हड्डी टूटने पर ऑपरेशन कैसे करते हैं? - haddee tootane par opareshan kaise karate hain?

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बिना चीर-फाड़ के ही हो जाएगा हडि्डयों के फ्रैक्चर का ऑपरेशन

अब मेडिकल कॉलेज अस्पताल में नई तकनीकी से टूटी हड्डियों को जोड़ा जाएगा। यह उपचार में मरीजों के लिए काफी आरामदायक साबित होगा। सी-आर्म मशीन की मदद से टूटे हुए भाग को बिना ऑपरेशन के ही स्क्रू और नट लगाकर जोड़ा जा सकेगा। इस पूरी प्रक्रिया में मरीज का रक्त प्रवाह भी नहीं होगा। हड्डियों के उपचार में इस तकनीक को इंटरलॉकिंग पद्धति कहते हैं। जिसका लाभ मरीजों को माह के अंत से मिलने लगेगी।

हड्डियों मंे मेजर फ्रैक्चर होने पर मरीजों को अब निजी अस्पतालों की तरह अपचार सुविधा मिल सकेगी। इसके लिए आधुनिक मशीन से ऑपरेशन थिएटर में हड्डियों के ऑपरेशन के लिए इंटरलॉकिंग विधि की व्यवस्था की जा रही है। इस पद्धति से हड्डी कम समय और बेहतर तरीके से जुड़ सकेगी। अस्पताल प्रबंधन से मिली जानकारी के मुताबिक इसके लिए नया ऑपरेशन थिएटर बनाया जा रहा है, जहां सी-आर्म उपकरण लगाया जाएगा। उपकरण की मदद से हड्डियों को सटीक मिलान कर स्क्रू और नट से कसा जाएगा। यह कम समय में हड्डियों को आपस में जोड़ने का काम करती है। इस पद्धति में मेजर फ्रैक्चर के बावजूद ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं पड़ती। इस तकनीकी की खोज नेशनल एसोसिएशन ऑफ इंटरलॉकिंग सर्जनों के द्वारा किया गया था। वर्तमान इंटरलाकिंग ऑपरेशन की सुविधा सिर्फ निजी अस्पतालों में मौजूद है। जिसके लिए हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। बहरहाल अस्पताल में यह सुविधा शुरू होने के बाद ऐसे मरीजों को कम खर्च में इसका लाभ मिल सकेगा।

निजी अस्पतालों में 25 से 75 हजार खर्च
इस पद्धति से हड्डियों का उपचार कराने में मरीजों को 25 से 75 रुपए खर्च करने पड़ते थे, लेकिन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में यह व्यवस्था शुरू होने के बाद ऐसे मरीजों को उपचार कम खर्च हो सकेगा। डॉ लकड़ा ने बताया कि इसके लिए आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए शासन से निशुल्क उपचार की मांग भी रखी जाएगी। ताकि आर्थिक कमजोरी उपचार में रोड़ा न बने।

मंगलवार व शुक्रवार को होंगे ऑपरेशन
ओटी की व्यवस्था होने के बाद अब नियमित रूप से यहां ऑपरेशन हो सकेगा। सप्ताह में सिर्फ मंगलवार और शुक्रवार को ऑपरेशन किए जाएंगे। इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी। पुरानी पद्धति से ऑपरेशन करने से न सिर्फ समय अधिक लगता था। बल्कि इसमें जो सामान लगाए जाते थे। वह भी अब उपलब्ध नहीं हो पाते थे। इससे संबंधित सामानों की आपूर्ति भी बंद हो चुकी है। ऐसे में यहां इंटरलाकिंग विधि से ऑपरेशन की व्यवस्था की मांग की पहले से बनी हुई थी।

वर्तमान में मेजर फ्रैक्चर पर हड्डियों को जोड़ने ऑपरेशन किया जाता है। डॉक्टरों की माने तो इस पद्धति को एनेल और वीनेल के रूप में विभाजित किया गया है। जिसमें एनेल विधि से पैरों की जांघ की फीमर हड्डी और बांह के ज्वाइंट का उपचार किया जाता है। वीनेल के अंतर्गत हाथ की हड्डी और पैरों में रॉड लगाकर ऑपरेशन किए जाते हैं। इस पद्धति में हड्डी जुड़ने में काफी वक्त लगता है, जो नई पद्धति में नहीं लगेगा।

मिलेगा इंटरलॉकिंग का लाभ
इसके लिए पुराने ऑपरेशन थिएटर के नजदीक खाली पड़े कमरे में सारी व्यवस्था की जा रही है। जल्द ही सी-आर्म मशीन की स्थापना भी कर ली जाएगी। माह के अंत तक स्थानीय मरीजों को इंटरलॉकिंग पद्धति से उपचार का लाभ मिलने लगेगा। डॉ आनंद मसीहा, सुप्रींटेंडेंट, मेडिकल कॉलेज अस्पताल

वर्तमान व्यवस्था में अधिक समय



हड्डी टूटने पर ऑपरेशन कैसे करते हैं? - haddee tootane par opareshan kaise karate hain?
आपने अक्सर सुना होगा कि कोई वृद्ध व्यक्ति बाथरूम गए और गिरने के कारण उनका कूलहे  के आस पास फ्रैक्चर हो गया और वह उठ नहीं पाए और दर्द के कारण करहाते  रहे लेकिन अक्सर होता इसका उल्टा है होता यह हैं कि कमज़ोर होने के कारण हड्डी टूट जाती है और व्यक्ति गिर जाता है न कि गिरने के कारण हड्डी टूटती है कई बार तो अगर आप ध्यान से उनसे बात करें तो वो आपको बताएंगे कि पिछले 5 सात दिनों से मेरे कूल्हे के आस पास कुछ दर्द हो रही थी फिर अचानक ये हादसा हो गया

बहरहाल चाहे हड्डी कमज़ोर होने के कारण टूटे और व्यक्ति गिरे या गिरने के कारण हड्डी टूटे इलाज दोनों का जल्द से जल्द करना बहुत ज़रूरी है इससे पहले कि हम बात करें कि इलाज जल्दी  करना क्यों ज़रूरी है और क्या इलाज करना चाहिए , हम पहले समझ लें की इस जगह पर हड्डी क्यों कमज़ोर हो जाती है क्यों अपने आप इसका फ्रैक्चर हो सकता है

हम जानते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ , हमारे हड्डियों के बनाने में जो प्रोटीन की रेशे होते हैं , वह पतले होने शुरू हो जाते हैं और हड्डी को कमज़ोर कर देते हैं किस मात्रा में ये कमज़ोर हुए , इसे अब तो  bone density नापने वाले यंत्र से नापा भी जा सकता है । यदि इसकी मात्रा कम हों तो इसे आसटियोपीनिया( osteopenia) कहते हैं । यदि यह मात्रा एक दिये हुए मापदंड से भी ज़्यादा कम हो जाए तो इसे ऑस्टियोपोरोसिस , (osteoporosis ) कहते हैं । यानी कि अगर T – स्कोर माइनस  2.5 ( -2.5)से भी कम हो जाए तो इसे ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं

इसी प्रकार विटामिन D की कमी भी हड्डियों को कमज़ोर कर सकती है। कई बार तो शरीर में कहीं और कैंसर होने के कारण जब वह फैलता है , तो वह कूल्हे की हड्डी में आकर जम जाता है और उसे बुरी तरह से कमज़ोर कर देता है और व्यक्ति को अचानक फ्रैक्चर हो सकता है या उससे पहले लगातार दर्द रह सकती है

एक कहावत है कि जीवन का नाम चलना है और चलना ही जीवन है। वृद्ध व्यक्तियों  के संदर्भ में तो यह और भी ज़्यादा सच है , क्योंकि यदि वृद्ध व्यक्ति यदि कुछ दिन भी बिस्तर में पड़ जाए तो भयानक  जटिलतायें एवम् पेचीदगीयां आ सकती है कई बार तो यह जानलेवा भी हो सकती है इनमें महत्वपूर्ण है  बेड सोर ( bed sore) थरामबोसिस( Thrombosis) यानी की टाँगों की धमनियों में खून जम जाना , निमोनिया , इत्यादी

बेड सोर ( Bed Sore)

कूलहे का फ्रैक्चर हो जाने के कारण वृद्ध व्यक्ति न करवट ले सकते है , न खड़े हो सकता है , न बैठ बैठ सकता है और एक ही जगह पर पड़े रहने के कारण कूलहे के पीछे की चमड़ी छिलनी शुरू हो जाती है और यदि जल्द से जल्द ही इसका ध्यान रखा जाए और व्यक्ति खड़ा न हो तो यह बहुत गहरा ज़ख़्म या गहरा बेड सोर बन जाता है। इससे न केवल  कूलहे के आस पास बल्कि शरीर के बाक़ी भागों में भी इन्फेक्शन फैल सकता है और इसके होते ऑपरेशन करना भी संभव नहीं हो पाता

थरोमबोसिस( Thrombisis)

हमारे टांगों की मांसपेशियां एक प्रकार से पंप का काम करती है और वे टांगों की धमनियों में खून को रुकने नहीं देती और खून को  दिल की ओर वापस भेजती रहती है । लेकिन यदि व्यक्ति बिस्तर पर पड़ जाए तो इस क्रिया में ख़लल आ जाता है और खून टांगों की धमनियों यानी की वेन्स ( veins) के अंदर जमना शुरू हो जाता है जिसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस ( deep vein thrombosis) भी कहते हैं । यह न केवल टांगों में सूजन और दर्द करता है  बल्कि कई बार जमा हुआ खून का टुकड़ा ( Thrombus – थरोमबस) वहाँ से सीधा दिल में जाकर बैठ जाता है और अचानक से दिल की गति को रोक देता है जिससे व्यक्ति की  अचानक मृत्यु हो सकती है    (  इसे पलमोनरी एमबेलिजम Pulmonary Embolism कहते हैं)

नयूमेनिया( pneumonia)

यदि कोई भी व्यक्ति,  विशेष कर वृद्ध व्यक्ति लंबे समय के लिए बिस्तर पकड़ ले तो उसकी साँस की क्रिया में मुश्किल आनी शुरू हो जाती है और फेफड़े के पीछे की तरफ़ बलगम जमा होनी शुरू हो जाती है यानी कि निमोनिया हो सकता है वृद्ध व्यक्ति के लिए तो यह जानलेवा भी हो सकता है

कूलहे ( Hip ) फ्रैक्चर हो जाए तो क्या करें

यदि गिरने के बाद किसी व्यक्ति को कूलहे  के आस पास तेज दर्द हो  या वह खड़ा न हो पाए / चल ना पाएं , तो फ़ौरन उसे अपने आस पास के  अस्थि शल्य विशेषज्ञ ( आरथोप्डिक सर्जन ) के पास ले जाएं और कूल्हे का एक्सरे करावायें

यदि कोई छोटा मोटा  फ्रैक्चर है तो डॉक्टर आपको  घर पर थोड़ा आराम करने की सलाह दे देंगे ।

यदि  कूल्हे की हड्डी का पूरा फ्रैक्चर हुआ है तो आपको अस्पताल में दाख़िल होने की आवश्यकता होगी और इसमें देर नहीं करनी चाहि इसमें अक्सर ऑपरेशन करने की आवश्यकता पड़ती है

यदि कूल्हे की हड्डी की बॉल यानी उसका गोला टूट जाए तो उसे बदलना पड़ता है यानी की  हिप रिप्लेसमेंट करना पड़ता है एक अन्य प्रकार के फ्रैक्चर में कूलहे की हड्डी के बाहर के भाग के दो या दो से ज़्यादा टुकड़े हो जाते हैं जिससे इंटरटरोक्नटरिक फ्रैक्चर ( inter trochentric fracture) कहते  हैं । इस तरह के फ्रैक्चर को एक विशेष प्रकार की  प्लेट या विशेष प्रकार के नेल से जोड़ा जाना ज़रूरी है

याद रहे वृद्ध अवस्था में लोग ऑपरेशन करवाने से बहुत डरते हैं और कई बार डॉक्टर की बात नहीं मानते हैं और अक्सर ये कहते हैं की टाँग में कुछ खींच लगाकर कुछ महीने के लिए बिस्तर में रख दीजिये और हड्डी को अपने आप जुड़ने दीजिये आज से 40पचास वर्ष पूर्व इस प्रकार से इलाज किया जाता था लेकिन आज की तारीख़ में इस प्रकार का इलाज बिलकुल मानय नहीं । हमारी कोशिश यही रहती है कि ऑपरेशन करके  वृद्ध व्यक्ति जल्दी से जल्दी बिस्तर से  बाहर आने में सक्षम  हो जाए  तांकि वह जल्दी से जल्दी किसी मदद के साथ चल सकें ऐसा करने से बेड सोर , थरोमबोसिस और  न्यूमोनिया जैसी घातक विषमताओं से बचा जा सकता है

कई वृद्ध व्यक्तियों में अन्य बीमारियां भी होती है जैसे डायबीटीज़ , दिल की बीमारी , साँस की बीमारी इत्यादी । फ़िज़िशियन की मदद से इन सब को जल्द से जल्द कंट्रोल करके अच्छी स्थिति में लाने की कोशिश की जाती है  तांकि  यदि वृद्ध व्यक्ति को ऑपरेशन की आवश्यकता है  , तो उसे जल्द किया जा सके । क्योंकि जितने दिन वृद्ध व्यक्ति बिस्तर में पड़े रहेंगे उतनी ही ज़्यादा उनको ठीक होने में दिक़्क़त आने की संभावना रहती है

करोना के दौर में भी क्या ऑपरेशन करना आवश्यक है

हम जानते हैं कि करोना का इन्फेक्शन उन लोगों में ज़्यादा घातक सिद्ध हो सकता है जिनमें और भी बीमारिया है या जो व्यक्ति बिस्तर पर पड़ जाए और चल फिर ना सके । न चल फिर सकने के कारण  और विषमताओं के अलावा व्यक्ति की इम्युनिटी भी कम हो जाती है और वे बाक़ी बीमारियों से लडने में कम सक्षम हो सकते हैं जैसा मैंने पहले भी कहा जीवन का नाम चलना है और चलना ही जीवन है ।
इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता विशेषकर वृद्धावस्था में।

कूलहे के ऑपरेशन के बाद कुछ विशेष ध्यान

कूलहे के ऑपरेशन के बाद कुछ विशेष ध्यान रखना ज़रूरी है जैसे की डॉक्टर की सलाह लेकर खून को पतला करने की दवाई लेना , टांगों एवं छाती का व्यायाम करना , वॉकर के साथ फिजियोथैरेपी की मदद लेते हुए चलना । ऑपरेशन वाली टांग पर कितना वज़न डालना है , ये डॉक्टर आपको बता देंगे ।

यह इस पर निर्भर करेगा कि किस प्रकार का ऑपरेशन किया गया है और किस प्रकार का फ्रैक्चर था यदि व्यक्ति को ऑस्टियोपोरोसिस था जिसकी वजह से ये फ्रैक्चर हुआ तो उसका इलाज भी साथ साथ शुरू करना ज़रूरी है और यदि विटामिन D की कमी थी तो उसको भी पूरा करना चाहिए यदि किसी अन्य बीमारी ( केंसर  इत्यादि) के कारण हड्डी कमज़ोर हो गई थी तो आपके डॉक्टर आपको बता देंगे और उसका इलाज  साथ के साथ शुरू करना आवश्यक है

सार

वृद्धावस्था में  कूलहे का फ्रैक्चर एक गंभीर समस्या हो सकती है और यदि इसका इलाज तुरंत न किया जाए तो कई बार यह जानलेवा भी हो सकती है कूलहे  के आस पास के फ्रैक्चर का शक हो तो डॉक्टर को मिलने में देर न करें । यदि डॉक्टर आपको इसकी ऑपरेशन की सलाह दें तो डरें मत , क्योंकि ये बहुत ज़रूरी है कि वृद्ध व्यक्ति को बिस्तर में ज़्यादा देर न रहने दिया जाए और वे जल्दी से जल्दी चलना आरंभ कर दें ताकि बाक़ी कामपलीरेशन  अथवा भयानक जटिलताओं से बचा जा सके ।

डॉ। यश ​​गुलाटी से सलाह लेने के लिए यहां क्लिक करें

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टूटी हुई हड्डी का ऑपरेशन कैसे किया जाता है?

वर्तमान में मेजर फ्रैक्चर पर हड्डियों को जोड़ने ऑपरेशन किया जाता है। डॉक्टरों की माने तो इस पद्धति को एनेल और वीनेल के रूप में विभाजित किया गया है। जिसमें एनेल विधि से पैरों की जांघ की फीमर हड्डी और बांह के ज्वाइंट का उपचार किया जाता है। वीनेल के अंतर्गत हाथ की हड्डी और पैरों में रॉड लगाकर ऑपरेशन किए जाते हैं।

हड्डी टूटने के बाद कितने दिन में ऑपरेशन हो जाना चाहिए?

यदि हड्डी टूटने पर आपको प्लास्टर चढ़ाया गया है तो इसकी अवधि टूटी हुई हड्डी की स्थिति और प्रकार के हिसाब से होती है। उदाहरण के लिए कलाई या लोअर आर्म के हिस्से में हुए फ्रेक्चर को ठीक होने में 4-6 हफ़्तों का समय लग सकता है।

टूटी हुई हड्डी को सर्जरी की आवश्यकता कब होती है?

फ्रैक्चर जितना अधिक गंभीर होगा, सर्जरी की सिफारिश की जाने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। उदाहरण के लिए, एक खुले या कम्यूटेड फ्रैक्चर के लिए सर्जरी की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हड्डी पूरी तरह से एक साथ वापस बढ़ती है और सुरक्षित रूप से आपके वजन का समर्थन करती है

अगर टूटी हुई हड्डी ठीक से ठीक नहीं होती तो क्या होता है?

विलंबित संघ। जब एक हड्डी फ्रैक्चर का इलाज नहीं किया जाता है, तो इसका परिणाम या तो नॉनयूनियन या विलंबित यूनियन में हो सकता है। पहले मामले में, हड्डी बिल्कुल ठीक नहीं होती है, जिसका अर्थ है कि यह टूटी हुई रहेगी। नतीजतन, सूजन, कोमलता और दर्द समय के साथ खराब होते रहेंगे