पेड़ के फूल को क्या कहते हैं? - ped ke phool ko kya kahate hain?

हिन्दी

पेड़ के फूल को क्या कहते हैं? - ped ke phool ko kya kahate hain?

पु.

पुष्प

संज्ञा

अनुवाद

  • जर्मन: Blume (de) स्त्री.
  • अंग्रेज़ी: flower (en)
  • फ़ारसी: گل (fa)
  • फ्रांसीसी: fleur (fr) स्त्री.
  • गुजराती: ફૂલ (gu)
  • तमिल: பூ (ta) (उच्चार: पू)
  • कोंकणी: फूल (kok)

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

फूल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰फुल्ल]

१. गर्भाधानवाले पौधों में वह ग्रंथि जिसमें फल उत्पन्न करने की शक्ति होती है और जिसे उदिभदों की जननेद्रिय कह सकते हैं । पुष्प । कुसुम । सुमन । विशेष— बड़े फूलों के पाँच भाग होते है । —कटोरी, हरा पुट, दल (पंखड़ी) गर्भकेसर ओर परागकेसर । नाल का वह चौड़ा छोर, जिसपर फूल का सारा ढाँचा रहता है, कटोरी कहलाता है । इसी के चारों ओर जो हरी पत्तियों सी हीती हैं उनके पुट के भीतर कली की दशा में फूल बंद रहता है । ये आवरणपत्र भिन्न भिन्न पौधों में भिन्न भिन्न आकार प्रकार के होते है । घुंड़ी के आकार का जो मध्य भाग होता है उसके चारों ओर रंग विरंग के दल निकले होते हैं जिन्हें पंख़डी कहते है । फूलों की शोभा बहुत कुछ इन्ही रँगीली पंखड़ियों के कारण होती है । पर यह ध्यान रखना चाहिए कि फूल में प्रधान वस्तु बीच की घुंड़ी ही है । जिसपर पराग- केसर और गर्भकेसर होते है । क्षुद कोटि के पोधों में पुट, पंखड़ी आदि कुछ भी नहीं होती, केवल खुली घुंड़ी होती है । वनस्पति शास्त्र की द्दष्टि से तो घुंड़ी ही वास्तव में फूल है और बाकी तो उसकी रक्षा या शोभा के लिये है । दोनों प्रकार के केसर पतले सूत्र के आकार के होते हैं । परागकेसर के सिरे पर एक छोटी टिकिया सी हीती है जिसमें पराग या घुल रहती है । यह परागकेसर पुं॰ जननेंद्रिय है । गर्भकेसर बिलकुल बीच में होते है जिनका निचला भाग या आधार कोश के आकार का होता है । जिसकै भीतर गर्भांड़ बंद रहते हैं और ऊपर का छोर या मुँह कुछ चौढ़ा सा होता है । जब परागकेसर का पराग झड़कर गर्भकेसर के इस मुँह पर पड़ता है तब भीतर ही भीतर गर्भ कोश में जाकर गर्भाड़ को गर्भित करता है, जिससे धीरे धीरे वह बीज के रूप में परिणत होता है और फल की उत्पत्ति होती है । गर्भाधान के विचार से पौधे कई प्रकार के होते है—एक तो वे जिनमें एक ही पेड़ में स्त्री॰फूल और पुं॰ फूल अलग अलग होते हैं । जैसे, कुम्हड़ा, कदुदु, तुरई ,ककड़ी इत्यादि । इनमें कुछ फुलों में केवल गर्भकेसर होते हैं और कुछ फूलों में केवल परागकेसर । ऐसे पौधों में गर्भकोश के बीच पराग या तो हवा से उड़कर पहुँचता है या कीड़ों द्बारा पहुँचाया जाता है । मक्के के पौधे में पु॰ फूल ऊपर टहनी के सिरे पर मंजरी के रूप में लगते है और जीरे कहलाते है और स्त्री॰ फूल पौधे के बीचोबीच इधर उधर लगते हैं और पुष्ट होकर बाल के रूप में होते हैं । ऐसे पौधे भी होती है जिनमें नर और मादा अलग अलग होते हैं । नर पौधे में पराग केसरवाली फूल लगते हैं और मादा पोधे में गर्भकेसरवाले । बहुत से पोधों में गर्भकेसर और परागकेसर एक ही फूल में होते हैं । किसी एक सामान्य जाति के अंतर्गत संकरजाति के पौधे भी उत्पन्न हो सकते हैं । जैसे किसी एक प्रकार के नीबु का पराग दुसरे प्रकार के नीबू के गर्भकोश में जा पड़े तो उससे एक दोगला नीबू उत्पन्न हो सकता है । पर ऐसा एक ही जाति कै पौधों के बीच हो सकता है । फूल अनैक आकार प्रकार के होते है । कुछ फूल बहुत सूक्ष्म होते हैं और गुच्छों में लगते हैं । जैसे, आम के नीम के तुलसी के । ऐसे फूलों को मंजरी कहते हैं । फुलों का उपयोग बहुत प्राचीन काल से सजावट और सुंगध के लिये होता आया है । अबतक संसार में बहुत सा सुगंध द्रब्य (तेल, इत्र आदि) फुलों ही से तैयार होता है । सुकुमारता, कोमलता और सौंदर्य के लिये फूल सब देश के कवियों में प्रसिदध रहा है । मुहा॰— फूला आना = फूल लगाना । फूल उतारना = फूल तोड़ना । फूल चुनना = फूल तोड़कर इकटठा करना । फूस झड़ना = मुँह से प्रिय ओर मधुर बातें निकलना । उ॰— झरत फूल मुँह ते वहि केरी । —जायसी (शब्द॰) । क्या फूल झड़ जायँगें ?= क्या ऐसा सुकुमार है कि अमुक काम करने के योग्य नहीं हैं ? फूल लोढ़ना = फूल चुनना । फुल सा = अत्य़ंत सुकुमार, हलका या सुंदर । फूल सूँधकर रहना = बहुत कम खाना । जैसे,— वह खाती नहीं तो क्या फूल सुँधकर रहती है ? (स्त्री॰ व्यंग्य में) । फूलों का गहना =(१)

पलाश
Butea monosperma
पेड़ के फूल को क्या कहते हैं? - ped ke phool ko kya kahate hain?
बंगलौर, भारत में
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
विभाग: मैग्नेलियोफाइटा
वर्ग: मैग्नोलियोप्सीडा
गण: Fabales
कुल: Fabaceae
वंश: Butea
जाति: B. monosperma
द्विपद नाम
Butea monosperma
(Lam.) Taub.

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पेड़ के फूल को क्या कहते हैं? - ped ke phool ko kya kahate hain?

पलाश (पलास,छूल,परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू) एक वृक्ष है जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प है और इसको 'भारतीय डाकतार विभाग' द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है। प्राचीन काल से ही होली के रंग इसके फूलो से तैयार किये जाते रहे है। भारत भर मे इसे जाना जाता है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। लाल फूलों वाले पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया मोनोस्पर्मा" है। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेज़ों में दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलों वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा" है जबकि लाल फूलो वाले को "ब्यूटिया सुपर्बा" कहा जाता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है। इसका उपयोग तांत्रिक गति-विधियों में भी बहुतायत से किया जाता है।

परिचय[संपादित करें]

पेड़ के फूल को क्या कहते हैं? - ped ke phool ko kya kahate hain?

पलाश की जड़ से बांख तैयार करता ग्रामीण बालक

पलास भारतवर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों में पाया जाता है। पलास का वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, ४००० फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों तक पर किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है। यह तीन रूपों में पाया जाता है—वृक्ष रूप में, क्षुप रूप में और लता रूप में। बगीचों में यह वृक्ष रूप में और जंगलों और पहाड़ों में अधिकतर क्षुप रूप में पाया जाता है। लता रूप में यह कम मिलता है। पत्ते, फूल और फल तीनों भेदों के समान ही होते हैं। वृक्ष बहुत ऊँचा नहीं होता, मझोले आकार का होता है। क्षुप झाड़ियों के रूप में अर्थात् एक स्थान पर पास पास बहुत से उगते हैं। पत्ते इसके गोल और बीच में कुछ नुकीले होते हैं जिनका रंग पीठ की ओर सफेद और सामने की ओर हरा होता है। पत्ते सीकों में निकलते हैं और एक में तीन तीन होते हैं। इसकी छाल मोटी और रेशेदार होती है। लकड़ी बड़ी टेढ़ी मेढ़ी होती है। कठिनाई से चार पाँच हाथ सीधी मिलती है। इसका फूल छोटा, अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूल को प्रायः टेसू कहते हैं और उसके गहरे लाल होने के कारण अन्य गहरी लाल वस्तुओं को 'लाल टेसू' कह देते हैं। फूल फागुन के अंत और चैत के आरंभ में लगते हैं। उस समय पत्ते तो सबके सब झड़ जाते हैं और पेड़ फूलों से लद जाता है जो देखने में बहुत ही भला मालूम होता है। फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौ़ड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं। फलियों को 'पलास पापड़ा' या 'पलास पापड़ी' और बीजों को 'पलास-बीज' कहते हैं।

पलास के पत्ते प्रायः पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं। फूल और बीज ओषधिरूप में प्रयोग होते हैं। पलाश के बीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से निहित होता है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंग भी निकलता है जिसका खासकर होली के अवसर पर प्रयोग किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है। इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है जो कुछ घटिया होता है और बंगाल में अधिक खाया जाता है। मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है जिसको 'चुनियाँ गोंद' या पलास का गोंद कहते हैं। वैद्यक में इसके फूल को स्वादु, कड़वा, गरम, कसैला, वातवर्धक शीतज, चरपरा, मलरोधक तृषा, दाह, पित्त कफ, रुधिरविकार, कुष्ठ और मूत्रकृच्छ का नाशक; फल को रूखा, हलका गरम, पाक में चरपरा, कफ, वात, उदररोग, कृमि, कुष्ठ, गुल्म, प्रमेह, बवासीर और शूल का नाशक; बीज को स्तिग्ध, चरपरा गरम, कफ और कृमि का नाशक और गोंद को मलरोधक, ग्रहणी, मुखरोग, खाँसी और पसीने को दूर करनेवाला लिखा है।

यह वृक्ष हिंदुओं के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं। इसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है। श्रोत्रसूत्रों में कई यज्ञपात्रों के इसी की लकड़ी से बनाने की विधि है। गृह्वासूत्र के अनुसार उपनयन के समय में ब्राह्मणकुमार को इसी की लकड़ी का दंड ग्रहण करने की विधि है। वसंत में इसका पत्रहीन पर लाल फूलों से लदा हुआ वृक्ष अत्यंत नेत्रसुखद होता है। संस्कृत और हिंदी के कवियों ने इस समय के इसके सौंदर्य पर कितनी ही उत्तम उत्तम कल्पनाएँ की हैं। इसका फूल अत्यंत सुंदर तो होता है पर उसमें गंध नहीं होते। इस विशेषता पर भी बहुत सी उक्तियाँ कही गई हैं।

उपयोगिता[संपादित करें]

होली के लिए रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता। काम शक्तिवर्धक और शीघ्रपतन की समस्या को दूर करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे प्राप्त लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है [1]


आजकल पलाश का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन बनाने में भी किया जा रहा है। पलाश से प्राप्त कमरकस आयुर्वेदिक औषधि है। पलाश की पत्तियों से पत्रावली भी बनाई जाती है।

पर्याय[संपादित करें]

किंसुक, पर्ण, याज्ञिक, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वात-पोथ, ब्रह्मावृक्ष, ब्रह्मावृक्षक, ब्रह्मोपनेता, समिद्धर, करक, त्रिपत्रक, ब्रह्मपादप, पलाशक, त्रिपर्ण, रक्तपुष्प, पुतद्रु, काष्ठद्रु, बीजस्नेह, कृमिघ्न, वक्रपुष्पक, सुपर्णी, केसूदो,ब्रह्मकलश।

दीर्घा[संपादित करें]

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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • पूजा-पाठ एवं यज्ञ-हवन इत्यादि में नवग्रह की लकड़ी के रुप में इनके प्रयोग किए जाते हैं।रंग ही नहीं औषधि भी हैं टेसू के फूल

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 फ़रवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अक्तूबर 2016.

[1]

  1. "http://aprnatripathi.blogspot.com". मूल से 14 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जुलाई 2017.