लेखक परिचय जीवन परिचय-ऐन फ्रैंक का जन्म 12 जून, 1929 को०जर्मनी के फ्रैंकफ़र्ट शहर में हुआ था। इन्होंने अपने जीवन में नाजीवाद की पीड़ा को सहा। इनकी मृत्यु फरवरी या मार्च, 1945 में नाजियों के यातनागृह में हुई। ऐन फ्रैंक की डायरी दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी गई किताबों में से एक है। यह डायरी मूलत: 1947 में डच भाषा में प्रकाशित हुई थी। सन 1952 में इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल” शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इस
पुस्तक पर आधारित अनेक फ़िल्मों, नाटकों, धारावाहिकों इत्यादि का निर्माण हो चुका है। पाठ का सारांश यह डायरी डच भाषा में 1947 ई० में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद यह ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल” शीर्षक से 1952 ई० में प्रकाशित हुई। यह डायरी इतिहास के एक सबसे आतंकप्रद और दर्दनाक अध्याय के साक्षात अनुभव का बयान करती है। हम यहाँ उस भयावह दौर को किसी इतिहासकार की निगाह से नहीं, बल्कि सीधे भोक्ता की निगाह से देखते हैं। यह भोक्ता ऐसा है जिसकी समझ और संवेदना
बहुत गहरी तो है ही, उम्र के साथ आने वाले परिवर्तनों से पूरी तरह अछूती भी है। इस पुस्तक की भूमिका में लिखा गया है”इस डायरी में भय, आतंक, भूख, मानवीय संवेदनाएँ, प्रेम, घृणा, बढ़ती उम्र की तकलीफ़े, हवाई हमले का डर, पकड़े जाने का लगातार डर, तेरह साल की उम्र के सपने, कल्पनाएँ, बाहरी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाने की पीड़ा, मानसिक और शारीरिक जरूरतें, हँसी-मजाक, युद्ध की पीड़ा, अकेलापन सभी कुछ है। यह डायरी यहूदियों पर ढाए गए जुल्मों का एक जीवंत दस्तावेज है।” द्रवितीय विश्व-युद्ध के समय
हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण अकल्पनीय यातनाएँ सहनी पड़ी थीं। उन्होंने गुप्त तहखानों में छिपकर जीवन-रक्षा की। जर्मनी के शासक ने गैस-चैंबर व फ़ायरिंग स्क्वायड के माध्यम से लाखों’यहूदियों को मौत के घाट उतारा। ऐसे समय में दो यहूदी परिवार दो वर्ष तक एक गुप्त आवास में छिपे रहे। इनमें एक फ्रैंक परिवार था, दूसरा वान दंपत्ति। ऐन ने गुप्त आवास में बिताए दो वर्षों का जीवन अपनी डायरी में लिखा। यह डायरी दो जून, 1942 से पहली अगस्त, 1944 तक लिखी गई। चार अगस्त, 1944
को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। ऐन ने अपनी किट्टी नामक गुड़िया को संबोधित करके डायरी लिखा जो उसे अच्छे दिनों में जन्मदिन पर उपहार में मिली थी। बुधवार, 8 जुलाई, 3942 गुरुवार, 9 जुलाई, 3942 शुक्रवार, 1० जुलाई, 3942 शनिवार, 28 नवंबर, 1942 शुक्रवार, 19 मार्च, 1943 शुक्रवार, 23 जनवरी, 1944 बुधवार, 28 जनवरी, 1944 बुधवार, 29 मार्च, 1944 लोगों को सामान खरीदने के लिए लाइन में
लगना पड़ता है। चोरी-चकारी बहुत बढ़ गई है। लोग पाँच मिनट के लिए अपना घर नहीं छोड़ पाते। डचों की नैतिकता अच्छी नहीं है। सब भूखे हैं। एक हफ़्ते का राशन दो दिन भी नहीं चल पाता। बच्चे भूख व बीमारी से बेहाल हैं। फटे-पुराने कपड़ों व जूतों से काम चलाना पड़ता है। सरकारी लोगों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। खाद्य कार्यालय, पुलिस सभी या तो अपने साथी नागरिकों की मदद कर रहे हैं या उन पर कोई आरोप लगाकर जेल भेज देते हैं। मंगलवार, 11 अप्रैल, 1944 मंगलवार, 13 जुन, 1944 जर्मन व ब्रिटेन दोनों में अंतर
है। ब्रिटेन रक्षक है तो जर्मनी आक्रांता। ऐन अपनी कमजोरी जानती है तथा खुद को बदलना चाहती है। लोग उसे अक्खड़ समझते हैं। मिसेज वान दान और डसेल जैसे जड़ बुद्ध उस पर हमेशा आरोप लगाते रहते हैं। मिसेज वान दान उसे अक्खड़ समझती है क्योंकि वह उससे भी अधिक अक्खड़ है। वह स्वयं को सबसे अधिक धिक्कारती है। वह माँ के उपदेशों से मुक्ति पाने के बारे में सोचती है। उसकी भावनाओं को कोई नहीं समझता और वह अपनी भावनाओं को गंभीरता से समझने वाले व्यक्ति की तलाश में है। वह पीटर के बारे में बताती है। पीटर उसे दोस्त की तरह
प्यार करता है। ऐन भी उसकी दीवानी है। वह उसके लिए तड़पती है। पीटर अच्छा व भला लड़का है, परंतु उसकी धार्मिक तथा खाने-संबंधी बातों से वह नफ़रत करती है। उन्होंने कभी न झगड़ने का वायदा किया है। वह शांतिप्रिय, सहनशील व बेहद सहज आत्मीय व्यक्ति है। वह ऐन की गलत बातों को भी सहन कर लेता है। वह कोशिश करता है कि अपने कामों में सलीका लाए तथा अपने ऊपर आरोप न लगने दे। वह अधिक घुन्ना है। वे दोनों भविष्य, वर्तमान व अतीत की बातें करते हैं। ऐन काफी दिनों से बाहर नहीं निकली। अब वह प्रकृति को देखना चाहती है। एक दिन गर्मी की रात में साढ़े ग्यारह बजे उसने चाँद देखने की इच्छा की, परंतु चाँदनी अधिक होने के कारण वह खिड़की नहीं खोल सकी। आखिरकार बरसात के समय खिड़की खोलकर तेज हवाओं व बादलों की लुका-छिपी को देखा। यह अवसर डेढ़ साल बाद मिला था। प्रकृति के सौंदर्य के आनंद के लिए अस्पताल व जेलों में बंद लोग तरसते हैं। आसमान, बादलों, चाँद और तारों की तरफ देखकर उसे शांति व आशा मिलती है। प्रकृति शांति पाने की रामबाण दवा है और यह उसे विनम्रता प्रदान करती है। ऐन
पुरुषों और औरतों के अधिकारों के बारे में बताती है। उसे लगता है कि पुरुषों ने अपनी शारीरिक क्षमता के अधिक होने के कारण औरतों पर शुरू से ही शासन किया। औरतें इस स्थिति को बेवकूफ़ी के कारण सहन करती आ रही हैं। अब समय बदल गया है। शिक्षा, काम और प्रगति ने औरतों की आँखें खोल दी हैं। कई देशों ने उनको बराबरी का हक दिया है। आधुनिक औरतें अब बराबरी चाहती हैं। औरतों को भी पुरुषों की तरह सम्मान मिलना चाहिए। उन्हें सैनिकों जैसा दर्जा व सम्मान मिलना चाहिए। युद्ध में वीर को तकलीफ़, पीड़ा, बीमारी व यातना से गुजरना पड़ता है, उससे कहीं अधिक तकलीफ़ बच्चा पैदा करते वक्त औरत सहती है। बच्चा पैदा करने के बाद औरत का आकर्षण समाप्त हो जाता है। मानव-जाति की निरंतरता औरत से है। वह सैनिकों से ज्यादा मेहनत करती है। इसका मतलब यह नहीं है कि औरतें बच्चे उत्पन्न करना बंद कर दें। प्रकृति यह कार्य चाहती और उन्हें यह कार्य करते रहना चाहिए। वह उन व्यक्तियों की भत्सना करती है जो समाज में औरतों के योगदान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। वह पोल दे कूइफ़ से पूर्णत: सहमत है कि पुरुषों को यह बात सीखनी ही चाहिए कि संसार के जिन हिस्सों को हम सभ्य कहते हैं-वहाँ जन्म अनिवार्य और टाला न जा सकने वाला काम नहीं रह गया है।आदमियों को औरतों द्वारा झेली जाने वाली तकलीफ़ों से कभी भी नहीं गुजरना पड़ेगा। ऐन का विश्वास है कि अगली सदी आने तक यह मान्यता बदल चुकी होगी कि बच्चे पैदा करना ही औरतों का काम है। औरतें ज्यादा सम्मान और सराहना की हकदार बनेंगी। शब्दार्थ अलसाई – आलस्य से भरी। बिजनेस पाटनर – व्यापारिक साझेदार। अज्ञातवास – छिपकर रहना। कुलबुलाना – उथल-पुथल मचाना। आतकित – भयभीत। अफसोस –पछतावा। स्मृतियाँ – यादें। स्टॉकिंग्स – टाँगों को पूरा ढकने वाली लंबी जुराबें। सन्नाटा – घोर शांति। अजनब् – अपरिचित। घोड़े बेचकर सोना – निश्चित होना। गुजारने – व्यतीत करने। अल्लम-गल्लम – उल्टी-सीधी। बेचारगी – लाचारी। दास्तान – विवरण। गलियारा – सँकरा रास्ता। दमघोंटू – साँस लेने में दिक्कत वाला वातावरण। पैसेज –गलियारा। उत्तम दरजा – बहुत बढ़िया। बेडरूम – सोने का कमरा। स्टडीरूम – पढ़ने का कमरा। गुसलखाना – स्नान करने का स्थान। गरीबखाना – आवासीय भवन। राह देखना – इंतजार करना। अटा पड़ा – भरा हुआ। तरतीब – ढंग से, व्यवस्थित रूप से। पस्त – थकी हुई। ढह गए – लेट गए। किफायत – सही तरीके से खर्च। पखवाड़े – पंद्रह दिन का समय। अरसा – लंबा समय। गुजारना – व्यतीत करना। डिनर – रात का भोजन। खर दिमाग – अक्खड़। तुनकमिज़ाज – शीघ्र क्रोधित होने वाला। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न प्रश्न 1: प्रश्न 2: वह स्वयं को बदलने की कोशिश करती थी, परंतु फिर किसी-न-किसी के गुस्से का शिकार हो जाती थी। उपदेशों, हिदायतों से वह उकता चुकी थी तथा अपनी भावनाएँ ‘किट्टी’ नामक गुड़िया के माध्यम से व्यक्त की। हर मामले पर उसकी अपनी सोच है चाहे वह मिस्टर डसेल का व्यक्तित्व ही या महिलाओं के संबंध में विचार। अकेलेपन के कारण ही उसने डायरी में अपनी भावनाएँ लिखीं। प्रश्न 3: अथवा ‘डायरी के पन्ने’ के आधार पर औरतों की शिक्षा और उनके मानवाधिकारों के बारे में ऐन के विचारों को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए। प्रश्न 4: अथवा ‘डायरी के पर्न्स’ पाठ के आधार पर बताइए कि ऐन की डायरी एक ऐतिहासिक दौर का दस्तावेज हैं। अथवा ऐन फ्रैंक की डायरी में एंसौ क्या विर्शयताएँ हँ’ कि वह पिछले 50 वर्षों में विश्व में सबसे अधिक महां गर्ड पुस्तकों में से एक हैं? साथ ही ऐन का अपने परिवार, विशेषता माँ और सहयोगियों से मतभेद, डाँट…फटकार, खीझ, निराशा, एकांत का दुख, दूसरों दवारा स्वय पर किए गए आक्षेप, प्रकृति के लिए बेचैनी, पीटर के साथ सबंध आदि का वर्णन मिलता है। उसके व्यक्तिगत सुख-दुख भी इन पृष्ठों में युदृध की विभीषिका में एकमेक हो गए हैँ। इस प्रकार यह डायरी एक ऐतिहासिक दस्तावेज होते हुए भी ऐन के व्यक्तिगत सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल को व्यक्त करती है। प्रश्न 5: इसे भी जानें नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में ऐन फ्रैंक का नाम केवल एक बार आया है लेकिन अपने लेखन के कारण आज ऐन हजारों पन्नों में दर्ज हैं जिनका एक नमूना यह खबर भी हैनाजी अभिलेखागार के दस्तावेजों में महज एक नाम के रूप में दफ़न है ऐन फ्रैंक बादरोलसेन, 26 नवंबर (एपी)। नाजी यातना शिविरों का रोंगटे खड़े करने वाला चित्रण कर दुनिया भर में मशह : हुई ऐनी फ्रैंक का नाम हॉलैंड के उन हजारों लोगों की सूची में महज एक नाम के रूप में दर्ज है जो यातना शिविरों में बंद थे। नाजी नरसंहार से जुड़े दस्तावेजों के दुनिया के सबसे बड़े अभिलेखागार एक जीर्ण-शीर्ण फ़ाइल में 40 नंबर के
आगे लिखा हुआ है-ऐनी फ्रैंक। ऐनी की डायरी ने उसे विश्व में खास बना दिया लेकिन 1994 में सितंबर माह के किसी एक दिन वह भी बाकी लोगों की तरह एक नाम भर थी। एक भयभीत बच्ची जिसे बाकी 1018 यहूदियों के साथ पशुओं को ढोने वाली गाड़ी में पूर्व में स्थित एक यातना शिविर के लिए रवाना कर दिया गया था। द्रवितीय विश्व-युद्ध के बाद डच रेडक्रॉस ने वेस्टरबोर्क ट्रांजिट कैंप से यातना शिविरों में भेजे गए लोगों संबंधी सूचना एकत्र करके इंटरनेशनल ट्रेसिंग सर्विस (आईटीएस) को भेजे थे। आईटीएस नाजी दस्तावेजों का एक ऐसा अभिलेखागार है जिसकी स्थापना युद्ध के बाद लापता हुए लोगों का पता लगाने के लिए की गई थी। इस युद्ध के समाप्त होने के छह दशक से अधिक समय के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति विशाल आईटीएस अभिलेखागार को युद्ध में जिंदा बचे लोगों, उनके रिश्तेदारों व शोधकर्ताओं के लिए पहली बार सार्वजनिक करने जा रही है। एक करोड़ 75 लाख लोगों के बारे में दर्ज इस रिकॉर्ड का इस्तेमाल अभी तक परिजनों को मिलाने, लाखों विस्थापित लोगों के भविष्य का पता लगाने और बाद में मुआवजे के दावों के संबंध में प्रमाण-पत्र जारी करने में किया जाता रहा है। लेकिन आम लोगों को इसे देखने की अनुमति नहीं दी गई है। मध्य जर्मनी के इस शहर में 25.7 किलोमीटर लंबी अलमारियों और कैबिनेटों में संग्रहित इन फ़ाइलों में उन हजारों यातना शिविरों, बँधुआ मजदूर केंद्रों और उत्पीड़न केंद्रों से जुड़े दस्तावेजों का पूर्ण संग्रह उपलब्ध है। किसी जमाने में थर्ड रीख के रूप में प्रसिद्ध इस शहर में कई अभिलेखागार हैं। प्रत्येक में युद्ध से जुड़ी त्रासदियों का लेखा-जोखा रखा गया है। आईटीएस में एनी फ्रैंक का नाम नाजी दस्तावेजों के पाँच करोड़ पन्नों में केवल एक बार आया है। वेस्टरबोर्क से 19 मई से 6 सितंबर 1944 के बीच भेजे गए लोगों से जुड़ी फ़ाइल में फ्रैंक उपनाम से दर्जनों नाम दर्ज हैं। इस सूची में ऐनी का नाम, जन्मतिथि, एम्सटर्डम का पता और यातना शिविर के लिए रवाना होने की तारीख दर्ज है। इन लोगों को कहाँ ले जाया गया-वह कॉलम खाली छोड़ दिया गया है। आईटीएस के प्रमुख यूडो जोस्त ने पोलैंड के यातना शिविर का जिक्र करते हुए कहा-यदि स्थान का नाम नहीं दिया गया है तो इसका मतलब यह आशविच था। ऐनी, उनकी बहन मार्गोंट व उसके माता-पिता को चार अन्य यहूदियों के साथ 1944 में गिरफ़्तार किया गया था। ऐनी डच नागरिक नहीं, जर्मन शरणार्थी थी। यातना शिविरों के बारे में ऐनी की डायरी 1952 में ‘द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल” शीर्षक से छपी थी। अन्य हल प्रश्न I. बोधात्मक प्रशन प्रश्न 1: प्रश्न 2:
प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: प्रश्न 6: प्रश्न 7: प्रश्न 8: प्रश्न
9: प्रश्न 10: II. निबधात्मक प्रश्न प्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: ऐन, मागौंट, उनकी माँ और मिसेज वान डी ऊपर डरे-सहमे से इंतजार करते रहे। एक जोर के धमाके की आवाज से इन लोगों के होश उड़ गए। नीचे गोदाम में सन्नाटा था और पुरुष लोग वहीं सेंधमारों के साथ संघर्ष कर रहे थे। डर से काँपने पर भी ये लोग शांत बने रहे। तकरीबन 15 मिनट बाद ऐन के पिता सहमे हुए ऊपर आए और इन लोगों से बत्तियाँ बंद करके ऊपर छत पर चले जाने को कहा। अब ये लोग डरने की प्रतिक्रिया जताने की स्थिति में भी नहीं थे। सीढ़ियों के बीच वाले दरवाजे पर ताला जड़ दिया गया। बुककेस बंद कर दिया गया, नाइट लैंप पर स्वेटर डाल दिया गया। पीटर अभी सीढ़ियों पर हीं था कि जोर के दो धमाके सुनाई दिए। उसने नीचे जाकर देखा कि गोदाम की तरफ का आधा भाग गायब था। वह लपककर होम गार्ड को चौकन्ना करने भागा। मिस्टर वान ने समझदारी दिखाते हुए शोर मचाया ‘पुलिस! पुलिस!’ यह सुनकर सेंधमार भाग गए और गोदाम के फट्टे फिर से लगा दिए गए। लेकिन वे कुछ ही मिनट में लौट आए और फिर से तोड़ा-फोड़ी शुरू हो गई। उस डरावनी रात में बड़ी मुश्किल से पुरुषों ने संघर्ष करके जान बचाई। प्रश्न 4: प्रश्न 5:
III. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1:
उत्तर –
(ब) अज्ञातवास ….. हम कहाँ जाकर छुपेगे? शहर में? किसी घर में? किसी परछस्ती पर? कब ….. कहाँ ….. केसे ….. ये ऐसे सवाल थे जो मैं पूछ नहीं सकती थी लेकिन फिर भी ये सवाल मेरे दिमाग में कुलबुला रहै थे। मागोंट और मैने अपनी बहुत जरूरी चीजे एक थैले
में भरनी शुरू कों। मैँने सबसे पहले अपने थैले में यह डायरी दूँसी। इसके बाद मैने कली, रूमाल, स्कूली किताबें, भूक कधी और कुछ पुरानी विटूठियाँ थैले में डालों। मैं अज्ञातवास में जाने के खयाल से इतनी अधिक आतंकित थी कि मैंने थैले में अजीबोगरीब चीजे भर डालों, फिर भी मुझे अफसोस नहीं है। स्मृतियों मेरे लिए पोशाकों की तुलना में
ज्यादा मायने रखती है। तब हमने मिस्टर क्लीमेन को कौन किया कि वया वे शाम को हमारे घर आ पाएँगे।
उत्तर –
प्रश्न 2: दरवाजे की घंटी बजते ही लगता था कि पता नहीं कौन आया होगा। वे भय एवं आतंक के डर से दरवाजा खोलने से पूर्व तय कर लेना चाहते थे कि कौन आया है? वे घंटी बजते ही दरवाजे से उचककर देखने का प्रयास करते कि पापा आ गए कि नहीं। इस प्रकार ऐन फ्रैंक का परिवार चिंता, भय और आतंक के साये में जी रहा था। यदि ऐसी ही परिस्थितियों से हमें दो-चार होना पड़ता तो मैं अपने परिवार वालों के साथ उस अचानक आई आपदा पर विचार करता और बड़ों की राय मानकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करता। इस बीच सभी से धैर्य और साहस बनाए रखने का भी अनुरोध करता। प्रश्न 3:
प्रश्न 4: इसके अलावा इसमें यहूदियों पर ढाए गए जुल्म और अत्याचार का वर्णन किया गया है। मेरे विचार से लोग डायरी इसलिए लिखते हैं क्योंकि जब उनके मन के भाव-विचार इतने प्रबल हो जाते हैं कि उन्हें दबाना कठिन हो जाता है और वे किसी कारण से दूसरे लोगों से मौखिक रूप में उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब वे एकांत में उन्हें लिपिबद्ध करते हैं। वे अपने दुख-सुख, व्यथा, उद्वेग आदि लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उस समय तो वे अपने दुख की अभिव्यक्ति और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए लिखते हैं पर बाद में ये डायरियाँ महत्वपूर्ण दस्तावेज बन जाती हैं। प्रश्न 5: यह उनके जीवन कर । दिन में घर के परदे हटाकर बाहर नहीं देख सकते थे। रात होने पर ही वे अपने आस-पास के परदे देख सकते थे। वे ऊल-जुलूल हरकतें करके दिन बिताने पर विवश थे। ऐन ने पूरे डेढ़ वर्ष बाद रात में खिड़की खोलकर बादलों से लुका-छिपी करते हुए चाँद को देखा था। 4 अगस्त, 1944 को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। सन 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों के उत्पीड़न को झेला। ऐन फ्रैंक का जीवन हमें साहस बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देता है और प्रेरित करता है कि अपने जीवन और आस-पास की घटनाओं को हम लिपिबद्ध करें। स्वयं करें प्रश्न:
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NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience ऐनी क्यों सोचती है कि कागज में लोगों की तुलना में अधिक धैर्य है?ऐनी का मानना है कि लोगों की तुलना में कागज में अधिक धैर्य है क्योंकि यह उसे और अधिक धैर्यपूर्वक और चुपचाप सुनता है, यह अन्य लोगों की तरह प्रतिक्रिया नहीं करता है और इसलिए भी कि वह अपनी डायरी में अपने सभी रहस्यों पर विश्वास कर सकता है।
क्यों ऐनी एक डायरी रखने के लिए करना चाहता था?डायरी अपने पाठकों का ध्यान तब आकर्षित कर पाती है जब वह उपन्यास की ही तरह अपने पाठकों के मन में सहानुभूति पैदा करती है. इसका दूसरा पहलू है काल्पनिक डायरियों - जिन्हें बच्चों के साहित्य में ख़ासा इस्तेमाल किया जाता है.
ऐनी फ्रैंक डायरी लिखने की आवश्यकता क्यों अनुभव की होगी कोई दो कारन?उत्तर: हमें लगता है कि अकेलापन ही ऐन फ्रैंक के डायरी लेखन का कारण बना। यद्यपि वह अपने परिवार और वॉन दंपत्ति के साथ अज्ञातवास में दो वर्षों तक रही लेकिन इस दौरान किसी ने उसकी भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं किया। पीटर यद्यपि उससे प्यार करता है लेकिन केवल दोस्त की तरह।
ऐनी अपने जीवन का एक संक्षिप्त विवरण क्यों प्रदान करती है?आनलीस मारी "आन(अ)" फ़्रांक (12 जून 1929 - फरवरी या मार्च 1945) यहूदी वंश में जन्मी जर्मन-डच डायरी लेखक थे। यहूदी नरसंहार के सबसे चर्चित यहूदी पीड़ितों में से एक, उन्होंने 1947 में एक युवती की डायरी (मूल रूप से डच में एट आख़्टर्हुइस; अंग्रेजी: द सीक्रेट एनेक्स) के प्रकाशन के साथ मरणोपरांत प्रसिद्धि प्राप्त की।
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