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CBSE Class 12 Hindi Vitan Important Questions Chapter 4 - Diary Ke Panne - Free PDF DownloadFree PDF download of Important Questions with solutions for CBSE Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 - Diary Ke Panne prepared by expert Hindi teachers from latest edition of CBSE(NCERT) books. Do you need help with your Homework? Are you preparing for Exams? Study without Internet (Offline) Download PDF Download PDF of CBSE Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 - Diary Ke Panne - Free PDF DownloadShare this with your friends Our detailed NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने Textbook Questions and Answers help students in exams as well as their daily homework routine. प्रश्न
1. ऐन ने यह डायरी 2 जून, 1942 से लेकर 1944 की अवधि में लिखी थी। 8 जून, 1942 को लिखी एक चिट्ठी में ऐन ‘किकी’ को बताती है कि वह एक खुशनुमा दिन था। मैं दोपहर की धूप में अलसायी-सी ऊपर की मंजिल पर बैठी थी तभी यह खबर मिली कि पिता जी को ए०एस०एस० से बुलावा आया है और हम किसी भी कीमत पर पिता जी को अलग नहीं होने देना चाहते थे। अतः यह निर्णय लिया गया कि हमारा परिवार और पिता जी के बिज़नेस पार्टनर वान दान परिवार के सभी सदस्य पिता के कार्यालय के साथ सटे गोदाम में रहेंगे। हमारे साथ मिस्टर डसेल भी थे। कुल मिलाकर हम आठ सदस्य हो गए थे। वहाँ बंद कमरों में हम केवल हँसी-मजाक या इधर-उधर की बातें कर सकते थे। कुछ ही दिनों में सभी बातें और लतीफे सभी बासी (पुराने) पड़ गए थे। फलस्वरूप अब हम केवल बोर हो सकते थे। रात के समय घर में कोई रोशनी नहीं कर सकते थे इसलिए हमें दो साल तक रातें अँधेरे में ही गुजारनी पड़ी। ऐन कहती है कि सेंधमारी, चोरी और पुलिस की धर-पकड़ की आशंका निरंतर बनी रहती थी। नाजी हम पर कभी भी हमला कर सकते थे। प्रकृति से हमारा नाता बिल्कुल कट चुका था। लंबे समय तक तहखानों की जिंदगी नरक से भी बदतर हो चुकी थी। भूख, प्यास, शारीरिक और मानसिक यंत्रणा ने हमारा जीवन नारकीय बना दिया था। कम-से-कम मेरे शारीरिक परिवर्तन ने मुझे लगातार परेशान किया था। मेरे दिल की बात सुनने वाला कोई नहीं था। जब ऐन ने परिवार सहित अपना घर छोड़ा था, उसकी उम्र तेरह वर्ष की थी। परंतु वहीं अज्ञातवास जैसे जीवन में रहते वह पंद्रह वर्ष की हो गई थी। ऐन अपने साथ रह रहे वान दान दंपति के बेटे पीटर को प्यार करने लगती है। वह उसके लिए बेचैन रहती है। उसके पास बैठकर बातें करना चाहती है। पीटर भी ऐन को प्यार करता है परंतु इस परिस्थिति को वह अपने परिवार से अभिव्यक्त नहीं करता। ऐन चाहती है कि कोई तो हो जो उसके भावनाओं की कद्र कर उसकी भावनाओं को समझे। ऐन मन मसोस कर रह जाती है। उस समय यूरोप में यहूदियों की जनसंख्या लगभग साठ लाख थी। संपूर्ण विश्व युद्ध के कारण यहूदी कुछ ऐन जैसा नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर थे। चारों तरफ भूख, गरीबी, बीमारी, शारीरिक एवं मानसिक यातानाएँ, डर आदि का साम्राज्य था। वे लगातार अंधेरे बंद कमरों में जीने की कोशिश कर रहे थे। यहूदी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय था जो इस युद्ध में सबसे अधिक प्रभावित था। युद्ध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था और यह समुदाय नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर था। ऐन ने केवल अपने अथवा अपने परिवार की भावनाओं को इस डायरी के माध्यम से व्यक्त नहीं किया बल्कि लगभग साठ लाख यहूदी समुदाय की दुःख-भरी जिंदगी को कलमबद्ध किया है। इसलिए इल्या इहरन बुर्ग की यह टिप्पणी कि ‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़ जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।’ बिलकुल सर्वमान्य एवं सत्य है। किशोरी ऐन उन साठ लाख यहूदियों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमानवीय जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा था। प्रश्न 2. मिसेज वान दान और मिस्टर डसेल उस पर हमेशा आरोपों की बौछार किया करते थे। मिस्टर डसेल उस पर अत्यधिक अनुशासन लादते थे। जब वह उसकी अनावश्यक बातों को अनसुना करती तो वे उसकी शिकायत ऐन की माँ से करते थे। माँ भी मिस्टर डसेल के साथ हो जाती। इस प्रकार की घटनाएँ ऐन के भावुक हृदय पर चोट किया करती थीं। जब कभी भी वह नहाकर अपने बालों का कोई हेयर स्टाइल बनाकर बाहर आती तो भी उसका मजाक उड़ाया करते थे। आधे घंटे तक वह उनकी टिप्पणियों को अनसुना करती परंतु जब हृदय चीर देने वाली टीका-टिप्पणियों की हद हो जाती तो फिर वह अपने व्यवस्थित किए बालों को हाथों से पहले की तरह उलझा देती थी। दो वर्ष के अज्ञातवास में ऐन तेरह से पंद्रह वर्ष की हो गई थी, उसमें शारीरिक परिवर्तन हो रहे थे। वह अपने साथ वान दान परिवार के इकलौते बेटे पीटर को प्यार करने लगती है। पीटर एक भला एवं समझदार लड़का है। वह भी ऐन को पसंद करता है, उसे प्यार करता है, परंतु इन परिस्थितियों में अपने प्यार को व्यक्त नहीं करता। ऐन चाहती है कि पीटर उसकी भावनाओं को समझे और उसके हृदय की आवाज़ को सुने, परंतु किसी के पास भी किशोरी ऐन की भावनाओं को समझने का समय नहीं है। उसकी भावनाएँ सदा उसे उद्वेलित करती रहती हैं। वह कहती भी है, “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता।” अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला………” हाँ, यह कथन ऐन के डायरी लेखने का बड़ा कारण हो सकता है क्योंकि ऐन ने अपनी डायरी में अपनी भावनाओं को बखूबी व्यक्त किया है, इसलिए इस कथन में डायरी लिखने का कारण छिपा हुआ है। प्रश्न 3. इस धारणा का पक्ष लेते हुए कुछ लोग कहते हैं कि पुरुष महिलाओं से अधिक सक्षम होते हैं क्योंकि वे कमाकर लाते हैं, बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, परंतु यह भी सच्चाई है कि पुरुष वही कार्य करता है जो उसके मन को अच्छा लगता है। ऐन को लगता है कि शायद अब स्थिति बदल चुकी है। वह महिलाओं की इस बात को बेवकूफी मानती है कि वे सब कुछ सहती रहती हैं। कभी भी पुरुष के बराबर अपने आप को साबित नहीं करती हैं। ऐन का मानना है कि महिलाओं को पुरुषों से कम आँकना एक गलत प्रथा है। अगर यह प्रथा जल्द खत्म नहीं नी जड़ें गहरी करती जाएगी। ऐन आश्वस्त है कि शिक्षा, काम और प्रगतिशीलता ने महिलाओं की आँखें खोल दी हैं। कई देश अब महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा देते हैं क्योंकि यह गलत एवं बेहूदा परंपरा है कि महिलाओं की उपेक्षा की जाए। अब महिलाएँ पूर्णतः स्वतंत्र होना चाहती हैं। ऐन इस बात से संतुष्ट नहीं है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिले, बल्कि उन्हें पुरुषों के बराबर सम्मान भी मिलना चाहिए। सारी दुनिया पुरुषों का ही सम्मान करती है, जबकि महिलाएँ सदा उपेक्षित कर दी जाती हैं। सैनिकों और युद्धवीरों का सम्मान किया जाता है, उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है और लोग उन्हें अमर मानते हैं। देश पर मिटने वालों की पूजा की जाती है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नगण्य ही है जो महिलाओं को भी सैनिकों के बराबर सम्मान देते हैं। ऐन श्री पोल दे क्रइफ की पुस्तक ‘मौत के खिलाफ़’ मनुष्य का जिक्र करते हुए कहती है कि आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि युद्ध में लड़ने वाले सैनिक अत्यधिक दुःख, तकलीफ़, पीड़ा, बीमारी और यंत्रणा से गुजरते हैं। परंतु उसका मानना है कि इससे कहीं अधिक दर्द औरतें बच्चे को जन्म देते समय झेलती हैं। जब सैनिकों को सम्मान दिया जाता है तो फिर औरतों को क्यों नहीं। ऐन पुरुषों की इस गलत मानसिकता का पर्दाफाश करती है कि जब बच्चे को जन्म देने के बाद औरत का शरीर सौंदर्य विहीन होकर आकर्षण खो देता है पुरुष उसे एक तरफ धकिया देता है। यहाँ तक कि उसके बच्चे भी उसे छोड़ जाते हैं और औरतें संपूर्ण जीवन में सैनिकों से भी अधिक संघर्ष करते हुए मानव जाति की निरंतरता को बनाए रखती है। इसलिए वह एक बड़े सम्मान की हकदार है जो उसे मिलना ही चाहिए। ऐन आशावादी है कि अगली सदी में औरतें अधिक सम्मान और प्रशंसा की हकदार होंगी और उनको समाज पूरा सम्मान देगा। प्रश्न 4. ऐन फ्रैंक की उम्र उस समय तेरह वर्ष की थी जब वह अपने परिवार और पारिवारिक साथियों के साथ अपने पिता के कार्यालय और गोदाम में दो वर्ष तक नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हुई थी। इस समूह में कुल आठ सदस्य थे-ऐन के माता-पिता और सोलह वर्षीय उसकी बड़ी बहन मार्गोट । एक अन्य वान दान परिवार के तीन सदस्य पीटर और उसके माता-पिता तथा एक अन्य सदस्य मिस्टर डसेल थे जो ऐन के पिता के साथ काम करते थे। कार्यालय में कार्यरत कुछ कर्मचारियों ने इस अज्ञातवास के समय इन आठ सदस्यों की सहायता की थी।ऐकाऔर उसके साथ रह रहे सात सदस्य दो वर्ष तक इन अंधेरे बंद कमरों में कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत किया था। जर्मनी के नाज़ियों ने यहूदियों पर बहुत अधिक अत्याचार किए थे। यहूदी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय था जो अत्याचारों से सबसे अधिक प्रभावित था। यह समुदाय भूख, ग़रीबी, बीमारी और शारीरिक एवं मानसिक यातनाओं से जख्मी था। ऐन अपनी डायरी में अपने मन की पीड़ा को भी व्यक्त करती है। वह इस पारिवारिक समूह की सबसे छोटी उम्र की सदस्या है। उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं देता है। सब उसे बिगडैल, अक्खड़, तुनकमिजाज एवं मूर्ख समझते हैं। उसके हृदय में उठने वाली भावनाओं की कोई कद्र नहीं करता। वह पीटर को दिल से चाहती है। वह चाहती है कि पीटर उसके साथ बैठकर बातें करे। अब ऐन की उम्र पंद्रह वर्ष की हो गई है। उसके मन में पीटर के प्रति प्यार उमड़ता है। पीटर भी उससे प्यार करता है परंतु अपने प्यार की अभिव्यक्ति नहीं करता क्योंकि जिन परिस्थितियों में यह परिवार जीवनयापन कर रहा है वहाँ प्यार को व्यक्त करने की अनुमति नहीं है। पीटर के साथ बिताए इन भावुकता से भरे इन दो सालों के अज्ञातवास की चर्चा करते हुए ऐन कहती है “पीटर और मैंने, दोनों ने अपने चिंतनशील बरस एनेक्सी में ही बिताए हैं। हम अक्सर भविष्य, वर्तमान और अतीत की बातें करते हैं, लेकिन जैसा कि मैं तुम्हें बता चुकी हूँ, मैं असली चीज़ की कमी महसूस करती हूँ और जानती हूँ कि वह मौजूद है।” यह असली चीज़ है पीटर के प्रति प्यार। परंतु विश्वयुद्ध का समय प्यार में गोते लगाने का नहीं, बल्कि भूख, प्यास, बीमारी, ग़रीबी और अंधेरे से बाहर निकलने की कोशिश थी। इसलिए पीटर भी ऐन के प्रति अपने प्यार को अभिव्यक्त नहीं करता है। इस प्रकार हम इस कथन से बिल्कुल सहमत हैं कि ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है, तो साथ ही उनके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी है। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है। ऐन की डायरी में द्वितीय विश्व-युद्ध की ऐतिहासिक घटनाएँ भी अंकित हैं और ऐन के मन में उद्वेलित भावनाओं का अतिरेक भी मौजूद है। प्रश्न 5. कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था। समूह के सभी सदस्य उसे तुनकमिजाज, अक्खड़ और मूर्ख समझते थे। वह अपने मन की बातों को किसी के साथ साझा करना चाहती थी। पंद्रह वर्ष की उम्र में वह पीटर को प्रेम करने लगती है। पीटर भी उसे प्रेम करता है, परंतु कभी अभिव्यक्त नहीं करता है। उसे तो बस एक धुन थी कि वह उन सभी आरोपों को गलत साबित करे जो उस पर लगाए गए थे। अर्थात सब उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया करते थे। वह चाहती है कि कोई हो जो उसकी भावनाओं को समझे, मगर कोई भी उसकी भावनाओं की कद्र नहीं करता, इसलिए ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (गुड़िया) को संबोधित कर चिट्ठियों के माध्यम से मजबूरी में लिखनी पड़ी। केवल ‘किट्टी’ ही थी जो उसकी भावनाओं को लगातार आत्मसात कर सकती थी। इसे भी जानें नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में ऐन फ्रैंक का नाम केवल एक बार आया है लेकिन अपने लेखन के कारण आज ऐन हजारों पनों में दर्ज है जिसका एक नमूना यह खबर भी हैनाज्ञी अभिलेखागार के दस्तावेजों में महज एक नाम के रूप में दफ़न है ऐन फ्रैंक बादरोलसेन, 26 नवंबर (एपी)। नाजी याचना शिविरों का रोंगटे खड़े करने वाला चित्रण कर दुनिया भर में मशहूर हुई ऐनी फ्रैंक का नाम हालैंड के उन हजारों लोगों की सूची में महज एक नाम के रूप में दर्ज है जो यातना शिविरों में बंद थे। नाजी नरसंहार से जुड़े दस्तावेजों की दुनिया के सबसे बड़े अभिलेखागार की एक जीर्ण-शीर्ण फाइल में 40 नंबर के आगे लिखा हुआ है-ऐनी फ्रका ऐन की डायरी ने उसे विश्व में खास बना दिया लेकिन 1944 में सितंबर माह के किसी एक दिन वह भी बाकी लोगों की तरह एक नाम-भर थी। एक भयभीत बच्ची जिसे बाकी 1018 यहूदियों के साथ पशुओं को ढोने वाली गाड़ी में पूर्व में स्थित एक यातना शिविर के लिए रवाना कर दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डच रेडक्रॉस ने वेस्टरबोर्क ट्रांजिट कैंप से यातना शिविरों में भेजे गए लोगों से संबंधित सूचनाएँ एकत्र कर इंटरनेशनल ट्रेसिंग सर्विस (आईटीचीएस) को भेजे थे। आईटीचीएस नाजी दस्तावेजों का एक ऐसा अभिलेखागार है जिसकी स्थापना युद्ध के बाद लापता हुए लोगों का पता लगाने के लिए की गई थी। इस युद्ध के समाप्त होने के छह दशक से अधिक समय के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति विशाल आईटीएस अभिलेखागार को युद्ध में सिंदा बचे लोगों, उनके रिश्तेदारों व शोधकर्ताओं के लिए पहली बार सार्वजनिक करने जा रही है। लगाने और बाद में मुआवजे के दावों के संबंध में प्रमाण-पत्र जारी करने में किया जाता रहा है। लेकिन आम लोगों को इसे देखने की अनुमति नहीं दी गई है। मध्य जर्मनी के इस शहर में 25.7 किलोमीटर लंबी अलमारियों और कैबिनेटों में संग्रहित इन फाइलों में उन हतारों यातना शिविरों, बंधुआ मजदूर केंद्रों और उत्पीड़न केंद्रों से जुड़े दस्तावेजों का पूर्ण संग्रह उपलब्ध है। किसी जमाने में.बर्ड रीख के रूप में प्रसिद्ध इस शहर में कई अभिलेखागार है। प्रत्येक में युद्ध से जुड़ी त्रासदियों का लेखा-जोखा रखा गया है। आईटीएसामानी फ्रेंक का नाम नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पत्रों में केवल एक बार आया है। वेस्टरबोर्क से 19 मई से छह सितंबर 1944 के बीच भेजे गए लोगों से जुड़ी फाइल में फ्रैंक उपनाम से दर्जनों नाम दर्ज है। इस सूची में ऐनी का नाम, जन्मतिथि, एम्सटर्डम का पता और यातना शिविर के लिए रवाना होने की तारीख दर्ज है। इन लोगों को कहाँ ले जाया गया, वह कालमें खाली छोड़ दिया गया है। आईटीएस के प्रमुख यूडो जोस्त ने पोलैंड के यातना शिविर का जिक्र करते हुए कहा-यदि स्थान का नाम नहीं दिया गया है तो इसका मतलब यह आशविच था। ऐनी, उनकी बहन मार्गोट व उसके माता-पिता को चार अन्य यहूदियों के साथ 1944 में गिरफ्तार किया गया था। ऐनी डच नागरिक नहीं, जर्मन शरणार्थी थी। यातना शिविरों के बारे में ऐनी की डायरी 1952 में ‘ऐनी फ्रक दी डायरी ऑफ द यंग ग्ले’ शीर्षक से छपी थी। – साभार जनसत्ता 27 नवंबर, 2006. ऐन कौन थी उसकी डायरी को इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ क्यों माना जाता है?ऐन फ्रैंक हालैंड के एक यहूदी परिवार की तेरह वर्षीय बालिका थी। उसके यहूदी परिवार को गुप्त आवास में दो वर्ष छिपकर बिताने पड़े थे। इस दौरान ऐन को अकल्पनीय यातनाएँ सहनी पड़ी। यहीं रहकर ऐन ने अपने अनुभवों को डायरी के रूप में लिखा।
ऐन फ्रैंक की डायरी क्यों प्रसिद्ध है?आनलीस मारी "आन(अ)" फ़्रांक (12 जून 1929 - फरवरी या मार्च 1945) यहूदी वंश में जन्मी जर्मन-डच डायरी लेखक थे। यहूदी नरसंहार के सबसे चर्चित यहूदी पीड़ितों में से एक, उन्होंने 1947 में एक युवती की डायरी (मूल रूप से डच में एट आख़्टर्हुइस; अंग्रेजी: द सीक्रेट एनेक्स) के प्रकाशन के साथ मरणोपरांत प्रसिद्धि प्राप्त की।
ऐन ने अपनी डायरी किट्टी के रूप में किसे संबोधित किया है और क्यों?ऐन ने अपनी डायरी में सम्बोधन के लिए अपनी गुड़िया किट्टी को चुना है, परिवार या बाहर के किसी व्यक्ति को नहीं। इस तरह वह स्वयं से ही बातें करती है। अगर कोई दूसरा उसकी भावनाओं और विचारों को जानने वाला होता तो शायद उसे डायरी लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
ऐनफ्रैंक ने डायरी लिखने की आवश्यकता क्यों अनुभव की होगी कोई दो कारण?डायरी पढ़ते हुए हम पाते हैं कि ऐन के पास हर पहलू और घटना के बारे में अपनी एक सोच है। चाहे वह मिस्टर डसेल का व्यक्तित्व हो या समाज में स्त्रियों की स्थिति से जुड़े हुए प्रश्न, इन सब पर वह बहुत सही ढंग से अपने विचार व्यक्त करती है। स्पष्ट है कि उसके इस कथन में ही डायरी लिखने का कारण निहित है।
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