उत्तर प्रदेश में पंचायती राज्य [1]व्यवस्था वर्ष १९५२ से लागू है। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में त्रि -स्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू है। Show
जिला पंचायत[संपादित करें]उत्तर प्रदेश 75 जिलों में विभाजित है और प्रत्येक जिले में जिला पंचायत का प्राविधान है। इसके मुख्य अंग हैं : मुख्य विकास अधिकारी[संपादित करें]यह राज्य सरकार का राजपत्रित अधिकारी है जो जिला पंचायत का पदेन सचिव होता है। सदस्य[संपादित करें]यह सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से निर्वाचित होते हैं। क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक )[संपादित करें]प्रत्येक जिला क्षेत्र पंचायतों में विभक्त है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में ८२१[2] ब्लॉकों में विभक्त है। इसके मुख्य अंग हैं : ब्लॉक प्रमुख[संपादित करें]प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित ब्लॉक के सदस्यों में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ब्लॉक प्रमुख पद के लिए मनोनीत किया जाता है। खंड विकास अधिकारी[संपादित करें]यह राज पत्रित अधिकारी सरकारी प्रतिनिधि है जो क्षेत्र पंचायत का सचिव होता है। सदस्य[संपादित करें]यह जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से निर्वाचित होते हैं। इन्हें बी डी सी सदस्य भी कहते हैं। ग्राम पंचायत[संपादित करें][3] प्रत्येक ब्लॉक ग्राम पंचायतों में विभक्त है. उत्तर प्रदेश में 58115[4] ग्राम पंचायतें हैं। पंचायतों में नागरिक चार्टर निर्धारित है।[5] इसके मुख्य अंग हैं : प्रधान[संपादित करें]यह प्रत्यक्ष मतदान द्वारा ग्राम के मतदाताओं से निर्वाचित ग्राम पंचायत विकास अधिकारी[संपादित करें]यह अराजपत्रित सरकारी कर्मचारी है जो ग्राम पंचायत का सचिव होता है। इसे पहले पंचायत सेवक कहते थे। बाद में सरकार ने पंचायत सेवक के नाम को बदल कर ग्राम पंचायत अधिकारी कर दिया। सदस्य[संपादित करें]एक ग्राम वार्डों में विभक्त होता है जिसमे प्रत्यक्ष मतदान द्वारा एक सदस्य निर्वाचित होता है। मतदान में वार्ड के सदस्य ही भाग लेते हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]
मध्य प्रदेश में पंचायत का चित्र पंचायती राज व्यवस्था, ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन की प्रणाली है। जिस तरह से नगरपालिकाओं तथा उपनगरपालिकाओं के द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन चलता है, उसी प्रकार पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन चलता है। पंचायती राज संस्थाएँ तीन हैं- (1) ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत (2) ब्लॉक (तालुका) स्तर पर पंचायत समिति (3) जिला स्तर पर जिला परिषद इन संस्थाओ का काम आर्थिक विकास करना, सामाजिक न्याय को मजबूत करना तथा राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की योजनाओं को लागू करना है, जिसमें ११वीं अनुसूची में उल्लिखित 29 विषय भी हैं। भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगधरी गांव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।[1] परिचय एवं इतिहास[संपादित करें]भारत में ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है। वर्ष 1882 में उन्होंने स्थानीय स्वशासन सम्बंधी प्रस्ताव दिया। 1919 के भारत शासन अधिनियम के तहत प्रान्तों में दोहरे शासन की व्यवस्था की गई तथा स्थानीय स्वशासन को हस्तान्तरित विषयों की सूची में रखा गया। स्वतंत्रता के पश्चात् वर्ष 1957 में योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम (वर्ष 1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम (वर्ष 1953) के अध्ययन के लिये ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन किया गया। नवंबर 1957 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था- ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर एवं ज़िला स्तर लागू करने का सुझाव दिया। वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद ने बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें स्वीकार की तथा 2 अक्तूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश की पहली त्रि-स्तरीय पंचायत का उद्घाटन किया गया। वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर), पंचायत समिति (मध्यवर्ती स्तर पर) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर) शामिल हैं। पंचायती राज से संबंधित विभिन्न समितियाँ पंचायती राज से संबंधित विभिन्न समितियाँ
संवैधानिक प्रावधान[संपादित करें]भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। 1993 में संविधान में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी है। पंचायती राज पर एक दृष्टि में[संपादित करें]24 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था। 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
1) संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना और उनका निष्पादन करना 2) कर, ड्यूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार 3) राज्यों द्वारा एकत्र करों, ड्यूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण == ग्राम पंचायत == सभा किसी एक गाँव या पंचायत का चुनाव करने वाले गाँवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना। पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो। ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें। ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएँ बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें। ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना। ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएँ तैयार करना। प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना। 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो: ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना। ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे। 73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो। ग्राम सभा 1993 की धारा 6(1) के अनुसार राज्यपाल द्वारा अनुसूचित किया गया की एक ग्राम सभा होगी। धारा 8 पचायतो का गठन और धारा 9 द्वारा पंचायत अवधि का प्रावधान किया गया ! पंचायती राज की सफलता में चुनौतियाँ[संपादित करें]
पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त करने के उपाय[संपादित करें]उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए,
महिलाओ को 33% पंचायत में सीट उपलब्ध करानी चाहिए।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
उत्तर प्रदेश पंचायत राज संशोधन अधिनियम कब पारित किया गया?पंचायत राज अधिनियम, 1947
Panchayat Raj Act, 1947.
पंचायती राज अधिनियम कब पारित किया गया?भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगधरी गांव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।
उत्तर प्रदेश में पंचायती राज दिवस कब बनाया गया?पंचायती राज व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप दिया गया और इसके लिए संविधान में 73वां संशोधन किया गया और इसी दिन से यह प्रभाव में आया। पंचायती राज मंत्रालय प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाता है क्योंकि इसी दिन संविधान में 73वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में आई थी।
73वां संविधान संशोधन कब लागू हुआ 1992 1993 1994 1995?संसद द्वारा संवैधानिक ( 73 वां संशोधन ) संशोधन बिल को पास कर दिया गया और यह अधिनियम 23 अप्रैल 1993 को लागू किया गया ।
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