भारत में आजादी के लिए चेतना और संघर्ष का इतिहास हमारे लिए स्मरणीय है । यह 1857 ई. से शुरू होता है । 1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना है । 1818 ई. तक राजस्थान के विभिन्न राज्यों ने अंग्रेजों से संधिया कर ली थी, जिसमें यह निश्चित किया गया था कि राज्यों के आपसी विवादों का निपटारा अंग्रेज कम्पनी सरकार ही करेगी। परन्तु अंग्रेज कम्पनी ने राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप, किसानों एवं जनसाधारण के हितों पर कुठाराघात करके राजस्थान में कम्पनी के विरूद्ध असंतोष की भावना का प्रसार किया । Show
1. कम्पनी का राज्यों के आन्तरिक शासन में हस्तक्षेपसंधि पत्र की शर्तों की अनदेखी करते हुए अंग्रेज राज्यों के आन्तरिक प्रशासन में हस्तक्षेप करने लगे। जैसे 1839 ई . में जोधपुर के किले पर अधिकार, मांगरोल के युद्ध में कोटा महाराव के विरूद्ध दीवान जालिम सिंह की मदद, मेवाड़ प्रशासन में बार – बार हस्तक्षेप आदि। अंग्रेजों ने राजाओं की प्रभुसत्ता समाप्त कर, उन्हें अपनी कृपा दृष्टि पर निर्भर बना दिया। 2. राज्यों में उत्तराधिकार के प्रश्न पर असंतोषनिःसंतान राजाओं द्वारा गोद लेने संबंधी मामलों में कम्पनी ने अपना निर्णय देशी रियासतों पर लादने की कोशिश की, जिसमें 1826 ई. में अलवर राज्य में हस्तक्षेप कर अलवर राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया। 1826 ई. में भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग को नष्ट कर पॉलिटिकल ऐजेन्ट के अधीन काउन्सिल की नियुक्ति, 1844 ई. में बाँसवाड़ा महारावल लक्ष्मणसिंह की नाबालिगी के कारण अंग्रेजी नियन्त्रण की स्थापना आदि हस्तक्षेप से कम्पनी सरकार के विरूद्ध राजाओं में अंसतोष की भावना बलवती होती गई। 3. सामान्य जनता की भावनाराजस्थान में सामान्य जनता की भावना अंग्रेजों के विरुद्ध चरम पर थी, अंग्रेजों की अपनी धर्म प्रचार नीति, सामाजिक सुधार एवं आर्थिक नीतियों को यहाँ की जनता ने अपने धर्म व जीवन में अंग्रेजों द्वारा हस्तक्षेप की संज्ञा दी। डूंगजी, जवाहरजी एवं लोठू जाट द्वारा नसीराबाद की सैनिक छावनी को लूटना आम जनता में बहुत ही प्रसन्नता का कारण बना। 4. राज्यों के आर्थिक मामलों में हस्तक्षेपअंग्रेज कम्पनी ने राज्यों के साथ खिराज वसूलने की प्रथा द्वारा आर्थिक शोषण की नीति लागू कर दी। इसके अतिरिक्त राज्यों में शांति व्यवस्था के नाम पर धन वसूली की गई । 1822 ई. में मेरवाड़ा बटालियन की स्थापना, 1834 ई. में शेखावटी ब्रिगेड की स्थापना, 1835 ई. में जोधपुर लीजियन का गठन, 1841 ई. में मेवाड़ भील कोर की स्थापना कर कम्पनी द्वारा इन सभी बटालियन के रख – रखाव का खर्चा भी संबंधित राज्यों से वसूल किया गया। 5. सामन्तों की मनोदशा1818 ई. की संधियों के पूर्व तक शासक को मुख्यतः सामन्तों पर ही निर्भर रहना पड़ता था, अतः संधि के पश्चात सामन्तों पर उनकी निर्भरता प्रायः समाप्त हो गई। सामन्त अपनी दुःखद स्थिति का उत्तरदायी मुख्यतः अंग्रेजों को ही मानते थे, अतः उनमें रोष बढ़ता गया। आउवा, कोठारिया और सलूम्बर ठिकाने इसके उदाहरण हैं। तात्कालिक कारणभारत में 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण एनफील्ड राइफलों में प्रयुक्त कारतूसों में गाय एवं सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाना था, जिन्हें प्रयोग में लेने से पहले मुँह से खोलना पड़ता था। 1857 ई. की क्रांति का प्रारम्भ1857 ई. की क्रांति की शुरुआत मेरठ में 10 मई 1857 को हुई। इस समय मेवाड़, मारवाड़ एवं जयपुर में क्रमशः मेजर शावर्स, मॉक मैसन और कर्नल ईडन पोलिटिकल एजेन्ट नियुक्त थे। ये सभी राजस्थान के तत्कालीन ए.जी.जी. ( एजेन्ट टू गवर्नर जनरल ) जार्ज पैट्रिक लारेन्स के अधीन थे। राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय छः सैनिक छावनियां थीं। इन सैनिक छावनियों में पाँच हजार भारतीय सैनिकों के अतिरिक्त कोई भी यूरोपियन सैनिक नहीं था, अतः ए.जी.जी. के लिए इन्हें नियंत्रण में रखना एक गम्भीर चिंता का विषय था। 19 मई 1857 ई. को ए.जी.जी. लॉरेन्स को मेरठ विद्रोह की सूचना माउण्ट आबू में मिली। उसने सभी राजाओं को निर्देशित किया कि राज्यों में शान्ति व्यवस्था बनाए रखें तथा शक्ति से विद्रोहियों का दमन करें। नसीराबाद में विद्रोह28 मई 1857 ई. को नसीराबाद छावनी में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इन भारतीय सैनिकों ने तोपखाने के सैनिकों को अपनी तरफ मिलाकर तोपों पर अधिकार कर लिया। विद्रोही सैनिकों ने छावनी को लूट लिया। मेजर स्फोटिस वुड एवं न्यूबरी की हत्या कर सैनिकों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। नीमच में विद्रोह3 जून 1857 ई. को नीमच छावनी में सैनिकों ने मोहम्मद अली बेग के नेतृत्व में विद्रोह कर शस्त्रागार में आग लगा दी। नीमच छावनी के कप्तान मैकडॉनाल्ड ने किले की रक्षा का प्रयास किया, परन्तु किले में तैनात सेना ने भी संघर्ष शुरू कर दिया। विद्रोही सैनिक चित्तौड़ , हमीरगढ़ , बनेड़ा में अंग्रेजी बंगलों को लूटते हुए शाहपुरा पहुँचे। शाहपुरा के जागीरदार ने विद्रोही सैनिकों के लिए रसद की आपूर्ति की। नीमच में क्रांति की सूचना पाते ही शावर्स ने मेवाड़ की एक पलटन को क्रांतिकारियों को निकालने भेजा और स्वयं नीमच की ओर बढ़ा। शावर्स ने कोटा, बूंदी तथा मेवाड़ की सेनाओं की सहायता से नीमच पर पुनः अधिकार कर लिया। एरिनपुरा में विद्रोह21 अगस्त 1857 ई. को एरिनपुरा में विद्रोह प्रारंभ हो गया। जोधपुर लीजियन के मोती खाँ, सूबेदार शीतल प्रसाद एवं तिलक राम के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया। वे क्रांति के नेताओं के आदेशानुसार “ चलो दिल्ली , मारो फिरंगी ‘ के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े। आउवा का ठाकुर कुशाल सिंह इन सैनिकों से मिला और इन्हें अपने साथ आउवा ले गया। आउवा में विद्रोहआउवा में क्रान्ति का नेतृत्व ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत द्वारा किया गया। आउवा, आसोप, आलनियावास, लांबिया, गूलर, रूढावास परगनों के सैनिकों ने 8 सितम्बर 1857 ई. को बिठौड़ा ( पाली ) में कैप्टन हीथकोट व जोधपुर महाराजा तख्तसिंह की संयुक्त सेना को पराजित किया। 18 सितम्बर 1857 ई. को क्रान्तिकारियों तथा जोधपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट मोकमैसन के बीच चेलावास का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मोकमैसन का सिर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया। ब्रिगेडियर होम्स के नेतृत्व में सेना ने जनवरी 1858 ई. में आउवा पर आक्रमण कर किले पर अधिकार कर लिया। आउवा की क्रान्ति को आज भी लोग होली आदि के लोक – गीतों के माध्यम से याद करते हैं । “ढोल बाजे – चंग बाजे । भलो बाजे बांकियों । एजेंट को मारकर । दरवाजे पर टांकियों ।।” कोटा में विद्रोहकोटा में क्रांति की शुरूआत 15 अक्टूबर , 1857 ई. को लाला जयदयाल व मेहराब अली खां के द्वारा की गई। राजस्थान में सबसे ज्यादा सुनियोजित व सुनियंत्रित क्रांति कोटा में हुई। विद्रोही सैनिकों ने कैप्टन बर्टन का सिर काटकर पूरे कोटा शहर में घुमाया। कोटा के महाराव रामसिंह ( द्वितीय ) को क्रांतिकारियों के द्वारा कोटा दुर्ग में कैद कर दिया गया । उपर्युक्त स्थानों के अलावा भी राजस्थान में कई ऐसे स्थल थे, जहाँ से क्रांति का शंखनाद हो रहा था। जैसे बनेडा, कोठारिया आदि क्रांतिकारियों के शरण स्थल बने हुए थे। क्रांति का समापनजून 1858 ई. तक अंग्रेजों ने अधिकांश रियासतों पर पुनः अपना नियन्त्रण स्थापित कर तात्याटोपे, कोटा के क्रांतिकारी जयदयाल तथा मेहराब अली खां को फांसी पर चढ़ा दिया। 1857 ई. की क्रांति की असफलता के कारण1857 ई. का स्वाधीनता आन्दोलन राजस्थान में पूरी निष्ठा और जोश के साथ चला परन्तु निम्न कारणों से इसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली :-
क्रांति के परिणाम
1857 ई. की क्रांति भले ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त ना कर सकी परन्तु इसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ों को हिला कर रख दिया। यह क्रांति आगे की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी , जो 1947 ई. में भारत की आजादी में महत्त्वपूर्ण सोपान सिद्ध हुई । शब्दावली
अभ्यास प्रश्न 1. राजस्थान में 1857 ई . की क्रांति का प्रारम्भ सर्वप्रथम कहाँ हुआ ? ( अ ) नीमच ( ब ) एरिनपुरा ( स ) नसीराबाद ( द ) कोटा 2. ठाकुर कुशाल सिंह ने 1857 ई . में क्रांतिकारियों का नेतृत्व कहाँ किया ? ( अ ) ब्यावर ( ब ) आउवा ( स ) नीमच ( द ) भरतपुर 3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए – (१) राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति का शुभारम्भ ……………. को हुआ। (२) खैरवाड़ा छावनी में …………. रेजीमेन्ट थी। 4. राजस्थान में 1857 ई. के समय कौन – कौनसी सैनिक छावनियाँ स्थित थी ? 5. कोटा में 1857 ई . की क्रांति का नेतृत्व किसने किया ? 6. राजस्थान में 1857 ई . की क्रांति के क्या कारण रहे थे ? 7. आउवा के ठाकुर कुशालसिंह का 1857 ई . के संघर्ष में क्या योगदान था? ✍️1857 ई. की क्रांति से संबंधित क्विज के लिए यहाँ क्लिक करें। ★ हमारे टेलिग्राम ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां click करें। ★ हमारे Whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां click करें। ★ GK Quiz के लिए यहां Click करें। ★ हमारा राजस्थान के महत्वपूर्ण अन्य लेख :-
18 सो 57 में नसीराबाद में विद्रोह करने वाली बटालियन कौन थी?जल्द ही सैनिकों के विद्रोह की खबर नसीराबाद में भी सैनिकों तक पहुँच गई और 28 मई 1857 को नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकों ने नसीराबाद में विद्रोह कर दिया।
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Detailed Solution.. नसीराबाद के विद्रोही सैनिकों का नायक कौन था?1857 का विद्रोह नसीराबाद में हुआ। 1857 के भारतीय विद्रोह को भारतीय विद्रोह, सिपाही विद्रोह, भारत का पहला युद्ध या स्वतंत्रता के लिए भारत का पहला संघर्ष भी कहा जाता है। यह 28 मई 1857 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के एक विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था ।
राजस्थान के कोटा राज्य में 18 57 के विद्रोह का नेतृत्व करने वाले कौन थे?कोटा का पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन था जो नीमच के विद्रोह को शांत कर अक्टूबर, 1857 में कोटा पहुँचा। 15 अक्टूबर, 1857 को जयदयाल, मेहराब खान तथा हरदयाल के नेतृत्व में कोटा में विद्रोह प्रारंभ हुआ।
1857 के विद्रोह के प्रमुख केन्द्र कौन कौनसे थे?1857-59 के दौरान हुये भारतीय विद्रोह के प्रमुख गुर्जर केन्द्रों: मेरठ, दिल्ली, जबलपुर, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, वर्तमान हरियाणा(पंजाब), राजस्थान से]] और ग्वालियर को दर्शाता सन 1912 का नक्शा। विद्रोह का दमन, ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत, नियंत्रण ब्रिटिश ताज के हाथ में।
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