bhasha vigyan arth paribhasha prakriti mahatva;व्याकरण और भाषा का प्रगाढ़ संबंध है व्याकरण से ही शब्दों का प्रादुर्भाव होता है, जो भाषा का स्वरूप निर्धारण करते है। भारतवर्ष मे व्याकरण का इतिहास अति प्राचीन है। पाणिन और उनसे पूर्व अनेक आचार्यों ने भाषा को अनुशासित एवं नियमित करने के लिए सैकड़ों ग्रंथों का प्रणयन किया है। किन्तु भाषा के विद्वानों ने जब यह देखा कि व्याकरण आदि की उपस्थिति रहने तथा उसके कठोर नियमों का पालन होने पर भी काल विशेष के अनुसार भाषा मे ह्रास एवं विकास की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहती है, तो सम्यक अध्ययन के लिये उन्हें एक अन्य शास्त्र की कल्पना करनी पड़ी जो उन्नीसवीं शताब्दी मे स्वतंत्र ग्रंथ के रूप मे 'भाषा विज्ञान' Science of language' या 'Phioooogy' के नाम से अभिहित किया जाने लगा। Show
भाषा विज्ञान की परिभाषा (bhasha vigyan ki paribhasha)डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार," जिस विज्ञान के अन्तर्गत वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा की उत्पत्ति, गठन, प्रकृति एवं विकास आदि की सम्यक् व्याख्या करते हुए, इन सभी के विषय में सिद्धान्तों का निर्धारण हो, उसे भाषा विज्ञान कहते हैं।" डाॅ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार," भाषा विज्ञान से अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका निर्देशन कराना है।" डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार," भाषा-विज्ञान भाषा की उत्पत्ति, उसकी बनावट, उसके विकास तथा उसके ह्रास की वैज्ञानिक व्याख्या करता है।" डाॅ. कर्ण सिंह के अनुसार," भाषा विज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें मानवप्रयुक्त व्यक्त वाक् का पूर्णतः वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।" डॉ. देवी शंकर के अनुसार,"भाषा विज्ञान को अर्थात् भाषा के विज्ञान को भाषिकी कहते हैं। भाषिकी में भाषा का वैज्ञानिक विवेचन किया जाता है।" भाषा विज्ञान के क्षेत्र मे जिन भारतीय मनीषियों ने कार्य किया है, उनमे डाॅ. मंगल देव शास्त्री का नाम भी उल्लेखनीय है। उन्होंने भी अपने 'तुलनात्मक भाषा विज्ञान' नामक ग्रंथ मे भाषा विज्ञान की परिभाषा की है। मंगल देव शास्त्री के अनुसार," भाषा-विज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं जिसमें (अ) सामान्य रूप से मानवी भाषा (ब) किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का और अन्ततः (स) भाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं के वर्गों की पारस्परिक समानताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक विचार किया जाता है।" इस प्रकार देखा जा सकता है कि शास्त्रीजी की यह परिभाषा अत्यन्त विशद्, वैज्ञानिक तथा भाषा विज्ञान के रूप को अधिकाधिक स्पष्ट करने मे पूर्ण सहायक सिद्ध होती है। उन्होंने किसी भाषा विशेष की रचना और ऐतिहासिकता के आधार पर अध्ययन एवं उस भाषा का अन्य प्रादेशिक भाषाओं पर बोलियों के समूहों के साथ तुलानात्मक अध्ययन (Comparative study) पर बल दिया है। अतएव वे जहां भाषा विज्ञान के अंतर्गत एक भाषा विशेष के रचनात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन और विवेचन को आवश्यक मानते हैं, वही भाषाओं के तुलनात्मक महत्व को भी आवश्यक समझते हैं। वस्तुतः भाषा मे तुलनात्मक अध्ययन की यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। क्योंकि इसके द्वारा एक ओर तो भाषाओं के परिवार का अन्वेषण मार्ग सुगम हो जाता है दूसरे उसकी उत्पत्ति की खोज मे भी प्रचुर सहायता मिल जाती है। भाषा विज्ञान की प्रकृति (bhasha vigyan ki prakriti)भाषा विज्ञान कला है विज्ञान जब हम भाषा विज्ञान की प्रकृति की चर्चा करते है। तो उसका प्रत्यक्ष अर्थ यही होता है कि भाषा विज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है या कलात्मक। भाषा विज्ञान की प्रकृति को लेकर समय-समय पर प्रश्न उठाए जाते रहे है एवं उनका समाधान भी कियि जाता रहा है। अधिकांश विद्वान भाषा विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी मे ही रखते है क्योंकि इसके अंतर्गत भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। विज्ञान विज्ञान की अवधारणा है-- किसी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को ही विज्ञान माना जा सकता है अर्थात पूर्ण क्रमबद्ध तथ्यों सिद्धांत को ही विज्ञान कहा जा सकता है। टी. एस. स्मिथ के शब्दों मे," विज्ञान ज्ञान का वह रूप है जो ज्ञान के संगठित निकाय को व्यक्त करने हेतु प्रयोग किया जाता है, जिसमें तथ्य तथा सिद्धांत दोनों समन्वित होते है।" पियर्सन के मतानुसार," तथ्यों का वर्गीकरण, उनके क्रम एवं उनके सापेक्षिक महत्व की मान्यता ही विज्ञान का कार्य है।" कला कला की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए आ.ए. रिचर्डस का मत है कि मनुष्य के दो अनुभव स्त्रोत होते है-- बाह्रा जगत तथा मानसिक अवस्थाएं। बाह्रा जगत विज्ञान से संबंध रखता है। कला का आधार वास्तविक हो यह जरूरी नही है। अगर उसका आधार (वास्तविक भी होता है तो उसका मूल्य) वास्तविकता से नही अंत:भावों तथा अंतर्वेगों को जागृत करने की क्षमता से आकलित किया जाएगा। दोनों मे अंतर डाॅ. बाबूराम सक्सेना ने विज्ञान तथा कला के अंतर को स्पष्ट किया है-- विज्ञान का ध्येय शुद्ध ज्ञान है तथा कला का व्यवहार-ज्ञान, मनोरंजन और उपभोग। कला का प्रतिपादन शास्त्र करता है। उसका ध्येय साधारण व्यवहार होता है तथा उसमे काल एवं देश के अनुसार विकल्प होते रहते है। कोई भी ज्ञान, विज्ञान की श्रेणी मे स्थान पाने से पहले, वाद की अवस्था मे रहता है जबकि उसकी अपवाद रहित सत्ता स्थिर हो जाती है तब उसको विज्ञान कहते है। यह भी कहा जा सकता है कि शाश्वत मूल्य पर रस-बोध से रहित 'ज्ञान' विज्ञान की कोटि मे आता है तथा परिवर्तनशील मूल्य वाला और रसबोध से युक्त 'ज्ञान' कला की कोटि मे आता है। भाषा विज्ञान विज्ञान ज्यादा इस आधार पर विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि भाषा विज्ञान कला की कोटि मे कम, विज्ञान की कोटि मे ज्यादा है। भाषा विज्ञान का संबंध भाषा की ध्वनियों की विवेचना, विश्लेषण एवं पद रचना आदि से है। रस-बोध इसका विषय सर्वथा नही है। साहित्यिक अनुभूति, कल्पना की उड़ान, मनोरंजन आदि इसके लक्ष्य न होकर शुद्ध तात्विक निष्कर्ष पर पहुंचना ही भाषा विज्ञान का लक्ष्य है। अतः भाषा को 'विज्ञान' की कोटि मे रखा जा सकता है। विज्ञान के मूल तत्व विज्ञान के तीन पथ-प्रदर्शक तत्व होते है जो भाषा विज्ञान मे पूर्ण रूप से मिलते है-- 1. सर्वांगीण विवेचन भाषा उपलब्ध सामग्री का सर्वांगीण तथा परिपूर्ण विवेचन करती है। 2. सामंजस्य इसमे किसी एक निष्कर्ष का आगे विरोध नहीं किया जाता। प्राप्त निष्कर्षों का सदा सामंजस्य रखा जाता है। 3. लाघव भाषा विज्ञान मे शब्द लाघत्व तथा लघुतम शब्दावली का ही उपयोग होता है। इन विशेषताओं के आधार पर भाषा विज्ञान को विज्ञान की कोटि मे ही रखा जा सकता है। डाॅ. बाबूराम सक्सेना की मान्यता है कि अब इतना स्थिर है कि भाषा विषयक जिन मूल तत्वों को मनुष्य की बुद्धि ने पकड़ लिया है, वे इस अध्ययन को विज्ञान की श्रेणी मे स्थान पाने का अधिकार बनाते है। अतः इस अध्ययन का नाम भाषा विज्ञान उपयुक्त है, भाषाशास्त्र नही। भाषा विज्ञान की उपयोगिता/महत्वप्रायः कोई भी विषय ऐसा नही होता जिसकी कोई उपयोगिता या महत्व न हो। फिर भाषा-विज्ञान तो भाषा का सर्वांगीण तथा वैज्ञानिक अध्ययन पेश करता है। ऐसी स्थिति मे इसका अध्ययन बहुत ही उपयोगी है। भाषा विज्ञान की उपयोगिता सीमातीत है। वह जितना उपयोग है उतना उपयोगी दूसरा कोई सामाजिक विज्ञान नही है। कारण यह है कि मनुष्य का जीवन लगातार कल्याण तथा विकास की तरफ लगा रहता है। जितना ज्ञान उपयोगी होता है उतना ही ज्यादा समाज का कल्याण होता है। ऐसी स्थिति मे भाषा विज्ञान भी समाज का पर्याप्त कल्याण करता है। इसके अध्ययन तथा इससे प्राप्त लाभ न सिर्फ भाषिक है, वरन् सामाजिक भी है। स्पष्ट ही भाषा समाज से जुड़ी हुई है तथा समाज के अंतर्गत भाषा का महत्व सर्वोपरि है। फिर भाषा विज्ञान के अध्ययन को अनुपयोगी मानना कोई नही नही रखता। विद्वानों ने भाषा विज्ञान के अध्ययन के संबंध मे कई उपयोगी तत्वों को ढूँढ निकाला है। ये तत्व कई रूपो मे हमारे सामने है। ये तत्व ही भाषा विज्ञान के अध्ययन के उपयोग को प्रमाणित करते है। भाषा विज्ञान की उपयोगिता निम्न आधारों से सिद्ध होती है-- 1. किसी भी शास्त्र अथवा विज्ञान की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि वह ज्ञान के क्षेत्र का विस्तार करता है। भाषा-विज्ञान भी इसका अपवाद नही है। इससे हमारी बुद्धिक जिज्ञासा शाश्वत होती है। प्राचीन काल से लेकर आज तक भाषा-विज्ञान का अध्ययन इसी उपयोगिता के आधार पर हो रहा है। 2. भाषा विज्ञान का दूसरा उपयोग तथा लाभ यह है कि इससे भाषा का सम्यक प्राप्त होता है। मानव शरीर तथा भाषा दोनों का उपयोग सर्वविदित है। भाषा विज्ञान हमारे भाषा-संबंधी ज्ञान को बढ़ाता है। 3. भाषा विज्ञान से भाषा की शुद्धता तथा समुचित शब्द प्रयोग की प्रणाली का ज्ञान होता है। भाषा के तत्वों का तथा भाषा के सही रूप का ज्ञान कराने वाला भी भाषा विज्ञान ही है। 4. साहित्य के ज्ञान के लिए भाषा विज्ञान का अध्ययन बहुत जरूरी है। भाषा के निर्माण पक्ष का ज्ञान भाषा-विज्ञान से ही होता है। 5. समाज तथा संस्कृति के ज्ञान हेतु भाषा विज्ञान बहुत उपयोगी है। इसी के द्वारा समाज विशेष की सभ्यता तथा उसके मानसिक विकास की जानकारी हमें होती है। इस तरह भाषा-विज्ञान के अध्ययन से प्रागैतिहासिक काल की सभ्यता तथा संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करते हुए यह समझ लेते है कि प्राचीन-काल मे भाषा मे किस तरह के शब्द का प्रयोग होता था। 6. डाॅ. देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार भाषा विज्ञान वाक् चिकित्सा का जरूरी अंग बन गया है। किसी व्यक्ति के तुतलाने अथवा हकलाने से भाषा विकृत तथा अभिव्यक्त बाधित होती है। इस बाधित अभिव्यक्त के कारण है एवं उन्हें कैसे सुधारा जा सकता है इत्यादि बातों का ज्ञान भाषा विज्ञान से ही होता है। 7. भाषा विज्ञान संचार के माध्यम को विकसित करने मे पर्याप्त मदद मिलती है। आज दूर संचार तथा कई अन्य साधनों के विकसित होने मे भाषा विज्ञान की उपयोगिता प्रमाणित हो रही है। 8. भाषा विज्ञान किसी जाति, समाज अथवा मानवता के किसी काल के मानसिक स्तर का ज्ञान कराता है। इसका संबंध व्याकरण से है। अतः इसकी उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। 9. भाषा विज्ञान से मनुष्य की दृष्टि उदार बनती है। विश्व-बंधुत्व की भावना का विकास भी भाषा विज्ञान से ही होता है। कई भाषा के परिचित व्यक्तियों के परस्पर संपर्क मे आने से मानवीय तथा भाईचारे की भावना को विकसित होने मे मदद मिलती है। स्पष्ट ही भाषा का विज्ञान होने के नाते भाषा विज्ञान मानवीय संबंधों का प्रस्थापक कहा जा सकता है। 10. भाषा विज्ञान विदेशी भाषा को सीखने मे एवं उसकी ध्वनियों, उच्चारण स्थानों तथा शब्दों आदि का ज्ञान सुकर रूप मे प्रदान करता है। अतः भाषा विज्ञान का उपयोग निर्विवाद है। भाषा विज्ञान का क्या तात्पर्य है उसके स्वरूप की विवेचना कीजिए?जिस विज्ञान के अन्तर्गत वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा की उत्पत्ति, गठन, प्रकृति एवं विकास आदि की सम्यक् व्याख्या करते हुए, इन सभी के विषय में सिद्धान्तों का निर्धारण हो, उसे भाषा विज्ञान कहते हैं। ऊपर दी गई सभी परिभाषाओं पर विचार करने से ज्ञात होता है कि उनमें परस्पर कोई अन्तर नहीं है।
भाषा विज्ञान के अंग कौन कौन से हैं?सामग्री. १ ध्वनिविज्ञान. २ पदविज्ञान. ३ वाक्यविज्ञान. ४ अर्थविज्ञान. ५ प्रोक्तिविज्ञान. ६ संदर्भ. ७ भाषाविज्ञान के गौण शाखाएँ ७.१ मनोविज्ञान-भाषाविज्ञान ७.२ इतिहास-भाषाविज्ञान ७.३ भूगोल-भाषाविज्ञान ७.४ समाजविज्ञान-भाषाविज्ञान. ८ संदर्भ. भाषा विज्ञान के कितने अंग होते हैं?बाह्य के अन्तर्गत ध्वनि, पद और वाक्य आते हैं, तथा आन्तरिक के अन्तर्गत अर्थ आता है। इनके आधार पर भाषाविज्ञान के चार प्रमुख अंग (शाखाएँ ) निर्धारित किए गए हैं - ध्वनि (स्वन) विज्ञान, रूपविज्ञान, वाक्यविज्ञान और अर्थविज्ञान | ये सभी अंग अब स्वतंत्र रूप से विकसित हो गए हैं। यहाँ इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है ।
भाषा से आप क्या समझते हैं एवं भाषा के विभिन्न अंगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?भाषा संकेतात्कम है अर्थात् इसमे जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं, उनका किसी वस्तु या कार्य से सम्बन्ध होता है। ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक होती हैं। भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है, अर्थात् मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से संकेतों का उच्चारण करता है, वे ही भाषा के अंतर्गत आते हैं। भाषा यादृच्छिक संकेत है।
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