प्रश्न 3-1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था? Show उत्तर : रात के अंधकार में सितारों से नहाया हुआ गंतोक लेखिका को जादुई अहसास करवा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी। प्रश्न 3-2. गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया? उत्तर : गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ के लोग बहुत मेहनती हैं और यह उनकी मेहनत ही है जिसकी वजह से आज भी गंतोक अपने पुराने स्वरुप को कायम रखे हुए है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है प्रश्न 3-3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है? उत्तर : सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं। Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers. JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. यात्रियों की थकान उतारने व उनके मन बहलाव के लिए वह उनकी पसंद के संगीत का सामान भी साथ रखता है। एक गाइड के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है, जो जितेन को भरपूर थी। जितेन रास्ते में आने वाले छोटे-छोटे पवित्र स्थानों, जिनके प्रति वहाँ के स्थानीय लोगों में श्रद्धा थी, के बारे में विस्तार से बता रहा था। एक कुशल गाइड से यात्रा का आनंद दोगुना हो जाता है। वह आस-पास के सुनसान वातावरण को भी खुशनुमा बना देता है। इस तरह जितेन नार्गे में एक कुशल गाइड के गुण थे। प्रश्न 7. लेखिका हिमालय के पल-पल बदलते स्वरूप को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। उसने हिमालय को ‘मेरे नागपति मेरे विशाल’ कहकर सलामी दी। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े प्रतीत हो रहा था और कहीं हल्के पीलेपन का कालीन दिखाई दे रहा था। हिमालय का स्वरूप कहीं-कहीं पलस्तर उखड़ी दीवारों की तरह पथरीला लग रहा था। सबकुछ लेखिका को जादू की ‘छाया’ व ‘माया’ का खेल लग रहा था। हिमालय का बदलता रूप लेखिका को रोमांचित कर रहा था। प्रश्न 8. प्रश्न 9. यह देखकर लेखिका बेचैन हो गई। वहीं खड़े एक कर्मचारी ने बताया कि पहाड़ों में रास्ता बनाना बहुत कठिन कार्य है। कई बार रास्ता बनाते समय लोगों की जान भी चली जाती है। लेखिका को लगा कि भूख और जिंदा रहने के संघर्ष ने इस स्वर्गीय सौंदर्य में अपना मार्ग इस प्रकार ढूँढ़ा है। कटाओं में फ़ौजियों को देखकर वह सोचने लगी कि सीमा पर तैनात फ़ौजी हमारी सुरक्षा के लिए ऐसी-ऐसी जगहों की रक्षा करते हैं, जहाँ सबकुछ बर्फ़ हो जाता है। जहाँ पौष और माघ की ठंड की बात तो छोड़ो, वैशाख में भी हाथ-पैर नहीं खुलते। वे इतनी ठंड में प्राकृतिक बाधाओं को सहन करते हुए हमारा कल सुरक्षित करते हैं। पहाड़ी औरतों को भूख से लड़ते पत्थरों को तोड़ना और कड़ाके की ठंड में फ़ौजियों का सीमा पर तैनात रहना लेखिका को अंदर तक झकझोर गया। प्रश्न
10. प्रश्न 11. सड़कों के निर्माण से यातायात का आवागमन सुगम हो जाता है। तैयार माल और कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुँचाया जाता है, जिससे देश की आर्थिक प्रगति होती है। बाँधों के निर्माण से बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा फ़सलों को उचित सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन सब कार्यों में आम जनता का भरपूर योगदान होता है। इन लोगों की भूमिका के बिना देश की आर्थिक प्रगति संभव नहीं है। प्रश्न 12. वृक्ष लगाने से मिट्टी का बहाव रुक जाएगा तथा चारों ओर हरियाली होने से प्रकृति में वायु और वर्षा का संतुलन बन जाएगा। वर्षा उचित समय से होने पर नदियों में जल की कमी नहीं होगी। जल प्रकृति की अनमोल देन है। मनुष्य को चाहिए नदियों के जल का उचित प्रयोग करें। नदियों के जल में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों से निकले गंदे पानी की निकासी के लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। कृषि योग्य भूमि को भी दुरुपयोग से बचाना चाहिए। सरकार को प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए उचित तथा कठोर नियम बनाने चाहिए। उन नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए। प्रश्न 13. वायु प्रदूषण से साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु की कमी होती जा रही है, जिससे मनुष्य को फेफड़ों से संबंधित कई बीमारियाँ लग रही हैं। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे मानव के स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए युवा पीढ़ी का जागरूक होना आवश्यक है। उसके लिए सरकार को प्रदूषण संबंधी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रदूषण संबंधी नियमों का दृढ़ता से पालन और लागू किया जाना आवश्यक है। प्रश्न 14. प्रश्न
15. प्रश्न 16. ऐसे रास्तों पर चलते हुए फ़ौजी अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमारे लिए आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं। देश की सीमा की रक्षा करने वाले फ़ौजियों के प्रति आम नागरिक का भी कर्तव्य बन जाता है कि वे उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील हो, जिससे वे लोग बेफ़िक्र होकर सीमा पर मजबूती से अपना फ़र्ज पूरा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रबंध करना चाहिए। लोगों को भी देश की संपत्ति की रक्षा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें देश के अंदर शांति-व्यवस्था तथा धार्मिक सौहार्दयता बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। फौजियों से हम अनुशासन और विपरीत परिस्थितियों से न घबराने की सीख भी ले सकते हैं। JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. साना-साना हाथ जोड़ि Summary in Hindiलेखिका-परिचय : मधु कांकरिया का जन्म कोलकाता में सन 1957 में हुआ था। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम० ए० और कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा प्राप्त किया था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-पत्ताखोर (उपन्यास), सलाम आखिरी, खुले गगन के लाल सितारे, बीतते हुए, अंत में ईशु (कहानी-संग्रह)। इन्होंने अनेक यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। इनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता मिलती है। इन्होंने समाज में व्याप्त समसामयिक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। इनकी भाषा सहज, भावानुरूप, प्रवाहमयी तथा शैली वर्णनात्मक, भावपूर्ण तथा चित्रात्मक है। पाठ का सार : ‘साना-साना हाथ जोड़ि….’ पाठ की लेखिका ‘मधु कांकरिया’ हैं। लेखिका इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहती है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता है। लेखिका जब महानगरों की भावशून्यता, भागमभाग और यंत्रवत जीवन से ऊब जाती है, तो दूर-दूर यात्राओं पर निकल पड़ती है। उन्हीं यात्राओं के अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांतों में शब्दबद्ध किया है। इस लेख में भारत के सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया गया है। लेखिका गंगटोक शहर में तारों से भरे आसमान को देख रही थी। उस रात में ऐसा सम्मोहन था कि वह उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भावशून्य हो जाती है। वह नेपाली भाषा में मंद स्वर में सुबह की प्रार्थना करने लगती है। उन लोगों ने सुबह यूमथांग के लिए जाना था। यदि वहाँ का मौसम साफ़ हो, तो गंगटोक से हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा दिखाई देती है। मौसम साफ़ होने के बावजूद आसमान में हल्के बादल थे, इसलिए लेखिका को कंचनजंघा पिछले साल की तरह दिखाई नहीं दी। यूमथांग गंगटोक से 149 कि० मी० की दूरी पर था। उन लोगों के गाइड कम ड्राइवर का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का रास्ता घाटियों और फूलों से भरा था। रास्ते में उन्हें एक जगह पर सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ लगी दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक हैं। जितेन नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है, तो किसी पवित्र स्थल पर एक सौ आठ सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ फहरा दी जाती हैं जिन्हें उतारा नहीं जाता। कई बार किसी नए कार्य के आरंभ पर रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं। जितेन नार्गे की जीप में भी दलाई लामा की फ़ोटो लगी थी। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने रास्ते में एक घूमता हुआ चक्र देखा, जिसे धर्म-चक्र के नाम से जाना जाता था। वहाँ रहने वाले लोगों का विश्वास था कि उसे घूमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को लगता है कि सभी जगह आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास और पाप-पुण्य एक जैसे हैं। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगीं। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। पहाड़ियों ने विराट रूप धारण कर लिया था। पास से उनका वैभव कुछ अलग था। धीरे-धीरे रास्ता अधिक घुमावदार होने लगा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे किसी हरियाली वाली गुफ़ा के मध्य से गुज़र रहे हों। सब यात्रियों पर वहाँ के हसीन मौसम का असर हो रहा था। लेखिका अपने आस-पास के दृश्यों को चुप रहकर अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य आगे बढ़ने पर और अधिक निखर गया था। वह उस नदी को देखकर रोमांचित हो रही थी। वह मन-ही-मन हिमालय को सलामी देती है। ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं। लेखिका आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी की तरह झरने से बह रहा संगीत आत्मलीन होकर सुनने लगती है। उसे लगा, जैसे उसने सत्य और सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का पानी उसमें एक नई शक्ति का अहसास भर रहा था। लेखिका को लग रहा था कि उसके अंदर की सारी कुटिलता और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई हैं। वह वहाँ से जाने के लिए तैयार नहीं थी। जितेन ने कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं। पूरे रास्ते आँखों और आत्मा को सुख देने वाले दृश्य थे। रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग बदल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। पूरा वातावरण प्राकृतिक रहस्यों से भरा था, जो सबको रोमांचित कर रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप रुकी। जहाँ जीप रुकी थी, वहाँ लिखा था-‘थिंक ग्रीन’। वहाँ ब्रह्मांड का अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा था। सभी कुछ एक साथ सामने था। लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा लग रहा था कि लेखिका का अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ बह रहा था। ऐसा सौंदर्य जीवन में पहली बार देखा था। लेखिका को लग रहा था कि उसका अंदर-बाहर सब एक हो गया था। उसकी आत्मा ईश्वर के निकट पहुँच गई लगती थी। मुँह से सुबह की प्रार्थना के बोल निकल रहे थे। अचानक लेखिका का इंद्रजाल टूट गया। उन्होंने देखा कि इस अद्वितीय सौंदर्य के मध्य कुछ औरतें बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। कुछ औरतों की पीठ पर बंधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। ऐसा लग रहा था कि मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ चल रही है। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें। मौत की भी परवाह न करते हुए लोगों के लिए पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न ! बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है। उन लोगों की स्थिति देखकर लेखिका को लगता है कि सभी जगह आम जीवन की कहानी। एक-सी है। मजदूरों के जीवन में आँसू, अभाव और यातना अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। लेखिका की सहयात्री मणि और जितेन उसे गमगीन देखकर कहते हैं कि यह देश की आम जनता है, इसे वे लोग कहीं भी देख सकते हैं। लेखिका उनकी बात सुनकर चुप रहती है, परंतु मन ही मन सोचती है कि ये लोग समाज को कितना कुछ देते हैं; इस कठिन स्थिति में भी ये खिलखिलाते रहते हैं। वे लोग वहाँ से आगे चलते हैं। रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर – की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। यहाँ आस-पास एक या दो स्कूल हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। जगह-जगह सरकार की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे कि गाड़ी धीरे चलाएँ। सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर घर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख रही थी। यूमथांग पहुँचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका सफ़र की थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के किनारे फैले पत्थरों पर बैठ गई। उस वातावरण में अद्भुत शांति थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही है। इस सफ़र ने लेखिका को दार्शनिक बना दिया था। रात होने पर जितेन के साथ अन्य साथियों ने नाच-गाना शुरू कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी, परंतु वहाँ बर्फ का नाम न था। वे लोग उस समय समुद्र तट से 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो। गया था। ‘कटाओ’ में बर्फ देखने को मिल सकती है। कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ का सारा वातावरण बादलों से घिरा हुआ था। जरा-सी भी असावधानी होने पर बड़ी घटना घट सकती थी। थोड़ी दूर जाने पर मौसम साफ़ हो गया था। मणि कहने लगी कि यह स्विट्ज़रलैंड से भी सुंदर है। कटाओ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। जितेन कहने लगा कि यह बर्फ रात को ही पड़ी है। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे चारों ओर चाँदी फैली हो। कटाओ पहुँचने पर हल्की-हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी झूमने लगे थे, लेखिका का मन बर्फ पर चलने का हो रहा था, परंतु उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका फोटो खिंचवाने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषियोंमुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे असीम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले, तो वह भी आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी दार्शनिकता उभरने लगी थी। ये हिमशिखर पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी ! इकट्ठा करती है और गर्मियों में ये बर्फ़ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हम लोगों की प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति का यह जल संचय अद्भुत है। इस प्रकार नदियों और हिमशिखरों का हम पर ऋण है। थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दीं। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा थी। फ़ौजी कड़कड़ाती ठंड में स्वयं को कष्ट देकर हमारी । रक्षा करते हैं। लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। वास्तव में ये फ़ौजी अपने आज के सुख का त्याग करके हमारे लिए। शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं। वे लोग वहाँ से वापस लौट आए थे। यूमथांग की पूरी घाटियाँ प्रियुता और रूडोडेंड्री के फूलों से खिली थीं। जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का मांस खाने से कैंसर नहीं होता। उसने आगे बताया. कि उसने तो कुत्ते का माँस भी खाया हुआ है। सभी को जितेन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन लेखिका को लग रहा था कि वह सच बोल रहा है। उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी है। लोगों को सुअर का दूध पीते हुए देखा था। यूमथांग वापस आकर उन लोगों को वहाँ सब फीका-फीका लग रहा था। वहाँ के लोग स्वयं को प्रदेश के नाम से नहीं बल्कि भारतीय के नाम से पुकारे जाने को पसंद करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का एक हिस्सा बन गया है। ऐसा करके वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया। कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते हुए जितेन ने उन लोगों को कई और महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी। रास्ते में उसने एक जगह दिखाई। उसके बारे में बताया कि यहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। उसने बताया कि वे लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते हैं। वे लोग गंगटोक को गंतोक बुलाते हैं। गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को लगता है कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है। कठिन शब्दों के अर्थ : अतींद्रियता – इंद्रियों से परे। संधि – सुलह। उजास – प्रकाश, उजाला। सम्मोहन – मुग्ध करना। रकम-रकम – तरह-तरह के। कपाट – दरवाज़ा। लम्हें – क्षण। रफ़्ता-रफ़्ता – धीरे-धीरे। गहनतम – बहुत गहरी। सघन – घनी। शिद्दत – तीव्रता, प्रबलता, अधिकता। पताका – झंडा। श्वेत – सफ़ेद। मुंडकी – सिर। सुदीर्घ – बहुत बड़े। मशगूल – व्यस्त। प्रेयर व्हील – प्रार्थना का चक्र। अभिशप्त – शापित, शाप युक्त सरहद – सीमा। पराकाष्ठा – चरम-सीमा। तामसिकताएँ – तमोगुण से युक्त, कुटिल। मशगूल – व्यस्त। आदिमयुग – आदि युग। निर्मल – स्वच्छ, साफ़। श्रम – मेहनत। अनंतता – असीमता। वंचना – धोखा। दुष्ट वासनाएँ – बुरी इच्छाएँ। आवेश – जोश। सयानी – समझदार, चतुर। मौन – चुप। जन्नत – स्वर्ग। सृष्टि – संसार, जगत। सन्नाटा – खामोशी। चैरवेति चैरवेति – चलते रहो, चलते रहो। वजूद – अस्तित्व। सैलानी – यात्री, पर्यटक। वृत्ति – जीविका। ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान। दिव्यता – सुंदरता। वेस्ट एट रिपेईंग – कम लेना और ज़्यादा देना। मद्धिम – धीमी, हलकी। दुर्लभ – कठिन। हलाहल – विष, ज़हर। सतत – लगातार। प्रवाहमान – गतिमान। संक्रमण – मिलन, संयोग। चलायमान – चंचल। लेवल – तल, स्तर। सुर्खियाँ – चर्चा में आना। निरपेक्ष – बेपरवाह। गुडुप – निगल लिया। राम रोछो – अच्छा है। टूरिस्ट स्पॉट – भ्रमण-स्थल। असमाप्त – कभी समाप्त न होने वाला। अद्वितीय – अनुपम। कुदाल – भूमि खोदने का अस्त्र। विलय – मिलना। सँकरे – तंग। सात्विक आभा – निर्मल कांति। सुरम्य – अत्यंत मनोहर। मीआद – सीमा। आबोहवा – जलवायु। गंगटोक को मेहंदी बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?गंतोक के लोगों की मेहनत ही थी कि गंतोक आज भी अपने पुराने स्वरूप को कायम रखे हुए है। उनका अथक प्रयास ही उनकी प्रकृति की धरोहर को संजोय हुए है। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा है।
2 गतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' इसलिए कहा गया है कि यहाँ के लोगों को अत्यंत परिश्रम करते हुए यहाँ जीवनयापन करना पड़ता है। औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े तथा पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं। वे भरपूर ताकत के साथ कुदाल को जमीन पर मारकर काम करती हैं।
बोकू क्या है Class 10?वे अपनी पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में कई बार अपने बच्चे को भी साथ रखती हैं। यहाँ की स्त्रियाँ चटक रंग के कपड़े पहनना पसंद करती हैं और उनका परंपरागत परिधान 'बोकू' है।
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