भाव स्पष्ट कीजिए - Show इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं|| देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना|| इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं|| देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना|| प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है। भाव- भाव यह है कि लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अभिमान का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं है जो किसी की भी तर्जनी देखकर मुरझा जाएँ। मैंने फरसे और धनुष-बाण को अच्छी तरह से देख लिया है। इसलिए ये सब आपसे अभिमान सहित कह रहा हूँ। अर्थात् हम कोमल पुष्पों की भाँति नहीं हैं जो ज़रा से छूने मात्र से ही मुरझा जाते हैं। हम बालक अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत देखे हैं इसलिए हमें नादान बालक समझने का प्रयास न करें। Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? पेज नम्बर : 14 प्रश्न अभ्यास प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए? उत्तर – धनुष टूटने पर जब परशुराम ने क्रोध प्रकट किया, तब लक्ष्मण ने निम्नलिखित तर्क दिए प्रश्न 2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर – राम स्वभाव से कोमल और विनयी हैं। उनके मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा और आदर है। वे गुरुजनों के सामने झुकना अपना धर्म समझते हैं। वे महाक्रोधी परशुराम के क्रुद्ध होने पर भी स्वयं को उनका दास कहते हैं। इस प्रकार वे परशुराम का दिल जीत लेते हैं। लक्ष्मण राम से एकदम विपरीत हैं। वे बहुत उग्र और प्रचंड हैं। उनकी जुबान छुरी से भी अधिक तेज है। वे व्यंग्य-वचनों से परशुराम को छलनी-छलनी कर देते हैं। उनकी उग्रता और कठोर वचनों को सुनकर न केवल परशुराम भड़क उठते हैं बल्कि अन्य सभाजन भी उन्हें अनुचित कहने लगते हैं। वास्तव में राम छाया है तो लक्ष्मण धूप। राम शीतल जल हैं तो लक्ष्मण आग। प्रश्न 3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए। उत्तर – मेरे अनुसार लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का सबसे अच्छा अंश निम्नलिखित है: लक्ष्मणः हे मुनि! धनुष तोड़ने में हम किसी लाभ-हानि की चिंता नहीं करते। और यह धनुष तो छूते ही स्वयं टूट गया अतः आपका हम पर क्रोध करना सर्वथा अनुचित है। परशुराम: हे दुष्ट बालक! तू मुझसे तथा मेरे स्वभाव से परिचित नहीं है। मैं अत्यंत क्रोधी हूँ। मैं अब तक तूझे बालक मानकर ही तेरा वध नहीं कर रहा हूँ। और तू मुझे सिर्फ एक साधारण मुनि समझता है। लक्ष्मण: हे मुनि! आप स्वयं को बहुत योद्धा मान रहे हैं। और मुझे बार-बार अपना फरसा दिखाकर डराने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप फूंक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम भी कुम्हड़ा के बतिया के समान कोमल बालक नहीं है जो आपकी धमकियों से डर जाएँगे। आपके वचन ही अत्यंत कठोर हैं आपको धनुष-बाण और फरसे की कोई जरूरत नहीं। प्रश्न 4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए – बाल ब्रह्मचारी अति कोही, विस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप विनु कीन्ही। विपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसवाहुभुज छेदनिहारा। परसु विलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचवस करसि महीसकिसोर।
उत्तर – साहस और शक्ति मानव मात्र के लिए सद्गुण हैं जो अत्यंत आवश्यक हैं। अगर इनके साथ विनम्रता का मिलन हो जाए तो क्या कहना। अक्सर साहस और शक्ति के प्रदर्शन में विनम्रता छूट जाती है। इसे साहस और शक्ति का विरोधी मान लिया जाता है परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है। साहस और शक्ति विनम्रता के साथ ही प्रशंसनीय हैं। प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए-
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।। (ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं।। देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।। (ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।। उत्तर – (क) लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले- अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार कुल्हाड़ी इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं। (ख) कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूढ़ि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी युक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे फल की ओर तर्जनी अंगुली से संकेत करने भर से वह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शस्त्र और फरसे को देखकर कहा था। (ग) प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि जिस प्रकार सावन के अंधे को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई देता है, वैसे विजय के मद में चूर व्यक्ति को सभी वीर योद्धा तुच्छ और निर्बल नजर आते हैं। परिणामस्वरूप वह अपने से ताकतवर शत्रु को पहचान कर भी नहीं पहचान पाता है। प्रश्न 8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए। उत्तर – तुलसीदास के पठित पाठ के आधार पर उनकी भाषागत विशेषताओं पर दस पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं- (1) तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग किया है। (2) कवि ने दोहा-चौपाई छंद का सुंदर प्रयोग किया है। (3) दो चौपाइयों के बाद एक दोहे का क्रम अत्यंत सुंदर बन गया है। (4) भाषा में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग सुंदर है। (5) भाषा अलंकारों से सुसज्जित है। (6) छंद में मात्राओं के बंधन का पूरा निर्वाह हुआ है। (7) गेयता का गुण विद्यमान है। (9) ओजगुण एवं वीर रस है।
प्रश्न 10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लाखए।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। (ग ) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। (घ) लखन उत्तर आहुति सरिस भृगुवरकोपु कृसानु।
अनुप्रास – कोटि कुलिस।
पुनरुक्ति प्रकाश – बार-बार।
रूपक – भृगुबर कोपु कृसानु (क्रोध रूपी आग) रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो, तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत-से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात को पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव के लिए नहीं होता, बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए। उत्तर पक्ष– जीवन में अपने अधिकारों की माँग के लिए क्रोध बहुत ज़रूरी है। इससे अन्याय का मुकाबला किया जा सकता है। क्रोध भी एक भाव है जिसका उचित अवसर पर प्रयोग सकारात्मक होता है। किसी के प्रति अन्याय को रोकना या अपने अधिकार के लिए क्रोध करना क्रोध का सकारात्मक रूप है। विपक्ष – ज़रूरी नहीं कि क्रोध धारण कर के ही अपने अधिकारों की माँग पूरी होती हो। कभी-कभी शांत स्वभाव भी व्यक्ति को उसके अधिकार दिलाने में सहायक होता है। क्रोध एक अवगुण है। यह विवेक के नाश का कारण माना जाता है। क्रोध एक ऐसा शत्रु है, जो मनुष्य को नष्ट कर देता है। यह शरीर और मन को बुरा बना देता है। क्रोध में आकर व्यक्ति अन्याय भी कर देता है। क्रोध मनुष्य को अहंकारी बना देता है। प्रश्न 12. संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य वाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता। उत्तर (i) राम के रूप में मेरा व्यवहार– संकलित अंश में प्रस्तुत परिस्थितियों में मेरा व्यवहार निश्चित रूप से नम्रतापूर्ण व अनुशासित होता। मैं अपने भाई को भी समझाता कि बड़ों के साथ मर्यादा में रहकर बातें करनी चाहिए। मैं उस तथ्य को स्वीकार करता, जिसके फलस्वरूप परशुराम क्रोधित हो रहे थे। बड़ों का सम्मान करना मेरा पुनीत कर्तव्य है। मैं अपने छोटे भाई को भी समझाता कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए। (ii) लक्ष्मण के रूप में मेरा व्यवहार– लक्ष्मण के रूप में मेरा व्यवहार न तो बहुत विनयपूर्ण होता और न ही व्यंग्यपूर्ण। मैं मध्यम मार्ग अपनाकर अपने विचार रखता। मैं उस प्रसंग को ध्यान में रखता, जिसके फलस्वरूप शिव धनुष तोड़ा गया। मैं विनयपूर्वक अपना पक्ष उनके सामने रखता। बड़ों के साथ सम्मान से बातें करना अच्छी बात है। हर स्थान पर ईंट का जवाब पत्थर नहीं होता है। मैं उनसे व्यंग्यपूर्ण बातें नहीं करता, व्यंग्यपूर्ण व्यवहार अपमानजनक होता है। । मैं परशुराम के श्रद्धेय व्यक्तित्व को नकारता नहीं। (iii) परशुराम के रूप में मेरा व्यवहार– अपने इष्ट की प्रिय वस्तु के टूट जाने पर मुझे क्रोध अवश्य आता, परंतु मैं उस क्रोध की अभिव्यक्ति मर्यादा में रहकर करता क्योंकि मेरे विचार में मर्यादाएँ केवल छोटों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी आवश्यक हैं। अतः मर्यादित आचरण करके पहले मैं उस तथ्य का पता लगाता, जिसके कारण शिव धनुष-खंडन की घटना घटित हुई। यह विचार करके कि धनुष का टूटना एक शुभ घटना थी और धनुष का खंडन करने वाले स्वयं विष्णु के अवतार श्री राम थे, मैं श्री राम का सम्मान करता और उनको शुभकामनाएँ देता। ये शुभकामनाएँ इसलिए भी होती कि उन्होंने धनुष का खंडन करके राजा जनक को पुत्री के विवाह की चिंता से मुक्त कर दिया था।
उत्तर – एक बच्ची-विल्मा रुडोल्फ़ का जन्म टेनेसस के एक गरीब परिवार में हुआ। 14 साल की उम्र में वह पोलियों का शिकार हो गई। डॉक्टरों ने उसे यहाँ तक कह दिया कि वह जिंदगी भर चल-फिर नहीं सकेगी, किंतु वह कुशल धाविका बनना चाहती थी। डॉक्टरों के मना करने पर भी उसने ब्रेस को उतारकर पहली दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, किंतु वह सबसे पीछे रही। उसके बाद दूसरी-तीसरी अन्य दौड़ प्रतियोगिताओं में सबसे पीट रही, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह अपनी त्रुटियों को दूर करती रही और सन् 1960 के ओलंपिक में वह दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनी। प्रश्न 15. उन घटनाओं को याद करके लिखिए, जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर – अवधी भाषा प्रचलित रूप से आजकल लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर, फतेहपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है। Mrs. Shilpi Nagpal is a post-graduate in Chemistry and an experienced tutor who has been teaching students since 2007. She specialises in tutoring science subjects for students in grades 6-12. Mrs. Nagpal has a proven track record of success, and her students have consistently achieved better grades and improved test scores. She is articulate, knowledgeable and her passion for teaching shines through in her work with students. Reader Interactionsकुम्हडबतिया का उदाहरण क्यों दिया गया है?उत्तर: लक्ष्मण ने अपने लिए 'कुम्हड़बतिया' शब्द का प्रयोग इसलिए किया है कि वह भी वीर साहसी तथा निर्भीक हैं। वह कुम्हड़े के कच्चे फल की तरह दुर्बल नहीं है जो आपके डराने-धमकाने और फरसा दिखाने से भयभीत हो जाएँ।
कुम्हड़बतिया का क्या अर्थ होता है?कुम्हड़बतिया कद्दू जैसा एक छोटा फल होता है, जो बेहद कोमल होता है और जरा सा छूते ही मुरझा जाता है। लक्ष्मण इसका उदाहण यह कहना चाह रहे हैं कि आप हमें इस फल की तरह कमजोर ना समझें। हम कुम्हड़बतिया नहीं हैं, जो आपके छूने मात्र से मुरझा जाएंगे, यानि डर जायेंगे। चौपाई में लक्ष्मण ने इसी संदर्भ में इसका प्रयोग किया है।
लक्ष्मण के हंसने का क्या कारण है?लक्ष्मण के हँसने का कारण परशुराम की गर्व भरी बातें एवं खुद को परशुराम द्वारा हलके में लेना है । परशुरामजी मुनीसु हैं। उन्होंने शिव-धनुष के टूट जाने पर राम को बुरा-भला कहा और बार-बार धनुष दिखाकर दंड देने की बात कही, फलस्वरूप लक्ष्मण अपना पक्ष रखते हुए उनसे बहस कर रहे हैं।
कुम्हड़बतिया की क्या विशेषता है *?आपको कुल्हाड़ा दिखाकर आप हमें ऐसा जताना चाहते हैं, जैसे फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हों, लेकिन हम (राम-लक्ष्मण) भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं हैं, अर्थात हम यानी राम और लक्ष्मण कोई कमजोर नहीं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाएंगे। लक्ष्मण ने के इस कथन से उनके साहसी और वीर व्यक्तित्व का पता चलता है।
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