वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए? - vaibhav lakshmee vrat mein kya khaana chaahie kya nahin khaana chaahie?

Vaibhav Lakshmi Vrat अगर आपको आर्थिक संकट और नकारात्‍मक ऊर्जा ने घेर रखा है तो आपको वैभव लक्ष्‍मी व्रत रखना चाहिए। इस व्रत को कोई भी रख सकता है लेकिन आर्थिक संकट और परेशानी से जूझ रहे व्यक्ति को हर शुक्रवार यह व्रत पूरी श्रद्धा के साथ रखना चाहिए।

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Vaibhav Lakshmi Vrat: अगर आपको आर्थिक संकट और नकारात्‍मक ऊर्जा ने घेर रखा है, तो आपको वैभव लक्ष्‍मी व्रत रखना चाहिए। इस व्रत को कोई भी रख सकता है, लेकिन आर्थिक संकट और परेशानी से जूझ रहे व्यक्ति को हर शुक्रवार यह व्रत पूरी श्रद्धा के साथ रखना चाहिए। यह व्रत उनके लिए लाभकारी होगा। देवी लक्ष्‍मी के आठ स्‍वरूपों में से एक वैभव लक्ष्‍मी हैं, जिनकी पूजा करने से दरिद्रता मिटती है और घर में धन, वैभव और समृद्धि का आगमन होता है। इस व्रत से धन की प्राप्ति तथा जीवन में सुख-सुविधाएं बढ़ती हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में।

वैभव लक्ष्मी की पूजा एवं व्रत विधि

सबसे पहले शुक्रवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान आदि से निवृत हो जाएं। उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके वैभव लक्ष्मी की पूजा और व्रत का संकल्प करें। देवी वैभव लक्ष्मी की पूजा करने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को श्वेत अथवा लाल रंग के पुष्प तथा श्वेत या लाल चंदन का उपयोग करना चाहिए। माता वैभव लक्ष्मी को अक्षत्, पुष्प, फल, कमलगट्टा, धूप, दीप, गंध आदि से पूजा करें। उसके बाद चावल और खीर का माता को भोग लगाएं। पूजा के अंत में वैभव लक्ष्मी की आरती करें, फिर प्रसाद ग्रहण करें। वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन उपासक को एक समय ही भोजन करना चाहिए तथा प्रसाद में खीर अवश्य खानी चाहिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन

यह व्रत 9, 11 और 21 शुक्रवार के लिए रखा जाता है। संकल्‍प के बाद आपको उतने शुक्रवार पूरी श्रद्धा के साथ मां वैभव लक्ष्‍मी का व्रत रखना होता है। अंतिम शुक्रवार के दिन उद्यापन करना होता है। इस दिन उपवास रखकर मां वैभव लक्ष्मी का पूजन करें और 7 या 9 कन्याओं को खीर-पूड़ी का भोजन कराएं। वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक, दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें। सबसे आखिरी में खुद भोजन ग्रहण करें।

वैभव लक्ष्‍मी व्रत का महत्व

इस व्रत से व्यक्ति के अंदर सकारात्‍मक सोच उत्पन्न होते हैं।

इस व्रत को रखने से भटका हुआ व्‍यक्ति सही रास्‍ते पर आता है।

इस व्रत को रखने आर्थिक संकट से छुटकारा मिलता है।

इस व्रत से घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

इस व्रत से घर-परिवार में चल रहे विवादों का अंत हो जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

Edited By: Kartikey Tiwari

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व्रत में तामसिक (उत्तेजना बढ़ाने वाले) पदार्थों का निषेध क्यों?

आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें।

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व्रत क्यों करते हैं?

इस चर्चा पर तर्क देने से पहले एक अहम सवाल.... व्रत क्यों किया जाता है? अमूमन लोग इसे धार्मिक प्रथा मानकर अपनाते हैं, वर्षों से देवी-देवता को पूजने का एक तरीका व्रत भी है, शायद इसलिए इस रिवाज़ को आज भी निभाया जाता है। लेकिन क्या सच में कारण सिर्फ इतने ही हैं?

वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए? - vaibhav lakshmee vrat mein kya khaana chaahie kya nahin khaana chaahie?

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व्रत के धार्मिक एवं चिकित्सकीय लाभ

शुरुआत हम धार्मिक उद्देश्य से व्रत रखने से करते हैं, जिसके अनुसार संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं। अर्थात् जब आप किसी चेतना एवं इच्छा की पूर्ति के लिए ईश्वर से एक वरदान चाहते हैं और इसके बदले में व्रत को अपनी तपस्या का माध्यम बनाते हैं, तभी यह कर्म किया जाता है।

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व्रत इच्छाओं की पूर्ति के लिए

मनुष्य किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल का त्याग करते हैं, वे भोजन का एक दाना भी ग्रहण नहीं करते। उनके इसी त्याग को मान्यतानुसार व्रत का नाम दिया गया है। मनुष्य के नज़रिये से व्रत धर्म का साधन माना गया है। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि व्रत के लिए पूरे दिन के लिए अन्न एवं जल का त्याग किया जाए।

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व्रत के तीन प्रकार

धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्रत के तीन प्रकार होते हैं – नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है। जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, क्रोध न करना, अश्लील विचारों से दूर रहना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं।

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नित्य व्रत

नित्य व्रत का मतलब ही उस व्रत से है जो रोज़ाना किया जाए। इसलिए शास्त्रों के अनुसार रोज़ाना अन्न-जल त्याग के अलावा यह एक ऐसा व्रत है जो हर एक मनुष्य कर तो सकता है, लेकिन यह व्रत करना उतना भी आसान नहीं है।

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नैमिक्तिक व्रत

दूसरे प्रकार का व्रत है नैमिक्तिक व्रत, उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। धार्मिक दिशा-निर्देश के साथ व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले व्रत इस श्रेणी में भी आ सकते हैं।

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काम्य व्रत

तीसरे प्रकार का व्रत है काम्य व्रत, जो किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। यह इच्छा संसारिक हो सकती है, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत, धन-समृद्धि के लिए व्रत या फिर अन्य मानवीय सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

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व्रत के चिकित्सकीय कारण

विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्ति के शरीर में धीरे-धीरे कई प्रकार के जहरीले पदार्थ इकट्ठे होते रहते हैं, जो कि आगे चलकर रोगों का कारण बनते हैं। लेकिन उपवास धारण करने से मन तथा शरीर का शोधन हो जाता है जिसके बाद सभी विषैले, विजातीय तत्व बाहर निकल जाते हैं। अंत में व्यक्ति को एक निरोग शरीर प्राप्त होता है।

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व्रत का एक उद्देश्य ये भी

इसके अलावा हमारा खानपान सही हो, यह भी व्रत का एक उद्देश्य माना गया है। पेट को किसी टीन-कनस्तर की तरह ठूंस-ठूंस कर भरने की प्रवृत्ति को कम करने का यह एक माध्यम है। यही कारण है कि व्रत को वजन घटाने की प्रक्रिया के रूप में भी अपनाया जाता है।

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व्रत के भिन्न-भिन्न निर्देश

यूं तो आम नज़रिए से देखा जाए तो हिन्दू धर्म में अनगिनत व्रत हैं, जिनके रिवाज़ भी भिन्न-भिन्न हैं। किसी व्रत में अन्न-जल का पूर्ण त्याग करना पड़ता है तो किसी में जल तो ग्रहण कर सकते हैं लेकिन अन्न नहीं। परन्तु कुछ व्रत के अनुसार जल के साथ अन्न के रूप में केवल फलाहार ग्रहण किया जाता है।

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व्रत में तामसिक खाद्य पदार्थ की मनाही

अब जब निर्देशों की बात आरंभ हो गई है तो बता दें कि व्रत के अनुसार भूलकर भी तामसिक भोजन करने की इजाज़त नहीं दी जाती है। तामसिक खाद्य पदार्थ यानी कि मांस, मछली, अंडा, इत्यादि वह चीज़ें जो किसी जीव के प्रयोग से बनाई जाती हैं। इसके अलावा नशीले पदार्थ जैसे कि शराब एवं धूम्रपान के लिए भी मना किया जाता है।

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व्रत में अनुशासन का पालन करना जरूरी

व्रत अनुशासन के अनुसार व्रत करने वाले व्यक्ति को केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। इसके अलावा किसी भी प्रकार का अन्य खाद्य पदार्थ ग्रहण करना भी पाप के समान माना जाता है। और ऐसी मान्यता है कि व्रत के दौरान अनुशासनों को तोड़ना एक बड़े दंड के समान है।

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व्रत वैज्ञानिक रूप से भी जरूरी है

लेकिन धार्मिक कारणों के अलावा वैज्ञानिक रूप से भी व्रत के दौरान तामसिक की बजाय सात्विक भोजन करने के कई फायदे हैं। जिसमें से पहले फायदा है सात्विक भोजन करने से शरीर में पैदा होने वाले विषैले पदार्थों के प्रभाव को समाप्त करना, या फिर धीरे-धीरे कम करना।

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व्रत में सात्विक भोजन के प्रकार

लेकिन सात्विक भोजन का चयन कैसे करें यह एक बड़ा सवाल है। शास्त्रों के अनुसार सात्विक भोजन की श्रेणी में दूध, घी, फल और मेवे आते हैं। उपवास में ये आहार इसलिए मान्य हैं कि ये भगवान को अर्पित की जाने वाली वस्तुएं हैं।

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दूध से बनी चीज़ें

इसके अलावा चिकित्सकीय संदर्भ से भी ये खाद्य पदार्थ शरीर में सात्विकता बढ़ाने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। इसलिए इन्हें ग्रहण करना सही समझा जाता है। इसके अलावा दूध से बनी कोई भी वस्तु भी ग्रहण की जा सकती है। लेकिन इसके अलावा अन्य कोई भी खाद्य पदार्थ का सेवन करना निषेध माना गया है।

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व्रत में इसका सेवन कभी ना करें

भगवद्गीता के अनुसार मांस, अंडे, खट्टे और तले हुए मसालेदार और बासी या संरक्षित व ठंडे पदार्थ राजसी-तामसी प्रवृतियों को बढ़ावा देते हैं। व्रत के अनुसार नमक का सेवन करने की भी मनाही है, क्योंकि यह शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करता है। इसलिए उपवास के दौरान इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।

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शारीरिक शुद्धि के लिए ये खाएं

इसके साथ ही शारीरिक शुद्धि के लिए तुलसी जल, अदरक का पानी या फिर अंगूर भी इस दौरान ग्रहण किया जा सकता है। जबकि मानसिक शुद्धि के लिए जप, ध्यान, सत्संग, दान और धार्मिक सभाओं में भाग लेना चाहिए।

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साथ ही ईश्वर का ध्यान भी करें

लेकिन इस बात का विशेष ख्याल रखें कि उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है। इससे मन शांत होता है और अच्छाई के संस्कार बढ़ते हैं।

वैभव लक्ष्मी के व्रत में क्या क्या खा सकते हैं?

वैभव लक्ष्‍मी माता के भोग में खीर का होना सबसे जरूरी होता है। घर में ही स्‍नान करके साफ-सफाई के साथ अपने हाथों से मां लक्ष्‍मी के लिए चावल की खीर बनाएं। खीर में गाय के दूध का प्रयोग करें। खीर में अक्षत के प्रयोग से आपको अक्षय फल की प्राप्ति भी होती है।

वैभव लक्ष्मी की पूजा कितने बजे करनी चाहिए?

वैभव लक्ष्मी व्रत के शाम के समय करना लाभकारी माना जाता है। शाम के समय स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद मंदिर या साफ सुथरी जगह पर एक चौकी रखकर लाल कपड़ा बिछाएं और उसमें मां लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित कर लें।

वैभव लक्ष्मी का व्रत कौन से महीने से शुरू करना चाहिए?

Mahalaxmi Vrat Katha In Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो जाते हैं और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलते हैं। धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित ये व्रत 16 दिन के होते हैं।

वैभव लक्ष्मी का व्रत करने से क्या फल मिलता है?

मान्यता के अनुसार, 'वैभव लक्ष्मी व्रत' को करने से जीवन में धन और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. इस व्रत को रखने से घर-परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहती है. इस दिन पूजा में देवी लक्ष्मी को सफेद फूल, सफेद चंदन आदि अर्पित किया जाता है और खीर का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं.