Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 14 हिमशुक Text Book Questions and Answers and Summary. Show BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 14 हिमशुकBihar Board Class 7 Hindi हिमशुक Text Book Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (क) तुम्हारी माँ भी तुमसे मिलकर इतनी ही प्रसन्न होगी। (ख) मैं पन्द्रह दिन बाद वापस आ जाऊँगा। (ग) बुद्धिमानी की बात यह होगी कि फल खाने से पहले इसे किसी जानवर को खिलाकर देख लिया जाए। (घ) किसी को सजा देने से पहले इस बात का पूरा पता लगा लेना जरूरी है कि वह सचमुच अपराधी है या नहीं। प्रश्न 5. (ख) किस देश के राजा के पास अनोखा तोता था ? (ग) हिमशुक रात में कहाँ ठहरा था ? : (घ) जहरीले फल को राजा ने क्या किया? पाठ से आगे – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. चीनी का ठोंगा यह एक लघु कहानी है जिसमें बताया गया है कि बच्चे को कार्य की प्राथमिकता देनी चाहिए। एक लड़का (मोहन) की माँ चीनी लाने दुकान भेजती है। लड़का चीनी लेकर लौट रहा था। रास्ते में अन्य बच्चों के साथ खेलने की ललक उठी। वह चीनी का ठोंगा गोली धरती पर रखकर खेलने लग जाता है। जब उसे माँ के आदेश का ख्याल आया तो चीनी उठाया जिसका ठोंगा गीला हो गया था। माँ ने ठोंगे को गीली हालत में देखकर लड़के को डाँट दिया। लड़का रूठ गया। प्रश्न (क) क्या माँ का मोहन का डाँटना उचित था ? (ख) क्या मोहन का रूठना उचित था? व्याकरण – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. कुछ करने को – प्रश्न 1.
ज्यादा किसे मिले? इसके विपरीत प्रथम अतिथि तो अपना जान जोखिम में डाल ही दिया था। उसे रात में सोना नहीं चाहिए था। अतः अधिक सिक्के का हकदार दूसरा अतिथि ही है। हिमशुक Summary in Hindiसारांश – प्राचीनकाल में एक अवध नरेश के तीन पुत्र विद्वान और बुद्धिमान थे। एक दिन राजा ने तीनों पुत्रों की परीक्षा ली। राजा ने कहापुत्रो ! अगर मैं अपने प्राण और सम्मान की रक्षा का भार किसी को सौंपता हूँ। यदि वह विश्वासघात करता है तो ऐसे लोग की क्या सजा मिलनी चाहिए? प्रथम पुत्र ने कहा-ऐसे व्यक्ति को फौरन गर्दन उड़ा देना चाहिए। तब अवध नरेश ने तीसरे पुत्र से पूछा—बेटा, तुम्हारा विचार क्या है, वह भी सुनें। तीसरे ने कहा – पित्ताजी ! यह सत्य है कि विश्वासघाती. लोगों की सजा मृत्युदण्ड है लेकिन जब उसका दोष साबित हो जाय तभी मृत्युदण्ड देना चाहिए। राजा ने कहा, यानी बिना दोष साबित हुए दण्ड देने से निर्दोष भी मारा जा सकता है। तीसरे ने कहा – हाँ पिताजी ! विदर्भ देश के एक राजा के पास एक अनोखा तोता था जिसका नाम हिमशुक था। वह चतुर, बुद्धिमान तथा अनेक भाषाओं का ज्ञाता था। राजा भी हिमशुक से महत्वपूर्ण मामलों में राय लिया करता था। हिमशुक स्वतंत्रतापूर्वक महल में उड़ता-फिरता था। एक दिन हिमशुक दूर जंगल में चला गया। वहाँ उसके पिता मिले । पिता-पुत्र परस्पर मिलकर बहुत आनन्दित हुए। हिमशुक के पिता ने हिमशुक से कहा-बेटा घर चलो तुमसे मिलकर तुम्हारी माँ बहुत खुश होगी। घर चलो। हिमशुक ने कहामैं अपने मालिक से अनुमति लेकर ही जाऊँगा। महल वापस जाकर हिमशुक ने अपने घर जाने की अनुमति माँगी। राजा ने पहले तो इन्कार कर दिया। लेकिन बाद में 15 दिनों में लौटने की शर्त पर हिमशुक की बात स्वीकार कर ली। क्योंकि राजा हिमशुक को दु:खी नहीं देखना चाहता था। इस प्रकार हिमशुक विदर्भ नरेश से अनुमति लेकर 15 दिनों के लिए अपने घर गया। उसके माता-पिता बड़े आनन्दित हुए। 15 दिन बीत गये तो हिमशुक ने वापस जाने की बात अपने माता-पिता को बताया । हिमशुक के प्रति राजा बहुत स्नेह रखते हैं यह जानकर हिमशुक ने राजा उपहारस्वरूप एक अमृतफल देने की बात सोची । जिसको खा लेने से मनुष्य अमर हो जाता था। हिमशुक राजा को अमर बनाने के लिए उस फल को लेकर चल पड़ा। रास्ते में रात हो जाने के कारण उसे एक पेड़ पर ठहरना पड़ा । वह अमर-फल को वृक्ष के एक खोखल में रखकर आराम करने लगा। जिस खोखल में हिमशुक ने फल रखा था उसी खोखल में एक काला साँप भी रहता था। जब साँप खोखल में आया तो उस दिव्य फल को खाने वाला समझकर दाँत गड़ाया । साँप को फल का स्वाद अच्छा नहीं लगा उसे छोड़ दिया। लेकिन वह फल जहरीला हो गया। सुबह होने पर हिमशुक फल लेकर राजमहल में आकर राजा को अमर फल के बारे में बताया। राजा बहुत – प्रसन्न होकर खाने लगा तो एक मंत्री ने कहा-महाराज खाने की वस्तु यदि . अन्य से प्राप्त हो तो उसकी परीक्षा लेकर ही खाना चाहिए। अतः हमारे विचार से इस फल का थोड़ा अंश कौवा को खिलाकर जाँच कर लेना चाहिए । राजा को मंत्री की बात अच्छी लगी। फल काटकर कौवा को खिलाया गया। कौवा मर गया तब राजा से मंत्री ने कहा, महाराज आप बच गये। यह अमर फल नहीं बल्कि मृत्युफल है। यह फल खिलाकर हिमशुक आपको मारना चाहता था। राजा को गुस्सा आ गया। उसी समय हिमशुक को पकड़कर गर्दन मरोड़ दी। इसके बाद उस फल को मिट्टी में गाड़ दिया गया। कुछ दिनों के बाद अमर फल के बीज से वृक्ष उगा उसमें फल भी लगने लगे। राजा यह जानकर उस पेड़ के फल खाने पर रोक दिया। क्योंकि उस फल को खाने से आदमी मर सकता है। उसी शहर में एक बूढ़ा-बुढ़िया गरीबी से तंग होकर उस मृत्युफल को खाये । वह बुढ़िया और बूढा दोनों स्वस्थ होकर जवान हो गये । राजा को जब यह बात कान में पड़ी तो बूढ़ा-बुढ़िया को देखकर समझ गया कि हिमशुक के द्वारा लाया गया फल अमर फल ही था। राजा जल्दीबाजी में किए अपने अपराध पर बहुत दुःखी हुआ। अवध नरेश को तीसरे पुत्र ने कहा-इसलिए मैंने कहा, किसी को सजा देने के पहले अच्छे ढंग से समझ लेना चाहिए। अवध नरेश कौन थे थे?हिन्दू मान्यताओं में भगवान राम को 'अवध नरेश'माना गया है।
अवध नरेश का क्या अभिप्राय है?'अवध-नरेश' से क्या अभिप्राय है? राजा दशरथ
अवध नरेश कौन थे और उन्होंने क्या किया?अवध क्षेत्र में अपने निवास और समृद्धि के कारण श्रीराम को अक्सर 'अवध नरेश' कहा जाता है। श्रीराम को चित्रकूट भूमि का रुख करना पड़ा क्योंकि उन्हें 14 साल वनवास में रहने के अपने पिता के वादे को पूरा करना था।
अवध नरेश को कहाँ जाना पड़ा था?अवध नरेश को चित्रकूट इसलिए जाना पड़ा क्योंकि उन्हें 14 वर्ष तक वनवास में रहना था। चित्रकूट एक तपोवन था, जहाँ ऋषि-मुनियों द्वारा तपस्या की जाती थी।
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