गंतोक को मेहनतकश बादशाहो का शहर क्यों कहा गया - gantok ko mehanatakash baadashaaho ka shahar kyon kaha gaya

प्रश्न 3-1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर : रात के अंधकार में सितारों से नहाया हुआ गंतोक लेखिका को जादुई अहसास करवा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

प्रश्न 3-2. गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया?

उत्तर : गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' इसलिए कहा गया क्योंकि यहाँ के लोग बहुत मेहनती हैं और यह उनकी मेहनत ही है जिसकी वजह से आज भी गंतोक अपने पुराने स्वरुप को कायम रखे हुए है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है

प्रश्न 3-3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर : सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं।

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर :
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को सम्मोहित कर रहा था। रहस्यमयी सितारों की रोशनी में उसका सबकुछ समाप्त हो गया था। उसे ऐसे अनुभव हो रहा था, जैसे उसकी चेतना लुप्त हो गई थी। बाहर और अंदर सबकुछ शून्य हो गया था। वह इंद्रियों से दूर एक रोशनी भरे संसार में चली गई थी। उसके लिए आस-पास का वातावरण शून्य हो गया था।

प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?
उत्तर :
गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर इसलिए कहा गया है क्योंकि यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी पूरी मेहनत से काम करते हैं। स्त्रियाँ बच्चों को पीठ पर लादकर काम करती हैं। स्कूल जाने वाले विद्यार्थी स्कूल से आने के बाद अपने माता-पिता के कामों में हाथ बँटाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ सभी कार्य कड़ी मेहनत से पूरे होते हैं। इसलिए यह मेहनतकश बादशाहों का शहर कहलाता है।

गंतोक को मेहनतकश बादशाहो का शहर क्यों कहा गया - gantok ko mehanatakash baadashaaho ka shahar kyon kaha gaya

प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
यूमथांग जाते हुए लेखिका को रास्ते में बहुत सारी बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, तो उस समय उसकी आत्मा की शांति के लिए श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। रंगीन पताकाएँ किसी नए कार्य के आरंभ पर लगाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर :
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम के बारे में बताया कि यहाँ का इलाका मैदानी नहीं, पहाड़ी है। मैदानों की तरह यहाँ का जीवन सरल नहीं है। यहाँ कोई भी व्यक्ति कोमल या नाजुक नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। मैदानी क्षेत्रों की तरह यहाँ कोने-कोने पर स्कूल नहीं हैं। नीचे की तराई में एक-दो स्कूल होंगे। बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से आकर अपनी माँ के काम में सहायता करते हैं। पशुओं को चराना, पानी भरना और जंगल से लकड़ियों : के भारी-भारी गट्ठर सिर पर ढोकर लाते हैं। सिक्किम की प्रकृति जितनी कोमल और सुंदर है, वहाँ की भौगोलिक स्थिति और जनजीवन कठोर है।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर :
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को उस घूमते चक्र को देखकर लगा कि पूरे भारत के लोगों की आत्मा एक जैसी है। विज्ञान ने चाहे कितनी अधिक प्रगति कर ली है, फिर भी लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की मान्यताएँ सब एक जैसी हैं। वे चाहे पहाड़ पर हों या फिर मैदानी क्षेत्रों में-उनकी धार्मिक मान्यताओं को कोई तोड़ नहीं सकता।

प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर :
जितेन नार्गे ड्राइवर-कम-गाइड था। उसे सिक्किम और उसके आस-पास के क्षेत्रों की भरपूर जानकारी थी। जितेन एक ऐसा गाइड था, जो जानता था कि पर्यटकों को असीम संतुष्टि कैसे दी जा सकती है। इसलिए वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को सिक्किम घुमाते हुए बर्फ़ दिखाने के लिए कटाओ तक ले जाता है। उससे आगे चीन की सीमा आरंभ हो जाती है। वह छोटी-छोटी जानकारी भी अपने यात्रियों को देना नहीं भूलता।

यात्रियों की थकान उतारने व उनके मन बहलाव के लिए वह उनकी पसंद के संगीत का सामान भी साथ रखता है। एक गाइड के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है, जो जितेन को भरपूर थी। जितेन रास्ते में आने वाले छोटे-छोटे पवित्र स्थानों, जिनके प्रति वहाँ के स्थानीय लोगों में श्रद्धा थी, के बारे में विस्तार से बता रहा था। एक कुशल गाइड से यात्रा का आनंद दोगुना हो जाता है। वह आस-पास के सुनसान वातावरण को भी खुशनुमा बना देता है। इस तरह जितेन नार्गे में एक कुशल गाइड के गुण थे।

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प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका का यात्री दल यूमथांग जाने के लिए जीप द्वारा आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ रही थी, वैसे-वैसे हिमालय का पलपल बदलता वैभव और विराट रूप सामने आता जा रहा था। हिमालय विशालकाय होता गया। आसमान में फैली घटाएँ गहराती हुई पाताल नापने लगी थीं। कहीं-कहीं किसी चमत्कार की तरह फूल मुस्कुराने लगे थे। सारा वातावरण अद्भुत शांति प्रदान कर रहा था।

लेखिका हिमालय के पल-पल बदलते स्वरूप को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। उसने हिमालय को ‘मेरे नागपति मेरे विशाल’ कहकर सलामी दी। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े प्रतीत हो रहा था और कहीं हल्के पीलेपन का कालीन दिखाई दे रहा था। हिमालय का स्वरूप कहीं-कहीं पलस्तर उखड़ी दीवारों की तरह पथरीला लग रहा था। सबकुछ लेखिका को जादू की ‘छाया’ व ‘माया’ का खेल लग रहा था। हिमालय का बदलता रूप लेखिका को रोमांचित कर रहा था।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर :
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को लग रहा था कि वह आदिमयुग की कोई अभिशप्त राजकुमारी है। बहती जलधारा में पैर डुबोने से उसकी आत्मा को अंदर तक भीगकर सत्य और सौंदर्य का अनुभव होने लगा था। हिमालय से बहता झरना उसे जीवन की शक्ति का अहसास करवा रहा था। उसे लग रहा था कि उसकी सारी बुरी बातें और तासिकताएँ निर्मल जलधारा के साथ बह गई थीं। वह भी जलधारा में मिलकर बहने लगी थी; अर्थात् वह एक ऐसे शून्य में पहुँच गई थी, जहाँ अपना कुछ नहीं रहता; सारी इंद्रियाँ आत्मा के वश में हो जाती हैं। लेखिका उस झरने की निर्मल धारा के साथ बहते रहना चाहती थी। वहाँ उसे सुखद अनुभूति का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर :
प्राकृतिक सौंदर्य के आलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को वहाँ के आम जीवन की निर्ममता झकझोर गई। लेखिका को प्रकृति के असीम सौंदर्य ने ऐसी अनुभूति दी थी कि वह एक चेतन-शून्य संसार में पहुँच गई थी। उसे लग रहा था कि वह ईश्वर के निकट पहुँच गई है, परंतु उस सौंदर्य में कुछ पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ रही थीं। वे शरीर से कोमल दिखाई दे रही थीं। उनकी पीठ पर टोकरियों में बच्चे बँधे हुए थे। वे बड़े-बड़े हथौड़ों और कुदालों से पत्थरों को तोड़ने का प्रयास कर रही थीं।

यह देखकर लेखिका बेचैन हो गई। वहीं खड़े एक कर्मचारी ने बताया कि पहाड़ों में रास्ता बनाना बहुत कठिन कार्य है। कई बार रास्ता बनाते समय लोगों की जान भी चली जाती है। लेखिका को लगा कि भूख और जिंदा रहने के संघर्ष ने इस स्वर्गीय सौंदर्य में अपना मार्ग इस प्रकार ढूँढ़ा है। कटाओं में फ़ौजियों को देखकर वह सोचने लगी कि सीमा पर तैनात फ़ौजी हमारी सुरक्षा के लिए ऐसी-ऐसी जगहों की रक्षा करते हैं, जहाँ सबकुछ बर्फ़ हो जाता है।

जहाँ पौष और माघ की ठंड की बात तो छोड़ो, वैशाख में भी हाथ-पैर नहीं खुलते। वे इतनी ठंड में प्राकृतिक बाधाओं को सहन करते हुए हमारा कल सुरक्षित करते हैं। पहाड़ी औरतों को भूख से लड़ते पत्थरों को तोड़ना और कड़ाके की ठंड में फ़ौजियों का सीमा पर तैनात रहना लेखिका को अंदर तक झकझोर गया।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर :
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में प्रमुख योगदान पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध सुविधाओं, स्थानीय गाइड तथा आवागमन के मार्ग का होता है। इसके अतिरिक्त वहाँ के लोगों तथा सरकारी रख-रखाव का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।

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प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर :
देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्वपूर्ण भूमिका है। देश के महत्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण में आम जनता ही सहयोग करती है। वहाँ पत्थर तोड़ने से लेकर पत्थर जोड़ने तक का कार्य वे लोग ही करते हैं। इस कार्य में व्यक्ति की पूरी शक्ति लगती है, परंतु उसके काम के बदले में उसे बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े लोगों को धनवान बनाने वाले ये लोग उन पैसों से अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी कठिनाई से करते हैं। सड़कों को चौड़ा बनाने का कार्य, बाँध बनाने का कार्य और बड़ी-बड़ी फैक्टरियाँ बनाने के कार्य की नींव आम जनता के खून-पसीने पर रखी जाती है।

सड़कों के निर्माण से यातायात का आवागमन सुगम हो जाता है। तैयार माल और कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुँचाया जाता है, जिससे देश की आर्थिक प्रगति होती है। बाँधों के निर्माण से बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा फ़सलों को उचित सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन सब कार्यों में आम जनता का भरपूर योगदान होता है। इन लोगों की भूमिका के बिना देश की आर्थिक प्रगति संभव नहीं है।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है ? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर :
आज की पीढ़ी भौतिकवादी हो चुकी है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति का निर्मम ढंग से प्रयोग कर रही है। उन्हें यह नहीं पता कि प्रकृति मनुष्य को कितना कुछ देती है, बदले में वह मनुष्य से कुछ नहीं माँगती। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमि पर बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों के निर्माण ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। मनुष्य को चाहिए यदि वह प्रकृति से लाभ उठाना चाहता है, तो उसकी उचित देख-रेख करें। जितने वृक्ष काटें, उससे दोगुने वृक्षों को लगाएँ।

वृक्ष लगाने से मिट्टी का बहाव रुक जाएगा तथा चारों ओर हरियाली होने से प्रकृति में वायु और वर्षा का संतुलन बन जाएगा। वर्षा उचित समय से होने पर नदियों में जल की कमी नहीं होगी। जल प्रकृति की अनमोल देन है। मनुष्य को चाहिए नदियों के जल का उचित प्रयोग करें। नदियों के जल में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों से निकले गंदे पानी की निकासी के लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। कृषि योग्य भूमि को भी दुरुपयोग से बचाना चाहिए। सरकार को प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए उचित तथा कठोर नियम बनाने चाहिए। उन नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए।

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प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
अथवा
‘साना-साना हाथ जोडि’ पाठ में प्रदूषण के कारण हिमपात में कमी पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रदूषण के कारण कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं? हमें इसकी रोकथाम के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
प्रदूषण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। साथ में मनुष्य का स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है। प्रदूषण के कारण पूरे देश का सामाजिक और आर्थिक वातावरण बिगड़ गया है। खेती के आधुनिक उपायों, खादों तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही है। बीज और खाद के दूषित होने के कारण फ़सलें खराब हो जाती हैं, जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ने मिलकर मनुष्य और प्रकृति को विकलांग बना दिया।

वायु प्रदूषण से साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु की कमी होती जा रही है, जिससे मनुष्य को फेफड़ों से संबंधित कई बीमारियाँ लग रही हैं। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे मानव के स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए युवा पीढ़ी का जागरूक होना आवश्यक है। उसके लिए सरकार को प्रदूषण संबंधी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रदूषण संबंधी नियमों का दृढ़ता से पालन और लागू किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता असीम है, जिसे देखकर सैलानी स्वयं को ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जाती हैं तो लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे वहाँ गंदगी और प्रदूषण फैलेगा। लोग सफ़ाई संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। वस्तुएँ खा-पीकर व्यर्थ का सामान इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों का आना-जाना बढ़ने से जैसे यूमथांग में स्नोफॉल कम हो गया है, वैसा ही यहाँ पर भी होने की संभावना है। ‘कटाओ’ के वास्तविक स्वरूप में रहने के लिए वहाँ किसी भी दुकान का न होना अच्छा है।

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प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर :
प्रकृति का जल संचय करने का अपना ही ढंग है। सर्दियों में वह बर्फ के रूप में जल इकट्ठा करती है। गर्मियों में जब लोग पानी के लिए तरसते हैं, तो ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन जाती हैं। इनसे हम जल प्राप्त कर अपनी प्यास बुझाते हैं और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
अथवा
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन-मूल्यों को अपनाया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
उत्तर :
देश की सीमा पर तैनात फ़ौजियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बर्फीले क्षेत्रों में तैनात फ़ौजी बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में वहाँ पेट्रोल के अतिरिक्त सबकुछ जम जाता है। फ़ौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर के तापमान को सामान्य रखते हुए देश की सीमा की रक्षा करते हैं। वहाँ आने-जाने का मार्ग खतरनाक और सँकरा है, जिन पर से गुजरते हुए किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है।

ऐसे रास्तों पर चलते हुए फ़ौजी अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमारे लिए आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं। देश की सीमा की रक्षा करने वाले फ़ौजियों के प्रति आम नागरिक का भी कर्तव्य बन जाता है कि वे उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील हो, जिससे वे लोग बेफ़िक्र होकर सीमा पर मजबूती से अपना फ़र्ज पूरा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रबंध करना चाहिए।

लोगों को भी देश की संपत्ति की रक्षा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें देश के अंदर शांति-व्यवस्था तथा धार्मिक सौहार्दयता बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। फौजियों से हम अनुशासन और विपरीत परिस्थितियों से न घबराने की सीख भी ले सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका को गंतोक से कंचनजंघा क्यों नहीं दिखाई दे रहा था?
उत्तर :
लेखिका की वह सुबह गंतोक में आखिरी सुबह थी। वहाँ से वे लोग यूमथांग जा रहे थे। वहाँ के लोगों के अनुसार यदि मौसम साफ़ हो तो वहाँ से कंचनजंघा दिखाई देता है। कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी थी। उस दिन मौसम साफ़ होने पर भी लेखिका को हल्के-हल्के बादलों के कारण वह चोटी दिखाई नहीं दी थी।

प्रश्न 2.
क्या लेखिका को लायुग में बर्फ़ देखने को मिली? यदि नहीं, तो उसका क्या कारण था?
उत्तर :
लेखिका जैसे पर्वतों के निकट आती जा रही थी, उसकी बर्फ़ देखने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। लायुग में उसे बर्फ के होने का विश्वास था। परंतु सुबह उठकर जैसे वह बाहर निकली, उसे निराशा हाथ लगी। वहाँ बर्फ का एक भी टुकड़ा नहीं था। लेखिका को लगा कि समुद्र से 14000 फीट की ऊँचाई पर भी बर्फ का न मिलना आश्चर्य है। वहाँ के स्थानीय व्यक्ति ने इस समय स्नोफॉल न होने का कारण बढ़ते प्रदूषण को बताया। जिस प्रकार से प्रदूषण बढ़ रहा है, उसी तरह प्रकृति के साधनों में कमी आती जा रही है।

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प्रश्न 3.
लेखिका को बर्फ कहाँ देखने को मिल सकती थी और वह कहाँ स्थित है?
उत्तर :
लेखिका को इस समय बर्फ ‘कटाओ’ में देखने को मिल सकती थी। कटाओ को भारत का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है। अभी तक वह टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना, इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। कटाओ लाचुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर था। वहाँ पहुँचने के लिए लगभग दो घंटे का समय लगना था।

प्रश्न 4.
‘कटाओ’ का सफ़र कैसा रहा?
उत्तर :
कटाओ का रास्ता खतरनाक था। उस समय धुंध और बारिश हो रही थी, जिसने सफ़र को और खतरनाक बना दिया था। जितेन लगभग र, अनुमान से गाड़ी चला रहा था। खतरनाक रास्तों के अहसास ने सबको मौन कर दिया था। ज़रा-सी असावधानी सबके प्राणों के लिए घातक सिद्ध हो सकती थी। जीप के अंदर केवल एक-दूसरे की साँसों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। वे लोग आस-पास के वातावरण से अनजान थे। जगह-जगह पर सावधानी से यात्रा करने की चेतावनी लिखी हुई थी।

प्रश्न 5.
लेखिका बर्फ पर चलने की इच्छा पूरी क्यों नहीं कर सकी?
उत्तर :
लेखिका और उसका यात्री दल जब कटाओ पहुँचा, उस समय ताजी बर्फ गिरी हुई थी। बर्फ देखकर लेखिका का मन प्रसन्नता से भर उठा। उसकी इच्छा थी कि वह बर्फ पर चलकर इस जन्नत को अनुभव करे। परंतु वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। वहाँ पर ऐसी कोई दुकान नहीं थी, जहाँ से वह जूते किराए पर ले सके।

प्रश्न 6.
लेखिका पर वहाँ के वातावरण ने क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
लेखिका वहाँ पहुँचकर स्वयं को प्रकृति में खोया हुआ अनुभव कर रही थी। वह दूसरे लोगों की तरह फ़ोटो खींचने में नहीं लगी हुई थी। वह उन क्षणों को पूरी तरह अपनी आत्मा में समा लेना चाहती थी। हिमालय के शिखर उसे आध्यात्मिकता से जोड़ रहे थे। उसे लग रहा था कि ऋषि-मुनियों ने इसी दिव्य प्रकृति में जीवन के सत्य को जाना होगा; वेदों की रचना की होगी। जीवन में सब सुख देने वाला महामंत्र भी यहीं से पाया होगा। लेखिका उस सौंदर्य में इतनी खो गई थी कि उसे अपने आस-पास सब चेतन शून्य अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 7.
जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है?
उत्तर :
जितेन को वहाँ के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह उन्हें रास्ते भर तरह-तरह की जानकारियाँ देता रहा था। एक स्थान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक जी यहाँ आए थे, उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे, वहाँ-वहाँ चावलों की खेती होने लगी थी।

प्रश्न 8.
हिमालय की तीसरी चोटी कौन-सी है? लेखिका उसे क्यों नहीं देख पाई ?
उत्तर :
हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा है। लेखिका को गंतोक शहर के लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो यहाँ से हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा साफ-साफ दिखाई देती है, लेकिन उस दिन आसमान हलके बादलों से ढका था, जिस कारण लेखिका कंचनजंघा को नहीं देख पाई।

प्रश्न 9.
लेखिका ने गंतोक के रास्ते में एक युवती से प्रार्थना के कौन-से बोल सीखे थे?
उत्तर :
अपनी गंतोक यात्रा के दौरान लेखिका ने एक नेपाली युवती से प्रार्थना के कुछ बोल सीखे थे-‘साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इसका अर्थ है-छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।

प्रश्न 10.
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे क्या अहसास हुआ?
उत्तर :
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे एक अजीब जीवन शक्ति का अहसास हुआ। उसे अपने अंदर की सभी बुराइयाँ एवं दुष्ट वासनाएँ दूर होती हुई प्रतीत होने लगीं। उसे लगा कि जैसे वह सरहदों से दूर आकर धारा का रूप धारण करके बहने लगी है। अपने अंदर इस बदलाव को देखकर लेखिका चाह रही थी कि वह ऐसी ही बनी रही और झरनों से बहने वाले निर्मल-स्वच्छ जल की कल-कल ध्वनि सुनती रहे।

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प्रश्न 11.
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तब किस दृश्य ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर :
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तो सिक्किमी परिधान पहने युवतियाँ हरे-भरे बागानों में चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलते सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखरी हुई थी। प्रकृति का ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर लेखिका का ध्यान उसी ओर खींचता जा रहा था।

प्रश्न 12.
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन बड़ा ही कठोर होता है। वहाँ बच्चे तीन-चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। वहाँ आस-पास कम ही स्कूल होते हैं। वहाँ बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं।

प्रश्न 13.
लायुग में जनजीवन किस प्रकार का है?
उत्तर :
लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब है। इनका जीवन भी गंतोक शहर के लोगों के समान बड़ा कठोर है। परिश्रम की मिसाल देनी हो, तो इन्हीं क्षेत्रों की दी जा सकती है।

प्रश्न 14.
गंतोक का क्या अर्थ है? लोग इसे क्या कहकर पुकारते हैं?
उत्तर :
गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़’। लोग गंगटोक को ही ‘गंतोक’ बुलाते हैं।

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प्रश्न 15.
जितेन के अनुसार पहाड़ी लोग गंदगी क्यों नहीं फैलाते ?
उत्तर :
पहाड़ी लोगों की मान्यता है कि वहाँ विशेष स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। इसी मान्यता के कारण वे लोग यहाँ गंदगी नहीं फैलाते।

साना-साना हाथ जोड़ि Summary in Hindi

लेखिका-परिचय :

मधु कांकरिया का जन्म कोलकाता में सन 1957 में हुआ था। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम० ए० और कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा प्राप्त किया था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-पत्ताखोर (उपन्यास), सलाम आखिरी, खुले गगन के लाल सितारे, बीतते हुए, अंत में ईशु (कहानी-संग्रह)। इन्होंने अनेक यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। इनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता मिलती है। इन्होंने समाज में व्याप्त समसामयिक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। इनकी भाषा सहज, भावानुरूप, प्रवाहमयी तथा शैली वर्णनात्मक, भावपूर्ण तथा चित्रात्मक है।

पाठ का सार :

‘साना-साना हाथ जोड़ि….’ पाठ की लेखिका ‘मधु कांकरिया’ हैं। लेखिका इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहती है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता है। लेखिका जब महानगरों की भावशून्यता, भागमभाग और यंत्रवत जीवन से ऊब जाती है, तो दूर-दूर यात्राओं पर निकल पड़ती है। उन्हीं यात्राओं के अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांतों में शब्दबद्ध किया है।

इस लेख में भारत के सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया गया है। लेखिका गंगटोक शहर में तारों से भरे आसमान को देख रही थी। उस रात में ऐसा सम्मोहन था कि वह उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भावशून्य हो जाती है। वह नेपाली भाषा में मंद स्वर में सुबह की प्रार्थना करने लगती है। उन लोगों ने सुबह यूमथांग के लिए जाना था।

यदि वहाँ का मौसम साफ़ हो, तो गंगटोक से हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा दिखाई देती है। मौसम साफ़ होने के बावजूद आसमान में हल्के बादल थे, इसलिए लेखिका को कंचनजंघा पिछले साल की तरह दिखाई नहीं दी। यूमथांग गंगटोक से 149 कि० मी० की दूरी पर था। उन लोगों के गाइड कम ड्राइवर का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का रास्ता घाटियों और फूलों से भरा था। रास्ते में उन्हें एक जगह पर सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ लगी दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक हैं।

जितेन नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है, तो किसी पवित्र स्थल पर एक सौ आठ सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ फहरा दी जाती हैं जिन्हें उतारा नहीं जाता। कई बार किसी नए कार्य के आरंभ पर रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं। जितेन नार्गे की जीप में भी दलाई लामा की फ़ोटो लगी थी। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने रास्ते में एक घूमता हुआ चक्र देखा, जिसे धर्म-चक्र के नाम से जाना जाता था। वहाँ रहने वाले लोगों का विश्वास था कि उसे घूमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।

गंतोक को मेहनतकश बादशाहो का शहर क्यों कहा गया - gantok ko mehanatakash baadashaaho ka shahar kyon kaha gaya

लेखिका को लगता है कि सभी जगह आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास और पाप-पुण्य एक जैसे हैं। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगीं। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। पहाड़ियों ने विराट रूप धारण कर लिया था। पास से उनका वैभव कुछ अलग था। धीरे-धीरे रास्ता अधिक घुमावदार होने लगा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे किसी हरियाली वाली गुफ़ा के मध्य से गुज़र रहे हों।

सब यात्रियों पर वहाँ के हसीन मौसम का असर हो रहा था। लेखिका अपने आस-पास के दृश्यों को चुप रहकर अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य आगे बढ़ने पर और अधिक निखर गया था। वह उस नदी को देखकर रोमांचित हो रही थी। वह मन-ही-मन हिमालय को सलामी देती है। ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं।

लेखिका आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी की तरह झरने से बह रहा संगीत आत्मलीन होकर सुनने लगती है। उसे लगा, जैसे उसने सत्य और सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का पानी उसमें एक नई शक्ति का अहसास भर रहा था। लेखिका को लग रहा था कि उसके अंदर की सारी कुटिलता और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई हैं। वह वहाँ से जाने के लिए तैयार नहीं थी। जितेन ने कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं। पूरे रास्ते आँखों और आत्मा को सुख देने वाले दृश्य थे। रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग बदल रहे थे।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। पूरा वातावरण प्राकृतिक रहस्यों से भरा था, जो सबको रोमांचित कर रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप रुकी। जहाँ जीप रुकी थी, वहाँ लिखा था-‘थिंक ग्रीन’। वहाँ ब्रह्मांड का अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा था। सभी कुछ एक साथ सामने था।

लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा लग रहा था कि लेखिका का अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ बह रहा था।

ऐसा सौंदर्य जीवन में पहली बार देखा था। लेखिका को लग रहा था कि उसका अंदर-बाहर सब एक हो गया था। उसकी आत्मा ईश्वर के निकट पहुँच गई लगती थी। मुँह से सुबह की प्रार्थना के बोल निकल रहे थे। अचानक लेखिका का इंद्रजाल टूट गया। उन्होंने देखा कि इस अद्वितीय सौंदर्य के मध्य कुछ औरतें बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। कुछ औरतों की पीठ पर बंधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। ऐसा लग रहा था कि मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ चल रही है। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें।

मौत की भी परवाह न करते हुए लोगों के लिए पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न ! बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है। उन लोगों की स्थिति देखकर लेखिका को लगता है कि सभी जगह आम जीवन की कहानी। एक-सी है। मजदूरों के जीवन में आँसू, अभाव और यातना अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। लेखिका की सहयात्री मणि और जितेन उसे गमगीन देखकर कहते हैं कि यह देश की आम जनता है, इसे वे लोग कहीं भी देख सकते हैं।

लेखिका उनकी बात सुनकर चुप रहती है, परंतु मन ही मन सोचती है कि ये लोग समाज को कितना कुछ देते हैं; इस कठिन स्थिति में भी ये खिलखिलाते रहते हैं। वे लोग वहाँ से आगे चलते हैं। रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर – की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। यहाँ आस-पास एक या दो स्कूल हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। जगह-जगह सरकार की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे कि गाड़ी धीरे चलाएँ।

सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर घर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख रही थी। यूमथांग पहुँचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका सफ़र की थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के किनारे फैले पत्थरों पर बैठ गई। उस वातावरण में अद्भुत शांति थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही है। इस सफ़र ने लेखिका को दार्शनिक बना दिया था।

रात होने पर जितेन के साथ अन्य साथियों ने नाच-गाना शुरू कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी, परंतु वहाँ बर्फ का नाम न था। वे लोग उस समय समुद्र तट से 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो। गया था। ‘कटाओ’ में बर्फ देखने को मिल सकती है। कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।

लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ का सारा वातावरण बादलों से घिरा हुआ था। जरा-सी भी असावधानी होने पर बड़ी घटना घट सकती थी। थोड़ी दूर जाने पर मौसम साफ़ हो गया था। मणि कहने लगी कि यह स्विट्ज़रलैंड से भी सुंदर है। कटाओ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। जितेन कहने लगा कि यह बर्फ रात को ही पड़ी है। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे चारों ओर चाँदी फैली हो।

कटाओ पहुँचने पर हल्की-हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी झूमने लगे थे, लेखिका का मन बर्फ पर चलने का हो रहा था, परंतु उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका फोटो खिंचवाने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषियोंमुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे असीम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले, तो वह भी आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी दार्शनिकता उभरने लगी थी।

ये हिमशिखर पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी ! इकट्ठा करती है और गर्मियों में ये बर्फ़ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हम लोगों की प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति का यह जल संचय अद्भुत है। इस प्रकार नदियों और हिमशिखरों का हम पर ऋण है। थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दीं। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा थी। फ़ौजी कड़कड़ाती ठंड में स्वयं को कष्ट देकर हमारी । रक्षा करते हैं।

लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। वास्तव में ये फ़ौजी अपने आज के सुख का त्याग करके हमारे लिए। शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं। वे लोग वहाँ से वापस लौट आए थे। यूमथांग की पूरी घाटियाँ प्रियुता और रूडोडेंड्री के फूलों से खिली थीं।

जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का मांस खाने से कैंसर नहीं होता। उसने आगे बताया. कि उसने तो कुत्ते का माँस भी खाया हुआ है। सभी को जितेन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन लेखिका को लग रहा था कि वह सच बोल रहा है। उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी है। लोगों को सुअर का दूध पीते हुए देखा था। यूमथांग वापस आकर उन लोगों को वहाँ सब फीका-फीका लग रहा था।

वहाँ के लोग स्वयं को प्रदेश के नाम से नहीं बल्कि भारतीय के नाम से पुकारे जाने को पसंद करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का एक हिस्सा बन गया है। ऐसा करके वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया। कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते हुए जितेन ने उन लोगों को कई और महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी। रास्ते में उसने एक जगह दिखाई।

उसके बारे में बताया कि यहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। उसने बताया कि वे लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते हैं। वे लोग गंगटोक को गंतोक बुलाते हैं। गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को लगता है कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है।

गंतोक को मेहनतकश बादशाहो का शहर क्यों कहा गया - gantok ko mehanatakash baadashaaho ka shahar kyon kaha gaya

कठिन शब्दों के अर्थ :

अतींद्रियता – इंद्रियों से परे। संधि – सुलह। उजास – प्रकाश, उजाला। सम्मोहन – मुग्ध करना। रकम-रकम – तरह-तरह के। कपाट – दरवाज़ा। लम्हें – क्षण। रफ़्ता-रफ़्ता – धीरे-धीरे। गहनतम – बहुत गहरी। सघन – घनी। शिद्दत – तीव्रता, प्रबलता, अधिकता। पताका – झंडा। श्वेत – सफ़ेद। मुंडकी – सिर। सुदीर्घ – बहुत बड़े। मशगूल – व्यस्त। प्रेयर व्हील – प्रार्थना का चक्र। अभिशप्त – शापित, शाप युक्त सरहद – सीमा। पराकाष्ठा – चरम-सीमा। तामसिकताएँ – तमोगुण से युक्त, कुटिल। मशगूल – व्यस्त। आदिमयुग – आदि युग।

निर्मल – स्वच्छ, साफ़। श्रम – मेहनत। अनंतता – असीमता। वंचना – धोखा। दुष्ट वासनाएँ – बुरी इच्छाएँ। आवेश – जोश। सयानी – समझदार, चतुर। मौन – चुप। जन्नत – स्वर्ग। सृष्टि – संसार, जगत। सन्नाटा – खामोशी। चैरवेति चैरवेति – चलते रहो, चलते रहो। वजूद – अस्तित्व। सैलानी – यात्री, पर्यटक। वृत्ति – जीविका। ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान। दिव्यता – सुंदरता। वेस्ट एट रिपेईंग – कम लेना और ज़्यादा देना। मद्धिम – धीमी, हलकी। दुर्लभ – कठिन। हलाहल – विष, ज़हर। सतत – लगातार।

प्रवाहमान – गतिमान। संक्रमण – मिलन, संयोग। चलायमान – चंचल। लेवल – तल, स्तर। सुर्खियाँ – चर्चा में आना। निरपेक्ष – बेपरवाह। गुडुप – निगल लिया। राम रोछो – अच्छा है। टूरिस्ट स्पॉट – भ्रमण-स्थल। असमाप्त – कभी समाप्त न होने वाला। अद्वितीय – अनुपम। कुदाल – भूमि खोदने का अस्त्र। विलय – मिलना। सँकरे – तंग। सात्विक आभा – निर्मल कांति। सुरम्य – अत्यंत मनोहर। मीआद – सीमा। आबोहवा – जलवायु।

गंगटोक को मेहंदी बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?

गंतोक के लोगों की मेहनत ही थी कि गंतोक आज भी अपने पुराने स्वरूप को कायम रखे हुए है। उनका अथक प्रयास ही उनकी प्रकृति की धरोहर को संजोय हुए है। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा है।

2 गतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?

गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' इसलिए कहा गया है कि यहाँ के लोगों को अत्यंत परिश्रम करते हुए यहाँ जीवनयापन करना पड़ता है। औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े तथा पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं। वे भरपूर ताकत के साथ कुदाल को जमीन पर मारकर काम करती हैं।

बोकू क्या है Class 10?

वे अपनी पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में कई बार अपने बच्चे को भी साथ रखती हैं। यहाँ की स्त्रियाँ चटक रंग के कपड़े पहनना पसंद करती हैं और उनका परंपरागत परिधान 'बोकू' है।