बिहार में कृषि पर आधारित उद्योग के विकास की क्या संभावना है? - bihaar mein krshi par aadhaarit udyog ke vikaas kee kya sambhaavana hai?

बिहार में औद्योगिक गतिविधियों के लिए स्पष्ट और व्यवहार्य नीतियां नहीं हैं। हम एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और औद्योगिक कलस्टर की मांग करते हैं।

भारत में निवेशकों के लिए सबसे बेहतर उद्योग नीति होने के बावजूद इसकी सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य बिहार में उद्योग की भारी कमी है। हालांकि बिहार में केवल 30 दिनों के अंदर सिंगल विंडो के तहत उद्योग निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती है। इसके अलावा उद्योग स्थापना के लिए भी सरकार बिजली, जमीन और अनुदान सुविधाएं उपलब्ध कराती है। इन सब सुविधाओं और सबसे बेहतरीन उद्योग नीति होने के बावजूद आखिर क्यों बिहार में उद्योग स्थापित नहीं हो पा रहे हैं? हालांकि बिहार सरकार ने राज्य में निवेश के लिए कई तरह की योजनाए भी शुरू की हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का कोई विशेष फ़ायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है। 

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महानगरों के मुकाबले बिहार में उतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं जिससे वह निवेशकों को आकर्षित कर सके। वहीं बात करें महानगरों की तो महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां समुद्र होने के कारण यातायात सुविधा बहुत सस्ती है जिस कारण यहां निवेश बहुत अधिक होता है। इसके अलावा बिहार में वो हाईटेक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं जो दिल्ली और महाराष्ट्र में है। साथ ही बिहार में उद्योग की कमी का एक पहलू यह भी है की बैंको और वित्तय संस्थानों का रवैया भी बिहार के प्रति ठीक नहीं है। यदि बैंकों से मदद प्राप्त हो तो बिहार 5 से 7 साल में विकसित प्रदेश में बन सकता है।

राज्य सरकार भले ही लाख दावे कर रही है कि लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है, लेकिन हकीकत इन दावों से बिल्कुल उलट है। नए उद्योग-व्यवसाय लगना तो दूर, पुराने उद्योगों की स्थिति बदहाल हो चुकी है। सरकारी योजनाओं के सहारे केवल सीमित संख्या में ही रोजगार उपलब्ध हो पा रहा है। परिणामस्वरूप प्रवासी मजदूर रोजगार के लिए चिंतित हैं। देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के थमते ही एकबार फिर खासकर उत्तरी व पूर्वी बिहार के इलाके से लोगों का पलायन तेज हो गया है। 

बात करें अगर सरकारी योजनाओं की तो मनरेगा जैसी सरकारी योजनाएं या फिर सरकारी निर्माण कार्यों में कुशल या अर्द्ध कुशल कामगारों को पर्याप्त संख्या में भी काम नहीं मिल पा रहा है। 

बिहार में उद्योग का सुनहरा अतीत रहा है

बिहार में चीनी, पेपर, जूट, सूत व सिल्क उद्योग का बेहद सुनहरा अतीत रहा है। बिहार के पहले सीएम कृष्ण सिंह के समय में बिहार भारत की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला राज्य था। उनके समय में बरौनी रिफाइनरी, सिंदरी व बरौनी उर्वरक कारखाना, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी डेयरी, भारी इंजीनियरिंग उद्योग आदि स्थापित किये गए थे। लेकिन बदलती सरकारों की गलत नीतियों और लापरवाही के कारण ये सभी उद्योग धीरे धीरे बंद हो गए। एक समय ऐसा भी था जब बिहार में सबसे ज्यादा चीनी मिल उपलब्ध थी। भारत का 40 प्रतिशत तक चीनी उत्पादन बिहार में ही किया जाता था। पूरे बिहार में खुल 28 चीनी मिले स्थापित की गई थी जिनमे से वर्तमान में केवल कुछ ही सक्रिय हैं। 

बिहार सरकार ने 1977 से 1985 के बीच कई चीनी मिलों की स्थापना की थी। लेकिन साल 1998 के बाद बिहार में चीनी मिलों की स्थिति बिगड़ती ही चली गई। बिहार में सबसे पहले दरभंगा की सकरी चीनी मिल अपने ख़स्ता हालातों के कारण बंद हो गई थी। साल 2005 में बिहार स्टेट शुगर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को राज्य की सभी चीनी मिलों के पुनःनिर्माण का काम सौपा गया। कॉरपोरेशन के कहने पर इथेनॉल के उत्पादन को ध्यान में रखते हुए कई मिलों को प्राइवेट कंपनियों को सौप दिया गया। 

साल 2007 से पहले किसानों द्वारा उगाए गए गन्नों के रस से इथेनॉल बनाने की अनुमति थी। लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से दोबारा गन्नों के रस से इथेनॉल बनाने की अनुमति मांगी तो केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की इस मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद ये सभी चीनी मिले बंद हो गई और अंततः बिहार सरकार ने भी यह स्वीकार कर लिया की बंद पड़ी चीनी मिलों को दोबारा खड़ा करना मुश्किल है। 

सीतामढ़ी जिले की रीगा चीनी मील का अतीत भी काफी गौरवशाली रहा है। इस मिल के कारण कई परिवारों को रोजगार प्राप्त हुए और उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी थी। लेकिन अब यह चीनी मिल भी खराब हालातों का सामना करते हुए बंद होने के कगार पर है। 

दरभंगा की सकरी, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, बेलही की लोहट व रैयाम चीनी मिल, सिवान की एसकेजी शुगर मिल, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर चीनी मिल, समस्तीपुर की हसनपुर चीनी मिल आदि एक के बाद सभी मिलें बंद होती चली गईं। 

अशोक पेपर मिल से लेकर सकरी शुगर मिल तक, कैसे बर्बाद हुए बिहार में उद्योग

दरभंगा के अशोक पेपर मिल की शुरुआत साल 1958 में दरभंगा महाराज ने की थी। इस चीनी मिल की स्थापना के लिए किसानों से ज़मीन भी मांगी गई और बदले में उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के वादे किये गए। लेकिन साल 1990 तक बिहार सरकार ने इस पर मालिकाना हक़ अपने हाथ में नहीं लिया। 

फिर इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लाया गया। साल 1996 में सुप्रीम कोर्ट में एक ड्राफ्ट पेश करके मिल के निजीकरण की सिफ़ारिश की गयी थी, जिसे कोर्ट द्वारा सहमति दे दी गई थी। इसके बाद साल 1997 में मुंबई की कंपनी नुवो कैपिटल एंड फ़ाइनैंस लिमिटेड के मालिक धरम गोधा को अशोक पेपर मिल पर मालिकाना हक़ मिल गया। लेकिन तब भी यह मिल 6 महीने से अधिक नहीं चल पाई। 

बिहार के सीतामढ़ी में स्थित रीगा चीनी मिल भी बंद होने के कगार पर 

सीतामढ़ी जिले की रीगा चीनी मिल की हालत भी अब ख़स्ता हो गई हैं। रीगा चीनी मिल के खराब हालातों के कारण किसानों के गन्नों की खेती लगभग चौपट हो गई है। केवल इतना ही नहीं बल्कि किसानों का चीनी मिल पर 80 करोड़ की राशि अभी तक बकाया है। अगर इस हालात में चीनी मिल का काम शुरू नहीं हुआ तो किसानों भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा।  

सीतामढ़ी का रीगा चीनी मिल पिछले पांच सालो से आर्थिक बदहाली का सामना कर रहा है। आर्थिक समस्याओं के कारण मिल पर किसानों का 80 करोड़ रूपए लंबे अरसे से बकाया है जिसे अभी तक चुकाया नहीं जा सका है। अलावा चीनी मिल ने अपनी आर्थिक बदहाली का हवाला देकर 600 कर्मियों को काम से निकल दिया है। 

चीनी मिलों के बंद होने से खेती पर भी असर 

बिहार में चीनी मिलो के बंद होने के कारण इन इलाकों में गन्ना की खेती भी पूरी तरह से चौपट हो गई है। इन मिलों की स्थापना के लिए किसानों से जमीने मांगी गई थी वो भी अब उनके हाथ से निकल गई। बिहार के किसानों को ना तो रोजगार ही मिल पाया और ना ही उनकी जमीन उन्हें वापस मिली। 

चीनी मिलों की तरह ही कटिहार, अररिया व पूर्णिया में जूट की मिलें स्थापित की गई थीं, लेकिन ये भी धीरे-धीरे संसाधनों के अभाव और प्रशासन की लापरवाही की भेंट चढ़ गई। 

कटिहार की नेशनल जूट मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन मिल जो की अपनी बुरी अवस्था के कारण साल 2008 में बंद कर दी गई थी। अब सनबायो मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड नाम की एक दूसरी मिल भी खस्ताहाल में पहुंच गई है। 

बात करें अगर समस्तीपुर की तो यहां के मुक्तापुर में स्थित 125 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली रामेश्वर जूट मिल भी चार साल पहले बंद हो गई। रामेश्वर जूट मिल के बंद होने के बाद इस मिल में कार्यक्रत 4200 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। साथ ही उन मिल के बंद होने से इन किसानों को भी बहुत बड़ा आर्थिक झटका लगा जो जुट की खेती करते थे और अपने उत्पादन को इस मिल को बेचते थे। सरकार अगर प्रयास करती तो सीमांचल को फिर से जूट उत्पादन का बड़ा केंद्र बनाया जा सकता था। 

सरकार भी लापरवाह

पुराने उद्योगों के बंद होने और नए निवेशकों के बिहार के प्रति आकर्षित नहीं होने के कारणों में से एक सरकार की लापरवाही भी है। बिहार में उद्योग स्थापित करने के लिए सरकार की अनुमति पाने के लिए लोगों को परेशान होना पड़ता है छोटे छोटे कामों के लिए कई सालों तक चक्कर काटने पड़ते हैं। यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा की बिहार की प्रशासन के कारण ही निवेशक बिहार में निवेश करने के लिए तैयार नहीं होते। कुछ लोगों का मानना है की जो राज्य समुद्र के किनारे हैं, वहीं बड़े उद्योग लगाए जा सकते हैं। हालांकि यह गलत नहीं की चारों ओर से जमीन से घिरा होने के वजह से बिहार को समुद्री लाभ नहीं मिल पता, लेकिन बिहार सरकार ने भी ट्रांस्पोर्टेशन सुविधा को सुलभ बनाने के लिए रेल और सड़क मार्ग की सुविधाओं का सही इस्तेमाल नहीं किया है। 

यदि देखा जाए तो बिहार मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के समय में भी बिहार में समुन्द्र नहीं था तब भी बिहार में उद्योग की स्थिति उस समय काफी बेहतर थी। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों को भी समुद्र का लाभ नहीं मिलता, फिर भी लगातार उद्योग का विकास हो रहा हैं। 

बिहार में निवेशकों को लाने की कोशिश

सरकार ने बिहार में औद्योगिक हालात को सुधारने की दिशा में पुरजोर प्रयास किए हैं। जिसके तहत सरकार ने देश और विदेश से निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश की है। भारत में महामारी के दौरान सरकार ने स्किल मैपिंग जैसी व्यवस्था से कुशल तथा अकुशल मजदूरों के डाटा तैयार करने की कोशिश की ताकि उनकी पहचान करके उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर रोजगार मुहैया कराया जा सके। स्किल मैपिंग की अवधि पूरी होने के बाद कामगारों को सर्टिफिकेट दिया जाता है। इसके आलावा कई जिलों में स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए स्टार्टअप जोन भी बनाए गए हैं। साथ ही उन कामगारों को स्वरोजगार स्थापना के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जायेगी। 

एक आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार बिहार सरकार राज्य के 20 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए काम कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना आदि के जरिए रोजगार के अवसर पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा है जिसमे मनरेगा के तहत मिलने वाली राशि को 300 रुपया करने के लिए कहा है। वर्त्तमान में मनरेगा के तहत मिलने वाली राशि केवल 198 रुपये है। 

उद्योग में निवेश बढ़ाने की पहल

एक आधिकारिक बयान के अनुसार राज्य में अभी तक दस हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है। जिसके तहत 6 हजार करोड़ से अधिक केवल इथेनॉल सेक्टर के लिए प्रस्तावित किये गए हैं। बिहार में उद्योग स्थापना को सुलभ बनाने के लिए सबसे पहले जरुरी है की इससे संबंधित लाइसेंसों और दस्तावेजों को तैयार करने में होने वाली देरी को समाप्त करने के लिए कई लाइसेंसों को ऑटो मोड में देने की व्यवस्था की है। ये लाइसेंस ऊर्जा, श्रम संसाधन, पर्यावरण व वन विभाग, खान-भूतत्व, प्रदूषण, नगर निगम व लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं। 

इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा मुजफ्फरपुर में मेगा फूड पार्क स्थापित किए जाने को मंजूरी दे दी गई है। इससे किसान तथा खुदरा विक्रेताओं को एक प्लेटफार्म मिलेगा। यह मेगा फूड पार्क देश के 42 मेगा फूड पार्क में से एक होगा, जिसमें लगभग 30 औद्योगिक यूनिट्स लगाई जाएंगी। सरकार का कहना है की अगर ये इकाइयां स्थापित होती हैं तो बिहार में तीन सौ करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश होने की संभावना है।  

बिहार में इथेनॉल का उत्पादन शुरू करके ये उम्मीद की जा रही है कि इससे राज्य में गन्ने का उत्पादन तो बढ़ेगा ही, किसानों को भी उनकी उपज का अच्छा लाभ होगा और इसके अलावा बड़े पैमाने पर निवेशकों के आने से रोजगार की उपलब्धता भी हो सकेगी। 

राजस्व में कमी, कर्ज पर बढ़ी निर्भरता

भारत में संपूर्ण लॉकडाउन लगने के बाद सभी राज्यों में आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद कर दी गई थी। साल 2020 में बिहार सरकार के राजस्व में बाकी महीनों की तुलना में 82 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई थी जबकि प्रवासी मजदूरों के लिए सहायता तथा अन्य राहत पैकेजों के वितरण के कारण सरकार को भारी नुक्सान हुआ था। ये तो साल 2020 की बात थी लेकिन अगर इस साल की बात करें तो भी हालातों में कुछ ख़ास सुधार होने की उम्मीद नहीं है। बिगड़ते हालातों को देखकर सरकार का यही मानना है की बिहार में इतनी बड़ी जरुरत केवल क़र्ज़ लेकर ही पूरी की जा सकती है। 

बीते वर्ष महामारी के कारण बिगड़ी अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने व अतिरिक्त संसाधनों के माध्यम से राज्य की आमदनी बढ़ाने के पुरजोर प्रयास किए। इस बात  राय नहीं की बढ़ते कर्ज को भरने के लिए बिहार सरकार को केंद्र सरकार पर निर्भर होना ही पड़ेगा। कर्ज के भार कम किए जाने के उपायों के संबंध में वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना हैं, “राज्य सरकार इस बीच किसी तरह के टैक्स को बढ़ाने नहीं जा रही है। सरकार आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों के सामान्य होने का इंतजार करेगी। ऐसे भी राज्य के वित्तीय मामलों में काफी हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर है।  अपने करीब 75 प्रतिशत राजस्व के लिए हम केंद्र पर निर्भर हैं। केंद्र सरकार ने अप्रैल-मई माह के लिए केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी बढ़ाई है जो जून में कम हो सकती है।” 

ODOP स्कीम के माध्यम से लघु उद्योगों को बढ़ावा देने की कोशिश 

केंद्र सरकार द्वारा पीएम एफएमई स्कीम के तहत 38 राज्यों के 707 जिलों के लिए ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ODOP) की लिस्ट को मंजूरी दी गई हैं। ‘एक जिला एक उत्पाद’ (One District One Product) स्कीम के अंतर्गत बिहार में उद्योग जैसे कि लीची उत्पादन, हथकरघा, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र उद्योग और परंपरागत उत्पादों को बढ़ावा दिया जाएगा। एक जिला एक उत्पाद योजना के माध्यम से सरकार का उद्देश्य स्वदेशी निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देना और छोटे तथा मध्य उद्योग को वित्तय सहायता मुहैया कराकर देश में उद्यमिता की अवधारणा को प्रोत्साहित करना हैं। 

एक जनपद, एक उत्पाद योजना” उत्तर प्रदेश राज्य में सबसे पहले लागू की गई है। इसी क्रम में सरकार  ने बिहार के 38 जिलों के उत्पादों को भी ODOP के तहत मंजूरी दे दी है। ODOP के तहत बिहार के इन जिलों में शामिल है: अररिया का मखाना, अरवल के आम, औरंगाबाद की स्ट्रॉबरी, बांका के कतरनी चावल, बेगूसराय की लाल मिर्च, भागलपुर का जर्दालू आम, भोजपुर के मटर, बक्सर का मेंथा, दरभंगा का मखाना, पूर्वी चंपारण की लीची, गया के मशरूम, गोपालगंज का पपीता, जमुई के कटहल, जहानाबाद के मशरूम, कैमूर के अमरूद, कटिहार का मखाना, खगड़िया का केला, किशनगंज के अनानास, लखीसराय का टमाटर, मधेपुरा के आम, मधुबनी का मखाना, मुंगेर की नींबू घास, मुजफ्फरपुर की लीची, नालंदा के आलू, नवादा का पान का पत्ता, पटना का प्याज, पूर्णिया का केला, रोहतास का टमाटर, सहरसा का मखाना, समस्तीपुर की हल्दी, सारण के टमाटर, शेखपुरा का प्याज, शिवहर के मोरिंगा, सीतामढ़ी की लीची, सीवान का मेंथा या पुदीना, सुपौल का मखाना, वैशाली का शहद और पश्चिमी चंपारण के गन्ने की खेती आदि शामिल हैं।

बिहार में निवेश के लिए माहौल तैयार करे सरकार 

एक दशक पहले तक फिरौती और अपहरण के डर के कारण बड़े उद्योगपति बिहार में उद्योग लाने से डरते थे। बड़े उद्योगों की सुरक्षा की दुहाई के चलते बिहार देश के औद्योगिक मानचित्र से बाहर हो गया था। लेकिन पहले के मुकाबले अब काफी हद तक यह डर कम हो चूका है। यहां 14.8 फीसदी की विकास दर, स्थिर कानून-व्यवस्था और सक्रिय सरकार ने मिल कर पूरी तरह से बिहार की इस तस्वीर को बदल दिया है। देर से ही सही लेकिन अब बिहार भी औधोगिक के क्षेत्र में कदम रख रहा है। 

कई बड़े उद्योगपति ने बिहार में अपना उद्योग स्थापित करने में दिलचस्पी दिखाई है। बिहार में बड़े पैमाने में होती कृषि उत्पादकता और सस्ते श्रमिकों ने कई उद्योगों को बिहार में निवेश के लिए आकर्षित किया है। बिहार में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार को एक माहौल तैयार करना चाहिए। जिसके तहत सरकार को उद्योग स्थापना के लिए बुनियादी ढांचे का विकास करने की और ध्यान देना चाहिए। किसी भी व्यवसाय या उद्योग को स्थापित करने के लिए बिजली, पानी और कच्चा माल की उपलब्धता जैसे बुनियादी जरूरतों की आवश्यकता होती है। बिहार में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सरकार को इन सभी संसाधनों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा। 

ऐसे 10 चरण जिनका पालन करके बिहार में उद्योग के हालात बदले जा सकते हैं:  

बिहार में कृषि पर आधारित उद्योग के विकास की क्या संभावना है? - bihaar mein krshi par aadhaarit udyog ke vikaas kee kya sambhaavana hai?

  • बिहार में उद्योग स्थापना के लिए औद्योगिक रोडमैप बनाकर 
  • उद्योग बजट को 800 करोड़ से बढ़ाकर 5000 करोड़ करना चाहिए
  • उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए MSME के लिए फंड 3000 करोड़ रूपये करके  
  • इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस को प्रभावशाली बनाकर
  • उद्योग निवेश कमीशन का गठन करके
  • एग्रो आधारित उद्योग, मध्य और लघु उद्योग को बढ़ावा देकर
  • इथेनॉल फ़ैक्ट्री लगाकर और शुगर मिल को पुनः स्थापित करके
  • कृषि से जुड़े हुए उद्योग को बढ़ावा देकर
  • सिंगल विंडो सिस्टम में पारदर्शिता करके 
  • निवेशकों को ज़मीन, बिजली आदि जैसी बुनियादी ज़रूरत पूरी करके

निष्कर्ष

हालांकि सरकार ने बिहार में MSME की स्थापना के लिए प्रयास किए हैं। जिसके तहत राज्य के युवाओं को व्यवसाय स्थापना के लिए लोन राशि की भी घोषणा की है और कुछ लोगों ने सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता से अपना व्यवसाय शुरू भी किया है। लेकिन ये आकड़े भी संतोषजनक नहीं है। दरअसल, बिहार की स्थिति में तब तक सुधार नहीं आएगा जबतक बिहार में उद्योग -व्यवसाय नहीं खुलेंगे। बिहार में सरकारें बदलतीं रहीं, उद्योगों की स्थिति में सुधार के दावे किए जाते रहे, लेकिन असलियत में जो उद्योग पहले से यहां स्थापित किए गए थे उनकी स्थिति भी एक एक कर के बदहाल होती चली गई और अंतत: उन्हें बंद कर दिया गया। देखा जाए तो बिहार में MSME उद्योगों के लिए बहुत सारी संभावनाएं हैं, लेकिन यह बहुत अफसोसजनक बात है की इस क्षेत्र में प्रगति नहीं की जा सकी।  हमारी संस्था हिन्दराइज बिहार में उद्योग स्थापना और लघु उद्योगों के उत्थान के लिए निरंतर काम कर रही है। हिन्दराइज फउंडेशन के तहत युवाओं को खुद का स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रेरित किया जाता है साथ ही उन्हें लघु उद्योग स्थापना के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है। इस ट्रैनिग के अंतर्गत हमारी संस्था युवाओ को लिसेंसिंग, छोटे उद्योगों को कैसे संचालित करें, फंड कैसे मैनेज करें और साथ ही टैक्सेशन आदि की जानकारी देती है। लघु उद्योग स्थापना में खर्च होने वाली लागत के लिए हमारी संस्था हिन्दराइज  NBFC केंद्रों के साथ मिलकर युवाओ को लोन भी मुहैया कराती है।

बिहार में कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास की क्या संभावनाएँ हैं?

बिहार में कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास की क्या संभावनाएं है? उत्तर- बिहार की कृषि क्षेत्र केवल इस कारण महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि द्वारा जीविकोपार्जन करती है, वरन इस कारण से भी है कि इस क्षेत्र में राज्य के विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान हैं। यहाँ की भूमि बहुत उर्वर है।

बिहार में तेजी से विकास करने वाला उद्योग कौन है?

बिहार में चीनी, पेपर, जूट, सूत व सिल्क उद्योग का बेहद सुनहरा अतीत रहा है। बिहार के पहले सीएम कृष्ण सिंह के समय में बिहार भारत की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला राज्य था। उनके समय में बरौनी रिफाइनरी, सिंदरी व बरौनी उर्वरक कारखाना, बोकारो स्टील प्लांट, बरौनी डेयरी, भारी इंजीनियरिंग उद्योग आदि स्थापित किये गए थे।

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है कैसे?

झारखण्ड के अलग हो जाने के बाद बिहार के लोगों के लिए जीविका का मुख्य आधार कृषि ही है अर्थात् कृषि का महत्त्व अधिक बढ़ गया है। 1990-91 ई० में यहाँ 48.88% भूमि पर कृषि की जाती थी। 2005-06 ई० में बढ़कर 59.37% हो गया। यहाँ भदई और अगहनी फसल धान, ज्वार, बाजरा, मकई, अरहर और गन्ना उपजाए जाते हैं।

बिहार के निम्नलिखित उद्योगों में से कौन सा कृषि आधारित उद्योग नहीं है?

उत्तर: सीमेंट कृषि आधारित उद्योग नहीं है। जसे की कपास, जूट, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी और खाद्य तेल कृषि आधारित उद्योग है। सीमेंट कृषि आधारित उद्योग नहीं है।