पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि गर्भ में बच्चे का मानसिक और व्यवहारिक विकास शुरू हो जाता है क्योंकि वह मां की भावनात्मक स्थिति से प्रभावित होता है। आदिकाल से ही यह प्रथा हिन्दू परंपरा का हिस्सा रही है और उदाहरण के तौर पर देखे तो गर्भसंस्कार का असर
अभिमन्यु, अष्टक्रा और प्रह्लाद जैसे पौराणिक चरित्रों पर बहुत सकारात्मक रूप में पड़ा था, जैसा की कहानियों में स्पष्ट किया गया है की ये अपनी माता के गर्भ से ही ज्ञान अर्जित कर के आये थे। गर्भसंस्कार को बच्चे को लाभ पहुंचाने के लिए माना जाता है, बल्कि यह केवल बच्चे पर केंद्रित नहीं है। ये अभ्यास सुनिश्चित करते हैं कि मां स्वस्थ रहे और मन की स्थिति सकारात्मक हो। गर्भसंस्कार के अभ्यास के जरिए गर्भवती महिलाओं के आहार और जीवन शैली में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह भी पढ़ें :क्या घी-मक्खन खाने से आसानी से होती है डिलीवरी, पढ़ें इसमें कितनी सच्चाई गर्भवती होने पर गर्भ संस्कार कब शुरू करें गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भ संस्कार गतिविधियों की सूची आयुर्वेद के अनुसार, गर्भ संस्कार एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। यह मानसिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी मां की मन:स्थिति को बनाए रखने में मदद करता है। आयुर्वेदिक गर्भसंस्कार गर्भवती मां के लिए ध्यान में रखने के लिए कुछ दिशा-निर्देशों का सुझाव देते हैं। स्वस्थ आहार की आदतें गर्भावस्था में गर्भ संस्कार भोजन में सात्विक भोजन शामिल होता है, जो ताजे तैयार पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसमें मीठे, नमकीन, तीखे, कड़वे और खट्टे जैसे पांच स्वाद शामिल होते हैं। आयुर्वेद में पंचामृत के सेवन की सलाह दी जाती है, जो शक्ति और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए फायदेमंद है। यह एक चम्मच दही, शहद, चीनी और दो चम्मच घी या शुद्ध मक्खन के साथ आठ चम्मच दूध के साथ बनाया जाता है। नशीले पदार्थों से परहेज की सलाह दी जाती है। यह भी पढ़ें : बच्चों के सिर में जुओं से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय सकारात्मक
सोच
प्रॉब्लम फ्री प्रेग्नेंसी के लिए करें ये योगासन योग या किसी हल्के व्यायाम का अभ्यास करना गर्भसंस्कार की सलाह है कि गर्भवती महिलाओं को मानसिक या शारीरिक रूप से कुछ हल्का व्यायाम करना चाहिए, जिसमें मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहें। प्राणायाम आपके शरीर को शांत करने और सांसों पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करते हैं जबकि आप बच्चे के जन्म के दौरान सांस को नियंत्रित ही करती हैं।हल्का व्यायाम लचीलापन बढ़ाता है, रक्त परिसंचरण में सुधार करता है और गर्भावस्था के दौरान पीठ दर्द को कम करता है। विशिष्ट गर्भसंस्कार योगासन बहुत कम लेबर पेन के साथ नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ाते हैं। ध्यान प्रार्थना प्रार्थना गर्भसंस्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और माना जाता है कि यह शिशु के आध्यात्मिक विकास के लिए अच्छा है। प्राचीन शास्त्रों में मंत्र और श्लोक हैं जो अजन्मे बच्चों के लिए फायदेमंद हैं। संगीत सुनना जो मन को शांति देता है शांत या
आध्यात्मिक किताबें पढ़ना मन को तनावमुक्त और खुश रखना गर्भसंस्कार के अनुसार, मां को उन गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए जो उसे तनाव देती हैं। अनुचित तनाव लेना या उन चीजों को देखना या पढ़ना जो गर्भावस्था के दौरान आपको डराने या चिंता करने पर मजबूर कर देते हैं उनसे आपको दूर रहने की सलाह दी जाती है। क्योंकि यह भ्रूण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। कोशिश करें और अपने बच्चे की खातिर नौ महीनों के दौरान शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से संतुष्ट रहें।
इन हेल्थ टिप्स के साथ जल्द हो जाएंगी प्रेग्नेंट गर्भावस्था के दौरान हर्बल घी का सेवन करना आयुर्वेद द्वारा गाय के दूध के घी से बने औषधीय घी की सिफारिश गर्भावस्था के 4 वें, 5 वें, 7 वें, 8 वें और 9 वें महीने के दौरान की जाती है। यह बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए फायदेमंद माना जाता है और भ्रूण में जन्मजात असामान्यताओं को रोकने में मदद कर सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, औषधीय घी से भी मां को पूर्ण रूप से सामान्य प्रसव में मदद मिल सकती है। हालांकि, अपने चिकित्सक से परामर्श करें क्योंकि हर गर्भावस्था समान नहीं है। यह भी पढ़ें : प्रेगनेंसी में क्यों सताता है पसली का दर्द, जानें कारण और इलाज गर्भावस्था के दौरान गर्भसंस्कर के लाभ
स्ट्रेस फ्री प्रेग्नेंसी के लिए करें ये योगासन संगीत सुनना और अजन्मे बच्चे को पढ़ना बाद में आपके बच्चे को एक साउंड स्लीपर बनाने या बेहतर नींद की आदतों को प्रेरित करने में मदद कर सकता है। आपका शिशु अधिक सतर्क, जागरूक और आश्वस्त हो सकता है। शिशु बेहतर तरीके से उत्तेजना का जवाब दे सकता है और अधिक सक्रिय और संतुष्ट हो सकता है। इसके जरिए आपका बच्चा बेहतर तरीके से स्तनपान कर सकता है। यह भी पढ़ें : चार महीने प्रेगनेंट हैं अनुष्का शर्मा, जानिए प्रेगनेंसी के चौथे महीने में कितना होता है शिशु का विकास गर्भसंस्कार प्राचीन प्रथाओं से जुड़ा हुआ है। यह मां के कल्याण और बच्चे के स्वस्थ विकास पर केंद्रित है। लेकिन इससे भी अधिक, गर्भसंस्कार माता और बच्चे के बीच एक चिरस्थायी बंधन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। एक स्वस्थ आहार, सकारात्मक विचार, नियमित व्यायाम और एक प्यार भरा बंधन, गर्भसंस्कार के घटक हैं। गर्भसंस्कार के सरल सिद्धांतों का अभ्यास करें और उनके द्वारा शांति का अनुभव करें। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें बच्चे के जन्म के बाद कौन सा संस्कार किया जाता है?जातकर्म संस्कार का महत्व:
बालक के जन्म पर जातकर्म संस्कार किया जाता है। जन्म पर जो भी कर्म संपन्न किए जाते हैं उसे जातकर्म कहते हैं। इसमें बच्चे को स्नान कराना, मधु या घी चटाना, स्तनपान कराना, आयुप्यकरण आदि कर्म शामिल हैं।
संतान के जन्म के समय कौन सा संस्कार किया जाता है?दूसरा पुंसवन-संस्कार का उद्देश्य बलवान, शक्तिशाली एवं स्वस्थ संतान को जन्म देना है। इस संस्कार से गर्भस्थ शिशु की रक्षा होती है तथा उसे उत्तम संस्कारों से पूर्ण बनाया जाता है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में सुश्रुतसंहिता, यजुर्वेद आदि में तो पुंसवन संस्कार को पुत्र प्राप्ति से भी जोड़ा गया है।
बच्चे के जन्म से पहले कौन से संस्कार किए जाते हैं?इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं। नामकरण के बाद चूड़ाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है।
जन्म के बाद कितने संस्कार होते हैं?कुल 16 तरह के संस्कारों का शास्त्रों में वर्णन है। कुछ संस्कार जन्म से पूर्व ही कर लिए जाते हैं और कुछ जन्म के समय पर और कुछ बाद में किए जाते हैं। अब आपको बताते हैं कौन-से हैं वे 16 संस्कार... धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मनचाही संतान के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है।
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