आर्थिक सुधारों की आवश्यकता क्यों हुई? - aarthik sudhaaron kee aavashyakata kyon huee?

सारांश: जून 1991 में नरसिंह राव सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को नयी दिशा प्रदान की । यह दिशा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी मॉडल के रूप में जाना जाता है) के रूप में पूरे देश में आर्थिक सुधारों के रूप में लागू की गयी । इस नई औद्योगिक नीति के तहत सरकार ने कई ऐसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों को प्रवेश करने की अनुमति दी, जो पहले केवल सरकारी क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। इस नई आर्थिक नीति को लागू करने के पीछे मुख्य कारण भुगतान संतुलन (BOP) का निरंतर नकारात्मक होना था।

आर्थिक सुधारों की आवश्यकता क्यों हुई? - aarthik sudhaaron kee aavashyakata kyon huee?

आजादी के बाद 1991 का साल भारत के आर्थिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इससे पहले देश एक गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। और इसी संकट ने भारत के नीति निर्माताओं को नयी आर्थिक नीति को लागू के लिए मजबूर कर दिया था । संकट से उत्पन्न हुई स्थिति ने सरकार को मूल्य स्थिरीकरण और संरचनात्मक सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। स्थिरीकरण की नीतियों का उद्देश्य कमजोरियों को ठीक करना था, जिससे राजकोषीय घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन को ठीक  किया सके।  संरचनात्मक सुधारों ने कठोर नियमों को दूर कर दिया था जिससे कारण सुधारों को  भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू किया गया।

और इन्ही नीतियों का परिणाम है कि आज भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे विश्व स्तर के संस्थान को भी मदद दे सका ।

1991 की नई आर्थिक नीति के मुख्य उद्देश्य

1991 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति (New Economic policy) का शुभारंभ करने के पीछे मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:

I. भारतीय अर्थव्यवस्था को 'वैश्वीकरण' के मैदान में उतारना के साथ-साथ इसे बाजार के रूख के अनुरूप बनाना था।

II. मुद्रास्फीति की दर को नीचे लाना और भुगतान असंतुलन को दूर करना ।

III. आर्थिक विकास दर को बढ़ाना और पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण करना ।

IV. आर्थिक स्थिरीकरण को प्राप्त करने के साथ-साथ सभी प्रकार के अनावश्यक प्रतिबंध को हटाकर एक बाजार अनुरूप अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक परिवर्तिन करना था।

V. प्रतिबंधों को हटाकर, माल, सेवाओं, पूंजी, मानव संसाधन और प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय प्रवाह की अनुमति प्रदान करना था।

VI. अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाना था। यही कारण है कि सरकार के लिए आरक्षित क्षेत्रों की संख्या को घटाकर 3 कर दिया गया है।

1991 के मध्य की शुरूआत में भारत सरकार ने व्यापार, विदेशी निवेश, विनिमय दर, उद्योग, राजकोषीय व्यवस्था आदि को असरदार बनाने के लिए अपनी नीतियों में कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन किये ताकि अर्थव्यवस्था की धार को तेज किया जा सके।

नई आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य एक साधन के रूप में अर्थव्यवस्था की दिशा में अधिक प्रतिस्पर्धी माहौल का निर्माण करने के साथ उत्पादकता और कार्यकुशलता में सुधार करना था।

नयी आर्थिक नीति के तहत निम्नलिखित कदम उठाए गए:

(I) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ब्याज दर का स्वयं निर्धारण:

उदारीकरण नीति के तहत सभी वाणिज्यिक बैंकों ब्याज की दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे । उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित ब्याज की दरों को मानने की कोई बाध्यता नहीं होगी ।

(II) लघु उद्योग (एसएसआई) के लिए निवेश सीमा में वृद्धि:

लघु उद्योगों में निवेश की सीमा बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गयी है, जिससे ये कंपनियों अपनी मशीनरी को उन्नत बनाने के साथ अपनी कार्यकुशलता में सुधार कर सकते हैं।

(III) सामान आयात करने के लिए पूंजीगत स्वतंत्रता:

भारतीय उद्योग अपने समग्र विकास के लिए विदेशों से मशीनें और कच्चा माल खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगे।

(V) उद्योगों के विस्तार और उत्पादन के लिए स्वतंत्रता:

इस नए उदारीकृत युग में अब उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता में विविधता लाने और उत्पादन की लागत को कम करने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे पहले सरकार उत्पादन क्षमता की अधिकतम सीमा तय करती थी। कोई भी उद्योग इस सीमा से अधिक उत्पादन नहीं कर सकता था। अब उद्योग बाजार की आवश्यकता के आधार पर स्वयं अपने उत्पादन के बारे में फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं।

(VI) प्रतिबंधित कारोबारी प्रथाओं का उन्मूलन:

एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथा (एमआरटीपी) अधिनियम 1969 के अनुसार, वो सभी कंपनियां जिनकी संपत्ति का मूल्य 100 करोड़ रूपये या उससे अधिक है, को एमआरटीपी कंपनियां कहा जाता था इसी कारण पहले उन पर कई प्रतिबंध भी थे, लेकिन अब इन कंपनियों को निवेश निर्णय लेने के लिए सरकार से पूर्वानुमति प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

1- उदारीकरण

औद्योगिक लाइसेंस और पंजीकरण को समाप्त करना:

इससे पहले निजी क्षेत्र को एक नया उद्यम शुरू करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था। इस नीति में निजी क्षेत्र को लाइसेंस और अन्य प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया।

निम्न उद्योगों के लिए लाइसेंस अभी भी आवश्यक है:

(ए) परिवहन और रेलवे
(बी) परमाणु खनिजों का खनन
(सी) परमाणु ऊर्जा

(2) निजीकरण:

साधारण शब्दों में, निजीकरण का अर्थ निजी क्षेत्रों द्वारा उन क्षेत्रों में उद्योग लगाने की अनुमति देना है जो पहले सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे। इस नीति के तहत कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया गया था। निजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें निजी क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के मालिकाना हक का स्थानांतरण निजी हाथों में हो जाता है ।

निजीकरण का मुख्य कारण राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से पीएसयू का घाटे में चलना था। इन कंपनियों के प्रबंधक स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते थे इसी कारण उनकी उत्पादन क्षमता कम हो गई थी। प्रतिस्पर्धा/गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण कर दिया गया।

निजीकरण के लिए उठाए गए कदम:

निजीकरण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

1. शेयरों की बिक्री:

भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को सार्वजनिक और वित्तीय संस्थानों को बेच दिया, उदाहरण के लिए सरकार ने मारुति उद्योग लिमिटेड के शेयर बेच दिए । बेचे गए ये शेयर निजी उद्यमियों के हाथ में चले गए ।

2. पीएसयू में विनिवेश:

सरकार ने उन पीएसयू में विनिवेश की प्रक्रिया शुरू कर दी थी जो घाटे में चल रहे थे। इसका तात्पर्य साफ था कि सरकार इन उद्योगों को निजी क्षेत्र में बेच दिया। सरकार ने 30000 करोड़ रूपये की कीमत के उद्यमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया।

3. सार्वजनिक क्षेत्र का न्यूनीकरण:
इससे पहले सार्वजनिक क्षेत्र को महत्व दिया जाता था और ऐसा माना जाता था कि यह औद्योगीकरण को बढ़ाने के साथ-साथ गरीबी को हटाने में भी मदद करता है। लेकिन  सार्वजनिक क्षेत्र के ये पीएसयू नयी आर्थिक नीति के अनुरूप कम नहीं कर सके और लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहे थे और इसी कारण बड़ी संख्या में उद्योगों को निजी क्षेत्रों के लिए आरक्षित कर दिया गया था, पीएसयू की संख्या घटकर 17 से 3 कर दी गयी।

(ए) परिवहन और रेलवे

(बी) परमाणु खनिजों का खनन

(सी) परमाणु ऊर्जा

(3) वैश्वीकरण:

वैश्वीकरण का अर्थ वैश्विक या विश्व भर में फैलने से है, अन्यथा व्यापार को पूरी दुनिया में ले जाना है। वैश्वीकरण का अर्थ मोटे तौर पर विदेशी निवेश, व्यापार, उत्पादन और वित्तीय मामलों के संबंध में बाकी दुनिया के साथ घरेलू अर्थव्यवस्था को जोड़ना है ।

वैश्वीकरण के लिए उठाए गए कदम:

वैश्वीकरण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए:

(I) आयात दरों में कटौती: आयात पर सीमा शुल्क लगाया गया और निर्यात पर लगाए गए शुल्कों को धीरे-धीरे घटाया गया तांकि भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक बनाया जा सके।

(II) दीर्घकालिक व्यापार नीति: विदेशी व्यापार नीति को लंबी अवधि के लिए लागू किया गया ।

नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

(क) उदार नीति

(ख) विदेशी व्यापार पर सभी प्रकार के नियंत्रण हटा दिए गए है

(ग) बाजार में खुली प्रतियोगिता को प्रोत्साहित किया गया।

(III) मुद्रा की आंशिक परिवर्तनशीलता:

आंशिक परिवर्तनशीलता का अर्थ भारतीय मुद्रा को अन्य देशों की मुद्रा में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन करने से है । इसका सीधा फायदा यह हुआ कि अब विदेशी निवेशक या भारतीय निवेशक अपनी मुद्रा को आसानी से एक देश से दूसरे देश में ले जा सकते हैं ।

(IV) विदेशी निवेश की इक्विटी सीमा में बढोत्तरी:

कई क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40 से लेकर 100 फीसदी तक बढ़ा दी गई है। 47 उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में बिना किसी प्रतिबंधों के 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गई है । इस नीति के लागू होने से भारत में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढेगा जो कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती प्रदान करेगा ।

सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि यदि, वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व के मानचित्र पर चमक रही है, तो इसका पूरा श्रेय 1991 में लागू की गयी नई आर्थिक नीति को जाता है।

आर्थिक सुधार की आवश्यकता क्यों पड़ी?

Q. 2 भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता क्यों पड़ी? आर्थिक सुधारों का प्रमुख उद्देश्य वैश्वीकरण के एक युग में प्रवेश करना था, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर बहुत धीमी थी, तो उसे गति प्रदान करने के लिए भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता पड़ी

1991 में भारत में आर्थिक सुधार क्यों शुरू किए गए?

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे कि इनमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था। इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की। तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है।

आर्थिक सुधारों की मुख्य विशेषता क्या है?

Solution : आर्थिक सुधार : भारत में आर्थिक सुधारों का मतलब उन नीतियों से है जिनका आरम्भ 1991 से अर्थव्यवस्था में कुशलता, उत्पादकता, लाभदायकता एवं प्रतियोगिता की शक्ति के स्तरों में वृद्धि करने के दृष्टिकोण से किया गया है । ये सुधार उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियों पर आधारित है। अत: इन्हें LPG नीति भी कहते हैं।

भारत में आर्थिक सुधार कब किया गया था?

इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप 1991 में भारत में आरंभ की गई सुधार नीतियों की पृष्ठभूमि से परिचित होंगे; सुधार नीतियों को आरंभ किये जाने की प्रक्रिया को समझेंगे; वैश्वीकरण की प्रक्रिया और भारत के लिए इसके निहितार्थ से परिचित होंगे; विभिन्न क्षेत्रकों पर सुधार प्रक्रिया के प्रभावों को जानेंगे।