भारत में सबसे बड़ा मंदिर कौन है और कहां है? - bhaarat mein sabase bada mandir kaun hai aur kahaan hai?

भारत में सबसे बड़ा मंदिर कौन है और कहां है? - bhaarat mein sabase bada mandir kaun hai aur kahaan hai?

अंगकोरवाट मन्दिर
अङ्कोरवाट मन्दिर
भारत में सबसे बड़ा मंदिर कौन है और कहां है? - bhaarat mein sabase bada mandir kaun hai aur kahaan hai?

अंकोरवाट मन्दिर

धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिंदू धर्म
देवताविष्णु
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिकम्बोडिया
वास्तु विवरण
शैलीख्मेर व चोल शैली
निर्मातासूर्यवर्मन द्वितीय
जयवर्मन सप्तम
स्थापित1112 से 53 ईस्वी के मध्य

अंकोरवाट (खमेर भाषा : អង្គរវត្ត) कम्बोडिया में एक मन्दिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है,[1] 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) को मापने वाले एक साइट पर। यह एक हिन्दू मन्दिर है। यह कम्बोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई॰) के शासनकाल में हुआ था। यह हिंदू मन्दिर है। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मन्दिर आज भी संसार का सबसे बड़ा मन्दिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है।[2] राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मन्दिर कम्बोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय हिन्दू धर्म ग्रन्थों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएँ बहुत सुन्दर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मन्दिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।

परिचय[संपादित करें]

अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात प्राचीन कंबुज की राजधानी और उसके मन्दिरों के भग्नावशेष का विस्तार। अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात सुदूर पूर्व के हिन्दचीन में प्राचीन भारतीय संस्कृति के अवशेष हैं। ईसवी सदियों के पहले से ही सुदूर पूर्व के देशों में प्रवासी भारतीयों के अनेक उपनिवेश बस चले थे। हिंदचीन, सुवर्ण द्वीप, वनद्वीप, मलाया आदि में भारतीयों ने कालान्तर में अनेक राज्यों की स्थापना की। वर्तमान कम्बोडिया के उत्तरी भाग में स्थित 'कम्बुज’ शब्द से व्यक्त होता है, कुछ विद्वान भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर बसने वाले कम्बोजों का सम्बन्ध भी इस प्राचीन भारतीय उपनिवेश से बताते हैं। अनुश्रुति के अनुसार इस राज्य का संस्थापक कौंडिन्य ब्राह्मण था जिसका नाम वहाँ के एक संस्कृत अभिलेख में मिला है। नवीं शताब्दी ईसवी में जयवर्मा तृतीय कम्बुज का राजा हुआ और उसी ने लगभग 860 ईसवी में अंग्कोरथोम (थोम का अर्थ 'राजधानी' है) नामक अपनी राजधानी की नींव डाली। राजधानी प्राय: 40 वर्षों तक बनती रही और 900 ई. के लगभग तैयार हुई। उसके निर्माण के सम्बन्ध में कम्बुज के साहित्य में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित है।

पश्चिम के सीमावर्ती थाई लोग पहले कम्बुज के समेर साम्राज्य के अधीन थे परन्तु 14वीं सदी के मध्य उन्होंने कम्बुज पर आक्रमण करना आरम्भ किया और अंग्कोरथोम को बारबार जीता और लूटा। तब लाचार होकर ख्मेरों को अपनी वह राजधानी छोड़ देनी पड़ी। फिर धीरे-धीरे बाँस के वनों की बाढ़ ने नगर को सभ्य जगत् से सर्वथा पृथक कर दिया और उसकी सत्ता अन्धकार में विलीन हो गई। नगर भी अधिकतर टूटकर खण्डहर हो गया। 19वीं सदी के अन्त में एक फ़्रांसीसी वैज्ञानिक ने पाँच दिनों की नौका यात्रा के बाद उस नगर और उसके खण्डहरों का पुनरुद्धार किया। नगर तोन्ले साँप नामक महान सरोवर के किनारे उत्तर की ओर सदियों से सोया पड़ा था जहाँ पास ही, दूसरे तट पर, विशाल मन्दिरों के भग्नावशेष खड़े थे।

आज का अंग्कोरथोम एक विशाल नगर का खण्डहर है। उसके चारों ओर 330 फुट चौड़ी खाई है जो सदा जल से भरी रहती थी। नगर और खाई के बीच एक विशाल वर्गाकार प्राचीर नगर की रक्षा करती है। प्राचीर में अनेक भव्य और विशाल महाद्वार बने हैं। महाद्वारों के ऊँचे शिखरों को त्रिशीर्ष दिग्गज अपने मस्तक पर उठाए खड़े हैं। विभिन्न द्वारों से पाँच विभिन्न राजपथ नगर के मध्य तक पहुँचते हैं। विभिन्न आकृतियों वाले सरोवरों के खण्डहर आज अपनी जीर्णावस्था में भी निर्माणकर्ता की प्रशस्ति गाते हैं। नगर के ठीक बीचोबीच शिव का एक विशाल मन्दिर है जिसके तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊँचा शिखर है। मध्य शिखर की ऊँचाई लगभग 150 फुट है। इस ऊँचे शिखरों के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे शिखर बने हैं जो संख्या में लगभग 50 हैं। इन शिखरों के चारों ओर समाधिस्थ शिव की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर की विशालता और निर्माण कला आश्चर्यजनक है। उसकी दीवारों को पशु, पक्षी, पुष्प एवं नृत्यांगनाओं जैसी विभिन्न आकृतियों से अलंकृत किया गया है। यह मन्दिर वास्तुकला की दृष्टि से विश्व की एक आश्चर्यजनक वस्तु है और भारत के प्राचीन पौराणिक मन्दिर के अवशेषों में तो एकाकी है। अंग्कोरथोम के मन्दिर और भवन, उसके प्राचीन राजपथ और सरोवर सभी उस नगर की समृद्धि के सूचक हैं।

12वीं शताब्दी के लगभग सूर्यवर्मा द्वितीय ने अंग्कोरथोम में विष्णु का एक विशाल मन्दिर बनवाया। इस मन्दिर की रक्षा भी एक चतुर्दिक खाई करती है जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से यह खाई झील के समान दृष्टिगोचर होती है। मन्दिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। पुल के पार मन्दिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार निर्मित है जो लगभग 1,000 फुट चौड़ा है। मन्दिर बहुत विशाल है। इसकी दीवारों पर समस्त रामायण मूर्तियों में अंकित है। इस मन्दिर को देखने से ज्ञात होता है कि विदेशों में जाकर भी प्रवासी कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखा था। इनसे प्रकट है कि अंग्कोरथोम जिस कम्बुज देश की राजधानी था उसमें विष्णु, शिव, शक्ति, गणेश आदि देवताओं की पूजा प्रचलित थी। इन मन्दिरों के निर्माण में जिस कला का अनुकरण हुआ है वह भारतीय गुप्त कला से प्रभावित जान पड़ती है। अंग्कोरवात के मन्दिरों, तोरणद्वारों और शिखरों के अलंकरण में गुप्त कला प्रतिबिम्बित है। इनमें भारतीय सांस्कतिक परम्परा जीवित गई थी। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यशोधरपुर (अंग्कोरथोम का पूर्वनाम) का संस्थापक नरेश यशोवर्मा ‘अर्जुन और भीम जैसा वीर, सुश्रुत जैसा विद्वान् तथा शिल्प, भाषा, लिपि एवं नृत्य कला में पारंगत था’। उसने अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात के अतिरिक्त कम्बुज के अनेक राज्य स्थानों में भी आश्रम स्थापित किए जहाँ रामायण, महाभारत, पुराण तथा अन्य भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन अध्यापन होता था। अंग्कोरवात के हिन्दू मन्दिरों पर बाद में बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा और कालान्तर में उनमें बौद्ध भिक्षुओं ने निवास भी किया। अंगकोरथोम और अंग्कोरवात में 20वीं सदी के आरम्भ में जो पुरातात्विक खुदाइयाँ हुई हैं उनसे ख्मेरो के धार्मिक विश्वासों, कलाकृतियों और भारतीय परम्पराओं की प्रवासगत परिस्थितियों पर बहुत प्रकाश पड़ा है। कला की दृष्टि से अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात अपने महलों और भवनों तथा मन्दिरों और देवालयों के खण्डहरों के कारण संसार के उस दिशा के शीर्षस्थ क्षेत्र बन गए हैं। जगत के विविध भागों से हजारों पर्यटक उस प्राचीन हिन्दू-बौद्ध-केन्द्र के दर्शनों के लिए वहाँ प्रति वर्ष जाते हैं।

स्थापत्य[संपादित करें]

भारत में सबसे बड़ा मंदिर कौन है और कहां है? - bhaarat mein sabase bada mandir kaun hai aur kahaan hai?

अंग्कोरवाट मन्दिर परिसर की केन्द्रीय संरचना की विस्तृत योजना (उर्ध्व दृष्य)

खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस मन्दिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारम्भ किया परन्तु वे इसे पूर्ण नहीं कर सके। मंदिर का कार्य उनके भानजे एवं उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में सम्पूर्ण हुआ। मिश्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊँचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर उँचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दिवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौडी खाई है। विद्वानों के अनुसार यह चोल वंश के मन्दिरों से मिलता जुलता है। दक्षिण पश्चिम में स्थित ग्रन्थालय के साथ ही इस मंदिर में तीन वीथियाँ हैं जिसमें अन्दर वाली अधिक ऊँचाई पर हैं। निर्माण के कुछ ही वर्ष पश्चात चम्पा राज्य ने इस नगर को लूटा। उसके उपरान्त राजा जयवर्मन-7 ने नगर को कुछ किलोमीटर उत्तर में पुनर्स्थापित किया। 14वीं या 15वीं शताब्दी में थेरवाद बौद्ध लोगों ने इसे अपने नियन्त्रण में ले लिया।

मन्दिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मन्थन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहाँ के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरम्भ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबन्ध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरान्त सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, बाली और सुग्रीव के द्वन्द्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं। अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरूप हुई है।[3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • तिरुपति

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "What the world's largest Hindu temple complex can teach India's size-obsessed politicians". मूल से 20 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 नवंबर 2017.
  2. "नदियों का अर्थशास्त्र" (एचटीएमएल). जागरण. अभिगमन तिथि २३ फ़रवरी २००९.[मृत कड़ियाँ]
  3. "शिला चित्रों में रूपादित रामायण". टीईआईएल. मूल (एचटीएम) से 16 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २३ फ़रवरी २००९.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • बिहार में बनेगा भारत का अंकोरवाट
  • टाइम ने ‘भारत के अंकोरवाट मंदिर’ को सराहा[मृत कड़ियाँ]
  • Roland Fletcher talks about Angkor

भारत का सबसे बड़ा मंदिर का नाम क्या है?

अंकोरवाट मंदिर.

भारत का सबसे बड़ा मंदिर कौन सा है और कहां है?

श्री रंगनाथस्वामी मंदिर श्रीरंगम में स्थित है और भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। यह सात प्राकर्मों से घिरा हुआ है और इसमें 21 संलग्न गोपुरम हैं। इसमें 49 मंदिर हैं, जो सभी भगवान विष्णु को समर्पित हैं। हालांकि पूरे मंदिर का उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाता है।

बड़ा मंदिर कौन सा है?

अंकोरवाट मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। यह भी एक अजब संयोग है कि हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल अब हिंदुस्तान में नहीं है! कंबोडिया में स्थित यह मंदिर खमेर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा 12 वीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य की राजधानी यशोधरापुरा में बनाया गया था।

दुनिया का सबसे पुराना मंदिर कौन सा है?

यह टोक्यो का सबसे पुराना और महत्वपूर्ण मंदिर हैं। ... सेन्सो-जी.