भगवान परशुराम का गोत्र क्या है? - bhagavaan parashuraam ka gotr kya hai?

Parshuram Kis Jati Ke The : परशुराम त्रेता युग के एक महर्षि थे। त्रेता युग में परशुराम का बहुत ही ज्यादा महत्व था। त्रेता युग में परशुराम का नाम यूं ही नहीं प्रसिद्ध था। बल्कि उन्होंने कई ऐसे कारनामे किए थे जिसकी वजह से उनका नाम प्रसिद्ध हुआ था। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे ऐसा माना जाता है।

तो अगर आप महर्षि परशुराम के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं कि वह कौन है? परशुराम किस जाति के थे? और महर्षि परशुराम को इतनी प्रसिद्धि क्यों मिली?, तो आप इस वक्त बिल्कुल सही जगह पर है क्योंकि आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको परशुराम के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं।

भगवान परशुराम का गोत्र क्या है? - bhagavaan parashuraam ka gotr kya hai?
Image: Parshuram Kis Jati Ke The

खासकर हम इस आर्टिकल में यह जानेंगे कि परशुराम किस जाति के थे?, तो अगर आप इनके बारे में सारी जानकारी डिटेल्स में प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख के साथ बने रहिए और इसे अंत तक पढ़ीए। आपको परशुराम जी की जाति के बारे में अच्छे से पता चल जाएगा।

विषय सूची

  • परशुराम किस जाति के थे? | Parshuram Kis Jati Ke The
    • परशुराम जी कौन थे?
    • परशुराम किस जाति के थे?
    • FAQ
  • निष्कर्ष

परशुराम किस जाति के थे? | Parshuram Kis Jati Ke The

परशुराम जी कौन थे?

अगर आप यह जानना चाहते हैं कि महर्षि परशुराम किस जाति के थे?, तो सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि महर्षि परशुराम कौन थे? तो आइए नीचे वाले पैराग्राफ के माध्यम से अच्छे से जानने का प्रयास करते हैं कि महर्षि परशुराम कौन थे।

महाभारत में या फिर कई हिंदुओं के ग्रंथ में यह बात बताई गई है कि परशुराम जी भगवान विष्णु के अवतार थे। परशुरामजी का वास्तविक नाम राम था लेकिन जब उन्होंने भगवान शिव की पूजा की और उन्हें शिव से जब परसु नामक अस्त्र प्रदान हुआ। तब से लोग उन्हें परशुराम के नाम से जानने लगे। वह बहुत तपस्या किया करते थे इसलिए ज्यादातर लोग उन्हें महर्षि परशुराम के नाम से जानते हैं।

परशुराम जी का जन्म त्रेता युग में एक ब्राम्हण ऋषि के यहां हुआ था। वेदो और ग्रंथों के अनुसार महर्षि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। इनका जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में मानपुर नामक गांव में हुआ था। महर्षि परशुराम जी की प्रारंभिक शिक्षा ऋतिक ऋषि के पास हुआ था।

परशुराम किस जाति के थे?

हमने ऊपर वाले पैराग्राफ के माध्यम से परशुराम जी के बारे में उतनी जानकारी प्राप्त कर ली है जितनी हमें जाननी चाहिए थी। अब हम अपने मुख्य टॉपिक पर वापस आते हैं और यह जानने का प्रयास करते हैं कि परशुराम जी किस जाति के थे?

परशुराम के पिता का नाम महर्षि जमदग्नि था और उनकी माता का नाम रेणुका था। इनके पिता का ब्राम्हण थे जबकि इनकी माता एक क्षत्रिय थी। इसलिए परशुराम जी ब्राह्मण हुए क्योंकि भारत में ऐसा रीति रिवाज है कि पुरुष जिस जाति का होता है महिला भी उसी जाति की हो जाती है और उनके द्वारा होने वाला उनका बच्चा पुरुष के जाति में गिना जाता है।

महर्षि परशुराम के पिता ब्राम्हण और माता क्षत्रिय थी। इसलिए हमारे पुरुष प्रधान समाज के कारण परशुराम जी को भी ब्राम्हण घोषित किया गया। लेकिन अगर वेदो की बात की जाए तो उसमें ऐसा लिखा गया है कि परशुराम जी आधा क्षत्रिय थे और आधा ब्राह्मण थे।

FAQ

परशुराम कौन सी कास्ट के थे?

परशुराम जी के माता छत्रिय कास्ट की थी और उनके पिता ब्राह्मण कास्ट के थे। इसलिए परशुराम जी आधा क्षत्रिय हुए और आधे ब्राम्हण।

भगवान परशुराम का गोत्र क्या था?

भगवान परशुराम जी का गोत्र ब्राम्हण का था।

परशुराम जी के पिता किस जाति के थे?

परशुराम जी के पिता का नाम जमदग्नि था, जो ब्राम्हण जाति के थे।

परशुराम जी की माता किस जाति की थी?

परशुराम जी की माता का नाम रेणुका था और वह एक क्षत्रिय थी।

परशुराम जी की पूजा क्यों नहीं की जाती है?

वेदों के अनुसार परशुराम जी का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था इसलिए उनकी पूजा नहीं की जाती है।

निष्कर्ष

हमने आज आपको अपने इस लेख के माध्यम से परशुराम जी के बारे में जानकारी प्राप्त कराई। हमने आपको बताया कि परशुराम जी कौन थे और परशुराम जी किस जाति के थे (Parshuram Kis Jati Ke The)?

उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। इसमें दी गई सारी जानकारी आपको अच्छे से समझ में आ गई होगी। अगर यह लेख आपको पसंद आया तो आप इसे अपने मित्रों के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते हैं।

च्यवन ऋषि का विवाह गुजरात के खम्भात की खाड़ी के राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के साथ हुआ। ऋचीक का विवाह महर्षि भृगु ने गाधिपुरी (गाजीपुर) के राजा गाधि की पुत्री सत्यवती के साथ किया। पुत्री रेणुका का विवाह भृगु मुनि ने उस समय विष्णु पद पर आसीन विवस्वान (सूर्य) के साथ किया, जो वैवस्वत मनु के पिता थे।

महर्षि भृगु के प्रपौत्र, वैदिक ॠषि ॠचीक के पौत्र, जमदग्नि के पुत्र, महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले गुरु, शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम का जीवन संघर्ष और विवादों से भरा रहा है। परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।

इनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि-रेणुका के पुत्र परशुराम थे। ऋचीक की पत्नी सत्यवती राजा गाधि (प्रसेनजित) की पुत्री और विश्वमित्र (ऋषि विश्वामित्र) की बहिन थी। परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई।

परशुराम सहित जमदग्नि के 5 पुत्र थे- रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु तथा पांचवें पुत्र का नाम परशुराम था। परशुराम सबसे छोटे हैं।

महर्षि भृगु के सुषानगर से भारत के धर्मारण्य में आने की पौराणिक ग्रंथों में दो कथाएं मिलती हैं। भृगु मुनि की पहली पत्नी दिव्यादेवी के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप और उनकी पुत्री रेणुका के पति भगवान विष्णु में वर्चस्व की जंग छिड़ गई। इस लड़ाई में महर्षि भृगु ने पत्नी के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप का साथ दिया। क्रोधित विष्णुजी ने सौतेली सास दिव्यादेवी को मार डाला। इस पारिवारिक झगड़े को आगे नहीं बढ़ने देने से रोकने के लिए भृगु मुनि को सुषानगर से बाहर चले जाने की सलाह दी गई और वे धर्मारण्य में आ गए। धर्मारण्य संभवत आज के उत्तर प्रदेश के बलिया क्षेत्र को कहते हैं। बाद में इनके वंशज गुजरात में जाकर बस गए। दो बड़ी नदियों गंगा और सरयू (घाघरा) के दोआब में बसे बलिया जिले की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक पृष्ठ्भूमि काफी समृद्ध रही है। हालांकि इस कथा पर अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है। यह कितनी सच यह यह बताना मुश्किल है।

दूसरी कथा : महर्षि भृगु ने सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में संगम कराया था। यहां स्नान की परम्परा लगभग सात हजार वर्ष पुरानी है। यहां स्नान एवं मेले को महर्षि भृगु ने प्रारम्भ किया था।

प्रचेता ब्रह्मा वीरणी के पुत्र महर्षि भृगु का मंदराचल पर हो रहे यज्ञ में ऋषिगणों ने त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की परीक्षा का काम सौंप दिया। इसी परीक्षा लेने के क्रम में महर्षि भृगु ने क्षीर सागर में विहार कर रहे भगवान विष्णु पर पद प्रहार कर दिया। दण्ड स्वरूप महर्षि भृगु को एक दण्ड और मृगछाल देकर विमुक्त तीर्थ में विष्णु सहस्त्र नाम जप करके शाप मुक्त होने के लिए महर्षि भृगु के दादा मरीचि ऋषि ने भेजा। तब महर्षि ने यहीं तपस्या प्रारम्भ की।

परशुराम का गोत्र कौन सा है?

परशुराम भारद्वाज गोत्र के कुल गुरु भी हैं. परशुराम भार्गव गोत्र के एक गौड़ ब्राह्मण से संबंध रखते हैं. कहा जाता है कि परशुराम के जन्म से पहले रेणुका ने चार पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम वासु, विश्व वासु, बृहुद्यानु और ब्रुतवाकांवा थे.

भगवान परशुराम कौन से जाति के थे?

वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।

परशुराम के वंशज कौन है?

भगवान परशुराम के यदि वंशज को देखा जाए तो महाराज गाधि के एक मात्र पुत्री सत्यवती व पुत्र ऋषि विश्वामित्र थे।

परशुराम का असली नाम क्या है?

महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम जी हो गया।