भरतपुर किसान आंदोलन के प्रमुख नेतृत्व करता कौन थे? - bharatapur kisaan aandolan ke pramukh netrtv karata kaun the?

दोस्तों आज हम इस पोस्ट के माध्यम से भरतपुर किसान आंदोलन की पूरी जानकारी देंगे हम आपको इस पोस्ट के जरिए भरतपुर किसान आंदोलन को विस्तार से बताएंगे तो चलिए दोस्तों आगे बढ़ते हैं ।

 भरतपुर राज्य में तुलनात्मक रूप से जागीरों की संख्या कम थी सबसे बड़ी जागीर बल्लभगढ़ थी। भरतपुर राज्य में खालसा भूमि में लम्बरदार व पटेल भूराजस्व की वसूली के लिए जिम्मेदार होते थे जिनको बदले में कुछ लागें, सुविधाएं व राजस्व मुक्त भूमि मिलती थी।

भरतपुर राज्य में 1900 ई. में पंजाब प्रणाली की तर्ज पर 20 वर्षों के लिए पहला भूमि बंदोबस्त हुआ था। बाद में नवम्बर, 1931 में दूसरा संशोधित सेटलमेंट लागू किया गया। इसमें किसान की शुद्ध उपज का 2/3 भाग सरकार का हिस्सा रखा गया था। आवियाना (सिंचाई कर), मलबा (गाँवाई खर्च) और पटवार फण्ड अलग से लिए जाते थे।

भरतपुर किसान आंदोलन की शुरुआत | Beginning of Bharatpur farmer’s movement :

आंदोलन की शुरुआत 1930-31 की विश्व आर्थिक मंदी, भावों : में गिरावट व नए भूमि बंदोबस्त में राजस्व की ऊँची दरों ने किसानों में असंतोष उत्पन्न कर दिया। लम्बरदारों व पटेलों को भू-राजस्व की वसूली में भारी कठिनाई महसूस होने लगी थी। इसलिए वे ही बढ़े हुए राजस्व के विरुद्ध संघर्ष के लिए आगे आए। ‘किसानों से अपील’ शीर्षक से एक पैम्पलेट निकाला गया, जिसमें नये सेटलमेंट की आलोचना की गई थी।

किसानों की ओर से 2 नवम्बर व 22 नवम्बर, 1931 को कौंसिल ऑफ स्टेट, भरतपुर के सामने राजस्व में कमी करने की दो याचिकाएँ प्रस्तुत की गई। लेकिन कोई ध्यान नहीं दिए जाने पर 23 नवम्बर, 1931 को भरतपुर में भोजी लम्बरदार के नेतृत्व में विभिन्न तहसीलों के करीब 500 किसान एकत्रित हुए। भरतपुर स्टेट कौंसिल ने राजस्व में कुछ रियायत दी, किन्तु इससे किसान संतुष्ट नहीं हुए। 31 दिसम्बर, 1931 को भरतपुर के किसान जमींदारों ने माउंट आबू जाकर एजीजी राजपूताना के सामने अपनी माँगे रखीं।

1932 ई. में भी किसानों का यह आंदोलन चलता रहा। अंत में इस बढ़ते हुए आंदोलन ने कौंसिल ऑफ स्टेट, भरतपुर को पाँच साल के लिए नए भूमि बंदोबस्त को स्थगित करने के लिए विवश कर दिया। तब कहीं जाकर यह आंदोलन शांत हुआ। 

भरतपुर में बेगार के खिलाफ आंदोलन | Agitation against forced labor in Bharatpur :

1938 ई. में भरतपुर के जाटों ने अपनी जाति में सामाजिक और शिक्षा संबंधी सुधार लाने के उद्देश्य से ‘श्रीकृष्ण सिंह बहादुर जाट मेमोरियल’ की स्थापना की। भरतपुर में एक जाट सभा भी स्थापित कर 21 अक्टूबर, 1938 को उसका पंजीकरण कराया गया। ठाकुर देशराज 1940 में भरतपुर जाट सभा में शामिल हुए व उसके मंत्री बने। उन्होंने ‘जाट जगत’ नामक एक से शुरु किया। साप्ताहिक पत्र भी आगरा भरतपुर राज्य में व्यापक रूप से फैली बेगार प्रथा के खिलाफ जनवरी, 1947 में लाल झण्डा किसान सभा, मुस्लिम कांफ्रेंस और भरतपुर प्रजा परिषद ने एक संयुक्त आंदोलन शुरु किया। राज्य की पक्षधर होने के नाते जाट सभा इसमें शामिल नहीं हुई।

5 जनवरी, 1947 को (राजस्थान में प्रजा मंडल आंदोलन- डॉ. विनीता परिहार के अनुसार 4 जनवरी, 1947) लॉर्ड वैवेल, भारत के वायसराय तथा बीकानेर महाराजा सादुल सिंह केवलादेव झील में बतखों के शिकार के लिए आए। इन्होंने कुछ जाटवों और कोलियों को बेगार करने के लिए बुलाया और बतखों को उठाने के लिए सर्दियों में गले तक गहरे पानी में दिन भर खड़े रहने के लिए मजबूर किया। इस अमानवीय व्यवहार का विरोध करते हुए लाल झंडा किसान सभा, मुस्लिम क्रांफ्रेंस और भरतपुर प्रजा परिषद ने सत्याग्रह शुरु कर दिया। उन्होंने ‘बीकानेर नरेश वापस जाओ’ और ‘लॉर्ड वैवेल वापस जाओ’ के नारे लगाए।

भरतपुर किसान आंदोलन संयुक्त सार्वजनिक सभा का आयोजन | Organizing Bharatpur Kisan Andolan Joint Public Meeting :

 इस बेगार के विरोध में भरतपुर शहर में एक संयुक्त सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया। तब भरतपुर सरकार ने इस सभा में गड़बड़ी करने के लिए जाट सभा के कुछ सदस्यों को बुलाया। इसके विरोध में भरतपुर किले के दरवाजे पर धरना दिया गया। भरतपुर सरकार ने 15 जनवरी, 1947 को सेना बुला ली। अनेकों सत्याग्रही घोड़ों के खुरों से कुचले गए और अनेकों लाठीचार्ज में गंभीर रूप से घायल हो गए।

उसी दिन शाम को सरकार की दमन नीति के विरोध में सार्वजनिक सभा बुलाई गई। सरकार ने एक माह के लिए धारा 144 के तहत सभाओं पर रोक लगा दी। सरकार ने प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया।

 18 जनवरी, 1947 को पंडित जवाहर लाल नेहरु के निजी सचिव द्वारकानाथ काचरू भरतपुर आए तथा वहाँ सभी से मिलकर वास्तविक स्थिति की रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू को दी। 28 जनवरी, 1947 को राजपूताना के सभी राज्यों में भरतपुर दिवस मनाया गया।

भरतपुर किसान आंदोलन बेगार विरोधी दिवस | Bharatpur Kisan Andolan Anti Labor Day : 

सरकार की दमन नीति और अनेकों सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी के बावजूद लाल झण्डा किसान सभा, मुस्लिम कांफ्रेंस और प्रजा परिषद आंदोलन चलाती रही। फरवरी, 1947 में बेगार विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया।

5 फरवरी, 1947 को ‘बेगार विरोधी दिवस’ मनाया गया। उसी दिन भुसावर के रमेश स्वामी ने अपने दल के साथ वैर जाकर बेगार विरोधी दिवस मनाने का कार्यक्रम बनाया। किन्तु बस के मालिक ने उन्हें बस में नहीं चढ़ने दिया। इस पर उन्होंने विरोध में सत्याग्रह किया और बस के सामने लेट गए। बस मालिक ने बस चलाकर उन्हें कुचल दिया। रमेश स्वामी वहीं मारे गए। 

भरतपुर किसान आंदोलन का विलय | Merger of Bharatpur farmer’s movement :

20 जुलाई, 1947 को भरतपुर प्रजापरिषद के अध्यक्ष मास्टर आदित्येन्द्र ने आंदोलन वापस ले लिया। 5 अगस्त, 1947 को भरतपुर प्रजा परिषद के सभी गिरफ्तार कार्यकर्ता रिहा कर दिए गए। 18 जनवरी, 1948 को लाल झंडा किसान सभा व मुस्लिम कांफ्रेंस के गिरफ्तार नेताओं के वारंट वापस लेकर उन्हें रिहा कर दिया। इसी के साथ बेगार विरोधी आंदोलन समाप्त हो गया। कुछ समय बाद ही 18 मार्च, 1948 को भरतपुर राज्य का मत्स्य संघ में विलय हो गया।

1931 में भरतपुर किसान आंदोलन के प्रमुख नेतृत्वकर्ता कौन थे?

➤ 23 नवम्बर 1931 को भोजी लंबरदार के नेतृत्व में 500 किसान भरतपुर में एकत्रित हुए।

बूंदी किसान आंदोलन के नेतृत्व करता कौन थे?

सही उत्तर नयनूराम शर्मा है। 1926 में बूंदी किसान आंदोलन हुआ। इसे बरड़ किसान आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है। पंडित नयनूराम शर्मा के नेतृत्व में बरड़ के किसानों ने बैथ-बेगर, लागात और राज्य की अन्य अन्यायपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठाई।

भरतपुर किसान आन्दोलन कब हुआ?

भरतपुर किसान आंदोलन इसकी शुरुआत 1933 में हुई थी।

1932 में अलवर भरतपुर में कौन सा किसान आंदोलन हुआ था?

1931 में डॉ. मोहम्मद हादी के नेतृत्व में राजस्थान का मेव किसान आंदोलन शुरू हुआ। यह अलवर और भरतपुर के क्षेत्र में हुआ था जिसे मेवात क्षेत्र भी कहा जाता है। अध्यक्षता मोहम्मद अली ने की।