Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Textbook Exercise Questions and Answers. Show
PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 22 भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947SST Guide for Class 8 PSEB भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Textbook Questions and AnswersI. नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें : 1. महात्मा गांधी जी ने रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए पूरे देश में ………… आंदोलन शुरू किया।
III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं : 1. असहयोग आन्दोलन के अधीन महात्मा गांधी जी ने अपनी केसर-ए-हिंद की उपाधि सरकार को … वापिस कर दी।
IV. सही जोड़े बनाएं : 1. अहिंसा – महाराजा रिपुदमन सिंह PSEB 8th Class Social Science Guide भारत का स्वतन्त्रता संग्राम : 1919-1947 Important Questions and Answersवस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions) सही विकल्प चुनिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
1919 ई० के एक्ट के अनुसार किये गये सुधार भारतीयों को खुश नहीं कर सके। अत: इण्डियन नैशनल कांग्रेस ने इस एक्ट का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ कर दिया। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. 18 जुलाई, 1947 ई० को ब्रिटिश संसद् ने भारतीय स्वतन्त्रता एक्ट पास कर दिया। परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत में अंग्रेज़ी शासन समाप्त हो गया तथा भारत स्वतन्त्र हो गया। परन्तु इसके साथ ही भारत के दो भाग बन गए। एक का नाम भारत तथा दूसरे का नाम पाकिस्तान रखा गया। निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. 13 अप्रैल, 1919 ई० को वैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए लगभग 20,000 लोग एकत्रित हुए। जनरल डायर ने इन लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागना आरम्भ कर दिया, परन्तु इस बाग़ का मार्ग तीन ओर से बन्द था तथा चौथी ओर के मार्ग में सैनिक होने के कारण लोग वहीं पर ही घिर गये। थोड़े ही समय में सारा बाग़ खून और लाशों से भर गया। इस रक्त रंजित घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये तथा 3,000 से अधिक लोग घायल हुए। इस हत्याकांड का समाचार सुन कर लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष की भावना फैल गई। ख़िलाफ़त आन्दोलन-प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने अंग्रेजों के विरुद्ध जर्मनी की सहायता की। भारत के मुसलमान तुर्की के सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय को अपना ख़लीफ़ा एवं धार्मिक नेता मानते थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज़ों की सहायता इसलिए की थी कि युद्ध समाप्त होने के बाद तुर्की के ख़लीफ़ा को कोई क्षति नहीं पहुंचायी जायेगी। परन्तु युद्ध समाप्त होने पर अंग्रेजों ने तुर्की,को कई भागों में बांट दिया तथा ख़लीफ़ा को बन्दी बना लिया। अतः भारत के मुसलमानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक ज़ोरदार आन्दोलन आरंभ कर दिया जिसे ख़िलाफ़त आन्दोलन कहा जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व शौकत अली, मुहम्मद अली, अबुल कलाम आज़ाद तथा अजमल खां ने किया। महात्मा गांधी तथा बाल गंगाधर तिलक ने भी हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए इस आन्दोलन में भाग लिया। प्रश्न 3. जन्म तथा शिक्षा-महात्मा गान्धी के बचपन का नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को काठियावाड़ में पोरबन्दर के स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गान्धी था जो पोरबन्दर के दीवान थे। गान्धी जी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा भारत में ही प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। वहां उन्होंने वकालत पास की और फिर भारत लौट आए। राजनीतिक जीवन-गान्धी जी के राजनीतिक जीवन का आरम्भ दक्षिणी अफ्रीका से हुआ। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने के बाद कुछ समय तक भारत में वकील के रूप में कार्य किया। परन्तु फिर वह दक्षिणी अफ्रीका चले गए। गान्धी जी दक्षिणी अफ्रीका में- गान्धी जी जिस समय दक्षिणी अफ्रीका पहुंचे। उस समय वहां भारतीयों की दशा बहुत बुरी थी। वहां की गोरी सरकार भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करती थी। गान्धी जी इस बात को सहन न कर सके। उन्होंने वहां की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलाए। गान्धी जी भारत में-1914 ई० में गान्धी जी दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे। उस समय प्रथम विश्व-युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेज़ी सरकार इस युद्ध में उलझी हुई थी। उसे जन और धन की काफ़ी आवश्यकता थी। अतः गान्धी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेज़ों को सहयोग दें। वह अंग्रेज़ी सरकार की सहायता करके उसका मन जीत लेना चाहते थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेज़ी सरकार युद्ध जीतने के बाद भारत को स्वतन्त्र कर देगी। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने युद्ध में विजय होने के बाद भारत को कुछ न दिया। उसके विपरीत उन्होंने भारत में रौलेट एक्ट लागू कर दिया। इस काले कानून के कारण गान्धी जी को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया। असहयोग आन्दोलन-1920 ई० में गान्धी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। जनता ने गान्धी जी का पूरा-पूरा साथ दिया। सरकार को गान्धी जी के इस आन्दोलन के सामने झुकना पड़ा। परन्तु कुछ हिंसक घटनाएं हो जाने के कारण गान्धी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा। सविनय अवज्ञा आन्दोलन-1930 ई० में गान्धी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने डाण्डी यात्रा की और नमक कानून को भंग किया। सरकार घबरा गई। उसने भारतवासियों को नमक बनाने का अधिकार दे दिया। 1935 ई० में सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण एक्ट भी पास किया। भारत छोड़ो आन्दोलन-गान्धी जी का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। भारत के लाखों नर-नारी गान्धी जी के साथ हो गए। इतने विशाल जन आन्दोलन से अंग्रेज़ी सरकार घबरा गई और उसने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हुआ। इस स्वतन्त्रता का वास्तविक श्रेय गान्धी जी को ही जाता है। अन्य कार्य-गान्धी जी ने भारतवासियों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए अनेक काम किए। भारत में गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का सन्देश दिया। अछूतों के उद्धार के लिए गान्धी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गान्धी जी ने गांव-गांव घूमकर लोगों को भाईचारे का सन्देश दिया। देहान्त-30 जनवरी, 1948 ई० की. संध्या को गान्धी जी की निर्मम हत्या कर दी गई। भारतवासी गान्धी जी की सेवाओं को कभी भुला नहीं सकते। आज भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से याद किया जाता है। प्रश्न 4. (1) पंजाब में लोगों पर किए जा रहे अत्याचारों तथा अनुचित नीतियों की निन्दा करना। (2) तुर्की के सुल्तान (खलीफ़ा) के साथ किए जा रहे अन्याय को समाप्त करना। (3) हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करना। (4) अंग्रेजी सरकार से स्वराज (स्वतन्त्रता) प्राप्त करना। असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम : (1) सरकारी नौकरियों का त्याग किया जाए। (2) सरकारी उपाधियों को लौटाया जाए। (3) सरकारी उत्सवों तथा सम्मेलनों में भाग न लिया जाए। (4) विदेशी वस्तुओं का उपयोग न किया जाए। इनके स्थान पर अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग किया जाए। (5) सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार किया जाए तथा अपने विवादों का निर्णय पंचायतों द्वारा करवाया जाए। (6) चरखे द्वारा बने खादी के कपड़े का उपयोग किया जाए। असहयोग आन्दोलन की प्रगति-महात्मा गान्धी ने अपनी केसर-ए-हिन्द की उपाधि सरकार को लौटा दी ! उन्होंने भारतीय लोगों से आन्दोलन में भाग लेने की अपील की। अनेकों भारतीयों ने गान्धी जी के कहने पर अपनी नौकरियां त्याग दी तथा उपाधियां सरकार को लौटा दीं। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों ने स्कूलों तथा कॉलेजों में जाना बन्द कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा-संस्थाओं जैसे कि काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, तिलक विद्यापीठ आदि में पढ़ना आरम्भ कर दिया। देश के सैंकड़ों वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी। इनमें मोतीलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, सी० आर० दास, परदार पटेल, लाला लाजपत राय आदि शामिल थे। लोगों ने विदेशी कपड़ों का त्याग कर दिया तथा चरखे द्वारा बने खादी के कपड़े का उपयोग करना आरम्भ कर दिया। सरकार ने इस आन्दोलन के दमन के लिए हज़ारों की संख्या में आन्दोलनकारियों को बन्दी बना लिया। 1922 ई० में उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के गांव चौरी-चौरा में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। इस अधिवेशन में लगभग 3000 किसान भाग ले रहे थे। यहां पर पुलिस ने उन पर गोलियां चलाईं। किसानों ने क्रोध में आकर पुलिस थाने पर आक्रमण कर दिया और उसे आग लगा दी। परिणामस्वरूप थाने में 22 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। अतः गान्धी जी ने 12 फरवरी, 1922 ई० को बारदौली में असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया। . ___ महत्त्व-भले ही महात्मा गान्धी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया था, फिर भी इसका राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रश्न 5. 1. बब्बर अकाली आन्दोलन-कुछ अकाली सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे। उन्हें बब्बर अकाली कहा जाता है। उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित करके होशियारपुर तथा जालन्धर में अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध आवाज़ उठाई। 26 फरवरी, 1923 को उन्हें उनके 186 साथियों सहित बन्दी बना लिया गया। इनमें से 5 को फांसी दी गई। मुख्य उद्देश्य-इस सभा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे –
सदस्यता-इस सभा में 18 वर्ष से 35 वर्ष के सभी नर-नारी शामिल हो सकते थे। केवल वही व्यक्ति इसके सदस्य बन सकते थे जिनको इनके कार्यक्रम में विश्वास था। पंजाब की अनेक महिलाओं तथा पुरुषों ने इस सभा को अपना सहयोग दिया। दुर्गा देवी वोहरा, सुशीला मोहन, अमर कौर, पार्वती देवी तथा लीलावती इस सभा की सदस्या थीं। गतिविधियां-इस सभा के सदस्य साइमन कमीशन के आगमन के समय पूरी तरह सक्रिय हो गए। पंजाब में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने साइमन कमीशन के विरोध में जुलूस निकाला। अंग्रेज़ी सरकार ने जुलूस पर लाठीचार्ज किया। इसमें लाला लाजपतराय बुरी तरह से घायल हो गए। 17 नवम्बर, 1928 ई० को उनका देहान्त हो गया। इसी बीच भारत के सभी क्रान्तिकारियों ने अपनी केन्द्रीय संस्था बनाई जिसका नाम रखा गयाहिन्दोस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन । नौजवान भारत सभा के सदस्य भी इस एसोसिएशन के साथ मिलकर काम करने लगे। असेम्बली बम केस-8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम फेंक कर आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस ने दो अन्य क्रान्तिकारियों सुखदेव तथा राजगुरु को भी बन्दी बना लिया। 23 मार्च, 1931 ई० को भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के अपराध में फांसी दे दी गई। सच तो यह है कि नौजवान भारत सभा के क्रान्तिकारी भगत सिंह ने अपना बलिदान देकर एक ऐसा उदाहरण पेश किया जिस पर आने वाली पीढ़ियां गर्व करेंगी। प्रश्न 6. गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अकाली दल ने कई मोर्चे लगाए जिनमें से कुछ मुख्य मोर्चों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- 1. ननकाना साहिब का मोर्चा-ननकाना साहिब का महन्त नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महन्त ने जत्थे के साथ बड़ा जुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मण सिंह तथा इसके साथियों को जीवित जला दिया गया। 2. हरमन्दर साहिब के कोष की चाबियों का मोर्चा- हरमन्दर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेज़ों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां मांगीं, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेज़ों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिक्खों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफ़त कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेज़ों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं। 3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। इनके सदस्यों को लाठियों से पीटा गया। 4. पंजा साहिब की घठना-सरकार ने ‘गुरु का बाग’ के मोर्चे में बंदी बनाए गए सिक्खों को रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को हसन अब्दाल में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। इन दोनों की शहीदी के अतिरिक्त दर्जनों सिक्खों के अंग कट गए। 5. जैतों का मोर्चा-जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेज़ों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। अकालियों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उनका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए। 6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। सरकार ने धीरे-धीरे सभी बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया। इस प्रकार अकाली आन्दोलनों के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ट महन्तों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही। भारत छोड़ो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था। यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन की विशेषताएँ क्या थी?भारत छोड़ो आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि स्वतंत्रता संघर्ष के एजेंडे में भारत को तुरंत आजादी दिये जाने की मांग को सम्मिलित किया गया था। इस आंदोलन के पश्चात कांग्रेस का नेतृत्व तथा भारतीय, इस मांग के संदर्भ में कभी नरम नहीं पड़े। इस आंदोलन में जनसामान्य की भागेदारी अप्रत्याशित थी।
भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा नाम क्या है?Solution : भारत छोड़ो आंदोलन को 'अगस्त क्रांति' के नाम से भी जाना जाता है। इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था।
भारत छोड़ो आंदोलन की विशेषताएं क्या थी class 8?समानांतर सरकार अथवा “प्रति-सरकार” का गठन : भारत छोड़ो आंदोलन की जो सबसे उल्लेखनीय विशेषता थी वह थी देश के कई भागों में समानांतर सरकारों का गठन | सबसे पहले अगस्त 1942 में ही उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में चित्तू पांडे के नेतृत्व में प्रथम समानांतर सरकार की घोषणा की गई | चित्तू पांडे एक गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी थे | ...
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