बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध in punjabi - bachchon ka maata-pita ke prati kartavy par nibandh in punjabi

बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध |Essay on Children’s Duty towards Parents in Hindi!

मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से होकर गुजरता है । उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्‌यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन तत्पश्चात् मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजरता है ।

अपने जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है । परंतु अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवन पर्यत नहीं चुका सकता है । माता-पिता से संतान को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अमूल्य है । माँ की ममता व स्नेह तथा पिता का अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख भूमिका रखते हैं ।

किसी भी मनुष्य को उसके जन्म से लेकर उसे अपने पैरों तक खड़ा करने में माता-पिता को किन-किन कठिनाइयों से होकर गुजरना पड़ता है इसका वास्तविक अनुमान संभवत: स्वयं माता या पिता बनने के उपरांत ही लगाया जा सकता है । हिंदू शास्त्रों व वेदों के अनुसार मनुष्य को 84 लाख योनियो के पश्चात् मानव शरीर प्राप्त होता है । इस दृष्टि से माता-पिता सदैव पूजनीय होते हैं जिनके कारण हमें यह दुर्लभ मानव शरीर की प्राप्ति हुई ।

आज संसार में यदि हमारा कुछ भी अस्तित्व है या हमारी इस जगत में कोई पहचान है तो उसका संपूर्ण श्रेय हमारे माता-पिता को ही जाता है । यही कारण है कि भारत के आदर्श पुरुषों में से एक राम ने माता-पिता के एक इशारे पर युवराज पद का मोह त्याग दिया और वन चले गए ।

कितने कष्टों को सहकर माता पुत्र को जन्म देती है, उसके पश्चात् अपने स्नेह रूपी अमृत से सींचकर उसे बड़ा करती है । माता-पिता के स्नेह व दुलार से बालक उन संवेदनाओं को आत्मसात् करता है जिससे उसे मानसिक बल प्राप्त होता है ।

हमारी अनेक गलतियों व अपराधों को वे कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्‌मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं । पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है ।

यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके माता-पिता का त्याग, बलिदान व उनकी प्रेरणा की शक्ति निहित होती है । यदि प्रांरभ से ही माता-पिता से उसे सही सीख व प्ररेणा नहीं मिली होती तो संभवत: समाज में उसे वह प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त नहीं होता ।

अत: हम जीवन पथ पर चाहे किसी भी ऊँचाई पर पहुँचें हमें कभी भी अपने माता-पिता के सहयोग, उनके त्याग और बलिदान को नहीं भूलना चाहिए । हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे माता-पिता की अनगिनत खुशियों का परित्याग निहित होता है । अत: हमारा यह परम दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें ।

माता-पिता की सदैव यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र बड़ा होकर उनके नाम को गौरवान्वित करे । अत: हम सबका उनके प्रति यह दायित्व बनता है कि हम अपनी लगन, मेहनत और परिश्रम के द्‌वारा उच्चकोटि का कार्य करें जिससे हमारे माता-पिता का नाम गौरवान्वित हो । हम सदैव यह ध्यान रखें कि हमसे ऐसा कोई भी गलत कार्य न हो जिससे उन्हें लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े ।

आज की भौतिकवादी पीढ़ी में विवाहोपरांत युवक अपने निजी स्वार्थों में इतना लिप्त हो जाते हैं कि वे अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा तो दूर अपितु उनकी उपेक्षा करना प्रारंभ कर देते हैं । यह निस्संदेह एक निंदनीय कृत्य है । उनके कर्मों व संस्कार का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता है । यही कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है । टूटते घर-परिवार व समाज सब इसी अलगाववादी दृष्टिकोण के दुष्परिणाम हैं ।

अत: जीपन पर्यंत मनुष्य को अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना चाहिए । माता-पिता की सेवा सच्ची सेवा है । उनकी सेवा से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कार्य नहीं है । हमारे वैदिक ग्रंथों में इन्हीं कारणों से माता को देवी के समकक्ष माना गया है ।

माता-पिता की सेवा द्‌वारा प्राप्त उनके आशीर्वाद से मनुष्य जो आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है वह समस्त भौतिक सुखों से भी श्रेष्ठ है । ”मातृदेवो भव, पितृदेवो भव” वाली वैदिक अवधारणा को एक बार फिर से प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है ताकि हमारे देश का गौरव अक्षुण्ण बना रहे ।

बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध - Essay on Children’s Duty towards Parents in Hindi

हमारा जीवन विविध चरणों से होकर गुजरता हैं हम अपने जन्म से लेकर बाल्यावस्था, फिर स्कूली जीवन तथा युवावस्था से जीवन के अंतिम दौर वृद्धावस्था से होते हुए जीवन के सफर को पूर्ण कर जाते हैं. जीवन से म्रत्यु तक के इस सफर में हम विविध अच्छे बुरे अनुभवों से होकर गुजरते हैं.

जीवन को यदि हम कोई अन्य नाम दे तो वह उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों की अनवरत श्रंखला हैं, व्यक्ति जिसे पूर्ण करने की जिद्दोजहद में सदैव लगा रहता हैं. वह अपने प्रयत्नों से परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर लेता हैं. मगर अपने माता पिता के प्रति उत्तरदायित्वों को चुकाने के लिए एक जीवन भी कम पड़ जाता हैं.

एक संतान को माँ बाप द्वारा जन्म देने के साथ ही उसे प्रेम, सुरक्षा, पालन पोषण, शिक्षा और संस्कारों के रूप में कई अमूल्य योगदान हमारे जीवन में होते हैं. बच्चें की माँ अपने स्नेह से तथा पिता जीवन में अनुशासन के भाव को जागृत करते हैं. चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण का सम्पूर्ण श्रेय माता पिता को ही जाता हैं. बालक उनके अनु करण अथवा निर्देश के मुताबिक ही स्वयं को ढालता हैं.

हिन्दू धर्म की मान्यताओं में माता पिता को देवता के समान पूजनीय माना गया हैं. एक सन्तान के लिए इश्वर का स्वरूप होते हैं. बताया जाता है कि ८४ लाख जन्मों के बाद मानव जन्म नसीब होता हैं. इतना अमूल्य जीवन हमें अपने माता पिता के द्वारा ही मिलता हैं. एक बच्चें के जन्म से युवा होने तक माँ बाप को कितनी परेशानि यों का सामना करना पड़ता हैं, इसका सही अनुमान और एहसास तभी होता हैं जब आप स्वयं माँ बाप बनेगे.

मगर आज के समय में वृद्ध माँ बाप की हो रही दुर्द्र्षा देखकर यही कहा जा सकता हैं, कि अधिकतर बच्चें अपने माता पिता के प्रति कर्तव्यों से विमुख होते जा रहे हैं. हमें यह समझना चाहिए संसार में हमारी जो भी स्थिति और हैसियत है वह माँ बाप की बदौलत ही हैं. यह जीवन उनका है हर क्षण उन्ही के शरणों में समर्पित होना चाहिए. हम राम के वंशज है जिन्होंने पिताजी के वचन की पालना हेतु राजपद का त्याग कर अपना सम्पूर्ण जीवन अभावों में बिताया. हमें अपनी संतानों को भी अपने राम, श्रवण जैसे महापुरुषों उदाहरण देने चाहिए.

एक माँ नौ माह तक अपने बेटे बेटी को गर्भ में रखने के बाद अपार दर्द सहकर भी उसे जन्म देती हैं. इसके बाद अपने लाड दुलार के साथ पालन पोषण कर स्वयं के पैरो पर खड़ा होने योग्य बनाती हैं. माता पिता का स्नेह ही बालक को बौद्धिक एवं मानसिक रूप से सशक्त बनाता हैं. वहीँ जिन बच्चों को माता पिता का प्रेम नहीं नसीब होता हैं उनमें बालपन से ही असुरक्षा और डर के भाव उत्पन्न हो जाते हैं.

वे जन्म से बड़े होने तक हमारी सैकड़ो गलतियों और शरारतों को यूँ ही क्षमा कर देते हैं. कई बार गलत राह पर जाने के कारण उनकी डांट फटकार में भी हमारा हित निहित होता हैं. वे हमें बुरी राह से निकालकर सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. बच्चें को जीवन में अनुशासन में रहने, अच्छे लोगों की संगत करने के पीछे पिता का हाथ हाथ होता हैं.

कोई लड़का बड़ा होकर वैज्ञानिक, व्यवसायी या किसी बड़े पद को प्राप्त करता हैं तो उसकी इस मंजिल को पाने में जितनी मेहनत स्वय से लगाई उससे कही अधिक योगदान माता पिता का रहा हैं. माँ बाप का त्याग और उनके जीवन भर की पूंजी केवल अपनी संतान का भला हो उसी में अर्पण कर दी जाती हैं. व्यक्ति बड़ा होकर समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त करेगा जब उसे अपने परिवार में अच्छी सीख और प्रेरणा मिली हो.

प्यारे बच्चों हम सभी का यह प्रथम कर्तव्य हैं कि जीवन में चाहे हम कितने भी बड़े व्यक्ति बन जाए मगर अपने माँ बाप को कभी भूलना नहीं. उनकी तपस्या, लग्न और बलिदान को कभी निचा मत दिखाना. आज यदि हम ख़ुशी से जीवन बिता रहे है तो इसके पीछे हमारे पेरेंट्स के सालों की खुशियों का अर्पण हैं. जिन्होंने अपने सुख की परवाह किये बगैर आपके लिए कुछ करने की चाहत में अपने वर्तमान के सुख की बलि सहर्ष दे दी. हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने माता पिता का सदैव सम्मान करें.

कोई भी माँ बाप अधिक धन दौलत बड़े बंगले गाड़ी आदि की ख्वाइश नहीं रखते हैं. वे हम हमसे सम्मान की अपेक्षा रखते हैं. उनकी इच्छा होती है कि हम कोई अच्छा काम करे जिससे वे गर्व से जी सके. सन्तान के रूप में प्रत्येक बच्चे का यह कर्तव्य है कि अपने माता पिता के सपनों को पूरा करने में स्वयं को अर्पित कर दे. साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे किसी कर्म से माँ बाप को कभी शर्मिंदगी महसूस न करनी पड़े.

यदि आज हम अपने चारों ओर के परिदृश्य को देखे तो भारतीय संस्कारों का नामोनिशान कही नहीं दीखता हैं हमारी युवा पीढ़ी अधिक से अधिक भौतिक सुख और निजी लिप्साओं में लगे हैं. अपने माता पिता से अलगाव के जीवन में वे जिस अपसंस्कृति का बीज बो रहे हैं उन्हें भी एक दिन पेरेंट्स बनना है फिर किस मुहं से वे अपने बेटों से कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की बात करेंगे.

मित्रों हमें अपने जीवन की प्रत्येक सांस तक अपने माता पिता के प्रति जो कर्तव्य हैं उन्हें पूर्ण करना चाहिए, जब उनका शरीर बुढ़ापे की अग्रसर हो तो हमें उनकी लाठी बनकर सेवा और सम्मान के साथ उन्हें खुशहाल जिन्दगी बिताने के अवसर देने चाहिए. हमारें धर्मग्रंथों में भी मातृ पितृ सेवा से बढकर कोई पुण्य नहीं हैं.

जो सन्तान माता पिता की सेवा कर उनके आशीर्वाद से संतुष्टि पाते हैं उनके लिए यह स्वर्ग के कल्पित सुखो से भी बढकर हैं. मातृदेवो भव, पितृदेवो भव की हमारी पुरातन संस्कृति और उसके संस्कारों पर फिर से अमल करने की आवश्यकता हैं.

माता पिता के प्रति बच्चों के क्या कर्तव्य है?

हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे माता-पिता की अनगिनत खुशियों का परित्याग निहित होता है । अत: हमारा यह परम दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें । माता-पिता की सदैव यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र बड़ा होकर उनके नाम को गौरवान्वित करे ।

माता पिता पर निबंध कैसे लिखें?

माता पिता पूजनीय है, जो हमें भगवान से भी बढ़कर सुख सुविधाए प्रदान करते है. माता पिता बच्चो की ख़ुशी की लिए किसी भी हद तक जा सकते है. अपनी हर ख़ुशी का त्याग कर माता पिता अपने बच्चो को ख़ुशी देते है. बच्चे किस भी आयु के हो चाहे बूढ़े हो जाए पर माँ बाप हमेशा उनकी फिकर करते रहते है.

एक पिता का कर्तव्य क्या है?

पिता के कर्तव्य है की बच्चे के पैदा होने के दिने से ही उसका ध्यान रखे। जब वो मुस्कुरा रहा हो सिर्फ तभी नहीं , जब वो रो रहा हो तभी उसके साथ रहे। उसकी ज़रूरतों का ख्याल रखे। उसे सही गलत का फ़र्क़ समझाए ।

हमारे जीवन में माता पिता की क्या भूमिका है?

हमारे समाज में माता-पिता व शिक्षक तीनों को बालक के जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण माना है। मां-बाप उसका पालन-पोषण संवर्धन करते हैं तो शिक्षक उसके बौद्धिक, आत्मिक, चारित्रिक गुणों का विकास करते हैं। उसे जीवन और संसार की शिक्षा देते हैं। इसी लिए हमारे जीवन में शिक्षक का स्थान दूसरा और नहीं ले सकता।