बंगाल में भयानक अकाल कब पड़ा - bangaal mein bhayaanak akaal kab pada

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लिखे बंगाल में 1943 और 44 को भयंकर अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 3000000 लोगों ने बुक से अपनी जान गवां दी

likhe bengal mein 1943 aur 44 ko bhayankar akaal pada tha jisme lagbhag 3000000 logo ne book se apni jaan gavaan di

लिखे बंगाल में 1943 और 44 को भयंकर अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 3000000 लोगों ने बुक से अपनी ज

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बंगाल में भयानक अकाल कब पड़ा - bangaal mein bhayaanak akaal kab pada
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आपने पूछा है कि 1707 इसी में बंगाल में अकाल पड़ा था या नहीं नहीं जी यह गलत है बंगाल में अकाल पड़ा था वह पड़ा था 1943 में हो रही है बहुत ही भयानक अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 3000000 लोग भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी है कि धन्यवाद

aapne poocha hai ki 1707 isi mein bengal mein akaal pada tha ya nahi nahi ji yah galat hai bengal mein akaal pada tha vaah pada tha 1943 mein ho rahi hai bahut hi bhayanak akaal pada tha jisme lagbhag 3000000 log bhukh se tadapakar apni jaan de di hai ki dhanyavad

आपने पूछा है कि 1707 इसी में बंगाल में अकाल पड़ा था या नहीं नहीं जी यह गलत है बंगाल में अक

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बंगाल के उत्तरी जिलों में अकाल का पहला साक्ष्य नवंबर 1769 में सामने आना शुरू हुआ, जिसने आधिकारिक ध्यान आकर्षित किया। अप्रैल 1770 के महीने में सूखा, फसल खराब होना, बीमारी और मृत्यु जैसी आपदाएँ पूरे बंगाल, बिहार और उड़ीसा में देखी गईं। बाद में यह अनुमान लगाया गया कि भयानक प्रकोप में एक करोड़ भारतीय मारे गए थे। इतनी अधिक आबादी के नुकसान ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खरीद के लिए उपलब्ध कपड़े के उत्पादन को बहुत कम कर दिया। 1770 के गर्मियों के महीनों में बंगाल के अधिकारियों ने भारी अकाल के कारण राजस्व संग्रह में 20 लाख रुपये की कमी का अनुमान लगाया। 1769 में ब्रिटिश सरकार ने हिंद महासागर में सर जॉन लिंडसे (1737-1788) को क्राउन प्लेनिपोटेंटरी के रूप में नामित किया। यह भारत में एक स्थायी गैर-कंपनी प्रतिनिधि की स्थापना की दिशा में पहला कदम था। लिंडसे जुलाई 1770 में बंबई पहुंचे और तमाम हंगामे के बावजूद मद्रास काउंसिल ने उनकी काफी हद तक अनदेखी कर दी। 28 अगस्त 1771 को, कंपनी ने निर्देश दिया कि वह बंगाल के प्रत्यक्ष प्रशासन को ग्रहण करेगी। इसका अर्थ राजनीतिक प्रशासन, न्याय और राजस्व संग्रह को शामिल करने के लिए बंगाल, बिहार और उड़ीसा के प्रत्यक्ष शासन का था।

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नई दिल्ली। 74 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी। ये द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था। माना जाता है कि उस वक्त अकाल की वजह अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का निर्यात हो रहा था। हालांकि, विशेषज्ञों के तर्क इससे अलग हैं। बच्चों को फेंक रहे थे नदी में, जिंदा रहने के लिए खा रहे थे घास...

- लेखक मधुश्री मुखर्जी ने उस अकाल से बच निकले कुछ लोगों को खोज उनसे बातचीत के आधार पर अपनी किताब में लिखा है कि उस वक्त हालात ऐसे थे कि लोग भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे। न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी।

- लोग पत्तियां और घास खाकर जिंदा थे। लोगों में सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था।

- इस अकाल से वही लोग बचे जो रोजगार की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने परिवार को पालने के लिए मजबूरी में वेश्यावृत्ति करनी शुरू कर दी।

प्राकृतिक या मानवजनित त्रासदी

- ये सिर्फ कोई प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि मानवनिर्मित भी थी। ये सच है कि जनवरी 1943 में आए तूफान ने बंगाल में चावल की फसल को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इसके बावजूद अनाज का उत्पादन घटा नहीं था।

- इस विषय पर लिखने वाले ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. गिडोन पोल्या का मानना है कि बंगाल का अकाल 'मानवनिर्मित होलोकास्ट' था।

- इसके पीछे अंग्रेज सरकार की नीतियां जिम्मेदार थीं। इस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई।

- वहीं, जाने-माने अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि 1943 में अनाज के उत्पादन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में उत्पादन पहले से ज्यादा था।

- इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है, जिन्होंने स्थिति से वाकिफ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इन्होंने प्रभावित राज्यों की मदद की पेशकश की थी।

-  जानकारों का कहना है कि चर्चिल अगर चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था। वहीं, बर्मा (मौजूदा म्यांमार) पर जापान के आक्रमण को भी इसकी वजह माना जाता है। कहा जाता है कि जापान के हमले के चलते बर्मा से भारत में चावल की सप्लाई बंद हो गई थी।

(DainikBhaskar.com अपने रीडर्स के लिए #RarePhotos नाम से एक सीरीज चला रहा है। जिसमें पुरानी तस्वीरों के जरिए इतिहास में झांकने की कोशिश की गई है। इसी सीरिज में आज पेश है बंगाल के भीषण अकाल के कुछ रेयर फोटोज...)

बंगाल का सबसे भयानक अकाल कब पड़ा था?

वर्ष 1943 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, तब बंगाल में भारी अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे.

1770 के भयानक अकाल का कारण क्या था?

इस अकाल का जिम्मेदार मौसम के साथ साथ ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों के संयोजन को भी ठहराया जाता है. अकाल की शुरुआत सन 1769 में एक असफल मानसून से हुयी, जिसके कारण व्यापक सूखा और लगातार दो चावल की फसलों की खेती असफल हो गई .

बंगाल में भयंकर अकाल कब पड़ा * 1 Point 1768 1770 1775?

यह अकाल १७६९ से १७७३ (बांग्ला पंचांग के अनुसार ११७८ से ११८०) तक रहा। ऐसा अनुमान है कि इस अकाल में १ करोड़ लोग मारे गये। १७७२ में वारेन हेस्टिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रभावित क्षेत्रों के एक-तिहाई लोग इस अकाल में मारे गए थे।

विश्व इतिहास का ज्ञात सबसे भयानक अकाल कब और कहां पड़ा?

और ये है दुनिया का भीषण अकाल: 1958 और 1961 के बीच चीन में खराब मौसम, गलत सरकारी नीतियों के चलते अब तक का सबसे भीषण अकाल पड़ा.