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झूठ या सच बोलने की प्रवृत्ति पर साइंटिफिक अध्ययन हो चुके हैं. (Pixabay से साभार)गौतम बुद्ध (Gautuam Buddh) ने कहा था कि 'आप जैसा सोचते हैं, वैसे ही हो जाते हैं', साइंस ने इस बात को साबित किया है कि ब्रेन किसी बर्ताव के दोहराव से उसका आदी हो जाता है. झूठ और सच का विज्ञान वाकई दिलचस्प है.
हिटलर (Adolf Hitler) के प्रोपैगैंडा का सिद्धांत था 'झूठ पुख़्ता ढंग से बोलो और बार बार बोलो, तो लोग उसे सच मानने लगेंगे'. लेकिन, नाज़ियों (Nazis) को यह विज्ञान नहीं पता था कि झूठ बोलना, झूठ बोलने वाले का कितना नुकसान करता है. कुछ ही समय पहले वैज्ञानिकों ने स्टडीज़ (Scientific Study) के बाद बताया कि झूठ बोलने से व्यक्ति का कम समय के लिए कोई फायदा भले हो, लंबे समय के लिए बड़ा नुकसान होता है. वहीं, सच बोलने या ईमानदारी बरतने से भले ही लगे कि नुकसान ज़्यादा होगा, लेकिन बड़ा फ़ायदा होता है. जी हां, झूठ और सच बोलने के पीछे पूरा विज्ञान है. समाज, मीडिया और सियासत से हम बहुत हद तक रोज़मर्रा जीवन में जुड़े हैं इसलिए झूठ सुनने या झूठ के बारे में सुनने के आदी हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि लोग झूठ आखिर क्यों बोलते हैं, झूठ या सच बोलने के पीछे विज्ञान क्या कहता है और झूठ बोलने से बचा कैसे जा सकता है... एक के बाद एक पहलू को समझते हैं. ये भी पढ़ें :- Everyday Science : आखिर प्लास्टिक को कितनी बार रीसाइकिल किया जा सकता है? हम झूठ बोलते ही क्यों हैं? यहां यह भी समझना ज़रूरी है कि कोई जन्म से झूठ बोलना नहीं सीखता यानी यह प्राकृतिक टेंडेंसी नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि साथ के वयस्कों, समाज और मीडिया से बच्चे झूठ बोलना सीखते हैं. और बचपन ही सही उम्र है, जब झूठ बोलने की टेंडेंसी पर रोक लगाना ज़रूरी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि झूठ बोलने की आदत से छुटकारा संभव है. कैसे खतरनाक है झूठ बोलना? ये भी पढ़ें :- 'पंडित' और 'सरस्वती' उपाधि पाने वाली पहली महिला क्यों बनी थी ईसाई? याद रखिए कि ऐमिग्डाल हमारे ब्रेन का वो खास हिस्सा है जो डर, चिंता और इमोशनल रिस्पॉंस पैदा करता है, जैसे झूठ बोलने के समय पछतावे, ग्लानि या डर जैसी फीलिंग्स. बार बार झूठ बोलने से इसका रिस्पॉंस देना एक तरह से खत्म होता जाता है. सच
बोलने का विज्ञान क्या है? ये भी पढ़ें :- तेजस नहीं, ये था पहला देसी फाइटर जेट जिसने छुड़ाए थे पाक के छक्के क्या है 'ला नीना' और क्यों इस बार ज़्यादा ठंड पड़ने के हैं आसार? रिलेशनशिप की बात हो या सामाजिक संबंधों की या प्रोफेशनल जगहों की, स्टडी में पाया गया कि हर जगह आप सच्चाई और ईमानदारी से काम लेकर खुश रह सकते हैं. इस साइकोलॉजिकल स्टडी का सार यही निकला कि 'ऑनेस्टी इज़ द बेस्ट पॉलिसी' कहावत बेशक ठीक है. क्या
झूठ से छुटकारा संभव है? इस पूरे वैज्ञानिक अध्ययन का सार यही है कि झूठ बोलने से और ज़्यादा झूठ बोलना आसान होता जाता है. तो दूसरी तरफ, ईमानदारी के साथ भी यही सिद्धांत है. बात प्रैक्टिस की है, कैरेक्टर की है. आपको ही तय करना है कि आप किस अभिव्यक्ति का जोखिम उठाना चाहते हैं.undefined ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| Tags: Science, Study FIRST PUBLISHED : October 25, 2020, 15:00 IST झूठ बोलने से क्या क्या हानियां होती है?झूठ अधिक बोलते हैं उन्हें तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 3. डेलीमेल वेबसाइट पर प्रकाशित शोध की मानें तो ज्यादा झूठ बोलने से गला खराब होने या सिरदर्द जैसी शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
ज्यादा झूठ बोलने से क्या होता है?झूठ बोलना हमें भावनात्मक तौर पर अंदरूनी तरीके से खोखला कर देता है। झूठ बोलने वाले को उसका झूठ एक टूटे हुए काँच के टुकड़े की तरह लगता है जो उसे अंदर ही अंदर काट रहा होता है। झूठ बोल कर प्रशंसा पाना खुद के व्यक्तित्व पर शंका जताने वाला काम है।
झूठ बोलने से कौन सा पाप लगता है?गरुड़ पुराण में भी झूठ बोलने को पाप की श्रेणी में रखा गया है और ऐसे लोगों को नर्क में मिलने वाली यातनाओं के बारे में भी बताया गया है. जबकि आज के समय में लोग बात-बात पर झूठ बोलते हैं और ऐसी स्थिति उनकी मौजूदा जिंदगी और मरने के बाद की स्थिति के लिए भी ठीक नहीं है.
झूठ बोलने की बीमारी का नाम क्या है?एडीएचडी (Attention deficit hyperactivity disorder) दिमाग की वो बीमारी है जो कि आज तक तेजी से बच्चों में बढ़ रही हैय़ इसमें बच्चा छोटी-छोटी बातों पर भी झूठ बोलने लगता है और ये आदत उनमें बढ़ती ही जाती है।
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