Solution : बंजर भूमि से तात्पर्य है, ऐसी भूमि जिस पर किसी भी तरह की खेती होना असंभव है। उस भूमि पर खेती की गुणवत्ता समाप्त हो जाना, एवं वहां पर की गई खेती से बिल्कुल भी लाभ प्राप्त नहीं होता एवं हानि प्राप्त होती हैं, तो ऐसी भूमि को बंजर भूमि कहते हैं। यह बंजर भूमि होने के कई कारण हैं। अगर हम एक ही तरह की फसल वर्षों तक गाते रहे तो इससे भूमि के बंजर होने का खतरा होता है। अगर हम किसी भी भूमि पर अफीम जैसे उत्पादन करें तो वहां पर धीरे-धीरे उत्पादन क्षमता कम होने लगती हैं। किसी प्रदूषित भूमि होने पर वहां पर बिल्कुल भी खेती नहीं की जा सकती हैं। Show
ऊसर या बंजर (barren land) वह भूमि है जिसमें लवणों की अधिकता हो, (विशेषत: सोडियम लवणों की अधिकता हो)। ऐसी भूमि में कुछ नहीं अथवा बहुत कम उत्पादन होता है। ऊसर बनने के कारण[संपादित करें]
ऊसर सुधार की विधि (तकनीकी)[संपादित करें]ऊसर सुधार की विधि क्रमबद्ध चरणबद्ध तथा समयबद्ध प्रणाली है इस विधि से भूमि को पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है। सर्वेक्षण[संपादित करें]- बेहतर जल प्रबन्ध एवं जल निकास की समुचित व्यवस्था हेतु सर्वेक्षण। बोरिंग स्थल का चयन[संपादित करें]1.स्थल ऊँचे स्थान पर चुना जाये। 2. जिस सदस्थ के खेत में वोरिंग हो वह बकायादार न हो। 3. एक बोरिंग की दूरी दूसरे से 200 मी0 से कम न हो। मेड़बन्दी[संपादित करें]-यह कार्य बरसात में या सितम्बर अक्टूबर में जब भूमि नम रहती है तो शुरू कर देनी चाहिए। -मेड़ के धरातल की चौड़ाई 90 सेमी ऊंचाई 30 सेमी तथा मेड़ की ऊपरी सतह की चौ0 30 सेमी होनी चाहिए। -मेड़बन्दी करते समय सिंचाई नाली और खेत जल निकास नाली का निर्माण दो खेतों की मेड़ों के बीच कर देना चाहिए। जुताई[संपादित करें]- भूमि की जुताई वर्षा में या वर्षा के बाद सितम्बर अक्टूबर या फरवरी में करके छोड़ दें जिससे लवण भूमि की सतह पर एकत्र न हो। -भूमि की जुताई 2-3 बार 14-20 सेमी गहरी की जाये खेत जुताई से पूर्व उसरीले पैच को 2 सेमी की सतह खुरपी से खुरचकर बाहर नाले में डाल दें। समतलीकरण[संपादित करें]-खेत को कम चौड़ी और लम्बी-2 क्यारियों में बाटकर क्यारियों का समतलीकरण करना चाहिए। -जल निकास नाली की तरफ बहुत हल्का सा ढ़ाल देना चाहिए ताकि खेत का फालतू पानी जल निकास नाली द्वारा बहाया जाये। -मिट्टी की जांच करा ले आवश्यक 50 प्रतिशत जिप्सम की मात्रा का पता चल पाता हैं। सिंचाई नाली, जल निकास नाली तथा स्माल स्ट्रक्चर का निर्माण[संपादित करें]-खेत की ढाल तथा नलकूप के स्थान को ध्यान में रखते हुए सिंचाई तथा खेत नाली का निर्माण करना चाहिए। -सिंचाई नाली भूमि की सतह से ऊपर बनाई जाये, जो आधार पर 30 सेमी गहरी तथा शीर्ष पर 120 सेमी हो। -खेत नाली भूमि की सतह से 30 बनाई जाये, जो आधार पर 30 सेमी गहरी तथा शीर्ष पर 75-90 सेंमी हो। लिंक ड्रेन[संपादित करें]यह 50 सेमी गहरी आधार पर 45 सेमी और शीर्ष पर 145 सेमी और साइड स्लोप 1:1 का होना चाहिए जिप्सम का प्रयोग एवं लीचिंग[संपादित करें]- समतलीकरण करते समय खेत में 5-6 मी चौड़ी और लम्बी क्यारियां बना लें तथा सफेद लवण को 2 सेमी की सतह खुरपी से खुरच कर बाहर नाले में डाल दें। - फिर क्यारियों में हल्का सा पानी लगा दें चार पांच दिन बाद निकाल दें जिससे लवण लीचिंग द्वारा भूमि के नीचे अथवा पानी द्वारा बाहर निकल जायेंगे। - समतलीकरण का पता लगाने के लिये क्यारियों में हल्का पानी लगा दें। तथा हल्की जुताई करके ठीक प्रकार से समतल कर लें। क्यारियों में जिप्सम मिलाना- जिप्सम का प्रयोग करते समय क्यारियां नम हो। - बोरियों को क्यारियों में समान रूप से फैला दें। - इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर की सहायता से भूमि की ऊपरी 7-8 सेमी की सतह में जिप्सम मिला दें और फिर हल्का पाटा लगाकर क्यारियों को समतल कर लें। लीचिंग- क्यारियों में जिप्सम मिलाने के बाद 10-15 सेमी पानी भर दें और उसे 10 दिनों तक लीचिंग क्रिया हेतु छोड़ दें। - 10 दिनों तक क्यारियों में 10 सेमी पानी खड़ा रहना चाहिए। यदि खेत में पानी कम हो जाये तो पानी और भर देना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि क्यारियों में दूसरे-तीसरे दिन पानी भरते रहें। - लीचिंग क्रिया हर हालत में 5 जुलाई तक पूरी हो जाये जिससे 10 जुलाई तक धान की रोपाई की जा सकें। लीचिंग के बाद जल निकासी- 10 दिनों बाद खेत का लवणयुक्त पानी खेत नाली द्वारा बाहर निकाल दें। - लीचिंग के बाद अच्छा पानी लगाकर धान की रोपाई, 5 सेमी पानी भरकर ऊसर रोधी प्रजाति की 35-40 दिन आयु के पौधे की रोपाई कर दें। अन्य मृदा सुधारक रसायन[संपादित करें](अ) अकार्बनिक: जिप्सम, पायराइट, फास्फोजिप्सम, गन्धक का अम्ल (ब) कार्बनिक पदार्थ: प्रेसमड, ऊसर तोड़ खाद, शीरा, धान का पुआव धान की भूसी, बालू जलकुम्भी, कच्चा गोबर और पुआंल गोबर और कम्पोस्ट की खाद, वर्गी कम्पोस्ट, सत्यानाशी खरपतवारी, आदि। (स) अन्य पदार्थ: जैविक सुधार (फसल और वृक्षों द्वारा) ढैचा, धान, चुकन्दर, पालक, गन्ना, देशी, बबूल आदि। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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