बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता में मौन समाधि के लिए कौन बैठा है? - boodhee prthvee ka dukh kavita mein maun samaadhi ke lie kaun baitha hai?

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 16 बूढ़ी पृथ्वी का दुख Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 16 बूढ़ी पृथ्वी का दुख

Bihar Board Class 7 Hindi बूढ़ी पृथ्वी का दुख Text Book Questions and Answers

पाठ से –

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता का भावार्थ Bihar Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न “क” और “ख” के अर्थ ऊपर दिये गये हैं।

Budhi Prithvi Ka Dukh Bihar Board प्रश्न 2.
नदियों के रोने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
पर्यावरण बिगड़ने से नदियाँ सृख रही हैं । नदियाँ कूड़े-कर्कट से पट रही हैं उनके पानी गंदे हो रहे हैं। इस प्रकार नदियों में जल की कमी तथा . नदियों का गन्दा होना ही नदियों के रोने का तात्पर्य है।

पाठ से आगे –

Budhi Prithvi Ka Dukh Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
पृथ्वी को बूढ़ी क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
पर्यावरण में दिन-प्रतिदिन दोष बढ़ रहे हैं जो पृथ्वी के विनाश का सूचना दे रहा है। अर्थात् पृथ्वी विनाश के कग़ाड़ पर बैठी है। इसलिए क्षीण आयु पृथ्वी को बूढी पृथ्वी कहा गया है ।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता का अर्थ Bihar Board प्रश्न 2.
पेड़ का कटकर गिरना एवं पेड़ का टूटकर गिरना में क्या अंतर है?
उत्तर:
जब किसी पेड़ को कुल्हाड़ी या आड़ी से काटा जाता है तो वह गिर जाता है जिसे कटकर गिरना कहते हैं । लेकिन जब पेड़ पर अधिक फल लग जाते हैं अथवा आँधी, तूफान के झोंके में पेड़ टूटकर गिरते हैं जिसे टूटकर गिरना कहा जाता है।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता में Bihar Board प्रश्न 3.
पृथ्वी को प्रदूषण से बचाने हेतु आप क्या कर सकते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी को प्रदूषण से बचाने के लिए हमें पेड़ों की संख्या वृक्षारोपण कर बढ़ानी होगी। पेड़ को रक्षित रखना होगा । नदियों की सफाई पर ध्यान देना होगा। पहाड़ों को टूटने से बचाना होगा। कल-कारखाने से निकलने वाली प्रदूषित गैस से बचने का उपाय करना होगा।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख Summary in Hindi

सरलार्थ – इस कविता में कवयित्री ने दिन-प्रतिदिन दूषित हो रहे पर्यावरण के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

क्या तुमने कभी सुना है,
सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार?
अर्थ – क्या तुमने तेज कुल्हाडी के भय से चिल्लाते हए पेड का चीत्कार सुना है?

कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े हैं तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हजारों-हजार हाथ?
अर्थ – जिस समय पेड़ काटे जाते हैं। पेड़ कुल्हाड़ियों का वार सहता जाता है। उसकी टहनियाँ हिल जाती लेकिन पेड़ कभी अपने बचाव में हाथ उठाते (प्रतीकार करते) नहीं दिखते हैं। क्या तुमने पेड़ के दर्द को सुनने की कोशिश की है?

क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?
अर्थ – जब कोई पेड़ कटकर पृथ्वी पर गिरती है उस समय तुम्हारे हृदय में कभी धमस (कम्पन्न). हुआ है ?

सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुंह ढाँप
किस कदर रोती हैं नदियाँ ?
अर्थ – आज दूपित पर्यावरण के दुष्प्रभाव से नदियाँ जो अंधकार भय के भविष्य के लिए मुख झाँपकर रो रही है। उसके क्रदन को रात के सन्नाटे में __ कभी तुमने सुनने का प्रयास किया है ?

इस घाट पर अपने कपड़े और मवेशियाँ धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य ?
अर्थ – जिस घाट पर तुम कपड़े और मवेशियों को धो रहे हो उसके बारे में कभी तुमने सोचा है कि—घाट पर कोई प्यासा पानी पीता है तथा कोई स्त्री देवता को अर्घ्य भी देती है।

कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?
अर्थ – आज बम विस्फोट के द्वारा पहाड़ तोड़ा जा रहा है क्या कभी तुमने महसूस किया है कि मौन साधक के रूप में शांत चित्त बैठा पहाड़ का दिल किस प्रकार दहलता होगा।

सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में
हथौड़ों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों के चीख ?
अर्थ – टूटे हुए पत्थर भी हथौड़े से पत्थरों को टुकड़े-टुकड़े किये जा रहे हैं (उससे भी पर्यावरण में दोप उत्पन्न हो रहे हैं) क्या कभी तुमने उस पत्थर की पुकार को सुनने की कोशिश की है?

खून की उल्टियाँ करते
देखा है कभी हवा को, अपने घर के पिछवाड़े ?
अर्थ – दूपित हवा से लोग परेशान हैं मानो वह खून की उल्टी कर रहे हों। इस पर कभी तुमने अपने घर के इर्द-गिर्द अनुभव किया है ?

थोड़ा-सा वक्त चुराकर बतियाया है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख ?
अर्थ – पर्यावरण में दोप के कारण विनाश के कगार पर बैठी चुपचाप सहने वाली बूढ़ी पृथ्वी के दुःख के बारे में जानने का प्रयास तुमने किया है ?

अगर नहीं, तो क्षमा करना ।
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर सन्देह है।
अर्थ – अगर तुमने पयावरण में उत्पन्न दोषों तथा पर बढ़ती समस्या के प्रति संवेदनशील नहीं हुए तो कवयित्री कहती क्षमा करना मुझ तो तुम्हारे आदमी होने पर भी संदेह है।

अर्थात् मानव यदि हो तो मानव पर आने वाले खतरा का समझने की कोशिश करो और यावरण का बचाओ।

                
                                                                                 
                            

क्या तुमने कभी सुना है


सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार?

कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े हैं तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हज़ारों-हज़ार हाथ?

क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर?

सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अंधेेरे से मुंह ढांप
किस कदर रोती हैं नदियां

इस घाट अपने कपड़े और मवेशियां धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्घ्य?

कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर?
सुनाई पड़ती है कभी भरी दुपहरिया में
हथौड़ों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख

खून की उल्टियां करते
देखा है कभी हवा को, अपने घर के पिछवाड़े?
थोड़ा-सा वक़्त चुराकर बतियाता है कभी
कभी शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुख?

अगर नहीं, तो क्षमा करना!
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर सन्देह है

साभार- नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द
भारतीय ज्ञानपीठ

4 years ago

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता में मौन समाधि लिए कौन बैठा है?

पहाड़ मौन समाधि लिए बैठा है अर्थात् विशाल पहाड़ की स्थिरता को देखकर लगता है, जैसे वह मौन समाधि में बैठा हो ।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता की कवयित्री कौन है?

निर्मला पुतुल की करुण कविता 'बूढ़ी पृथ्वी का दुख'

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता के अनुसार जल का उपयोग करते समय हमें किसका ध्यान रखना चाहिए?

नदियों की सफाई पर ध्यान देना होगा।

बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता के अनुसार सन्नाटे में नदियाँ क्या करती हैं?

देवताओं को उसी जल से अर्घ्य दिया जाता है। उस अमृत जैसे जल में लोग कूड़े-कचड़े, शहरों की नालियों के गंदे जल तथा मृत जीव-जन्तुओं को बहाकर दूषित कर रहे हैं। लोगों के इस अज्ञानतापूर्ण व्यवहार पर रात के सन्नाटे में कल-कल की आवाज करती नदियाँ रोती सुनाई पड़ती हैं