गणित के प्रश्नो को हल करने के लिए गणित के सूत्र बहुत महत्वपूर्ण होते है इसलिए इस पेज पर हमने गणित के सभी सूत्रों का संग्रह किया है। Show
यदि आप गणित के सभी अध्याय को एक-एक करके विस्तार से पढ़कर समझना चाहते है तो गणित के पेज को देखे। अब चलिए गणित के सूत्रों को पढ़कर समझते है।
गणित के सूत्र1. संख्या पद्धति के सूत्र(i). प्राकृत संख्याएँ (Natural Number) :- गिनती में उपयोग की जाने वाली सभी खंख्याएँ प्राकृतिक संख्या कहलाती हैं। जैसे :- 1, 2, 3, 4, 5,……… (ii). सम संख्याएँ (Even Number) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं, उन्हें सम संख्या कहा जाता हैं। जैसे :- 2, 4, 6, 8, 10,……… (iii). विषम संख्याएँ (Odd Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः से विभाजित न हो उन्हें विषम संख्या कहते हैं। जैसे :- 1, 3, 5, 7, 9,……… (iv). पूर्णांक संख्याएँ :- धनात्मक त्रणात्मक और जीरों से मिलकर बनी हुई संख्याएँ पूर्णांक संख्या होती हैं। जैसे :- -3, -2, -1, 0, 1, 2,……… पूर्णांक संख्याएँ तीन प्रकार की होती हैं।
(v). पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) :- प्राकृतिक संख्याएँ में 0 से सामिल कर लेने से पूर्ण संख्या बनती हैं। जैसे :- 0, 1, 2, 3, ……… (vi). भाज्य संख्या (Composite Numbers) :- ऐसी प्राकृत संख्या जो स्वंय और 1 से विभाजित होने के अतिरिक्त कम से कम किसी एक अन्य संख्या से विभाजित हो उन्हें भाज्य संख्या कहते हैं। जैसे :- 4, 6, 8, 9, 10, 12, ……… (vii). अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्याएँ जो सिर्फ स्वंय से और 1 से विभाजित हो और किसी भी अन्य संख्या से विभाजित न हो उन्हें अभाज्य संख्याएँ कहेंगे। जैसे :- 2, 3, 5, 11, 13, 17, ……… (viii). सह अभाज्य संख्या (Co-Prime Numbers) :- कम से कम 2 अभाज्य संख्याओ का ऐसा समूह जिसका (HCF) 1 हो उसे अभाज्य संख्या कहाँ जाता हैं। जैसे :- (5, 7) , (2, 3) (ix). परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) :- ऐसी सभी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में लिखा जा सकता हैं उन्हें परिमेय संख्याएँ कहते है (q हर का मान जीरो नहीं होना चाहिए) जैसे :- 5, 2/3, 11/4, √25 (x). अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers) :- ऐसी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में नही लिखा जा सकता और मुख्यतः उन्हें (”√”) के अंदर लिखा जाता हैं और कभी भी उनका पूर्ण वर्गमूल नहीं निकलता ऐसी संख्याओं को अपरिमेय संख्या कहाँ जाता हैं। जैसे :- √3, √105, √11, √17, नोट :- π एक अपरिमेय संख्या हैं। (xi). वास्तविक संख्या (Real Numbers) :- परिमेय और अपरिमेय संख्याओ को सम्मलित रूप से लिखने पर वास्तविक संख्याएँ प्राप्त होती हैं। जैसे :- √3, 2/5, √15, 4/11, (xii). अवास्तविक संख्या (Imaginary Numbers) :- ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल लेने पर जो संख्याएँ बनती हैं, उन्हें अवास्तविक संख्या कहते हैं। जैसे :- √-2, √-5
महत्वपूर्ण बिंदु :
अधिक जानकारी के लिए संख्या पद्धति की पोस्ट पढ़िए। 2. लघुत्तम समापवर्तक एवं महत्तम समापवर्तक के सूत्रलघुत्तम समापवर्त्य :- दो या दो से अधिक संख्याओं का ‘लघुत्तम समापवर्त्य’ वह छोटी-से-छोटी संख्या है, जो उन दी गई संख्या में से प्रत्येक से पूर्णतया विभाजित हो जाती है। जैसे :- 3, 5, 6 का लघुतम समापवर्त्य 30 है, क्योंकि 30 को ये तीनों संख्याएँ क्रमशः विभाजित कर सकती हैं। समापवर्त्य (Common Multiple) :- एक संख्या जो दो या दो से अधिक संख्याओं में । से प्रत्येक से पूरी-पूरी विभाजित होती हो, तो वह संख्या उन संख्याओं की समापवर्त्य कहलाती है। जैसे :- 3, 5, 6 का समापवर्त्य 30, 60, 90 आदि हैं। महत्तम समापवर्तक :- ‘महत्तम समापवर्तक’ वह अधिकता संख्या है, जो दी गई संख्याओं को पूर्णतया विभाजित करती है। जैसे :- संख्याएँ 10, 20, 30 का महत्तम समापवर्तक 10 है। समापवर्तक (Common Factor) :- ऐसी संख्या जो दो या दो से अधिक संख्याओं में से प्रत्येक को पूरी-पूरी विभाजित करें। जैसे :- 10, 20, 30 का समापवर्तक 2, 5, 10 है। अपवर्तक एवं अपवर्त्य (Factor and Multiple) :- यदि एक संख्या m दूसरी संख्या n को पूरी-पूरी काटती है, तो m को n का अपवर्तक (Factor) तथा n को m का अपवर्त्य (Multiple) कहते हैं। लघुत्तम समापवर्त्य ज्ञात करने की विधियाँगुणनखण्ड विधि : दी हुई संख्याओं के अभाज्य गुणनखण्ड ज्ञात कर लेते हैं तथा गुणनखण्डों को घात से प्रदर्शित करते हैं, तत्पश्चात् अधिकतम घात वाली संख्याओं का गुणा करते हैं। जैसे :- 16, 24, 40, 42 का ल.स. 16 = 2 × 2 × 2 × 2 = 24 ल.स. = 24 × 3 × 5 × 7 = 16 × 105 = 1680 भाग विधि : इस विधि को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। उदाहरणार्थ: 36 , 48 और 80 का ल. स. अतः 36 , 48 और 80 का ल. स. = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5 = 720 इसमें संख्याओं को उभयनिष्ठ अभाज्य भाजकों द्वारा विभाजित किया जा सकता है तथा इस क्रिया की पुनरावृत्ति तब तक करते हैं जब तक शेषफल एक प्राप्त हो। इन अभाज्य भाजकों का गुणनफल ही अभीष्ट ल.स. होगा। महत्तम समापवर्तक ज्ञात करने की विधियाँ गुणनखण्ड विधि : इस विधि में दी गई सभी संख्याओं के रूढ़ गुणनखण्ड करते हैं। तथा जो संख्याएँ सभी में सर्वनिष्ठ हों उनका गुणा करते हैं। जैसे :- 28, 42 और 98 का म.स. – 28 = 2 × 2 × 7 भाग विधि : इस विधि में दी गई संख्याओं में से सबसे छोटी संख्या से उससे बड़ी संख्या में भाग देते हैं, तत्पश्चात् बचे शेष से भाजक में भाग दिया जाता है और यह क्रिया तब तक करते हैं। जब तक शून्य शेष बचे, तब अन्तिम भाजक ही दी हुई संख्याओं का म.स. होगा यदि संख्या तीन हैं, तो प्राप्त म.स. तथा तीसरी संख्या के साथ यही क्रिया करते हैं। आगे इसी तरह करते जाते हैं। जैसे :- 36, 54, 81 का म.स. – सर्वप्रथम 36 तथा 54 का म.स. इस विधि से निकालते हैं। 36) 54 (1 अब, 18 तथा 81 का म.स. निकालते हैं। 18) 81 (4 दशमलव संख्याओं का ल. स. तथा म. स. निकालना दी गई सभी दशमलव संख्याओं को परिमेय संख्या p/q के रूप में लिखते हैं तथा भिन्नों के आधार पर उनका ल.स. या म.स. ज्ञात करते हैं। जैसे :- 7, 10.5 एवं 1.4 का म. स. भिन्नों का म.स.प. एवं ल.स.प. :
महत्तम समापवर्तक और लघुत्तम समापवर्तक के सूत्र :
अधिक जानकारी के लिए महत्तम समापवर्तक और लघुत्तम समापवर्तक पोस्ट जरूर पढ़िए। 3. सरलीकरण के सूत्रकिसी गणितीय व्यंजक को साधारण भिन्न या संख्यात्मक रूप में बदलने की प्रक्रिया ‘सरलीकरण’ कहलाती है। इसके अन्तर्गत गणितीय संक्रियाओं जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग आदि को BODMAS क्रम के आधार पर हल करते हुए दिए गए व्यंजक का मान प्राप्त किया जाता है। कोष्ठक चार प्रकार के होते हैं – ― → रेखा कोष्ठक (Line Bracket) ( ) → छोटा कोष्ठक (Simple or Small Bracket) { } → मझला कोष्ठक (Curly Bracket) [ ] → बड़ा कोष्ठक (Square Bracket) इनको इसी क्रम में सरल करते हैं । यदि कोष्ठक के पहले ऋण चिह्न हो, तो सरल करने पर अन्दर के सभी चिह्न बदल जाते हैं। BODMAS का नियम :- BODMAS में कोष्ठक (Bracket), का (of), भाग (Division), गुणा (Multiplication), जोड़ (Addition), तथा घटाव (Subtraction) की क्रिया एक साथ कि जाती हैं। अतः BODMAS संबंधी प्रश्नों को हल करने के लिए प्रश्नों को उपर्युक्त दिए गए क्रम में ही हल करें अर्थात सबसे पहले Bracket की क्रिया करते हैं। Bracket में सबसे पहले रेखा कोष्ठक ( – ) फिर छोटा कोष्ठक ( ) फिर मझोला कोष्ठ { } फिर बड़ा कोष्ठक [ ] को हल करते हैं। तब का (of) की क्रिया, फिर भाग (÷) की क्रिया, फिर गुणा (×) की क्रिया तथा अंत में घटाव की क्रिया करते हैं उपर्युक्त क्रियाओं में से एक या अधिक के अनुपस्थित रहने पर क्रम में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं। B → कोष्ठक ( Bracket ) रेखा कोष्ठक, छोटा कोष्ठक, मझला कोष्ठक, बड़ा कोष्ठक O → का ( Of ) D → भाग ( Division ) M → गुणा ( Multiplication ) A → योग ( Addition ) S → अन्तर ( Subtraction ) अधिक जानकारी के लिए BODMAS का नियम की पोस्ट जरूर पढ़िए। उपरोक्त क्रम के अलावा व्यंजकों के सरलीकरण में विभिन्न बीजगणितीय सूत्रों का भी प्रयोग किया जाता है। सरलीकरण की महत्वपूर्ण सर्वसमिकाएं : उभयनिष्ट गुणक : c(a+b) = ca + cb द्विपद का वर्ग:
दो पदों के योग एवं अन्तर का गुणनफल : a² – b² = (a+b) (a-b) अन्यान्य सर्वसमिकाएँ(घनों का योग व अंतर) :
द्विपद का घन :
बहुपद का वर्ग :
दो द्विपदों का गुणन जिनमें एक समान पद हो : (x + a )(x + b ) = x² + (a + b )x + ab गाउस (Gauss) की सर्वसमिका : a³ + b³ + c³ – 3abc = (a+b+c) (a² + b² + c² – ab -bc – ca) लिगेन्द्र (Legendre) सर्वसमिका
लाग्रेंज (Lagrange) की सर्वसमिका
अधिक जानकारी के लिए सरलीकरण की पोस्ट जरूर पढ़िए। 4. वर्ग एवं वर्गमूल के सूत्र
यदि n कोई धन पूर्णांक है, तो (n + 1)² – n² = ( n + 1 + n ) ( n + 1 – n ) दो अंकों की संख्या जिसके इकाई स्थान पर 5 हो , का वर्ग निम्न प्रकार करते हैं (25)² = 2 × 3 ( सैकड़े ) + 52 वर्ग एवं वर्गमूल से सम्बंधित सर्वसमिकाएँ:
अधिक जानकारी के लिए वर्ग एवं वर्गमूल के सूत्र जरूर पढ़े। 5. औसत के सूत्रदो या दो से अधिक सजातीय पदों का ‘औसत’ वह संख्या है, जो दिए गए पदों के योगफल को उन पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है। इसे ‘मध्यमान’ भी कहा जाता है। औसत = सभी राशियों का योग/राशियों की संख्या सभी राशियों का योग = औसत × राशियों की संख्या जैसे :- x1 , x2 , x3 , . . . . . . xn पदों का औसत = x1 + x2 + x3 + . . . . . . xn/n औसत के सूत्र
संख्याओं के श्रेणी का अंतर समान हो, तो
औसत के गुण :
अधिक जानकारी के लिए औसत की पोस्ट पढ़े। 6. बट्टा के सूत्रजब सामान्यतः कोई व्यापारी अपने ग्राहक को कोई समान बेचता हैं, तो अंकित मूल्य पर कुछ छूट देता हैं, इसी छूट को बट्टा कहते हैं बट्टे का सामान्य अर्थ छूट से हैं। Note : बट्टा सदैव अंकित मूल्य पर दिया जाता हैं। विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य – बट्टा यदि किसी वस्तु को बेचने पर r% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो वस्तु का विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100-r)/100 बट्टा के महत्वपूर्ण तथ्य : 1. यदि किसी वस्तु के अंकित मूल्य पर क्रमशः r% व R% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो
2. यदि दो बट्टा श्रेणी r% तथा R% हो, तो
3. यदि किसी वस्तु पर r% छूट देकर भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
4. यदि किसी वस्तु पर r% छूट देने के उपरान्त भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
5. अंकित मूल्य = विक्रय मूल्य × 100 / (100% – %) × 100 / (100% – %) 100 / (100% – % )………. 6. विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100% – %)/100 × (100% – %)/100 × (100% – %)/100× ………. अधिक जानकारी के लिए बट्टा की पोस्ट पढ़े। 7. प्रतिशत के सूत्रप्रतिशत का अर्थ (प्रति + शत) प्रत्येक सौ पर या 100 में से x प्रतिशत का अर्थ 100 में से x x% = x/100 भिन्न x/y को प्रतिशत में बदलने के लिए भिन्न को 100 से गुणा करते है। किसी वस्तु का x/y भाग = उस वस्तु का (x/y) × 100
अन्य महत्वपूर्ण सूत्र :
जनसंख्या पर आधारित सूत्र: माना किसी शहर की जनसंख्या x है तथा प्रतिवर्ष R% की दर से बढ़ती हैं तब
मशीनों के अवमूल्यन संबंधी: यदि किसी वस्तु का वर्तमान मूल्य x है तथा इसके अवमूल्यन ( मूल्य कम होना ) की दर R% वार्षिक है, तो n वर्ष बाद मशीन का मूल्य = p(1 – R/100)ⁿ जहाँ वृद्धि के लिए + एवं कमी के लिए – चिन्ह का उपयोग किया जाएगा। n वर्ष पूर्व मशीन का मूल्य = p/(1 + R/100)ⁿ 5%1/2010%1/1020%1/525%1/430%3/1040%2/550%1/260%3/570%7/1075%3/480%4/590%9/10100%1अधिक जानकारी के लिए प्रतिशत पोस्ट को पढ़े। 8. लाभ हानि के सूत्रक्रय मूल्य :- जिस मूल्य पर कोई वस्तु खरीदी जाती हैं, उस मूल्य को उस वस्तु का क्रय मूल्य कहते हैं। विक्रय मूल्य :- जिस मूल्य पर कोई वस्तु बेची जाती हैं, उस मूल्य को उस वस्तु का विक्रय मूल्य कहते हैं। लाभ :- यदि किसी वस्तु का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से अधिक हो, तो उनके अंतर से प्राप्त धनराशि को लाभ कहते हैं। हानि :- यदि किसी वस्तु का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से कम हो,तो उनके अंतर से प्राप्त धनराशि को हानि कहते हैं। प्रतिशत लाभ या प्रतिशत हानि:- 100 रुपए पर जितना लाभ अथवा हानि होती हैं उसे प्रतिशत लाभ अथवा हानि कहते हैं, लाभ अथवा हानि का प्रतिशत हमेशा क्रय मूल्य पर ही ज्ञात किया जाता हैं। लाभ और हानि के सूत्र :
अधिक जानकारी के लिए लाभ और हानि जरूर पढ़े। 9. अनुपात समानुपात के सूत्रअनुपात (Ratio) :- समान प्रकार की दो राशियों / वस्तुओं के बीच सम्बन्ध को अनुपात कहते हैं। दो राशियों का अनुपात एक भिन्न के बराबर होता है , अतः यह प्रदर्शित करता है कि एक राशि दूसरी राशि से कितनी गुनी कम या अधिक है। माना, एक राशि x तथा दूसरी राशि y है, तब इनके बीच अनुपात = x : y अनुपात के प्रकार
(i). दो समान अनुपातों के मिश्रित अनुपात को वर्गानुपात कहते हैं। (ii). किसी अनुपात के वर्गमूल को वर्गमूलानुपाती कहते हैं। (iii). किसी अनुपात के तृतीय घात को घनानुपाती कहते हैं। (iv). किसी अनुपात के घनमूल को घनमूलानुपाती कहते हैं। (v). किसी अनुपात के उल्टे को व्युत्क्रमानुपाती कहते हैं, (vi). जब दो अनुपात परस्पर समान होते हैं , तो वे समानुपाती (Proportional) कहलाते हैं। (vi). विलोमानुपाती उस अनुपात को कहते हैं जो स्थान बदल लें अर्थात् a/b = c/d या b/a = d/c अनुपात के कुछ विशेष गुण :
अधिक जानकारी के लिए अनुपात और समानुपात की पोस्ट पढ़े। 10. साधारण ब्याज के सूत्र
अधिक जानकारी के लिए साधारण ब्याज जरूर पढ़िए 11. चक्रवृद्धि ब्याज के सूत्र
अधिक जानकारी के लिए चक्रवृद्धि ब्याज जरूर पढ़िए। 12. क्षेत्रमिति के सूत्रत्रिभुज ∆ (Triangle) :
आयत (Rectangle) :
वर्ग (Square) :
घन (Cube) :
बेलन (Cylinder) :
शंकु (Cone) :
शंकु का छिन्नक (Frastrum) :
समलम्ब चतुर्भुज (Trapezium Quadrilateral) :
बहुभुज (Polygon) :
घनाभ (Cuboid) :
गोला (Sphere) :
अर्द्धगोला (Semipsphere) :
वृत्त (CIRCLE) :
आयतन के सूत्र :
क्षेत्रमिति की अधिक जानकारी के लिए क्षेत्रमिति की पोस्ट पढ़े। 13. समय दूरी और चाल के सूत्रचाल (Speed) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई समय में चली गई दूरी, चाल कहलाती हैं। चाल का सूत्र = चाल = दूरी / समय चाल का मात्रक (Unit of Speed) :- चाल का मात्रक मीटर/सेंटीमीटर अथवा किलोमीटर/घण्टा होता हैं। यदि चाल मीटर/सेंटीमीटर में हैं, तो
यदि चाल किलोमीटर/घण्टा में हैं, तो
दूरी (Distance) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा स्थान परिवर्तन को तय की गई दूरी कहा जाता हैं। दूरी का सूत्र :-
समय (Time) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई चाल से चली गई दूरी, उसके समय को निर्धारित करती हैं। समय का सूत्र :-
सापेक्ष चाल (Relative Speed) :- यदि दो वस्तुएं क्रमशः a किलोमीटर/घण्टा व b किलोमीटर/घण्टा की चाल से चल रही हैं, तब
रेलगाड़ी और प्लेटफॉर्म (Train and Platform) :- जब कोई रेलगाड़ी किसी लम्बी वस्तु/स्थान (प्लेटफार्म/पुल/दूसरी रेलगाड़ी) को पार करती हैं, तो रेलगाड़ी को अपनी लम्बाई के साथ-साथ उस वस्तु की लम्बाई के बराबर अतिरिक्त दूरी भी तय करनी पड़ती हैं,
महत्वपूर्ण तथ्य : (a). चाल को किलोमीटर/घण्टा से मीटर/सेकेण्ड में बदलने के लिए 5/18 से गुणा तथा चाल को मीटर/सेकेंड से किलोमीटर/घण्टा में बदलने के लिए 18/5 से गुणा करते हैं। औसत चाल = (कुल चली गई दूरी) / (कुल लगा समय) (b). यदि कोई वस्तु निश्चित दूरी को x किलोमीटर/घण्टा तथा पुनः उसी दूरी को y किलोमीटर/घण्टा की चाल से तय करती हैं, तो पूरी यात्रा के दौरान उसकी औसत चाल = (2 × x × y) / (x + y) किलोमीटर/घण्टा होगी। (c). यदि दो वस्तु एक ही दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान तथा समय समान हैं, तो उनकी सापेक्ष चाल (a – b) किलोमीटर/घण्टा होगी। (d). यदि दो वस्तु विपरीत दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान व समय समान हैं, तो उनकी सापेक्षिक चाल (a + b) किलोमीटर/घण्टा होगी। (e). यदि A तथा B चाल में अनुपात a : b हो तो एक ही दूरी तय करने में इनके द्वारा लिया गया समय का अनुपात b : a होगा। (f). जब एक व्यक्ति A से B तक x किलोमीटर/घण्टे की चाल से जाता हैं तथा t₁ समय देर से पहुँचता हैं तथा जब वह y किलोमीटर/घण्टे की चाल से चलता हैं, तो t₂ समय पहले पहुँच जाता हैं, तो गणित में कुल कितने सूत्र होते हैं?इसमें १६ मूल सूत्र ,तथा 13 उपसूत्र दिये गये हैं।
गणित के सूत्र याद कैसे करना चाहिए?अंकगणित पर आधारित सभी फार्मूला. ल.स. = ( पहली संख्या × दूसरी संख्या) ÷ HCF.. ल.स × म.स. = पहली संख्या × दूसरी संख्या. पहली संख्या = (LCM × HCF) ÷ दूसरी संख्या. म.स. = ( पहली संख्या × दूसरी संख्या) ÷ LCM.. दूसरी संख्या = (LCM × HCF) ÷ पहली संख्या. गणित में सूत्र कैसे लिखते हैं?किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा करने पर जो गुणनफल प्राप्त होता है, उस गुणनफल को उस संख्या का वर्ग कहते हैं तथा उस संख्या को उस गुणनफल का वर्गमूल कहते हैं।. किसी संख्या n के वर्ग को n2 से प्रदर्शित किया जाता है, जबकि वर्गमूल को √n से प्रदर्शित किया जाता है।. गणित में तेज कैसे बने?गणित में तेज कैसे बने?. Formula याद करें गणित कठिन लगने का एक महान कारण यह है की कई बच्चें को फॉर्मूला ही याद नही रहते हैं। ... . नियमित अभ्यास है जरूरी मैथ में तेज बनने के लिए रोजाना अभ्यास करना बहुत ही अनिवार्य है। ... . नोट्स बनाएँ ... . शिक्षक से मदद लें ... . प्रश्नों की पूर्वावलोकन करें. |