Show बाजार का अर्थ एवं वर्गीकरण बाजार का अर्थ:- बोलचाल की आम भाषा में हम यह कह सकते हैं कि बाजार का आशय किसी ऐसे स्थान विशेष से हैं जहां किसी वस्तु या वस्तुओं के क्रेता और विक्रेता इकठ्ठा होते हैं। तथा वस्तुओं को खरीदते और बेचते हैं। परंतु अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ इससे अलग है। अर्थशास्त्र के अंतर्गत बाजार शब्द का आशय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है। जहां तक किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फैले होते हैं तथा उनमे वस्तुओं के खरीदने और बेचने की स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है जिसके कारण वस्तु के मूल्य में एकरूपता की प्रवृत्ति पाई जाती है। उसे बाजार कहते है। अर्थशास्त्र में बाजार का वर्गीकरण:- निम्नलिखित दृष्टिकोण से किया जाता है। 1. क्षेत्र की दृष्टि से 5. वैधानिकता की दृष्टि से 1. क्षेत्र की दृष्टि से:- क्षेत्र की दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण का आधार है कि वस्तु विशेष के क्रेता और विक्रेता कितने क्षेत्र में फैले हुए हैं यह चार प्रकार का होता है। 1.स्थानीय बाजार:-
जब किसी वस्तु के क्रेता विक्रेता किसी स्थान विशेष तक ही सीमित होते हैं तब उस वस्तु का बाजार स्थानीय होता है। 2. प्रादेशिक बाजार:- जब किसी वस्तु के क्रेता विक्रेता केवल एक ही प्रदेश तक पाये जाते है। तो ऐसा बाजार प्रदेशिक बाजार होता है। जैसे:- जवाहर कट धोतियां जैसे:- सोना, चांदी, चाय, गेहूं 2. समय की दृष्टि से:- प्रोफेसर मार्शल ने समय के अनुसार बाजार को 4 वर्गों में बांटा है 1. अति अल्पकालीन बाजार या दैनिक बाजार:- जब किसी वस्तु की मांग बढ़ती है तो उसकी पूर्ति बढ़ाने का समय नहीं मिल पाता तब ऐसे बाजार को अति अल्पकालीन बाजार कहते हैं। जैसे:- शीघ्र नष्ट हो जाने वाली वस्तुएँ दूध, सब्जी मछली आदि। इनका भंडारण ज्यादा समय तक नही किया जा सकता। ये दैनिक बाजार के अंतर्गत आते है। 2. अल्पकालीन बाजार:- अल्पकालीन बाजार में मांग और पूर्ति के संतुलन के लिए कुछ समय मिलता है। किंतु यहां पर्याप्त नहीं होता। पूर्ति में मांग के अनुसार कुछ सीमा तक घटाया या बढ़ाया जाता है। किंतु यह पर्याप्त नहीं है। 3. दीर्घकालीन बाजार:- जब किसी वस्तु का बाजार कई वर्षों के लंबे समय के लिए होता है तो उसे दीर्घ कालीन बाजार कहते हैं। अति दीर्घकालीन बाजार:- इस बाजार में उत्पादकों को पूर्ति बढ़ाने के लिए इतना लंबा समय मिल जाता है कि उत्पादक उपभोक्ता के स्वभाव रुचि फैशन आदि के अनुरूप उत्पादन कर सकता है। 3. बिक्री की दृष्टि से 2. विशिष्ट बाजार:- यह वह बाजार होते हैं जहाँ किसी वस्तु विशेष का क्रय-विक्रय होता है। जैसा:- सराफा बाजार, बजाज बाजार, दाल मंडी, गुड मंडी आदि 3. नमूने द्वारा बिक्री का बाजार:- ऐसे बाजार में विक्रेता को अपना संपूर्ण माल कहीं ले जाना नहीं पड़ता है वह माल को देखकर सौदा तय करते हैं सौदा तय होने पर माल गोदाम से भिजवा देते हैं। लोग अपने घर बैठे ही नमूना देखकर उस में चुनाव करके बहुत सा सामान मंगा लेता है। 4. ग्रेड द्वारा विक्री का बाजार:- इस प्रकार के बाजार में वस्तुओं की बिक्री उनके विशेष नाम अथवा ग्रेड द्वारा होती है खरीददार को ना तो वस्तुओं के नमूने दिखाने पढ़ते हैं और ना ही क्रेता को कुछ बताना पड़ता है। जैसे:- फिलिप्स रेडियो 5. निरीक्षण बाजार:- इस बाजार में निरीक्षण करके उसकी कीमत लगाई जाती है। जैसे:- गाय, बैल, बकरी, घोड़े आदि 6. ट्रेड मार्का बिक्री बाजार:- बहुत से
व्यापारी के माल व्यापार चिन्ह के आधार पर बिकते हैं। उसे ट्रेड मार्का बिक्री बाजार कहते है। बाजार से आप क्या समझते हैं इसके वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए?क्षेत्र की दृष्टि से:- क्षेत्र की दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण का आधार है कि वस्तु विशेष के क्रेता और विक्रेता कितने क्षेत्र में फैले हुए हैं यह चार प्रकार का होता है। 1. स्थानीय बाजार:- जब किसी वस्तु के क्रेता विक्रेता किसी स्थान विशेष तक ही सीमित होते हैं तब उस वस्तु का बाजार स्थानीय होता है।
बाजार से आप क्या समझते हैं?बाज़ार ऐसी जगह को कहते हैं जहाँ पर किसी भी चीज़ का व्यापार होता है। आम बाज़ार और ख़ास चीज़ों के बाज़ार दोनों तरह के बाज़ार अस्तित्व में हैं। बाज़ार में कई बेचने वाले एक जगह पर होतें हैं ताकि जो उन चीज़ों को खरीदना चाहें वे उन्हें आसानी से ढूँढ सकें।
बाजार क्या है बाजार के प्रकार बताइए?उत्पादन के साधनों के संयुक्त प्रयत्नों द्वारा जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है उन्हें बाजार में बेचने के लिये रखा जाता है । जब भी कभी हम कोई वस्तु चाहते हैं, हम बाजार जाते हैं और उस वस्तु को क्रय कर लेते हैं । ये वस्तुएं साबुन, शैम्पू, कपड़े तथा इसी प्रकार की अन्य वस्तुएं हो सकती हैं।
बाजार से आप क्या समझते हैं बाजार की विशेषताएं लिखिए?बाजार की विशेषताएं या आवश्यक तत्व (bazar ki visheshta)
इस प्रकार इसका क्षेत्र स्थान विशेष तक सीमित न होकर विस्तृत होता है। इसका क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकता है। मांग और पूर्ति के बिना किसी वस्तु के बाजार की कल्पना ही नही जा सकती है। वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता दोनों की उपस्थिति ही बाजार बनाती है।
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