ईश्वर कण कण में व्याप्त है परंतु हम उसे देख क्यों नहीं सकते? - eeshvar kan kan mein vyaapt hai parantu ham use dekh kyon nahin sakate?

ईश्वर कण कण में व्याप्त है और हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं। हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं।

ईश्वर कण कण में व्याप्त है फिर भी वह हमें दिखाई क्यों नहीं देता 40 50 शब्दों में उत्तर लिखें?

ईश्वर कण-कण में व्याप्त है पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ? Solution : हमारा मन अज्ञानता, अहंकार विलासिताओं में डूबा रहता है। हमारे जीने का उद्देश्य भौतिक प्रगति ही करना है। हम ईश्वर को मन्दिर, मस्जिद जैसी बाहरी दुनिया में ढूँढ़ते हैं जबकि वह सब ओर व्याप्त है।

कबीर ने ईश्वर के कण कण में बसे होने की बात कैसे समझाई है उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए?

Answer: गहरे अंधकार में जब दीपक जलाया जाता है तो अँधेरा मिट जाता है और उजाला फैल जाता है। कबीरदास जी कहते हैं उसी प्रकार ज्ञान रुपी दीपक जब हृदय में जलता है तो अज्ञान रुपी अंधकार मिट जाता है मन के विकार अर्थात संशय, भ्रम आदि नष्ट हो जाते हैं। तभी उसे सर्वव्यापी ईश्वर की प्राप्ति भी होती है।

संसार के कण कण में किसका वास है?

संसार के कण-कण में ईश्वर का वास है। हर जीव, पेड़-पौधे में परमपिता परमेश्वर का अंश है। आवश्यकता है तो अपने अंदर ईश्वर का अनुभव, प्रतीति करने की। ईश्वर की कृपा दृष्टि सब पर है।