विषयसूची ङ् का उच्चारण स्थान क्या है?इसे सुनेंरोकें’ङ’ का उच्चारण स्थान – नासिका है। अर्थात् अनुनासिक वर्णों ( ञ म ङ ण न) का उच्चारण स्थान नासिका होगा अतः ङ का उच्चारण स्थान नासिका होगी। शब्द उच्चारण क्या है? इसे सुनेंरोकेंमुख से अक्षरों को बोलना उच्चारण कहलाता है। सभी वर्णो के लिए मुख में उच्चारण स्थान होते हैं। यदि वर्णों का उच्चारण शुद्ध न किया जाए, तो लिखने में भी अशुद्धियाँ हो जाती हैं, क्योंकि हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है। वर्ण का उच्चारण स्थान क्या है?इसे सुनेंरोकेंकंठ ध्वनि इस वर्ग की ध्वनियों में कंठ का प्रयोग करके उच्चारण किया जाता है। उदाहरण के लिए – स्वर में अ और आ तथा व्यंजन में क, व, ग, घ, ङ। संस्कृत में संयुक्त व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं? इसे सुनेंरोकेंसंयुक्त व्यंजन:- जो वर्ण दो व्यंजनों के जुड़ने से बनते हैं उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 3 होती है। अनुस्वार का उच्चारण स्थान क्या है?इसे सुनेंरोकेंअनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचाक्षर कहलाए जाते हैं) के स्थान पर किया जाता है। अब हम ये तो जान गए हैं कि अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म) के स्थान पर किया जाता है। बल्लभ का शुद्ध उच्चारण क्या है? इसे सुनेंरोकेंवल्लभ १ वि० [सं०] १. अत्यंत प्रिय । प्रियतम । प्यारा । शुद्ध उच्चारण का क्या महत्व है?इसे सुनेंरोकेंशुद्ध उच्चारण के अभाव में मौखिक भाषा अस्वाभाविक एवं प्रभावहीन हो जाती है। प्राय: हम जैसा उच्चारण करते हैं या बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं। अत: लिखित भाषा में भी वे दोष आ जाते हैं। शब्दों की वर्तनी की अशुद्धता के कारण हमारा उच्चारण अशुद्ध हो जाता है। प फ ब भ म का उच्चारण स्थान क्या है? इसे सुनेंरोकें-उकार, पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान “ ओष्ठ” है। संयुक्त व्यंजन के कितने भेद होते हैं?इसे सुनेंरोकेंसंयुक्त व्यंजन संयुक्त व्यंजन में, व्यंजन वर्ण के दो व्यंजन मिलकर एक संयुक्त व्यंजन का निर्माण करते हैं। संयुक्त व्यंजन की संख्या भी चार है। क्ष,त्र,ज्ञ,श्र संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं जिसका कारण है की यह व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं जिस मेल को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है। संयुक्ताक्षर कितने प्रकार के होते हैं? इसे सुनेंरोकेंउत्तर: संयुक्ताक्षर तीन प्रकार के होते हैं। संयुक्त अक्षर, संयुक्त व्यंजन तथा द्वित्व व्यंजन। घर का उच्चारण स्थान कौन सा है?हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण
ल कौन सा वर्ण है? इसे सुनेंरोकेंय, र, ल, व अन्तस्थ व्यंजन हैं, अन्य विकल्प असंगत है, अत: विकल्प 2 ‘अन्तस्थ’ सही उत्तर होगा। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है। अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण स्थान तालिका uccharan sthan ki listमुख के अंदर स्थान-स्थान पर हवा को दबाने से भिन्न-भिन्न वर्णों का उच्चारण होता है । मुख के अंदर पाँच विभाग हैं, जिनको स्थान कहते हैं । इन पाँच विभागों में से प्रत्येक विभाग में एक-एक स्वर उत्पन्न होता है, ये ही पाँच शुद्ध स्वर कहलाते हैं । स्वर उसको कहते हैं, जो एक ही आवाज में बहुत देर तक बोला जा सके । Pronunciation table of Sanskrit and Hindi alphabet
हिंदी की ध्वनियाँ – hindi ki dhwaniyaहिंदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है। एक तो ये जिस रूप में लिखी जाती है, बिल्कुल उसी तरह बोली जाती है, किन्तु अंग्रेज़ी में ऐसा नहीं है. उदाहरण के लिए, बी(B) यू(U) टी(T) का उच्चारण ‘बट’ है तो पी(P) यू(U) टी(T) का ‘पुट’ होता है, जबकि या तो दूसरे शब्द का उच्चारण ‘पट’ होना चाहिए या फिर पहले का ‘बुट’। एक ही स्वर कहीं ‘यु’, ‘यू’ या ‘उ’ है तो कहीं ‘अ’ है। इसी तरह अरबी लिपि में तीन स्वरों से तेरह स्वरों का काम लिया जाता है। हिंदी में ऐसा नहीं है। इसमें लेखन और उच्चारण में बहुत अधिक शुद्धता और समानता मौजूद है। अनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग चिह्नों के प्रयोग ने इसे और वैज्ञानिक बना दिया है। बीसवीं सदी में जब हिंदी ने यूरोपीय भाषाओं से तथा अरबी-फारसी से शब्द अपनाए तो इसके लिए नए चिह्न भी ग्रहण किए। जैसे ‘डॉक्टर’ शब्द अंग्रेज़ी से आया है, इसका पहला स्वर है- ‘ऑ’, चूंकि हिंदी में यह स्वर उपलब्ध नहीं था, यहाँ ‘आ’ तो था; ‘ऑ’ नहीं था, इसलिए हिंदी में अंग्रेज़ी से आए ऐसे शब्दों के उच्चारण के लिए ‘ऑ’ चिह्न को अपना लिया गया। इसी प्रकार अरबी-फारसी के कुछ शब्दों के सटीक उच्चारण के लिए हिंदी ने पाँच नई ध्वनियाँ अपनाई- क़, ख़, ग़, ज़ और फ़। जाहिर है, इससे हिंदी की शब्द-संपदा तो बढ़ी ही, इसमें भावों को और अधिक सूक्ष्मता तथा स्पष्टता से अभिव्यक्त करने की शक्ति भी आई। हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता की दूसरी विशेषता है- इसके शब्दों के उच्चारण की सटीकता। हिंदी भाषा की वर्णमाला में दो वर्ग हैं- स्वर और व्यंजन। इन दोनों वर्गों की ध्वनियों को इतने वैज्ञानिक तरीक़े से व्यवस्थित किया गया है कि इनके द्वारा किसी भी अभाषी व्यक्ति को हिंदी का पूरी सरलता के साथ शुद्ध उच्चारण करना सिखाया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि हम ‘उच्चारण के स्थान’ के आधार पर हिंदी की स्वर और व्यंजन ध्वनियों का बंटवारा करना चाहें, तो आसानी से किया जा सकता है। स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि की सहायता नहीं ली जाती। वायु मुखगुहा से बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, किन्तु व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है। व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु मुखगुहा में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। मुखगुहा के उन ‘लगभग अचल’ स्थानों को उच्चारण बिन्दु (articulation point) कहते हैं, जिनको ‘चल वस्तुएँ’ (Movable things) छूकर जब ध्वनि-मार्ग में बाधा डालती हैं तो ध्वनियों का उच्चारण होता है। मुखगुहा में ‘अचल उच्चारक’ मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि ‘चल उच्चारक’ मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओष्ठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) होते
हैं। यानी कुछ ध्वनियों का उच्चारण कंठ, तालु, मूर्द्धा, दंत तथा ओष्ठ से किया जाता है तो कुछ का मुख के अंगों जैसे कंठ+तालु, कंठ+ओष्ठ, दंत+ओष्ठ, और मुख+नाक से संयुक्त रूप से भी किया जाता है। हिंदी की सभी ध्वनियों का उनके उच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकरण-कंठ्य ध्वनियाँ- kanth se bole jane bale varnइस वर्ग की सभी ध्वनियों का उच्चारण कंठ से होता है। इस वर्ग की ध्वनियाँ हैं- अ, आ (स्वर); क, व, ग, घ, ङ (व्यंजन)। तालव्य ध्वनियाँ- taalu se bole jane vale varnजिस ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग तालु से स्पर्श करता है, उन्हें तालव्य कहते हैं। इ, ई (स्वर); च, छ, ज, झ, ञ, श, य (व्यंजन)। मूर्द्धन्य ध्वनियाँ- moordha se bole jane vale varnइसके अंतर्गत वे ध्वनियाँ रखी गई हैं, जिनका उच्चारण मुर्द्धा से होता है, जैसे- ट, ठ, ड, ढ, ण, ष (सभी व्यंजन ध्वनियाँ)। दन्त्य ध्वनियाँ- dant se bole jane vale varnत, थ, द, ध, न, र, ल, स, क्ष (सभी व्यंजन ध्वनियाँ)।ओष्ठ्य ध्वनियाँ- oshth se bole jane vale varnजो ध्वनियाँ दोनों होंठों के स्पर्श से उत्पन्न होती है, उन्हें ओष्ठ्य कहते हैं। हिंदी में प, फ, ब, भ, म ध्वनियाँ ओष्ठ्य हैं। अनुनासिक ध्वनियाँ- anunasik varnइन ध्वनियों का उच्चारण मुंह और नाक
दोनों के सहयोग से होता है। इनके उच्चारण के दौरान कुछ वायु नाक से निकलते हुए एक अनुगूंज-सी पैदा करती है। हिंदी की व्यंजन ध्वनियों का प्रत्येक वर्ग पाँच वर्णों का है, जो एक ही स्थान से उच्चारित होते हैं, जैसे- क, ख, ग, घ, ङ या च, छ, ज, झ, ञ या ट, ठ, ड, ढ, ण या त, थ, द, ध, न अथवा प, फ, ब, भ, म। इनके प्रत्येक वर्ग की अंतिम ध्वनि अर्थात ङ, ञ, ण, न और म अनुनासिक ध्वनि है। देवनागरी लिपि में अनुनासिकता को चन्द्रबिंदु (ँ) द्वारा व्यक्त किया जाता है। किंतु जब स्वर के ऊपर मात्रा हो तो चन्द्रबिन्दु के स्थान
पर केवल बिंदु (ं) लगाया जाता है, जैसे – अँ, ऊँ, ऐं, ओं आदि। अनुस्वार भी इसी के अंतर्गत आते हैं दन्त्योष्ठ्य ध्वनियाँ- dantoshth se bole jane vale varnजिन व्यंजनों का उच्चारण दन्त और ओष्ठ की सहायता से होता है, उन्हें दन्त्योष्ठ्य व्यंजन ध्वनियाँ कहते हैं। जैसे – फ, व। कंठ-तालव्य ध्वनियाँ- kanth talu se bole jane vale varnइसमें वे दो स्वर ध्वनियाँ आती हैं, जिनका
उच्चारण कंठ और तालु के सहयोग से होता है। जैसे- ए और ऐ कंठोष्ठ्य ध्वनियाँ- kath oshth varn kaun haiइन ध्वनियों का जन्म कंठ और ओष्ठों के सहयोग से होता है; जैसे ओ और औ जिह्वामूलक ध्वनियाँ-jeehvamooliy varn kaun se hote haiअरबी-फारसी से हिंदी में अपनाई गई तीन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के बिलकुल पीछे के भाग (मूल) से होता है। ये हैं- क़, ख़ और ग़ वर्त्स्य ध्वनियाँ- varstya varn kaun se haiइसके अंतर्गत अरबी-फारसी की ज़ और फ़ की ध्वनि आती है। काकल्य- kaakaly varn kon se haiजिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में मुखगुहा खुली रहती है और वायु बन्द कंठ को खोलकर झटके से बाहर निकल पड़ती है उसे काकल्य व्यंजन ध्वनियाँ कहते है। जैसे हिंदी में ‘ह’। यह ध्वनि हिंदी में स्वरों की तरह ही बिना किसी अवरोध के उच्चरित होती है। हिंदी में ‘ह’ महाप्राण अघोष ध्वनि है। हिंदी की ध्वनियों का उनके उच्चारण प्रयत्न के आधार पर वर्गीकरण-स्पर्श- sparsh varn kaun se hote haiस्पर्श ध्वनियाँ वे ध्वनियाँ है, जिसके उच्चारण में मुख-विवर में कहीं न कहीं हवा को रोका जाता है और हवा बिना किसी घर्षण के मुँह से निकलती है। प, फ, ब, भ, य, द, ध, ट, ठ, ड, ढ, क, ख, ग, घ आदि के उच्चारण में हवा रुकती है। अतः इन्हें स्पर्श ध्वनियाँ कहते है। अंग्रेज़ी में इन्हें स्टाप या एक्सप्लोसिव ध्वनियाँ तथा हिंदी में स्फोट ध्वनियाँ भी कहते हैं। स्पर्श संघर्ष- sparsh sanghrsh varn kaun se haiजिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा तालु के स्पर्श के साथ-साथ कुछ घर्षण भी करती हुई आए तो ऐसी ध्वनियाँ स्पर्श संघर्षी ध्वनियाँ होती है। जैसे – च, छ, ज, झ। संघर्षी- sangharshi dhwaniya kaun see haiवह व्यंजन जिसके उच्चारण में वायु मार्ग संकुचित हो जाता है और वायु घर्षण करके निकलती है। जैसे – फ, ज, स लुंठित- lunthit varn kaun se haiइन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वानोक
में लुण्ठन या आलोड़न क्रिया होती है। हिंदी की ‘र’ ध्वनि प्रकम्पित या लुंठित वर्ग में आती है। पार्श्विक- parshwik dhwani varnहिंदी की ‘ल’ ध्वनि पार्श्विक ध्वनि है, किंतु जिह्वानोक के दोनों तरफ से हवा के बाहर निकलने का रास्ता है। दोनों तरफ (पार्श्वो) से हवा निकलने के कारण इन ध्वनियों को पार्श्विक ध्वनियाँ कहा जाता है। उत्क्षिप्त- utkshipt varnउत्क्षिप्त ध्वनियाँ वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में जिह्वानोक जिह्वाग्र को मोड़कर मूर्धा
की ओर ले जाते है और फिर झटके के साथ जीभ को नीचे फेंका जाता है। हिंदी की ‘ड’, ‘ढ’ आदि ध्वनियाँ उत्क्षिप्त हैं। नासिक्य- naasikya varn or dhwaniyaइन व्यंजनों के उच्चारण में कोमलतालु नीचे झुक जाती है। इस कारण श्वासवायु मुख के साथ-साथ नासारन्ध्र से बाहर निकलती है। इसीलिए व्यंजनों में अनुनासिकता आ जाती है। हिंदी में नासिक्य व्यंजन इस प्रकार है – म, म्ह, न, न्ह, ण, ङ। अल्पप्राण – महाप्राण, घोष – अघोष तालिका :- alppraan mahaapran, ghosh aghosh table
वायु की शक्ति के आधार पर हिंदी की ध्वनियाँ का वर्गीकरणअल्पप्राण – alppran kise kahate haiजिन ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ों से कम श्वास वायु बाहर निकलती है, उन्हें अल्पप्राण कहते है। हिंदी की प, ब, त, द, च, ज, क, ल, र, व, य आदि ध्वनियाँ अल्पप्राण है। महाप्राण- mahaapraan kise kahate haiजिन ध्वनियों के
उच्चारण में फेफड़ों से अधिक श्वास वायु बाहर निकलती है, उन्हें महाप्राण कहते है। जैसे—ख, घ, फ, भ, थ, ध, छ, झ आदि महाप्राण है। घोषत्व की दृष्टि से हिंदी की ध्वनियांअघोष- aghosh varnजिन ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ों से श्वास वायु स्वर-तंत्रियों से कंपन करती हुई नहीं निकलती अघोष कहलाती है। जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स। सघोष- saghosh / ghosh varnजिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु
स्वर-तंत्रियों में कंपन करती हुई निकलती है, उन्हें सघोष कहते है। जैसे – ग, घ, ङ, ञ, झ, म, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म तथा य, र, ल, व, ड, ढ ध्वनियाँ सघोष है। हिंदी की ध्वनियों की कुछ अन्य विशेषताएँ –दीर्घता- deerghata kyaa haiकिसी ध्वनि के उच्चारण में लगने वाले समय को दीर्घता कहा जाता है। किसी भाषा मे दीर्घता का कोई सामान्य रूप नहीं होता। दीर्घता का अर्थ है किसी ध्वनि का
अविभाज्य रूप में लंबा होना। हिंदी व अंग्रेज़ी में जहाँ ह्रस्व व दीर्घ दो वर्ग मिलते है, वहीं संस्कृत में ह्रस्व, दीर्घ व प्लुत तीन मात्राओं की चर्चा की गई है। बलाघात- balaghaat kya hota haiध्वनि के उच्चारण में प्रयुक्त बल की मात्रा को बलाघात कहते है। बलाघात युक्त ध्वनि के उच्चारण के लिए अधिक प्राणशक्ति अर्थात् फेफड़ो से निकलने वाली वायु का उपयोग करना पड़ता है। बलाघात की एकाधिक सापेक्षिक मात्राएँ मिलती है-
लगभग सभी भाषाओं में वाक्य बलाघात का प्रयोग होता है। साधारणतः संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण और क्रिया विशेषण बलाघात युक्त होते है और अव्यय तथा परसर्ग बलाघात वहन नहीं करते है। अंग्रेज़ी में शब्द बलाघात और वाक्य बलाघात दोनों मिलते हैं। हिंदी में बलाघात का महत्व शब्द की दृष्टि से नहीं अपितु वाक्य की दृष्टि से होता है। यथा – यह मोहन नहीं राम है। यहाँ विरोध के लिए राम पर बल दिया जाता है। हिंदी में बल परिवर्तन से शब्द का अर्थ तो नहीं बदलता पर उच्चारण की स्वाभाविकता प्रभावित हो जाती है। अनुतान – anutaan kyaa hai / aaroh – avarohस्वन-यंत्र में उत्पन्न घोष के आरोह-अवरोह के क्रम को अनुतान कहते है। अन्य शब्दों में स्वर-तंत्रियों के कंपन से उत्पन्न होने वाले सुर का उतार चढ़ाव ही अनुतान है। साधारणतः मानव की सुर-तन्त्रियाँ 42 आवृत्ति प्रति सेकेण्ड की न्यूनतम सीमा से लेकर 2400 की अधिकतम सीमा के मध्य कम्पित होती है। कंपन की मात्रा व्यक्ति की आयु व लिंग पर भी निर्भर करती है। सुर-तन्त्रियाँ जितनी पतली व लचीली होंगी कंपन उतना ही अधिक होगा तथा मोटी व
लम्बी सुर तन्त्रियों के कंपन की मात्रा कम होंगी। यह कंपन यदि वाक्य के स्तर पर घटता-बढ़ता है तो उसे अनुतान कहा जाता है और जब शब्द के स्तर पर घटित होता है तब उसे तान कहते हैं। अनुतान की दृष्टि से सम्पूर्ण वाक्य को ही एक इकाई के रूप में लिया जाता है, पृथ्क्-पृथ्क् ध्वनियों को नहीं। सुर के अनेक स्तर हो सकते है, परन्तु अधिकांश भाषाओं में उसके तीन स्तर माने जाते हैं –
उदाहरण के लिए हिंदी में निम्नलिखित वाक्य अलग-अलग सुर-स्तरों में बोलने पर
अलग-अलग अर्थ देता है:-
विवृत्ति- vivrati kya hai / hindi varno me sankraman kya ahi ?ध्वनि क्रमों के मध्य उपस्थित व्यवधान को विवृत्ति कहा जाता है। वस्तुतः एक ध्वनि से दूसरी ध्वनि पर जाने की (अर्थात् उच्चारण की) दो विधियाँ हैं। अन्य शब्दों में संक्रमण दो प्रकार का होता है-
हिंदी में विवृत्ति के उदाहरण हैं:-
वर्णों का उच्चारण स्थान in sanskritङ का उच्चारण स्थान हैउच्चारण स्थान संस्कृतउच्चारण स्थान तालिकासंस्कृत उच्चारण स्थान सूत्रउच्चारण स्थान तालिका इन संस्कृतड् का उच्चारण स्थानश ध्वनि का उच्चारण स्थान क्या हैवर्ण के भेदवर्णों का उच्चारण स्थानअयोगवाह वर्णहिन्दी वर्णमाला का इतिहासवर्ण किसे कहते हैँस्वर और व्यंजन chartस्पर्श व्यंजन किसे कहते हैंसंस्कृत वर्णमाला में कितने वर्ण होते हैं
संस्कृत वर्ण विचारअयोगवाह वर्ण संस्कृतवर्ण के प्रकारवर्ण संयोजन संस्कृतहिन्दी वर्ण विन्यासवर्ण विन्यास संस्कृत उदाहरणअयोगवाह के प्रकारव्यंजन वर्ण कितने होते हैअयोगवाह वर्णवर्ण किसे कहते हैँवर्ण विचारनिरनुनासिक वर्णवर्णमाला हिन्दीहिन्दी वर्णमाला का इतिहासहिन्दी वर्णमाला उच्चारण
क ख ग घ ड़ का उच्चारण स्थान क्या है?सही विकल्प कंठ है। 'क' वर्ग का उच्चारण कंठ्य से होता है। यही कारण है कि इसे कंठ्य ध्वनि कहते हैं। इसमें 'क', 'ख', 'ग', 'घ', 'ड़ वर्ण शामिल हैं।
क ख ग घ ङ कौन सी ध्वनियाँ हैं?वर्णों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं । कवर्ग- क, ख, ग, घ, ङ चवर्ग-च, छ, ज, झ, ञ टवर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण तवर्ग-त, थ, द, ध, न पवर्ग-प, फ, ब, भ, म । अन्तस्थ व्यंजन कहते हैं।
ङ का उच्चारण कैसे होता है?'ङ' का उच्चारण स्थान – नासिका है। अर्थात् अनुनासिक वर्णों ( ञ म ङ ण न) का उच्चारण स्थान नासिका होगा अतः ङ का उच्चारण स्थान नासिका होगी।
ड का उच्चारण स्थान क्या है?-ऋकार, टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ और षकार इनका “ मूर्धा ” उच्चारण स्थान है।
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