंबंध पाया जाता है। वेबर ने अध्ययन में यह भी पाया कि जिन राज्यों और नगरों ने प्रोटेस्टेण्ट धर्म को स्वीकार कर लिया है वे आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। इस तरह से मैक्स वेबर ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीतियां किस प्रकार लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई और आर्थिक दृष्टि से आर्थिक लाभ प्राप्त करने में सहायक हो गई। नैतिकतावादी दृष्टिकोणसंग्रह की प्रवृत्ति ईमानदारी श्रम के प्रति निष्ठा यह सभी प्रोटेस्टेण्ट धर्म के प्रमुख तत्व हैं। जिनके कारण यूरोप के विभिन्न देशों में आर्थिक विकास यानी पूंजीवाद का विकास हुआ।

मैक्स वेबर का 'द प्रोटेस्टेण्ट द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म' लिखने का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक जीवन पर धार्मिक नीतियों के प्रभाव को स्पष्ट करना था। मैक्स वेबर अपने विचार के द्वारा यह स्पष्ट करना चाहते थे कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीतियां किस प्रकार उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई जो आर्थिक लाभों को तर्कनापरक दृष्टि से प्राप्त करने के पक्ष में थे। मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेण्ट धर्म के शुचारवादी पादरियों के लेखों की परीक्षा की तथा उनके द्वारा बनाए गए काल्विन वादी सिद्धांतों का समुदाय के दैनिक आचरणों पर प्रभाव स्पष्ट किया। आगे चलकर प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीति के रूप में सेंट पॉल के इस आदेश को व्यापक रूप से ग्रहण किया जाने लगा कि “जो व्यक्ति काम नहीं करेगा वह रोटी नहीं खाएगा तथा निर्धन की तरह धनवान भी ईश्वर के गौरव को बढ़ाने के लिए किसी ना किसी व्यवसाय में अवश्य जुड़ेंगे।

" इस तरह परिश्रमी एवं सक्रिय जीवन ही प्रोटेस्टेण्ट धर्म की निष्ठा के अनुरूप है। रिचार्ड बैक्सटर ने कहा है कि केवल कर्म के लिए ही ईश्वर हमारी और हमारी क्रियाओं की रक्षा करता है। परिश्रम ही शक्ति का नैतिक तथा प्राकृतिक उद्देश्य है केवल परिश्रम से ही ईश्वर की सबसे अधिक सेवा तथा सम्मान हो सकता है। इसी तरह उस समय के एक अन्य संत जॉन बनियन ने कहा था कि यह नहीं कहा जाएगा कि तुम क्या विश्वास करते थे। केवल यह कहा जाएगा कि क्या तुम कुछ परिश्रम भी करते थे या केवल बातूनी थे।

इस तरह प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीति में मानव के सक्रिय जीवन को भी ईश्वर की भक्ति के रूप में मान लिया गया था और प्रोटेस्टेंट धर्म में परिश्रम को एक विस्तृत नियमावली के रूप में स्वीकार किया गया और इसी नियमावली ने आर्थिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आधुनिक पूंजीवाद के लक्षण

वेबर ने धार्मिक कारक को एक परिवर्तनीय तत्व के रूप में स्वीकार किया, और आर्थिक व्यवस्था पर उसका प्रभाव ज्ञात करने के लिए धर्म की आर्थिक आधार संबंधी व्याख्या को अपने विषय का आधार माना।

वेबर इसी आधार पर भी धर्म के आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को खोजने का प्रयत्न करते हैं। धर्म के आर्थिक आधार व्यवस्था से वेबर का आशय व्यवहार के उन व्यावहारिक तौर तरीकों से है जो एक धर्म अपने सदस्यों के ऊपर समान रूप से निश्चित करता है। अपने इस अध्ययन के बाद वेबर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रोटेस्टेंट धर्म की आचार संहिता ही आर्थिक क्षेत्र में पूंजीवाद को जन्म देती है। मैक्स वेबर के अनुसार “प्रोटेस्टेंट धर्म में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो ऐसी आर्थिक मान्यताओं को उत्पन्न करने में मददगार साबित हुई जिन्हें हम पूंजीवाद के नाम से जानते हैं और वह प्रोटेस्टेंट सुधार ही था जिसने पूजावादी अर्थव्यवस्था के विकास में प्रत्यक्ष तौर पर प्रेरणा प्रदान की।" मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट धर्म और पूंजीवाद के संबंध को प्रमाणित करने हेतु इन दोनों के आदर्श प्रारूपों को चुना है वेबर के अनुसार आधुनिक पूंजीवाद के लक्षण निम्नानुसार है।

1. अधिकतम लाभ कमाना सर्व प्रमुख आधार अथवा उद्देश्य

2. व्यक्तिगत संपत्ति को मान्यता

3. मिल तथा कारखानों में उत्पादन

4. उद्योग व्यापार व व्यवसाय का बड़े पैमाने पर विवेकपूर्ण तथा वैज्ञानिक संगठन

5. उत्पादित वस्तुओं की संगठित विक्रय व्यवस्था

6. कार्यों में अधिक कुशलता तथा निपुणता

7. अत्याधिक श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण

8. कार्य अथवा व्यवसाय में कुछ व्यक्ति ही धन तथा सम्मान के पात्र होते हैं

9. नवीनता का आदर एवं अकुशल तथा पुराने का विरोध

मैक्स वेबर ने तो प्रोटेस्टेंट धर्म में पाए जाने वाले आर्थिक विचारों का भी उल्लेख किया है जिसने की आधुनिक पूंजीवाद को जन्म दिया मैक्स वेवर का कहना था कि पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख कारण प्रोटेस्टेंट धर्म ही है अपने इस विचार की पुष्टि के लिए वेबर ने प्रोटेस्टेंट धर्म की आचार व्यवस्था के आदर्श प्रारूपों का चयन किया है। मैक्स वेबर ने तो प्रोटेस्टेण्ट धर्म में पाए जाने वाले आर्थिक विचारों का भी उल्लेख किया है। जिसने की आधुनिक पूंजीवाद को जन्म दिया। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने आधुनिक पूंजीवाद की उन शिक्षाओं एवं उद्देश्यों का वर्णन किया हैं जो सफल व्यवसाय एवं पूंजीपति बनने के लिए आवश्यक है। यह इस प्रकार है:

1. समय धन है।

2. धन से धन कमाया जाता है।

3. एक पैसा बचाना ही पैसा कमाना है।

4. ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है।

5. जल्दी सोना और जल्दी उठना व्यक्ति को स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनाता है।

6. कार्य ही पूजा है।

मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेण्ट धर्म के आचार की तुलना दुनिया के दूसरे धर्मों से की और अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि केवल प्रोटेस्टेण्ट धर्म ही एक ऐसा धर्म है। जिस के आर्थिक परिणाम अधिक स्पष्ट और दूरगामी है। यह धर्म लोगों को ईमानदार और उत्साही होने परिश्रम करने, मितव्ययता और पैसा बचाने पर जोर देता है जो कि पूंजीवाद को लाने और विकसित करने के लिए आवश्यक है। यहां पर हम प्रोटेस्टेण्ट धर्म के विचारों पर ही चर्चा करेंगे, जिन्होंने कि पूरे यूरोप के आर्थिक जीवन को प्रभावित किया है।

कार्य ही पूजा है। प्रोटेस्टेण्ट धर्म कर्म को ही पूजा मानता है और विश्वास करता है कि परिश्रम से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि प्रोटेस्टेण्ट धर्म परिश्रम पर बल देता हैं। इसलिए उसने पूंजीवाद के विकास में अपना योगदान दिया है। इसके विपरित कैथोलिक धर्म में परिश्रम कर जीवन यापन करना अच्छी बात नहीं है।

ब्याज वसूलने की छूट प्रोटेस्टेण्ट धर्म में धन से धन कमाने को अच्छा माना गया है अर्थात एक व्यक्ति ब्याज पर पैसा देकर उससे और पैसा कमा सकता है। इसके विपरीत कैथोलिक धर्म एवं इस्लाम में ब्याज लेना बुरा माना गया है। पैसा देकर धन कमाने की स्वीकृति ने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया है।

प्रोटेस्टेण्ट धर्म बचत पर जोर देता है और उसके अनुसार बचत से ही संपत्ति बढ़ती है और पूंजीवाद पनपता है। प्रोटेस्टेण्ट धर्म का एक आर्थिक आचार है। एक पैसा बचाना एक पैसा कमाने के बराबर है। 

व्यावसायिक आचार प्रोटेस्टेण्ट धर्म का मानना है कि व्यक्ति के जीवन में व्यवसायिक सफलता और असफलता के आधार पर ही कहा जा सकता है कि उसकी आत्मा मरने के बाद स्वर्ग में जाएगी या नर्क में अर्थात इस धर्म में प्रत्येक व्यक्ति को यह नैतिक शिक्षा दी जाती है कि वह कठोर परिश्रम करके व्यवसाय में सफलता प्राप्त करें। जिससे कि ईश्वर प्रसन्न होगा। इस तरह इसके द्वारा पूंजीवाद का विकास होता है क्योंकि पूंजीवाद के लिए परिश्रम उत्साह और व्यावसायिक सफलता आवश्यक है।

शराबखोरी पर रोक और ईमानदारी को बढ़ावा प्रोटेस्टेण्ट में शराब पीकर काम करने को अनुचित बताया गया है एवं ईमानदारी से काम करने को उचित बताया गया है। उसका मुख्य कारण यह भी है कि शराब पीकर औद्योगिक क्षेत्र में काम करने पर जान का खतरा बढ़ जाता है और शराबखोरी रोकने से पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा मिलता है क्योंकि इसमें व्यक्ति परिश्रम अधिक कर सकता है।

अवकाश पर रोक। प्रोटेस्टेण्ट धर्म में काम करते समय अकारण ही अधिक समय तक अवकाश लेने को उचित नहीं माना गया है। पूंजीवाद की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति छुट्टी कम ले और कार्य अधिक करें।

मैक्स वेबर ने अपनी इन सब बातों की पुष्टि के लिए यूरोप के विभिन्न देशों का अध्ययन किया और ऐतिहासिक प्रमाण जुटाए। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड अमेरिका और पोलैंड में पूंजीवाद का विकास हुआ इसकी तुलना में इटली, स्पेन जहां पर कि कैथोलिक धर्म के समर्थक अधिक है, विकास कम हुआ। प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीतियों के अध्ययन से वेबर को इनके आधारों में कई समानताएं ज्ञात हुई और इसी आधार पर उन्होंने कारण और परिणाम की व्याख्या की। आपने प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीति को कारण और पूंजीवाद को परिणाम माना है। वेबर ने यह स्पष्ट करने का भी प्रयास किया कि यूरोप के कई देशों में पूंजीवाद के आरंभ और विकास के लिए प्रोटेस्टेण्ट धर्म की नीतियां ही सहायक रहे और इस धर्म की नैतिक शिक्षा धीरे-धीरे इस के समर्थकों के जीवन में ढल गई और वह परिश्रम से आजीविका कमाने को उचित मानने लगे। इस तरह इस धारणा ने पूंजीवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


धर्म से आप क्या समझते हैं धर्म के समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र बताइए?

धर्म का समाजशास्त्र निश्चित रूप से धार्मिक व्यवहार को मनुष्य की लौकिक गतिविधि के रूप में अध्ययन करता है इस तरह की गतिविधि का रुझान या झुकाव धर्म के प्रति होता है। वेबर के अनुसार “धार्मिक व्यवहार या अंतः क्रिया का प्रभाव नैतिकता, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ता है।

धर्म का समाजशास्त्र क्या है?

मानवशास्त्री टायलर ने धर्म को परिभाषित करते हुए एक अलौकिक सत्ता में विश्वास को धर्म कहा है समाजशास्त्री इस्माइल दुर्खीम के अनुसार धर्म विश्वास की एकबद्धता है और इसमें पवित्र वस्तुओं से संबंधित क्रियाएं होती हैं।

समाजशास्त्र के क्षेत्र क्या है?

के अनुसार, “समाजशास्त्र मानवीय अन्तर्सम्बन्धों के स्वरूपों का विज्ञान है । " मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता है।" इसी भाँति, सोरोकिन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं के सामान्य स्वरूपों, प्ररूपों और विभिन्न प्रकार के अन्तः सम्बन्धों का सामान्य विज्ञान है ।

समाजशास्त्र में धर्म कितने प्रकार के होते हैं?

सामान्य तौर पर धर्म के दो प्रकार हैं। पहला स्वाभाविक धर्म और दूसरा भागवत धर्म। स्वाभाविक धर्म का अर्थ है जिस पर अमल करने से दैहिक संरचना से संबंधित कार्यो की पूर्ति होती है, यानी आहार, निद्रा और मैथुन आदि क्रियाएं।