रम्माण उत्सव (Ramman Festival) : रम्माण उत्सव सलूड़ गांव की 500 वर्ष पुरानी संस्कृति है। रम्माण उत्सव में रामायण पाठ किया जाता है जिसमें बिना संवादों के गीतों, ढोल और ताल की लय पर मुखौटा शैली पर रामायण का मंचन किया जाता है। Show 2 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को द्वारा रम्माण उत्सव को विश्वधरोहर घोषित किया गया है। आइये जानते हैं उत्तराखंड कारम्माण महोत्सव क्या है और रम्माण उत्सव का इतिहास – Table of Contents
रम्माण उत्सव (Ramman Festival)उत्तराखण्ड का जिक्र वैदिक काल से होता आ रहा है, इस लिए आज भी उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की सेकड़ों विधाएं मौजूद हैं, जिनमें से कई विधाएं विलुप्त हो गई है और कई विधाएं विलुप्त होने की कगार पर पहुच चुकी है, लेकिन कई लोगों के अथक प्रयासों एवं दृढ़ निश्चय के द्वारा कई विधाओं के संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किया है। और उत्तराखण्ड को समूचे विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान दिलाई है। चाहे वह विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा नंदा राजजात यात्रा हो या फिर चंपावत के देवीधुरा में प्रसिद्ध बग्वाल युद्ध, यही सब पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है, जो उत्तराखंड की लोक संस्कूति से रू-ब-रू कराती हैं। साथ ही वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक रम्माण है। Ramman Festival (रम्माण उत्सव की झांकी गणतन्त्र दिवस के अवसर पर)रम्माण क्या हैरम्माण उत्सव उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड़ गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल में आयोजित होता है। इस गांव के अलावा डुंग्री, बरोशी, सेलंग गांवों में भी रम्माण का आयोजन किया जाता है। इसमें सलूड़ गांव का रम्माण ज्यादा लोकप्रिय है। इसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की संयुक्त पंचायत करती है। रम्माण मेला कभी 11 दिन तो कभी 13 दिन तक भी मनाया जाता है। यह विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक श्रृंखला है। इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि विविध रंगी आयोजन होते हैं। इसमें परम्परागत पूजा-अनुष्ठान तथा मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित होते है। यह भूम्याल देवता के वार्षिक पूजा का अवसर भी होता है एवं परिवारों और ग्राम-क्षेत्र के देवताओं से भेंट करने का मौका भी होता है। रम्माण नाम की उत्पत्तिअंतिम दिन लोकशैली में रामायण के कुछ चुनिंदा प्रसंगों को प्रस्तुत किया जाता है। रामायण के इन प्रसंगों की प्रस्तुति के कारण यह सम्पूर्ण आयोजन रम्माण के नाम से जाना जाता है। इन प्रसंगों के साथ बीच-बीच में पौराणिक, ऐतिहासिक एवं मिथकीय चरित्रों तथा घटनाओं को मुखौटा नृत्य शैली के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य शैली
रम्माण के विशेष नृत्य
सलूड़-डुंग्रा से विश्ब धरोहर तक का सफ़ररम्माण कौथिग (उत्सव) वर्ष 2007 तक सलूड़ तक ही सीमित था। लेकिन गांव के ही शिक्षक डॉ. कुशल सिंह भंडारी की मेहनत का नतीजा था, कि आज रम्माण को विश्व धरोहर में स्थान मिला हुआ है। डॉ. भंडारी ने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। उसके बाद इसे गढ़वाल विवि लोक कला निष्पादन केंद्र की सहायता से वर्ष 2008 में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र तक पहुंचाया। इस संस्थान को रम्माण की विशेषता इतनी पसंद आयी कि कला केंद्र की पूरी टीम सलूड-डूंग्रा पहुंची और वे लोग इस आयोजन से इतने अभिभूत हुए कि 40 लोगों की एक टीम को दिल्ली बुलाया गया। इस टीम ने दिल्ली में भी अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं। बाद में इसे भारत सरकार ने यूनेस्को भेज दिया। 2 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को ने पैनखंडा में रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया। तथा आईसीएस (ICS) के दो सदस्यीय दल में शामिल जापानी मूल के होसिनो हिरोसी तथा यूमिको ने ग्रामवासियों को प्रमाणपत्र सौंपे। इस सफलता का श्रेय गढ़वाल विश्वद्यिालय के प्रोफेसर दाताराम पुरोहित, प्रसिद्ध छायाकार अरविंद मुद्गिल, रम्माण लोकजागर गायक थान सिंह नेगी व डॉ. कुशल सिंह भंडारी को जाता है। हर वर्ष आयोजित होने वाला रम्माण का शुभ मुहूर्त बैसाखी पर निकाला जाता है। यूनेस्को व संस्कृति विभाग के सहयोग से आज गांव में रम्माण से जुड़े पौराणिक एवं पारंपरिक मुखौटों के लिए एक विशाल म्यूजियम तैयार किया जा रहा है। इस म्यूजियम में रम्माण से जुड़ी अन्य पौराणिक वस्तुओं को भी संग्रहीत किया जाएगा। उत्तराखंड का कौन सा लोक नृत्य यूनेस्को?Detailed Solution. सही उत्तर राममन है। उत्तराखंड का राममन लोक नृत्य यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल है।
उत्तराखंड का कौन सा लोक नृत्य यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल है?राममन उत्तराखंड का लोक नृत्य है, जो 2009 में यूनेस्को की अमूर्त सूची में शामिल है। यह चमोली जिले के सालूर-डूंगरा के जुड़वां गांवों में आयोजित किया जाता है। यह नृत्य रूप भूमिया देवता 'को भेंट स्वरूप दिया जाता है और यह भुमिया देवता मंदिर के परिसर में किया जाता है।
उत्तराखंड में लोकप्रिय नृत्य कौन सा है?छोलिया: छोलिया उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसमें पौराणिक युद्ध और सैनिकों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। असल में छोलिया नृत्य युद्ध में विजय के पश्चात होने वाले उत्सव का दृश्य प्रस्तुत करता है। सभी नर्तक पौराणिक सैनिकों का वेशभूषा धारण कर तलवार और ढाल के साथ युद्ध का अभिनय करते है।
निम्नलिखित में से कौन सा यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त नृत्य रूप है?Detailed Solution. सही उत्तर कालबेलिया है। यूनेस्को ने 2010 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में कालबेलिया लोक गीतों और नृत्यों को अंकित किया है। कालबेलिया राजस्थान के कालबेलिया जनजाति की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला लोक नृत्य है।
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