आगरा बाजार नाटक की समीक्षा pdf - aagara baajaar naatak kee sameeksha pdf

उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया।

●आगरा बाज़ार 

●प्रकाशन-1954

●अंक-2

●स्थान- आगरा के किनारी बाज़ार का एक चौराहा 

●पात्र-(अंक-1)फ़कीर,लड्डूवाला,तरबूजवाला, बर्फवाला,ककड़ीवाला,कनमैलिया, पानवाला, मदारी, बर्तनवाला,अजनबी,शायर, हमजोली, ग्राहक,बेनजीर, शोहदा, लड़का, पानवाला,करीमन, चमेली, दर्जी,तजकिरानवीस, रामू,पंसारी, दरोगा,नवासी, तमाशबीन।

●अंक-2- पतंगवाला, हमीद,अंधा-भिखारी,एक आदमी, बेनीप्रसाद,सिपाही,सारंगिया।

◆मुख्य बिंदु:-

●हबीब तनवीर ने ‘नज़ीर अकबराबादी’ के जनवादी पहलू को प्रतिष्ठित करने के लिए यह नाटक लिखा था।

●नज़ीर अकबराबादी 18वीं सदी के ‘धर्मनिरपेक्ष’ शायर थे।उन्हें ‘नज़्म का पिता’ कहा जाता था। वे राह चलते नज़्में कहा करते थे और छोटे पेशे वाले लोग तथा भिखारी उनसे नज़्मों की फरमाइश करते थे।उनकी नज़्में आम जनता की ज़ुबाँ पर थी।

●’नज़ीर’ उर्दू के सबसे ज्यादा ‘हिंदुस्तानी’ शायर थे।हबीब तनवीर उनके विषय में लिखते है कि–”हिंदुस्तानी लहज़े में बात करने का सलीका आज भी ‘नज़ीर अकबराबादी’ से सीखा जा सकता है।”

●इस नाटक को हबीब तनवीर ने दो बार संशोधित (1970और 1989)किया है।

●सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं की अभिव्यक्ति।

●लोकजीवन और मान्यताओं का चित्रण।

●इतिहास, परम्परा और आधुनिकता का बोध।

●साहित्य,साहित्यकारों,प्रकाशन तथा बिक्री पर व्यंग्य।

●पुलिस व्यवस्था की लापरवाही का चित्रण।

●बेरोजगारी,ग़रीबी, लाचारी,वेश्यावृत्ति आदि समस्याओं का चित्रण।

●शायरों के जीवन का वर्णन।

●नाटक में संवाद की भाषा उर्दू की ज्यादा है।

●यह नाटक खुले मंच पर मंचित किया जाने वाला है।●सबसे पहले इस नाटक का मंचन 1954 में जामिया मिल्लिया के मंच पर हुआ।

●यह नाटक 19वीं सदी में अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ 1857 के विद्रोह को देख चुके हिंदुस्तान के एक शहर आगरा की तस्वीर खींचता है जिसमें समाज, बाज़ार, संस्कृति, सोच और सलीके… सबकुछ बदल रहे हैं।

●आगरा बाज़ार की कहानी केवल आगरा के एक दौर के बाज़ार की कहानी नहीं है बल्कि बाज़ार में बेचारे बन चुके उन हज़ारों लोगों की कहानी है जिनके पास रहने, जीने और बेचने को बहुत कुछ नहीं है… और बाज़ार उनसे उतना भर भी छीनता जा रहा है।

●हबीब तनवीर को उनके नाटकों के लिए ‘संगीत अकादमी पुरस्कार’और ‘पदमभूषण सम्मान’ मिला है।

●’नज़ीर’ के बारें में हबीब का कथन:–

–”ये हकीकत हैं कि उनका कलाम ‘जिंदा-जावेद’ है।”

–”नज़ीर उर्दू नज़्म के ‘बाबा आदम’ हैं।”

–”ड्रामें के अंदर कलामे-नज़ीर के उस पहलू को उजागर करना चाहता था और उसी को मैंने अपना मौजू बनाया।”

◆मुख्य अंश:-

●अंक- एक 

●है अब तो कुछ सुखन का मेरे कारोबार बंद

 रहती है तबूअ सोच में लैलो-निहार बंद 

दरिया सुखन की फिक्र का है मौजदार बंद–( फकीर का कथन)

● आत्महत्या करे मूरख। ज्ञानी के लिए संसार में बहुत से रास्ते खुले हैं।–( ककड़ीवाला का कथन)

●  मुफ़लिस की कुछ नज़र नहीं रहती है आन पर

 देता है वह अपनी जान एक-एक नान पर ।–(फकीर का कथन)

● न मिल ‘मीर’ अबके अमीरों से तू

 हुए हैं फ़क़ीर उनकी दौलत से हम।–(शायर का कथन)

●दिल्ली में आज भीख भी मिलती नहीं उन्हें

 था कल तलक दिमाग जिन्हें ताजो-तख़्त का–( शायर का कथन)

●जो खुशामद करे ख़ल्क़ उससे सदा राज़ी है

 सच तो यह है कि खुशामद से खुदा राज़ी है–( फकीर का कथन)

● ग़नीमत समझिए, अभी दुनिया में किताबों की इतनी मांग नहीं।–( किताबवाला का कथन)

●ज़माने को ज़रूरत दरअसल मुजाहिद की नही मौलाना,बल्कि इंसान कु है।इंसान कही नज़र नही आता।–(हमजोली का कथन)

●वो उनका बज़्म में आना, बस इतना याद है ‘मीर’

 के: उसके बाद चिरागों में रोशनी न रही।–( तजकिरानवीस का कथन)

●कोरे बरतन हैं क्यारी गुलशन की

 जिससे खिलती है हर कली बन की –(बर्तनवाला का कथन)

● थे घर जो ग्वालिनों ओं के लगे घर से जा-ब-जा

 जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा 

माखन, मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया–(हिजड़े का कथन)

● ताज्जुब तो इस बात पर है कि मियां ‘नज़ीर’ शरीफ़ घराने के आदमी हैं। जाहिल और गदागर उनकी चीजें गाते फिरते हैं। उन्हें अपना ना सही, अपने खानदान वालों की इज्जत का तो ख्याल होना चाहिए।–(किताबवाला का कथन)

●अब भला बताइये,इन सूकियाना तर्ज़ के गानों को, जो सड़कों पर भीख मांगनेवाले गाते फिरते हैं, अगर शे’र  कह दिया जाए तो क्या दुनियाए- शायरी पर ज़ुल्म न होगा?–( किताबवाला का कथन)

● दरोगाजी,सवेरियों से कुछ नहीं बेचा है। सोने से पहले छदाम दो छदाम की ककड़ी बिक गयी तो रोज़ी, नहीं तो रोज़ा।( ककड़ीवाला का कथन)

●पैसे ही का अमीर के दिल में ख्याल है

 पैसे ही का फ़कीर भी करता सवाल है।–( फकीर का कथन)

◆ अंक -2

●मैं तो कहता हूं,अच्छा है साले पकड़ ले जाएं। पेट पर पत्थर बाँधे दिनभर टांगे तोड़ता रहता हूं। इससे अच्छा है हवालात में बैठो, आराम से खाओ, मौज करो। जलनेवाला जला करें।–( ककड़ीवाला का कथन)

● बुढ़ापा इंसान का मिज़ाज तो नहीं बदल देता। पुरानी आदतें हैं, कैसे छूटेंगी?ज़ोर था तो ख़ुद तैरते थे। अब अगले ज़माने की याद और उन यादों की हसरत लिए जमुना किनारे खिंचे चले जाते हैं कि जो खुद नहीं कर सकते वो दूसरों को करता देखकर हविस पूरी कर लें।–(तजकिरानवीस का कथन)

●उस्तादों की ज़मीन पर हल चलानेवाले घटिया शायर बहुत मिलते हैं।–(किताबवाला का कथन)

● सहरा में मेरे हाल पे कोई भी न रोया

 गर फूट के रोया तो मेरे पाँव का छाला–(हमजोली का कथन )

●अदना, ग़रीब, मुफ़लिस,ज़रदार पैरते हैं 

इस आगरे में क्या-क्या,ऐ यार,पैरते हैं।–(हमीद का कथन )

●कितने पतंग उड़ाते, कितने मोती पिरोते

 हुक्कों का दम लगाते, हंस हंस के शाद होते–( हमीद का कथन)

●क़िस्मत में गर हमारी यह मय है तो, साथिया

बे-इख्तियार हाथ से शीशा करेगा जस्त–(पतंगवाला ‘नजीर’ के नज़्म कहते हुए)

●पहले नाँव गणेश की लीजे सीस नवाय

 जासे कारज  सिद्ध हों, सदा महूरत लाय–(अंधा भिखारी ‘नज़ीर’ के नज़्म कहते हुए)

●मुँह जिसका चांद का टुकड़ा हो और आंखें भी मय की प्याली हो 

बदमस्त बड़ी मतवाली हो, हर आन बजाती ताली हो

–( होली गानेवाले )

●मियाँ ‘नज़ीर’ की निगाह में आदमी-आदमी में कोई फर्क नहीं।वह पतंग बनाने वाला हो, चाहे किताब बेचनेवाला उनके लिए तो बस आदमी है।–(पतंग वाला का कथन)

●अबे, क्या समझ कर पकड़ रहा है,हराम के! अबे, रंडी के कोठे पर जाना कब से इस औंधे शहर में जुर्म करार पाया है,बे?– (शोहदा का कथन)

●अबे,बड़ा नामर्द निकला दरोगा का बच्चा।हम समझे थे, मुक़ाबला रावण से है। सीताहरण होगा, दो-दो हाथ होंगे। हमें क्या मालूम था कि तुम्हारा शहर जन्नत की चिड़ियों से भरा पड़ा है।–(शोहदा का कथन)

आगरा बाजार नाटक में कितने अंक हैं?

आगरा बाजार' नाटक का रचना काल 1954 है। स्थान आगरा के 'किनारी बाजार' का एक 'चौराहा'। नाटक के दो अंक हैं

आगरा का बाजार किसका नाटक है?

हबीब तनवीर के नाटक 'आगरा बाज़ार' में एक ऐसे ककड़ी बेचने वाले की कहानी है जिसकी ककड़ी कोई नहीं खरीदता. आखिर वह नज़ीर अकबराबादी की नज़्मों की मदद लेता है और उसकी ककड़ियां बिकने लगती हैं.

हबीब तनवीर का जन्म कब हुआ था?

1 सितंबर 1923हबीब तनवीर / जन्म तारीखnull

हबीब तनवीर की भाषा कौन सी है?

हबीब ने संस्कृत के कुछ नाटकों का प्रस्तुतिकरण 'नाचा' शैली में किया, जिसमें शूद्रक का नाटक 'मृच्छकटिकम्' का रुपांतर 'मिट्टी का गाड़ी' सफल रहा।