आसियान की स्थापना कब हुई 1965 1966 1957 1985? - aasiyaan kee sthaapana kab huee 1965 1966 1957 1985?

तक यूरोपियन आर्थिक संघ एक सफल संगठन बन गया। इसकी सफलता को देखते हुए 1973 ई. में ब्रिटेन भी इसमें शामिल हो गया।

4. यूरोपीय संघ के झंडे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

Give a brief introduction of the flag of European

Union.

उत्तर-सोने के रंग के सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की                           फोटो-1

एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है। इसमें 12 सितारे हैं क्योंकि बारह

की संख्या को वहाँ पारंपरिक रूप से पूर्णता, समग्रता और एकता का

प्रतीक माना जाता है।

5. आसियान के झंडे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

Give a brief description of flag of Asean.

उत्तर–आसियान के प्रतीक-चिह्न में धान की दस बालियाँ                     

आसियान की स्थापना कब हुई 1965 1966 1957 1985? - aasiyaan kee sthaapana kab huee 1965 1966 1957 1985?

दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती हैं जो आपस में

मित्रता और एकता के धागे से बंधे हैं। वृत्त आसियान की एकता का

प्रतीक है।

6. 2003 में आसियान देशों के संगठन के कौन-से महत्त्वपूर्ण कदम उठाए?

Wliich important steps were taken by the members of Asean in 2003?

उत्तर-दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से आर्थिक तरक्की करने वाले सदस्य देशों के समूह

आसियान ने अपने उद्देश्यों को आर्थिक और सामाजिक दायरे से ज्यादा व्यापक बनाया है। 2003 में आसियान ने आसियान सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय और आसियान

सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय नामक तीन स्तम्भों के आधार पर आसियान समुदाय बनाने की

दिशा में कदम उठाए जो कुछ हद तक यूरोपीय संघ मिलता-जुलता है।

7. आसियान सुरक्षा समुदाय की प्रमुख विशेषता और कुछ उपलब्धियाँ बताइए।

Discuss some major features and achievements of Aseax Safety

community.

उत्तर-आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की

सहमति पर आधारित है। 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश ने शांति, निष्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई।

5. 1978 में चीन द्वारा मुक्त द्वार की नीति का परिचय दीजिए।

Give introduction of Open Door Policy adopted by China in 1978

उत्तर-1978 के दिसंबर में देंग श्याओपेंग ने ‘ओपेन डोर’ (मुक्त द्वार) की नीति चलायी।

इसके बाद से चीन ने अद्भुत प्रगति की और अगले सालों में एक बड़ी आर्थिक ताकत के रूप

में उभरा। यह तस्वीर चीन में विकास की तेजी से बदलती प्रवृत्तियों का पता देती है।

9. आसियान के 10 सदस्य देशों के नाम बताइए।

Write the names of ten member countries of Asean.

उत्तर–(1) इंडोनेशिया, (2) मलेशिया, (3) फिलिपींस, (4) सिंगापुर, (5) थाइलैंड, (6)

दारुस्सलाम, (7) वियतनाम, (8) लाओस, (9) म्यांमार, (10) कंबोडिया।

10. चीन में विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि लाने के लिए दो कारकों का उल्लेख

कीजिए।

Mention tivo important factors promoting foreign trade of China.

उत्तर-चीन के द्वारा 1978 में खुले द्वार की नीति विशेषकर व्यापार में सहायक नए कानूनों

को अपनाया। इससे विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special economic-zone = SPZ) के निर्माण में, विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

11. भारत ने संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत क्यों की?

Why did India advocate China’s admission to the United Nations?

उत्तर-चीन भारत का पड़ोसी एवं विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। यह देश

अभी कुछ वर्ष पहले तक संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं था। भारत ने सदा चीन की सदस्यता की

वकालत की। 1971 में साम्यवादी चीन की सदस्यता संयुक्त राष्ट्र में स्वीकार की गई। भारत द्वारा

संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत जिन कारणों से की गई, उनमें से प्रमुख अपलिखित

हैं-(1) चीन विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत ने यह अनुभव किया कि ऐसे

देश का विश्व मंच से बाहर रहना विश्व के लिए खतरा हो सकता है। (2) चीन की भौगोलिक व

राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि उसके संयुक्त राष्ट्र के सदस्य से विश्व के अन्य देशों को कुछ लाभ

प्राप्त हो सकता है। (3) भारत चीन के साथ अपनी मित्रता को और अधिक बढ़ाना चाहता था

अतः उसने संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत की।

12. भारत-चीन सीमा विवाद पर एक टिप्पणी लिखें।

Write a note on Indo-China border dispute.

उत्तर-चीन ने तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद वहाँ दमन कार्य शुरू किया। जिसमें दलाई

लामा ने 1959 में भारत में शरण ली। 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर

दिया और भारत के एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। भारत-चीन संबंध बिगड़ गये। 19

दिसंबर, 1962 को कोलंबो प्रस्ताव को चीन ने ठुकरा दिया। 29 नवंबर, 1966 को भारत-चीन

समझौता हुआ कि कोई भी पक्ष अपनी सैनिक क्षमता का इस्तेमाल दूसरे के विरुद्ध नहीं करेगा

तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेनाएँ तथा हथियार कम करने का निर्णय लिया गया।

13. सार्क से क्या अभिप्राय है? (What is SAARC?)              [B.M. 2009A]

उत्तर-सार्क अथवा दक्षेस एक दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन अथवा संघ है

जिनका गठन दिसंबर 1985 में ढाका में हुआ था। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान,

नेपाल, श्रीलंका और मालदीव सात देश सम्मिलित हैं। अब तक इसके ग्यारह सम्मेलन हो चुके

हैं। प्रथम सम्मेलन 8 दिसंबर, 1985 को ढाका में हुआ था।

14. सार्क की स्थापना का क्या महत्त्व है?

What is the significance of establishment of SAARC?

उत्तर-सार्क अर्थात् दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना दिसंबर 1985 में ढाका

में हुई थी। सार्क की स्थापना का महत्त्व अग्रलिखित है–(1) सार्क संगठन ने दक्षिण एशिया के

लोगों के कल्याण तथा उनके आजीविका स्तर को सुधारने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। (2)

इसके द्वारा इस क्षेत्र में और अधिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक उन्नति का मार्ग

प्रशस्त हुआ है। (3) इस संगठन के द्वारा दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मविश्वास की

भावना को बढ़ावा मिला है। (4) सार्क के संगठन के सभी सातों देशों की आपसी समस्याओं को

पारस्परिक विश्वास तथा सूझ-बूझ से सुलझाने का अवसर प्राप्त हुआ है।

15. चीन की नई आर्थिक नीति के दो विपरीत प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

Mention two adverse consequences in China of adopting New Economic Policy.

उत्तर-(i) चीन में हर किसी को नए आर्थिक सुधारों का लाभ नहीं मिला। चीन में बेरोजगारी

बढ़ी है। (ii) चीन में करीब दस करोड़ लोग रोजगार की तलाश में हैं और वहाँ महिलाओं को

रोजगार और काम करने की दशाएं उतनी ही खराब हैं जितनी कि यूरोप में 18 और 19वीं सदी में थे।

16. हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा 1950 से 1962 के मध्य कैसे समाप्त हो गया?

How did the slogen of Hindi Chini-Bhai-Bhai (The people of India and

China just like brothers) ended in between 1950-1962)?

उत्तर-भारत की स्वतंत्रता के बाद कुछ समय के लिए हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा भी

लोकप्रिय हुआ। सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने इस उम्मीद को समाप्त कर दिया। आजादी

के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने

के फैसले से दोनों देशों के बीच सम्बन्ध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों मुल्क

अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते

1962 में लड़ पड़े।

17. क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?

What are the objectives of establishing regional organisations?

                                                                            [NCERT T.B.Q.5]

उत्तर-(i) क्षेत्रीय संगठन को बनाने का उद्देश्य अपने-अपने इलाके में चलने वाली

ऐतिहासिक दुश्मनियों को भुला देना है। साथ-ही-साथ जो भी कमजोरियां या कठिनाइयाँ क्षेत्रीय

देशों के सामने आएं उन्हें परस्पर सहयोग से स्थानीय स्तर पर उनका समाधान ढूंढने का प्रयास

किया जाए।

(ii) क्षेत्रीय संगठनों का उद्देश्य यह भी है कि क्षेत्रीय संगठनों के राष्ट्र सदस्य अपने-अपने

इलाकों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने की कोशिश करें। वे

चाहते हैं कि वे अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में कार्य करें।

इसके दो उदाहरण यूरोपीय संघ और एशियान हैं।

18. भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?

How does geographical proximity influence the formation of regional

organisations?                                                 [NCERT T.B.Q. 6]

उत्तर-भौगोलिक निकटता के कारण क्षेत्र विशेष में आने वाले देशों में संगठन की भावना

विकसित होती है। इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध का स्थान, पारस्परिक सहयोग और शांति ले लेती है। भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ आर्थिक सहयोग और अंतर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देती है। राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था करके कम धन व्यय करके अपने लिए सैनिक गठित कर सकते हैं और बचे हुए धन को कृषि, उद्योग, विद्युत, यातायात, शिक्षा, सड़क, संवादवहन, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को जुटाने और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में प्रयोग कर सकते हैं। यह वातावरण सामान्य सरकार गठन के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न कर सकता है। एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं से बड़ी आसानी से जुड़ सकते हैं।

19. आसियान विजन 2020 की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं?

What are the components of the Asean Vision 2002? [NCERT T.B.Q.7]

उत्तर-आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन

दस्तावेज 2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी

गई है। आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात

निकली है। इसी तरकीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के

संकट को संभाला है और पूर्व-एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से बार्षिक बैठक आयोजित की है।

                                        लघु उत्तरीय प्रश्न

1. आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताइए।

Name the pillars and the objectives of the ASEAN Community.

                                                       [B.M. 2009A; NCERT T.B.Q.8]

उत्तर-(i) पृष्ठभूमि (Background)-द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर इसे

राष्ट्र-निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे शीत

युद्ध के दौर में किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा। टकरावों और

भागमभाग की ऐसी स्थिति को दक्षिण पूर्व एशिया संभालने की स्थिति में नहीं था। बांँडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन वगैरह के माध्यम से एशिया और तीसरी दुनिया के देशों में एकता कायम करने के प्रयास अनौपचारिक स्तर पर सहयोग और मेलजोल कराने के मामले में कारगर नहीं हो रहे थे। इसी चलते दक्षिण पूर्व एशियाई देशों ने दक्षिण पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।

(ii) प्रमुख स्तंभ एवं उद्देश्य (Main pillars and Objects)-

(क) बैंकाक घोषणा (Bankok declaration)-1967 में इस क्षेत्र के पाँच देशों ने

बैंकाक घोषणा पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान’ की स्थापना की। ये देश थे-इंडोनेशिया, मलेशिया,

फिलिपींस, सिंगापुर और थाईलैंड। ‘आसियान’ का उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक विकास को तेज

करना और उसके माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हासिल करना था। कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य था। बाद के वर्षों में ब्रुनेई, दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी आसियान में शामिल हो गए तथा इसकी सदस्य संख्या दस हो गई।

(ख) आसियान शैली (Asean Way)-यूरोपीय संघ की तरह इसने खुद को अधिराष्ट्रीय

संगठन बनाने या उसकी तरह अन्य व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेने का लक्ष्य नहीं रखा।

अनौपचारिक, टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल-मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आसियान ने काफी यश कमाया है और इसको ‘आसियान शैली’ (आसियान वे) ही कहा जाने लगा है। आसियान के कामकाज में राष्ट्रीय सार्वभौमिकता का सम्मान करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है।

(ग) 2003 में उद्देश्यों का विस्तार (Expansion of aims in 2003)-दुनिया में सबसे

तेज रफ्तार से आर्थिक तरक्की करने वाले सदस्य देशों के समूह आसियान ने अब अपने उद्देश्यों

को आर्थिक और सामाजिक दायरे से ज्यादा व्यापक बनाया है। 2003 में आसियान ने आसियान

सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय और आसियान सामजिक-सांस्कृतिक समुदाय नामक तीन स्तम्भों के आधार पर आसियान समुदाय बनाने की दिशा में कदम उठाए जो कुछ हद तक यूरोपीय संघ से मिलता-जुलता है।

(घ) सुरक्षा समुदाय (Security Community)-आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय

विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने कई समझौते किए जिनके द्वारा हर सदस्य देश ने शांति, निष्पक्षता, सहयोग,

अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई।

2. दक्षिणी-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) के परिणामों की आलोचनात्मक

व्याख्या कीजिए।

Critically discuss the consequences of association of South-East Asean

Nations (ASEAN).

उत्तर-(i) बुनियादी रूप से आसियान एक आर्थिक संगठन था और वह ऐसा ही बना रहा।

आसियान क्षेत्र की कुल अर्थव्यवस्था अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान की तुलना में काफी छोटी है पर इसका विकास इन सबसे अधिक तेजी से हो रहा है। इसके चलते इस क्षेत्र में और इससे बाहर इसके प्रभाव में तेजी से वृद्धि हो रही है।

(ii) आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन

आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह

संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी

सुधारना चाहेगा।

(iii) आसियान ने निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी

ध्यान दिया है। इस प्रस्ताव पर आसियान के साथ बातचीत करने की पहल अमेरिका और चीन ने

कर भी दी है।

(iv) आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज

2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है।

आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात निकली

है। इसी तरकीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के संकट को संभाला है और पूर्व-एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से वार्षिक

बैठक आयोजित की है।

(v) आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति, खासतौर से भारत और चीन जैसे तेजी से विकसित

होने वाले एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश के मामले में उसकी प्रासंगिकता ने इसे और

भी आकर्षण बना दिया है। शुरुआती वर्षों में भारतीय विदेश नीति ने आसियान पर ज्यादा ध्यान

नहीं दिया। लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने अपनी नीति सुधारने की कोशिश की है। भारत ने दो

आसियान सदस्यों, सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है।

(vi) भारत आसियान के साथ भी मुक्त व्यापार संधि करने का प्रयास कर रहा है। आसियान

की असली ताकत अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और बाकी गैर-क्षेत्रीय संगठनों के बीच

निरंतर संवाद और परामर्श करने की नीति में है। यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है

जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

3. भारत और चीन के संबंधों (1949-85) पर एक टिप्पणी लिखिए।

Write a short note on India’s relations with China (1949-85).

उत्तर–चीन की जनता भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से सहानुभूति रखती थी। भारत के

नेताओं में 1949 ई. में चीनी क्रांति का स्वागत किया था।

कई वर्षों तक ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे लगते रहे, 1957 ई. में तिब्बत के नेता दलाई

लामा ने भारत में शरण ली। तिब्बत पर कब्जा कर लेने के बाद चीन ने भारत की सीमाओं तक

पक्की सड़कें बना लीं और 1962 ई. में भारत पर हमला बोल दिया। युद्ध तो रुक गया, पर दोनों

देशों के संबंध आज तक सामान्य नहीं हो सके।

1965 ई. और 1971 ई. में भारत-पाक युद्ध के दौरान चीन का व्यवहार भारत के प्रति

शत्रुतापूर्ण रहा। इसके बाद संबंधों में कुछ सुधार आया। 1976 ई. में फिर से चीन में भारत का

राजदूत भेजा गया। 1985 ई. में चीन के साथ एक “व्यापार समझौता” किया गया। चीन ने भारत

को कोयला, तेल और वनस्पति देना मंजूर किया और भारत से उसने कच्ची लौह धातु और चीनी

उद्योग में काम आने वाली मशीनें लेना स्वीकार किया।

1. क्षेत्रीय सहयोग के साधन के रूप में सार्क की प्रमुख उपलब्धियाँ का वर्णन कीजिए।

Explain the main achievements of SAARC as a forum of regional co-

operation.

उत्तर-दक्षिण एशियाई क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग के साधन के रूप में सार्क संगठन ने

निम्नलिखित उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं-

(1) इस क्षेत्र में सात देश एक-दूसरे के काफी समीप आए हैं और इससे उनमें दिखाई देने

वाला तनाव कम हुआ है।

(2) सार्क संगठन के कारण इस क्षेत्र के देशों में थोड़े-थोड़े अंतराल पर आपसी बैठकें होती

रहती हैं। जिसमें इनके छोटे-छोटे मतभेद अपने आप आसानी से सुलझ गए हैं और इनमें अपनापन विकसित हुआ है।

(3) इस क्षेत्र के देशों ने अपने आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए सामूहिक आत्मनिर्भरता

पर जोर दिया है जिससे विदेशी शक्तियों का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है और ये देश अपने

को अधिक स्वतंत्र महसूस करने लगे हैं।

(4) सार्क ने एक संरक्षित अन्न भंडार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मसम्मान

व आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।

                                             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. चीन के साथ भारत के संबंधों का वर्णन कीजिए

Describe India’s relations with China.

उत्तर-चीन के साथ भारत का संबंध (India’s Relations with China)-

(i) प्रस्तावना (Introduction)-पश्चिमी साम्राज्यवाद के उदय से पहले भारत और चीन

एशिया की महाशक्ति थे। चीन का अपने आसपास के इलाकों पर भी काफी प्रभाव था और

आसपास के छोटे देश इसके प्रभुत्व को मानकर और कुछ नजराना देकर चैन से रहा करते थे।

चीनी राजवंशों के लम्बे शासन में मंगोलिया, कोरिया, हिन्द-चीन के कुछ इलाके और तिब्बत

इसकी अधीनता मानते रहे थे। भारत के भी अनेक राजवंशों और साम्राज्यों का प्रभाव उनके अपने राज्य से बाहर भी रहा था। भारत हो या चीन, इनका प्रभाव सिर्फ राजनैतिक नहीं था-यह

आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भी था। पर चीन और भारत अपने प्रभाव क्षेत्रों के मामले में कभी नहीं टकराए थे। इसी कारण दोनों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रत्यक्ष सम्बन्ध सीमित ही थे। परिणाम यह हुआ कि दोनों देश एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जान सके और जब बीसवीं सदी में दोनों देश एक-दूसरे से टकराए तो दोनों को ही एक-दूसरे के प्रति विदेश नीति विकसित करने में मुश्किलें आई।

(ii) ब्रिटिश शासन के उपरांत भारत चीन संबंध (After British rule India-China

relations)-अंग्रेजी राज से भारत के आजाद होने और चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल

बाहर करने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि ये दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और

खासतौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। कुछ समय के लिए

हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा भी लोकप्रिय हुआ। सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने इस उम्मीद को समाप्त कर दिया। आजादी के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच सम्बन्ध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों मुल्क अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते 1962 में लड़ पड़े।

(iii) भारत-चीन युद्ध और उसके बाद (Indo-Sino War aud later on)-1962 के

युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक

असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त ही रहे। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों के बीच सम्बन्धों में सुधार शुरू हुआ। 1970 के दशक के उत्तर में चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला। चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए इसलिए चीन भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए विवादास्पद मामलों को छोड़ने को तैयार हो गया। 1981 में सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं की श्रृंखला भी शुरू की गई।

(iv) भारत-चीन संबंध राजीव गाँधी के काल में (Indo-China relation period

Rajiv Gandhi)― दिसम्बर 1988 में राजीव गाँधी द्वारा चीन का दौरा करने से भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। इसके बाद से दोनों देशों ने टकराव टालने और

सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के उपायों की शुरुआत की है। दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने के समझौते भी किए हैं।

(v) भारत-चीन संबंध शीतयुद्ध के बाद (Indo-Chinarelation afterCold War)-

शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारत-चीन सम्बन्धों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। अब इनके

संबंधों का रणनीतिक की नहीं, आर्थिक पहलू भी है। दोनों ही खुद को विश्व-राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।

(vi) भारत-चीन के आर्थिक संबंध, 1992 से (Since 1992 India Sino-Economic

relation)-1999 से भारत और चीन के बीच व्यापार सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा

है। इससे चीन के साथ संबंधों में नयी गर्मजोशी आयी है। चीन और भारत के बीच 1992 में 33

करोड़ 80 लाख डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था जो 2006 में बढ़कर 18 अरब डॉलर का हो चुका है। हाल में, दोनों देश ऐसे मसलों पर भी सहयोग करने के लिए राजी हुए हैं जिनसे दोनों

के बीच विभेद पैदा हो सकते थे; जैसे-विदेशों में ऊर्जा-सौदा हासिल करने का मसला।

वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों

के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी हैं।

(vii) सैनिक उतार-चढ़ाव एवं कूटनीतिक संबंध (Military development and

diplomatic relations)-1998 में भारत के परमाणु हथियार परीक्षण को कुछ लोगों ने चीन

से खतरे के मद्देनजर उचित ठहराया था लेकिन इससे भी दोनों के बीच संपर्क कम नहीं हुआ। यह सच है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में भी चीन को मददगार माना जाता है। बांग्लादेश और म्यांमार से चीन के सैनिक संबंधों को भी दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के खिलाफ माना जाता है पर इनमें से कोई भी मुद्दा दोनों मुल्कों में टकराव करवा देने लायक नहीं माना जाता। इस बात का एक प्रमाण यह है कि इन चीजों के बने रहने के बावजूद सीमा विवाद सुलझाने की बातचीत और सैन्य स्तर पर सहयोग का कार्यक्रम जारी है। चीन और भारत के नेता तथा अधिकारी अब अक्सर नयी दिल्ली और बीजिंग का दौरा करते हैं। इससे दोनों देश एक-दूसरे को ज्यादा करीब से समझने लगे हैं। परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोतरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

नोट-कृपया भारत-चीन के संबंधों से संबंधित अगला प्रश्न अर्थात् पाठ्यपुस्तक 14 का

उत्तर भी देखें।

2. आज की चीनी अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?

In what way does the present Chinese economy differs from its command economy?                                 [NCERT T.B.Q.9]

उत्तर-साम्यवादी चीनी अर्थव्यवस्था और आज की चीनी अर्थव्यवस्था में भेद

(Difference between economy of communist China and China of today) –

(i)1149 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य शासन

व्यवस्था की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिकी सोवियत मॉडल पर आधारित थी। आर्थिक रूप

से पिछड़े साम्यवादी चीन ने पूँजीवादी दुनिया से अपने रिश्ते तोड़ लिए ऐसे में इसके पास अपने

ही संसाधनों से गुजारा करने के अलावा कोई चारा न था। हाँ, थोड़े समय तक इसे सोवियत मदद

और सलाह भी मिली थी। इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी लेकर सरकारी बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। चूंकि इसके पास विदेशी बाजारों से तकनीक और सामानों की खरीद के लिए विदेशी मुद्रा की कमी थी इसलिए चीन ने आयातित सामानों को धीरे-धीरे घरेलू स्तर पर ही तैयार करवाना शुरू किया।

(ii) इस मॉडल ने चीन को अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने का आधार

बनाने के लिए सारे संसाधनों का इस्तेमाल करने दिया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया और चीन अपने नागरिकों को शिक्षित करने और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के मामले में सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।

(iii) चीन की अर्थव्यवस्था का विकास भी 5 से 6 फीसदी की दर से हुआ। लेकिन जनसंख्या

में 2-3 फीसदी की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी और बढ़ती आबादी विकास के लाभ से वंचित रह जा रही थी। खेती की पैदावार उद्योगों की पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पाती थी। अध्याय दो में हम सोवियत संघ की राज्य-नियंत्रित आर्थिक संकट की चर्चा कर चुके हैं। ऐसे ही संकट का सामना चीन को भी करना था। इसका औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

(iv) चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिए। चीन ने 1972 में

अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया। 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने कृषि, उद्योग, सेना और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे। 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेशी पूंँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका आजमाया।

(v) 1978 के बाद से जारी चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके

उभरने के साथ जोड़कर देखा जाता है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे

ज्यादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है और माना जाता है कि इस रफ्तार से चलते हुए 2040

तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा। आर्थिक

स्तर पर अपने पड़ोसी मुल्कों से जुड़ाव के चलते चीन पूर्व एशिया के विकास का इंजन-जैसा बना हुआ है और इस कारण क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है। इसकी विशाल आबादी, बड़ा भू-भाग, संसाधन, क्षेत्रीय अवस्थिति और राजनैतिक प्रभाव इस तेज आर्थिक वृद्धि के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं। चीन ने शॉक थेरेपी’ पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला।

(vi) 1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों का। व्यापार

संबंधी अवरोधों को सिर्फ विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ही हटाया गया है जहाँ विदेशी निवेशक

अपने उद्यम लगा सकते हैं।

(vii) नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी जड़ता से उबरने में

मदद मिली। कृषि के निजीकरण के कारण कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत का परिमाण बढ़ा और इससे ग्रामीण उद्योगों की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ी। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि-दर तेज रही। व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेश-व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

(viii) चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा।

चीन के पास विदेशी मुद्रा का अब विशाल भंडार है और इसके दम पर चीन दूसरे देशों में निवेश

कर रहा है। चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया। इस तरह दूसरे देशों के लिए

अपनी अर्थव्यवस्था खोलने की दिशा में चीन ने एक कदम और बढ़ाया। अब चीन की योजना

विश्व आर्थिकी से अपने जुड़ाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था को एक मनचाहा

रूप देने की है।

(ix) चीन की आर्थिक स्थिति में तो नाटकीय सुधार हुआ है लेकिन वहाँ हर किसी को सुधारों

का लाभ नहीं मिला है। चीन में बेरोजगारी बढ़ी है और 10 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में है।

वहांँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। इसके अलावा पर्यावरण के नुकसान और भ्रष्टाचार के बढ़ने जैसे परिणाम भी सामने आए। गांँव और शहर के तथा तटीय और मुख्य भूमि पर रहने वाले लागों के बीच आर्थिक फासला बड़ा होता जा रहा है।

(x) हालांँकि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन एक ऐसी जबरदस्त आर्थिक शक्ति बनकर

उभरा है कि सभी उसका लोहा मानने लगे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का बाहरी दुनिया से जुड़ाव

और पारस्परिक निर्भरता ने अब यह स्थिति बना दी है कि अपने व्यावसायिक साझीदारों पर चीन

का जबरदस्त प्रभाव बन चुका है और यही कारण है कि जापान, अमेरिका, आसियान और रूस

सभी व्यापार के आगे चीन से बाकी विवादों को भुला चुके हैं। उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही

चीन और ताइवान के मतभेद भी खत्म हो जायेंगे और ताइवान इसकी अर्थव्यवस्था के साथ ज्यादा घनिष्ठ रूप से जुड़ जायेगा। 1997 के वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के आर्थिक उभार ने काफी मदद की है। लातिनी अमेरिका और अफ्रीका में निवेश और मदद की इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्व शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

3. किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के वाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में

उन कदमों की चर्चा करें जिससे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।

How did the European countries resolve their post-Second World War

problems? Briefly oultline the attempts that led to the formation of the

European Union.                                                  [NCERT T.B.Q. 10)

उत्तर-(i) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय देशों द्वारा समस्याओं का समाधान

(Solution of the problems by the European Countries, after the Second World War)-जब दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तब यूरोप के अनेक नेता ‘यूरोप के सवालों’ को

लेकर परेशान रहे। क्या यूरोप को अपनी पुरानी दुश्मनियों को फिर से शुरू करना चाहिए या

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सकारात्मक योगदान करने वाले सिद्धांतों और संस्थाओं के आधार पर उसे

अपने संबंधों को नए तरह से बनाना चाहिए? दूसरे विश्वयुद्ध ने उन अनेक मान्यताओं और

व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिसके आधार पर यूरोप के देशों के आपसी सम्बन्ध बने थे।

1945 तक यूरोपीय मुल्कों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं की बर्बादी तो झेली ही, उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त होते भी देख लिया जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।

(ii) अमेरिकी सहयोग और यूरोपीय आर्थिक संगठन की स्थापना (Americans

co-operation and establishment European Economic Organisation)-1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीतयुद्ध से भी मदद मिली। अमेरिका ने यूरोप की

अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता

है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के

तहत ही 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की मदद शुरू की।

(iii) यूरोपीय परिषद् और आर्थिक समुदाय का गठन (Organisationof European

Council and EconomicCommunity)-1949 में गठित यूरोपीय परिषद राजनैतिक सहयोग के मामले में एक अगला कदम साबित हुई। यूरोप के पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप सन् 1957 में यूरोपियन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

(iv) यूरोपीव पार्लियामेंट का गठन (Organisation of European Parliament)

यूरोपियन पार्लियामेट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया। सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और सन् 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आंतरिक

मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार

हो गया।

(v) यूरोपीय संघ का बनना (Formation of European Union)-एक लम्बे समय

में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा-से-ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हालांकि यूरोपीय संघ का एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। अन्य देशों से संबंधों के

मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।

(vi) नये सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की

कोशिश की। नये सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे। यह प्रक्रिया आसान नहीं रही।

अनेक देशों के लोग इस बात को लेकर कुछ खास उत्साहित नहीं थे कि जो ताकत उनके देश

की सरकार को हासिल थी वह अब यूरोपीय संघ को दे दी जाए। यूरोपीय संघ में कुछ देशों को

शामिल करने के सवाल पर भी असहमति है।

4. यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?

What makes the European Union a highly influential regional organisation?                                               [NCERT T.B.Q. 11)

उत्तर-यूरोपीय संघ को प्रभावी बनाने वाले कारक (Factors making effective

to European Union)-

(i) यूरोपीय संघ को अनेक चीजें एक प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं। इस महाद्वीप के

देशों की भौगोलिक निकटता इस को मजबूती प्रदान करती है।

(ii) इस महाद्वीप के लंबे इतिहास ने सभी यूरोपीय देशों को सिखा दिया कि क्षेत्रीय शांति

और सहयोग ही अंतत: उन्हें समृद्धि और विकास दे सकता है। टकराव, संघर्ष और युद्ध विनाश

और अवनति के मूल कारण हैं।

(iii) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था ने उन्हें बता दिया है यदि वे अमेरिका के वर्चस्व का सामना

करना चाहते हैं तो उन्हें यूरोपीय संघ न केवल बनाना ही चाहिए बल्कि उसे सुदृढ़ और परस्पर

हितों की कुर्बानी देकर पूरे यूरोप को सुदृढ़ करना चाहिए ताकि वे समय आने पर अमेरिका का रूप या चीन अथवा किसी विश्व की बड़ी शक्ति के सामने घुटने न टेके और अपनी शर्तों पर उदारीकरण,वैश्वीकरण आदि को लागू करा सके।

(iv) यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक-कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है।

2005 में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 12000

अरब डालर से ज्यादा था, जो अमेरिका से भी थोड़ा ज्यादा था। इसकी मुद्रा यूरो अमेरिकी डालर

के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से तीन गुनी

ज्यादा है और इसी के चलते यह अमेरिका और चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौंस के साथ

बात करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं, बल्कि एशिया

और अफ्रीका के दूर-दराज के मुल्कों पर भी है। यह विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

संगठनों के अदर एक महत्त्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है।

(v) यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य

देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा

रिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। इसके चलते यूरोपीय संघ अमेरिका समेत सभी मुल्को

की नीतियों को प्रभावित करता है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित अमेरिकी नीतियों को हाल के दिनों में प्रभावित करना इसका एक उदाहरण है। चीन के साथ मानवधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण विनाश के मामलों पर धमकी या सैनिक शक्ति का उपयोग करने की जगह कूटनीति, आर्थिक निवेश और बातचीत की इसकी नीति ज्यादा प्रभावी साबित हुई है।

(vi) सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। यूरोपीय संघ के दो देशों-ब्रिटेन और

फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं और अनुमान है कि इनके जखीरे में करीब 550 परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है।

(vii) अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों

में दखल देने में सक्षम है लेकिन अनेक मामलों में इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश और रक्षा

नीति है जो कई बार एक-दूसरे के खिलाफ भी होती है। यही कारण है कि इराक पर अमेरिकी हमले में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर तो उसके साथ थे लेकिन जर्मनी और फ्रांस इस हमले के खिलाफ थे। यूरोपीय संघ के कई नए सदस्य देश भी अमेरिकी गठबंधन में थे। यूरोप के कुछ

हिस्सों में यूरो को लागू करने के कार्यक्रम को लेकर काफी नाराजगी है। यही कारण है कि ब्रिटेन

की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने ब्रिटेन को यूरोपीय बाजार से अलग रखा। डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट संधि और साझी यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का प्रतिरोध किया। इससे विदेशी और रक्षा मामलों में काम करने की यूरोपीय संघ की क्षमता सीमित होती है।

5. “चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकधृवीय विश्व व्यवस्था

को चुनौती दे सकने की क्षमता है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने

तर्कों से अपने विचारों की पुष्टि करें।

“The emerging economics of China and India have great potential to

challenge the unipolar world.” Do you agree with the statements?

Substatiate your arguments.                          [NCERT T.B.Q. 12]

उत्तर-हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं। चीन और भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद

एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था को चुनौती दे सकने की पूरी तरह क्षमता रखते हैं। हम इस विचार की

पुष्टि के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दे सकते हैं-

(i) चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली, साधनसंपन्न देश है।

दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है। दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक और आर्थिक मंचों पर एक-सी नीति और दृष्टिकोण अपनाकर एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था के संचालन करने वाले राष्ट्र अमेरिका और उसके मित्रों को चुनौती देने में सक्षम है।

(ii) चीन और भारत दोनों की जनसंख्या 200 करोड़ से भी ज्यादा है। सरल शब्दों में कहें

तो विश्व का हर तीसरा मानव इन दोनों देश में रहता है। इतना विशाल जनमानस अमेरिका के

निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। दोनों देश पश्चिमी देश में और

अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।

(iii) भारत और चीन दोनों विकासशील देश हैं। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ उभरती हुई

अर्थव्यवस्थाएँ हैं। दोनों देश नई अर्थव्यवस्था, मुक्त व्यापार नीति, उदारीकरण, वैश्वीकरण और

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के पक्षधर हैं। दोनों देश विदेशी पूंजी निवेश का स्वागत करके एकध्रुवीय

महाशक्ति अमेरिका और अन्य बहुराष्ट्रीय निगम समर्थक कंपनियाँ स्थापित और संचालन करने

वाले राष्ट्रों को लुभाने, सुविधाएंँ आंतरिक आवश्यक सुविधाएं प्रदान करके अपने यहाँ आर्थिक

विकास की गति को बहुत ज्यादा बढ़ा सकते हैं।

(iv) दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी

के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति दिखा सकते है।

(v) दोनों देश विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से ऋण लेते समय अमेरिका और अन्य बड़ी

शक्तियों की मनमानी शतें भोगने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रख सकते हैं।

(vi) दोनों देश सच्चे दिल से पारस्परिक लाभकारी व्यापार नीतियों और उदारीकरण को सुदृढ

करने वाले कदम उठा सकते है।

(vii) चीन और भारत तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन, विनिमय, वितरण, प्रदूषण फैलाने में सहायक कारकों और आतंकवादियों की गतिविधियों में पूर्ण सहयोग देकर भी विश्वव्यवस्था की चुनौतियों को कम कर सकते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में सहयोग से न केवल कीमतों

के बढ़ने की प्रवृत्ति को रोका जाएगा बल्कि लोगों का स्वास्थ्य और सुरक्षा बढ़ेगी, दोनों देशों में

आंतरिक सद्भाव, शांति, औद्योगिक विकास के अनुकूल वातावरण निसंदेह विदेशी पूँजी, उद्यमियों, व्यापारियों, न्यूनतम प्रौद्योगिकी आदि को आने और नई-नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना,विभिन्न प्रकार की सेवाओं की वृद्धि और विस्तार को बढ़ावा देंगे।

(viii) दोनों देश बहु-उद्देश्यीय योजनाओं को सीमाओं पर स्थित या प्रभावित होने वाली

नदियों और जल भंडारों को बाँधों को नियंत्रण करके, बाढ़ नियंत्रण, जल विद्युत निर्माण, जल

आपूर्ति, मत्स्य उद्योग, पर्यटन उद्योग आदि को बढ़ा सकते हैं। दोनों देशों के मध्य सड़क निर्माण,

रेल लाइन विस्तार, वायुयान और जल मार्ग संबंधी सुविधाओं के क्षेत्रों में पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग की नीतियाँ अपनाकर अपने को दोनों राष्ट्र शीघ्र ही महाशक्तियों की श्रेणी में ला सकते हैं। खनिज संपदा, कृषि उत्पाद। प्राकृतिक संसाधनों (जैसे वन उत्पादों, पशुधन) सॉफ्टवेयर इंजीनियर, हार्डवेयर इंजीनियर आदि के क्षेत्र में यथा क्षमता, यथा आवश्यकता की नीति अपनाकर निसंदेह एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था को मजबूत चुनौती दे सकते हैं।

6. भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएंँ कि वृहत्तर

सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।

Identify the contentinous issues between China and India. How could these be resolved for greater co-operation? Give your suggestions.

उत्तर-(I) भारत और चीन के बीच विवाद के मामले निम्नलिखित हैं-

(i) सीमा-विवाद-चीन ने पाकिस्तान के साथ संधि करके कश्मीर का कुछ भाग अपने

अधीन कर लिया है जिसे तथाकथित पाकिस्तान द्वारा हथियाए गए कश्मीर का हिस्सा माना जाता है।

(ii) चीन भारत के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है।

(iii) चीन ने 1962 में लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को जबरन स्थापित करने

के लिए भारत पर आक्रमण कर दिया था। जिसकी वजह से हिंदी-चीनी भाई-भाई की भावना और एशिया के दो महान पड़ोसी देशों के सदियों पुराने चले आ रहे मित्रता के संबंधों को भारी ठेस पहुंँची।

(iv) 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो चीन ने उसकी मदद करके

भारतवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। स्वाभाविक तौर पर दोनों देशों के संबंध और खराब हो गए।

(v) चीन भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है जबकि वह स्वयं परमाणु अस्त्र-शस्त्र

रखता है।

(II) वृहत्तर सहयोग के लिए भारत-चीन मतभेदों को निपटाने के लिए निम्नलिखित

सुझाव दिए जा सकते हैं―

(i) दोनों देशों के प्रमुख नेता समय-समय पर एक-दूसरे के यहाँ आएँ-जाएँ और विचारों का

आदान-प्रदान करें जिससे दोनों देशों में सद्भाव और मित्रता स्थापित हो।

(ii) दोनों देशों में सांस्कृतिक संबंध हों, कुछ लोग भारत के चीनी भाषा और चीनी साहित्य

का अध्ययन करने के लिए चीन जा सकते हैं और कुछ चीनी नागरिक हिंदी और अन्य भारतीय

भाषाओं व साहित्य के अध्ययन के लिए भारत आ सकते हैं।

(iii) दोनों देशों में चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला, नृत्यकला, फिल्मों आदि का

आदान-प्रदान किया जा सकता है।

(iv) भारत और चीन में आंतरिक व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है। दोनों देशों में

कंप्यूटर से संबंधित सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के आदान-प्रदान, विशेषज्ञों का आदान-प्रदान न्यूनतम प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान किया जा सकता है।

(v) दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर यथासंभव समान दृष्टिकोण अपनाकर और परस्पर सहयोग

देकर विकसित देशों को इन दोनों देशों के आर्थिक, वैज्ञानिक और सैनिक साज-सामान की उन्नति

के लिए सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।

(vi) दोनों ही देश आतंकवाद में एक-दूसरे को सहयोग कर सकते हैं और जो भी देश

आतंकवादी शिविरों का संचालन या संगठन किए हुए हैं उनके विरुद्ध संयुक्त दबाव डालने की

नीति अपना सकते हैं।

(vii) दोनों देश पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण फैलाने वाली समस्याओं के समाधान में सहयोग

दे सकते हैं।

(viii) दोनों देश तिब्बत, शरणार्थियों और तिब्बत से जुड़ी समस्याओं, ताईबान की समस्या

के समाधान में भारतीय सहयोग एवं नैतिक समर्थन बढ़ाकर, हांगकांग की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

संबंधी स्थिति का लाभ उठाकर, निवेश को बढ़ाकर, वैश्वीकरण, उदारीकरण, मुक्त व्यापार नीति

और उदार पासपोर्ट और बीजा की नीति आदि के साथ-साथ सड़क मार्ग, रेलमार्ग आदि से परस्पर जुड़कर मैत्रीपूर्ण वातावरण बना सकते हैं।

अंत में दोनों देशों की सरकारें, नेतागण, जनसंचार माध्यम, निर्माणकार, भूमिका और

पारस्परिक (मेज पर बैठकर) बातचीत के द्वारा हर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं। यहाँ

तक सीमा से जुड़ी हुई समस्याएं हैं, उसके लिए परस्पर कुछ क्षेत्र ले देकर भी यदि बिना भारतीय

प्रतिरक्षा और वास्तविक अखंडता को हानि पहुंचाए यदि स्थायी मित्रता, शांति पारस्परिक सहयोग प्राप्त किया जा सकता है तो हमारे विचारानुसार दोनों देशों के लिए यह हितकर होगा क्योकि दोनों ही देश अनेक एक जैसी समस्याओं (जनाधिक वृद्धि, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, निम्न भौतिक जीवन स्तर आदि) समस्याओं से जूझ रहे हैं। दोनों ही देश सेना पर होने वाला व्यय कम करके विकास की गति को बढ़ा सकते हैं।

7. 1962 में हुए चीन-भारत युद्ध के कारणों का वर्णन करें।

                                                   [Board Exam. 2009A; B.M. 2009 A]

उत्तर―भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत बड़े दोस्ताना ढंग से किया।

सन् 1949 ई. में चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई और भारत उसे मान्यता देनेवाले देशों

में प्रथम था। उसके काफी बाद तक चीन-भारत के संबंध मित्रतापूर्ण रहे। लेकिन 1958 ई. के बाद इस संबंधों में दरार पड़ने लगी जब चीन ने भारत के समक्ष सीमा विवाद का प्रश्न उठा दिया और 1962 ई. में चीन ने भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया तथा नेफा एवं लद्दाख के बहुत बड़े क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया। इस आक्रमण के पीछे निम्न प्रबल कारण थे-

(i) चीन द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना।

(ii) चीनी शासकगण एशिया के अन्य देशों को प्रभावित करके, इस क्षेत्र में अपना नेतृत्व

स्थापित करना चाहते थे।

(iii) भारत की निर्बलता को उजागर करके उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपमानित करना।

(iv) विश्व में चीन की आर्थिक व राजनीतिक प्रणाली की सर्वोच्चता प्रदर्शित करना।

(v) सोवियत संघ को यह दिखाना कि भारत की गुटनिरपेक्षता एक दिखावा है।

(vi) चीन की जनता का आंतरिक समस्याओं से ध्यान हटाकर दूसरी ओर आकृष्ट करना।

(vii) चीनी शासकों को अनुमान था कि युद्ध से भारत का आर्थिक विकास प्रभावित होगा

जिससे असंतोष फैलेगा। नेहरू के नेतृत्व का पतन होगा। साम्यवादी लोग सत्ता प्राप्त करेंगे।

इस युद्ध में चीन ने भारत को हराया और युद्ध के कारण दोनों देशों के संबंध टूट गये। भारत

को अमेरिका व सोवियत संघ से सहायता मिली और युद्ध रुक गया। चीन ने भारत के 30,000

वर्ग मील भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया जो आज भी कायम है। अपमानजनक पराजय के बाद भारत अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने का संकल्प किया।

8. दक्षिण एशियाई देशों के बीच आर्थिक सहयोग का रास्ता तैयार करने में दक्षेस की

भूमिका और सीमाओं का मूल्यांकन कीजिए। [Board Exam. 2009A; B.M. 2009A]

उत्तर-अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा तथा राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और

संसाधनों की दृष्टि से दक्षिण एशिया विश्व का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि विश्व की कुल आबादी

का लगभग एक चौथाई हिस्से का इसमें निवास है। दक्षेस एशिया के सात देशों-भारत,

पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान व मालदीव के बीच क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़

करने के उद्देश्य से बनाया गया है। दिसम्बर 1985 ई. को ढाका के प्रथम शिखर सम्मेलन में दक्षेस की स्थापना की गई। संक्षेप में दक्षिण एशिया के देशों की आपसी विभिन्नताओं एवं विवादों के बीच परस्पर सहयोग की संभावनाओं को ढूंढकर शांति और परस्पर विश्वास के माहौल में इस

आसियान क्या है और इसकी स्थापना कब हुई?

आसियान की स्थापना ८ अगस्त, १९६७ को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी। इसके संस्थापक सदस्य थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस और सिंगापुर थे। ब्रूनेई इस संगठन में १९८४ में शामिल हुआ और १९९५ में वियतनाम। इनके बाद १९९७ में लाओस और बर्मा इसके सदस्य बने।

आसियान में कुल कितने देश हैं?

आसियान क्षेत्रीय मंच एक 28 देशों का एक अनौपचारिक बहुपक्षीय संवाद मंच है जो कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा मुद्दों को उठाता है।

आसियान के संस्थापक देशों की संख्या कितनी है?

Ans. 5 सदस्यों में थाईलैंड, सिंगापुर, वियतनाम, लाओस, इंडोनेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और कंबोडिया शामिल हैं। Q.

आसियान की स्थापना क्यों की गई?

आसियान (ASEAN) का पूरा नाम Association of Southeast Asian Nations है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन एक क्षेत्रीय संगठन है जो एशिया-प्रशांत के उपनिवेशी राष्ट्रों के बढ़ते तनाव के बीच राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया था।