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कौन कौन से kaun kaun se, जो , If, कौन | which one - कौनसा kaun sa | which is - जो है jo hai | whichever - इनमें से जो भी inamen se jo bhi कोई भी koi bhi, any, whichever, anybody जो जो, whatever, whatsoever, whichever, whoever | what - क्या kya, जो that, what, जो वस्तु, कैसा kaisa, of what sort, की तरह, के रूप में, जब कि as till what, की भांती, कितना kitna how, जो कुछ kuchh, whatever, whatsoever | how - किस तरह kis tarah, कैसे kaise, how, whence, where, किस प्रकार kis prakar | whose - किसका kiska, जिसका jiska, whereof, जिस किसी का jis kisi ka | who - कौन kaun | whom - किसको kisko, किसे kise, जिसे jise, जिसको jisko where - कहा पे kaha pe, जहां jahan, कहां kahan, जिस जगह jis jagah, किस जगह, किधर kidhar | when - कब kab, जब कि jab ki, किस समय kis samay, उस समय us samay | why - क्यूं कर kyu kar, क्यों kyo, किस लिये kis liye, किस कारण से kis karan se whence | why not - क्यों नहीं kyon nahin | why is that - ऐसा क्यों है aisa kyon hai | whether and whatsoever - चाहे और जो भी हो chahe aur jo bhi ho | meaning - अर्थ, मतलब, प्रयोजन, माने arth, matalab matlab mtlb, prayojan, maane mane, व्याख्या, विवेचन, vyakhya, vivechan, Interpretation, significance, महत्व, महत्ता, अभिप्राय abhipray, signification, तात्पर्य tatpary, अभिप्राय, शब्द shabd, परिभाषा paribhasha, definition, term, explanation | ko kya bolte hai क्या बोलते हैं, ka ulta sabd h उल्टा Reverse प्रतिलोम, pratilom, pratilom, उलटा opposite अपोजिट apojit, synonyms समानार्थक शब्द, पर्यायवाची paryayavachi, Ko kya kahege kahenge को क्या कहेंगे, me kya kehte kahte hai में क्या कहते हैं , hote h राष्ट्र के पुनर्निर्माण के कार्य में भाषा की शिक्षा का विशेष महत्त्व है। भाषा के माध्यम से छात्र ज्ञान-विज्ञान के अनेकानेक विषयों का अध्ययन करता है। यदि छात्र का अधिकार भाषा पर नहीं होता तो वह ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी प्रगति नहीं कर पाता। भाषा ही हमारे चिन्तन का आधार है। किसी भी जनतन्त्र की सफलता उसके नागरिकों के चिन्तन पर निर्भर करती है तथा इस चिन्तन में भाषा की सबल भूमिका रहती है। भारतीय गणराज्य के सात राज्यों में छात्रों की मातृभाषा हिन्दी है और अन्य राज्यों में इसका स्थान राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा के रूप में द्वितीय भाषा का होता है। जिन राज्यों में हिन्दी मातृभाषा के रूप में व्यवहृत है, वहाँ के लोगों का यह विशेष कर्तव्य है कि वे छात्रों के भाषा-ज्ञान को बढ़ाएँ और उन्हें इस बात की प्रेरणा दें कि वे हिन्दी पर अधिकार प्राप्त कर सकें। अन्य किसी भी विषय के पढ़ाने की तुलना में मातृभाषा का पढ़ाना बहुत अधिक जटिल कार्य है। इसकी शिक्षा में इतने विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का समावेश रहता है कि उन्हें विश्लिष्ट करके भिन्न-भिन्न देख पाना सम्भव नहीं है। वास्तव में, मातृभाषा की शिक्षा के उद्देश्यों को ही स्पष्ट रूप में सामने रख सकना बहुत कठिन है। नीचे मातृभाषा शिक्षण के कुछ ऐसे सामान्य सूत्र दिये गये हैं, जिनको ध्यान में रखने से हमें मातृभाषा के प्रति छात्रों की रुचि के विकास में सहायता मिल सकेगी- 1. भाषा का शिक्षण यथासम्भव अनौपचारिक होना चाहिए। पढ़ाने में बहुत अधिक औपचारिकता आ जाने से पढ़ाई जाने वाली भाषा का स्वरूप कृत्रिम हो जाने की सम्भावना है। भाषा को सीखते और सिखाते समय छात्र और अध्यापक दोनों को ही आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो भाषा- विकास में अवश्य ही कहीं कमी है। 2. बाह्य जगत के प्रति प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न होती है और प्रतिक्रिया की विभिन्नता भाषा के प्रयोग में सहज रूप से अभिव्यक्त होती है। छठी कक्षा के छात्रों में व्यक्तित्व की भिन्नता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। 3. किसी भी भाषा की सत्ता शून्य में नहीं रहती। इसके माध्यम से जहाँ छात्रों की भाषा सम्बन्धी योग्यता बढ़ेगी, वहीं सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, पारिवारिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक आदि विषयों में उनकी जानकारी और रुचि बढ़ेगी। भाषा पढ़ते हुए छात्रों को ऐसा लगना चाहिए, मानो वे सभी विषय एक साथ पढ़ रहे हैं। वास्तव में, भाषा के माध्यम से पढ़ाए जाने वाले विषयों में छात्रों की रुचि जितनी ही अधिक होगी, उनका भाषा-ज्ञान उतना ही विकसित होगा। 4. भाषा मानव जीवन की एक बहुत ही सहज प्रक्रिया है। इसे बच्चा अनायास खेल-खेल में सीखने लगता है और समय व परिस्थिति के अनुसार उसकी भाषा का विकास होता चला जाता है। सीखने वाले पर कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती। इसका विकास उसके अन्दर से स्वयं होना चाहिए। अध्यापक उस विकास में सहायता पहुँचा सकते हैं। 5. भाषा के विश्लेषण की योग्यता ऊपर लिखित सभी योग्यताओं का विकास करने में सहायक होती है। इसलिए “भाषा के विश्लेषण की क्षमता छात्रों में प्रारम्भ से ही उत्पन्न करनी चाहिए। भाषा के उपयोगी विश्लेषण को ही व्यावहारिक व्याकरण का नाम दिया जा सकता है। 6. भाषा सम्बन्धी सभी योग्यताओं का वर्गीकरण मोटे तौर पर सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने और सोचने की योग्यताओं में किया जा सकता है। भाषा की अच्छी शिक्षा में इन चारों प्रकार की योग्यताओं का विकास किया जायेगा। इसके लिए आवश्यक होगा कि छात्रों को सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने और विचार करने के अधिक-से-अधिक अवसर दिए जायें। कक्षा में निष्क्रिय श्रोता बने रहकर ही छात्र भाषा के सभी अंगों पर अधिकार प्राप्त नहीं कर सकते। Contents
हिन्दी-शिक्षण के सामान्य उद्देश्यहिन्दी-शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों की चर्चा करते समय इसके मातृभाषा का ही वहाँ पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है। मातृभाषा के रूप में हिन्दी-शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं- 1. छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे उचित भाव-भंगिमाओं के साथ वाचन करके काव्य-कला एवं अभिनय कला का आनन्द प्राप्त कर सकें और साथ ही अपने मानसिक सुख-दुःखात्मक भावनाओं के प्रति सन्तुष्टि प्राप्त कर सकें। 2. क्रमबद्ध विचार प्रणाली और भावाभिव्यंजन में दक्ष बनाना। 3. उनकी शुद्धता एवं गति का निरन्तर विकास करते हुए वाचन का अभ्यास कराना। 4. विभिन्न शैलियों का परिचय कराकर अपने उपयुक्त शैली के विकास में सहायता करना । 5. बालकों को मानव स्वभाव एवं चरित्र के अध्ययन का अवसर प्रदान करना । 6. शुद्ध, सरल, स्पष्ट एवं प्रभावशाली भाषा में छात्र अपने भावों, विचारों एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति कर सकें। 7. ज्ञान प्राप्त करने और मनोरंजन के लिए पढ़ना-लिखना सिखाना, गद्य-पद्य में निहित आनन्द और चमत्कार से परिचय प्राप्त कराना, पुस्तकों में निहित ज्ञान भण्डार का अवलोकन कराना तथा बालक की स्वाध्यायशीलता के प्रति रुचि उत्पन्न करना मातृभाषा शिक्षण के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं। 8. बालकों के शब्दों, वाक्यांशों तथा लोकोक्तियों आदि के कोष में वृद्धि करना। 9. ज्ञान क्षेत्र तथा विवेक का निरन्तर विकास करते हुए चरित्र निर्माण कराना। 10. उन्हें भावानुकूल, भाषा प्रयोग, स्वर निर्माण एवं अंग-संचालन की कला का अभ्यास कराना। 11. उन्हें सत्साहित्य के सृजन की प्रेरणा देना, जिससे वे अपने अवकाश के समय के सदुपयोग द्वारा अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन को सुसंस्कृत एवं सुखी बना सकें। उद्देश्यों का विश्लेषणउपर्युक्त उद्देश्यों को देखने से पता चलता है कि उनमें से कुछ उद्देश्य ज्ञानात्मक हैं तो कुछ कौशलात्मक। कुछ रसात्मक एवं सृजनात्मक हैं तो कुछ का सम्बन्ध अभिवृत्तियों से है। इस प्रकार इन उद्देश्यों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में रख सकते हैं- 1. ज्ञानात्मक, 2. कौशलात्मक, 3. रसात्मक, 4. सर्जनात्मक, 5. अभिवृत्यात्मक। ज्ञानात्मक उद्देश्यज्ञानात्मक उद्देश्यों का तात्पर्य यह है कि छात्रों को भाषा एवं साहित्य की कुछ बातों का ज्ञान देना। प्रायः निम्नलिखित बातों की जानकारी देना ज्ञानात्मक उद्देश्य के अन्तर्गत है- 1. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर निबन्ध, कहानी, उपन्यास, नाटक, काव्य, गीत, गद्यगीत आदि साहित्यिक विधाओं का ज्ञान देना। 2. रचना कार्य के मौखिक एवं लिखित रूपों का ज्ञान देना, जिनमें वार्तालाप, सस्वर वाचन, अन्त्याक्षरी, भाषण, वाद-विवाद, संवाद, साक्षात्कार, निबन्ध, सारांशीकरण, कहानी, आत्मकथा, पत्र, तार आदि सम्मिलित हैं। 3. ध्वनि, शब्द एवं वाक्य-रचना का ज्ञान देना। 4. सांस्कृतिक, पौराणिक, व्यावहारिक एवं जीवनगत अनुभूतियों, गाथाओं, तथ्यों, घटनाओं आदि का ज्ञान देना तथा लेखक की जीवनगत, रचनागत विशेषताओं एवं समीक्षा-सिद्धान्तों का उच्च माध्यमिक स्तर पर ज्ञान देना। यह ज्ञान विषय-वस्तु से सम्बन्धित है। 5. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर छात्रों को हिन्दी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा से भी परिचित कराना चाहिए। ज्ञानात्मक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन निम्नलिखित होंगे-
कौशलात्मक उद्देश्यइन उद्देश्यों का सम्बन्ध भाषा के कौशलों से है, जिनमें पढ़ना-लिखना, सुनना, बोलना, अर्थ ग्रहण करना आदि सम्मिलित हैं। कौशलात्मक उद्देश्यों के अन्तर्गत प्रायः निम्नलिखित बातें आती हैं-
इनमें से दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें क्रम (वाचन, गद्य, पद्य, मौखिक, भाव-प्रकाशन रचना) के उद्देश्यों के लिए अपेक्षित योग्यताओं की चर्चा तत्सम्बन्धी अध्यायों में की जाएगी। सुनने से सम्बद्ध योग्यताओं की चर्चा यहाँ की जा रही है, जिन्हें लक्षण या अपेक्षित परिवर्तन भी कहा जाता है। सुनकर अर्थ ग्रहण करने से अभिप्राय यह है कि छात्र में निम्नलिखित योग्यता आ जाए-
वार्तालाप, वाद-विवाद, प्रवचन, भाषण, आदेश, निर्देश, कविता, आकाशवाणी प्रसारण जैसी सामग्रियों को सुनकर उपर्युक्त योग्यताओं का विकास किया जा सकता है। रसात्मक एवं समीक्षात्मक उद्देश्यइन उद्देश्यों में दो उद्देश्य आते हैं—(1) साहित्य का रसास्वादन और (2) साहित्य की सामान्य समालोचना। इन उद्देश्यों का सम्बन्ध उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं से ही है। सर्जनात्मक उद्देश्यसर्जनात्मक उद्देश्य का अभिप्राय यह है कि छात्रों को साहित्य-सृजन की प्रेरणा देना और उन्हें रचना में मौलिकता लाने की योग्यता का विकास करने के लिए प्रेरित करना है। इस कार्य के लिए निबन्ध, कहानी, संवाद, पत्र, उपन्यास एवं कविता को माध्यम बनाया जा सकता है। इसके शिक्षण के समय छात्रों की मौलिकता लाने की प्रेरणा दी जा सकती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र से जिन योग्यताओं की अपेक्षा की जाती है, वे निम्नलिखित हैं-
अभिवृत्यात्मक उद्देश्यइस उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि छात्रों में उपयुक्त दृष्टिकोण एवं अभिवृत्तियों का विकास किया जाय। हिन्दी-शिक्षण के माध्यम से इस सम्बन्ध में दो उद्देश्यों की प्राप्ति होनी चाहिए-
भाषा और साहित्य में रुचि लेने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र में निम्नलिखित योग्यताओं का विकास आवश्यक-
सवृत्तियों का विकास करने का अर्थ है-छात्रों में आस्था, श्रद्धा, साहित्य प्रेम, देश-प्रेम, मानव-प्रेम, सहृदयता एवं संवेदनशीलता का विकास करना। इसके लिए निम्नलिखित योग्यताओं का विकास आवश्यक है-
हिन्दी-शिक्षण की शैक्षिक प्रक्रिया के निम्नलिखित पाँच महत्त्वपूर्ण अंग हैं-
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