गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं? - gaandhee jee dvaara pratipaadit graam svaraaj ke buniyaadee siddhaant kaun kaun se hain?

 – नवीन कुमार

गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं? - gaandhee jee dvaara pratipaadit graam svaraaj ke buniyaadee siddhaant kaun kaun se hain?

वर्तमान समय में कोरोना वायरस (COVID-19) वैश्विक महामारी, जो पिछले वर्ष चीन के वुहान शहर से उत्पन्न हुई थी, ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को प्रभावित किया है, चाहे विषय वैश्विक अर्थव्यवस्था का हो या फिर वैश्विक राजनीति का। इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ‘आत्मनिर्भर’ भारत की बात कही है। उन्होंने स्वावलंबन और स्वदेशी के साथ साथ स्थानीय उत्पाद, स्थानीय मार्केट एवं अन्य स्थानीय सम्बन्धो और श्रृंखलाओं को मजबूत करने की बात कही है। प्रकारान्तर से प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी जी की ग्राम स्वराज की संकल्पना की ओर लौटने की बात कही है। देखा जाये तो करोना संकट से उत्पन्न परिस्थितियों ने समस्त विश्व को विवश कर दिया है कि वह गांधी जी के ग्राम स्वराज के विचार पर गंभीरता से मंथन करें। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं ‘भूमंडलीकरण से ग्राम स्वराज की ओर’ के विचार को अपनाने का समय आ गया है।

वर्षों पहले भारत के ग्रामीण परिवेश पर अपने विचार रखते हुए गांधी जी ने कहा था “भारत की स्वतंत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतंत्रता होनी चाहिए, और इस स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से होनी चाहिए। तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा, अतः इसके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए। समाज एक ऐसा पैरामीटर होगा जिसका शीर्ष आधार पर निर्भर होगा” । यहाँ यह समझना चाहिए कि गाँधी जी ने ग्राम के गणतन्त्र रूप की कल्पना की है जो कि आत्मनिर्भरता का पर्याय होगा।

गांधी जी के इसी सपने को साकार करने के लिए भारत में ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं को स्थानीय विकासतथा स्थानीय प्रशासन का मुख्य आधार बनाया गया है। ग्राम पंचायत और भारतीय अर्थव्यवस्था के विषय पर गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। उनका मानना था कि यदि हिंदुस्तान के प्रत्येक गांव में कभी पंचायती राज स्थापित हुआ तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई सिद्ध कर सकूंगा जिसमें सबसे पहला व्यक्ति और सबसे आखिरी व्यक्ति दोनों बराबर होंगे।

मेरे सपनों का भारत नमक पुस्तक में लिखा गया है कि “प्रत्येक गाँव में एक गणराज्य के सभी गुण होने चाहिए। जिसमें स्वावलम्बन, स्वशासन आवश्यकतानुसार स्वतंत्रता और विकेन्द्रीकरण तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के सभी अधिकार पंचायत के पास हों। निर्णय आम सहमति या जनहित में हो, न कि मत गिनती द्वारा। … व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता – भोजन, वस्त्र, आवास की जिम्मेदारी गांव अपने स्तर पर प्रबन्ध करेगा। …जनता द्वारा निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की जवाबदारी सुनिश्चित होगी। कदाचार, अनैतिकता और जनहित के विपरित आचरण की स्थिति में जनता की इच्छा के अनुसार प्रतिनिधि को वापिस बुलाया जा सकेगा। … ऊपर के स्थान पर नीचे से ऊपर की ओर सत्ता का विकेन्द्रीकरण होगा।

गांधी जी का सामाजिक समानता का विचार भी ग्राम -आधारित है, क्योंकि गांधी जी अच्छी तरह जानते थे कि भारत गांवों का देश है और भारत की वास्तविक आत्मा गांवों में बसती है। जब तक गांव संपन्न नहीं होंगे तब तक देशके वास्तविक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। गांधी जी के ग्राम स्वराज के दर्शन में भारत के आर्थिक आधार के लिए गांव को ही सशक्त करने की बात कही गई है।

ग्राम स्वराज/ ग्रामीण स्वशासन की अवधारणा गांधी जी के चिंतन का मुख्य केंद्र बिंदु थी। ग्राम स्वराज की अवधारणा को हमें उनके दो प्रमुख सिद्धांतों सत्य और अहिंसा के संदर्भ में समझना चाहिए। ग्राम स्वराज एक विशिष्ट सिद्धांत है जिसे गांधी जी ने प्रतिपादित किया था और बाद में आचार्य विनोबा भावे ने भूदान कार्यक्रम के माध्यम से आगे बढ़ाया था।

गांधी जी के अनुसार स्वराज शब्द स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर एक निरंतर प्रयास है जो कि वास्तविक अर्थों में स्वशासन को परिभाषित करता है। गांधी जी के शब्दों में प्रत्येक गांव को एक आत्मनिर्भर स्वायत्त इकाई के रूप में स्थापित करना ही ग्राम स्वराज की अवधारणा का मुख्य लक्ष्य है। गांधी जी के अनुसार ग्राम स्वराज का वास्तविक अर्थ आत्मबल से परिपूर्ण होना है। स्वयं के उपयोग के लिए स्वयं का उत्पादन, शिक्षा और आर्थिक संपन्नता से है।

गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं? - gaandhee jee dvaara pratipaadit graam svaraaj ke buniyaadee siddhaant kaun kaun se hain?

गांधी जी ने स्वराज की कल्पना एक पवित्र अवधारणा के सन्दर्भ में की है जिसके मूलभूत तत्व हैं आत्म अनुशासन और आत्मसंयम। गांधी जी का स्वराज गांव में बसता था और वे ग्रामीण उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थे। खादी को बढ़ावा देना तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार उनके जीवन के आदर्श थे। गांधी जी का कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव को अपने भोजन एवं कपड़े के विषय में स्वावलंबी बनाना है। एक ऐसे समय जब पूरा संसार बुनियादी वस्तुओं की खरीद के लिए संघर्ष कर रहा है तब गांधी जी का ग्राम-स्वराज एवं स्वदेशी का विचार ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने पूरे विश्व को वैश्विक गांव में परिवर्तित कर दिया है। भारत जैसे एक विकासशील देश की उत्तर-कोरोना काल में आगे की नीति यही होनी चाहिए कि वह गांधी जी के ग्राम-स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा का अनुसरण करें। भारत के गांव सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। अतः गांधी जी का स्वदेशी तथा ग्राम-स्वराज का नारा ही सच्चे अर्थों में भारत को एक ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रूप में परिवर्तित कर सकता है अतः हमें वर्तमान समय में गांधी दर्शन पर पुन: एक नए दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है।

(लेख शिक्षाविद है और चौ० बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी (हरियाणा) में सहायक प्रोफेसर है।)

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गांधी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं?

गांधी जी के शब्दों में प्रत्येक गांव को एक आत्मनिर्भर स्वायत्त इकाई के रूप में स्थापित करना ही ग्राम स्वराज की अवधारणा का मुख्य लक्ष्य है। गांधी जी के अनुसार ग्राम स्वराज का वास्तविक अर्थ आत्मबल से परिपूर्ण होना है। स्वयं के उपयोग के लिए स्वयं का उत्पादन, शिक्षा और आर्थिक संपन्नता से है।

महात्मा गांधी के प्रतिपादित सिद्धांत कौन हैं?

सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैंगांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है। अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।

गांधीजी के अनुसार स्वराज की अवधारणा क्या है?

गांधी जी के सिद्धांत के अनुसार राष्ट्र के लिए स्वराज का अर्थ मात्र ब्रिटिश शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है। उनके लिए स्वराज इससे बढ़कर है, जिसमें व्यक्तियों की स्वतंत्रता शामिल है, जिससे कि वे एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाए बगैर अपने जीवन को विनियमित कर सकें।

ग्राम स्वराज्य की अवधारणा क्या है?

यह लेख विषयवस्तु पर व्यक्तिगत टिप्पणी अथवा निबंध की तरह लिखा है। कृपया इसे ज्ञानकोष की शैली में लिखकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था आम नागरिक के अधिकारों का अतिक्रमण करती है।