एक राज्य में कानून कैसे बनता है? - ek raajy mein kaanoon kaise banata hai?

 आज हम जानेंगे की संसद में विधेयक कानून कैसे बनता है व क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है ( Sansand me Vidheyak kanoon kaise banta hai ) Bill kaise pass hota hai Indians website

एक राज्य में कानून कैसे बनता है? - ek raajy mein kaanoon kaise banata hai?


कानून कैसे बनता है | Vidheyak kanoon kaise banta hai

भारत में कानून बनाने का कार्य संसद का होता है और राष्ट्र स्तर पर कानूनों का निर्माण हमारी संसद करती है और राज्य स्तर पर कानूनों का निर्माण राज्य विधायिका करती है विधि निर्माण का कार्य विधेयक प्रस्ताव के द्वारा किया जाता है जानते हैं विधेयक क्या होता है-

विधेयक क्या होता है

विधेयक अँग्रेजी के बिल शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका अर्थ होता है विधेयक या बिल एक ऐसा प्रस्ताव होता है जिसे संसद की विधि बनाने की प्रक्रिया के द्वारा विधि के रूप में रूपांतरित किया जाता है जिसके द्वारा देश के नागरिक शासित होते है,

विधेयक के प्रकार

विधेयक के कुछ प्रकार होते है जिसके आधार पर उसके लिए प्रक्रिया अपनायी जाती है 

  1. साधारण विधेयक
  2. धन विधेयक या वित्त विधेयक
  3. संविधान संसोधन विधेयक

प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पहले संसद की कुछ प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जैसे-  पहला वाचन (विधेयक पर विचार करने की प्रक्रिया को वचन कहा जाता है ), दूसरा वाचन, प्रवर समिति की स्थिति, प्रतिवेदन काल (report stage) तथा तीसरा वाचन और दोनों सदनो में विधेयक पारित हो जाने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है

राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है की दो बार विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए भेज सकता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के बाद विधेयक कानून ( विधि ) बन जाता है ।

प्रस्तुतीकरण तथा प्रथम वाचन

किसी भी विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक महीने पूर्व संसद को इसकी सूचना देनी होती है प्रथम वाचन में विधेयक को पेश करने वाला व्यक्ति विधेयक को पढ़कर सुनता है और इस विधेयक पर भाषण देता है 
और इस विधेयक के बारे में बताता है व इसके महत्व के बारे में बताता है इसे ही विधेयक का प्रथम वाचन कहा जाता है।

द्वितीय वाचन

प्रथम वाचन होने के बाद निश्चित दिन द्वितीय वाचन की तिथि पर प्रस्ताव के मूल विषयों पर चर्चा व इन विषयो से होने वाले प्रभाव पर विस्तार से चर्चा होती है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है की क्या यह प्रस्ताव जनता के लिए लागू होने के बाद लाभप्रद होगा और विचार विमर्श करने के बाद निर्णय निकाला जाता है की क्या इस प्रस्ताव को प्रवर समिति को भेज दिया जाए और जनमत जानने के लिए जनता में प्रसारित कर दिया जाए।

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समिति स्तर

यदि सदन का निर्णय उस विधेयक को किसी विशेष समिति को भेजने का हो तो ऐसा ही किया जाता है। प्रवर समिति विधेयक की धाराओं पर विस्तारपूर्वक विचार करती है और पूरी छानबीन करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट तैयार करती है कि बिल रद्द कर दिया जाए या उसे उसके मौलिक रूप में स्वीकार कर लिया जाए या उसे कुछ संशोधनों के बाद पारित किया जाए। समिति विधेयक के साथ अपनी रिपोर्ट निश्चित समय में सदन को भेज देती है। 

प्रतिवेदन स्तर 

विधेयक के सम्बन्ध में रिपोर्ट तथा संशोधन विधेयक को छपवाकर सदन के सदस्यों में बाँट दिया जाता है। इस स्तर पर विधेयक (कानून ड्राफ्ट) पर व्यापक रूप से विचार होता है। विधेयक की प्रत्येक धारा, समिति की रिपोर्ट तथा उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये संशोधनों पर विस्तारपूर्वक वाद विवाद होता है। वाद विवाद के पश्चात् विधेयक पर मतदान कराया जाता है। यदि बहुमत विधेयक के पक्ष में हो तो विधेयक पारित कर दिया जाता है और कानून बन जाता है अन्यथा विधेयक रद्द कर दिया जाता है। 

तृतीय वाचन

तृतीय वाचन किसी विधेयक की सदन में अन्तिम अवस्था होती इस अवस्था में विधेयक (कानून ड्राफ्ट) की प्रत्येक धारा पर विचार नहीं किया जाता। इसके सामान्य सिद्धांतों पर केवल बहस होती है और इसको भाषा को अधिक-से-अधिक स्पष्ट बनाने के प्रयत्न किये जाते हैं। विधेयक की यह अवस्था औपचारिक है, जिसमें इसके रद्द होने की सम्भावना बहुत कम होती है। 

दूसरे सदन में विधेयक

जब विधेयक (कानून ड्राफ्ट) एक सदन में पारित हो जाता है तो वह दूसरे सदन में भेजा जाता है। विधेयक को यहाँ पर भी उन्हीं अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन उसे रद्द कर दे या छ: महीने तक उस पर कोई कार्यवही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो पहले सदन की स्वीकृत न हो तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। दोनों सदनों के  उपस्थित सदस्य तथा मत देने वाले सभी सदस्यों के बहुमत से ही विधेयक पारित होता है, क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों से अधिक होती है, इसलिए संयुक्त बैठक ये लोकसभा की इच्छानुसार ही निर्णय होने की सम्भावना होती है । 

राष्ट्रपति की अनुमति

जब कोई विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है हो उस पर राष्ट्रपति को अनुमति लेना आवश्यक है, अन्यथा कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता।  जब कोई विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति या तो विधेयक पर अपनी अनुमति दे देते हैं अथवा वे अपने संशोधन सहित विधेयक क्रो संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज देते हैं। परन्तु यदि संसद उसे पुन: पारित कर देती है तो वह पुन: राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है तथा राष्ट्रपति उस विधेयक (कानून ड्राफ्ट) पर अपनी अनुमति देते हैं और वह विधेयक कानून बन जाता है। 

राज्य में कानून कौन बनाता है?

Solution : भारत में कानून बनाने का काम संसद का होता है और राष्ट्र स्तर पर कानूनों का निर्माण हमारी संसद करती है। राज्य स्तर पर कानूनों का निर्माण राज्य विधायिका करती है विधि निर्माण का कार्य विधेयक प्रस्ताव के द्वारा किया जाता है।

कानून का निर्माण कैसे होता है?

कानून बनाना संसद का प्रमुख काम माना जाता है। इसके लिए पहल अधिकांशतया कार्यपालिका द्वारा की जाती है। सरकार विधायी प्रस्‍ताव पेश करती है। उस पर चर्चा तथा वाद विवाद के पश्‍चात संसद उस पर अनुमोदन की अपनी मुहर लगाती है।

भारत में एक बिल कैसे कानून बनता है?

दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित बिल पर, राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं। लोकसभा सचिवालय (सेक्रेटरिएट) धन बिल या सदनों की संयुक्त बैठक में पारित बिल के विशिष्ट उदाहरण में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करता है। राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद ही कोई बिल अधिनियम बनता है।

राज्य में कानून बनाने के बाद किसका हस्ताक्षर होता है?

जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है ।