कौन से राजा की 100 रानी थी? - kaun se raaja kee 100 raanee thee?

भारत के इतिहास में असंख्य राजाओं और रानियों का नाम दर्ज मिलता है. इन शासकों में से कुछ शासकों ने महान लड़ाइयां लड़ीं और हर तरह से अपने साम्राज्य की रक्षा की. कला के अद्भुत नूमने के तौर पर कई महलों का निर्माण करवाया हालांकि इन राजाओं-रानी की निजी जिंदगी भी कम दिलचस्प नहीं रही है. कुछ शासकों ने अपने शासनकाल के दौरान लंबे समय तक अपनी निजी जिंदगी के कई राज परदों के भीतर ही रखे. लेकिन कहते हैं ना कि दीवारों के भी कान होते हैं और इन राजाओं की निजी जिंदगी के कई राज चार दीवारों से बाहर आ ही गए. आइए जानते हैं कुछ राजाओं की निजी जिंदगी के हैरान कर देने वाले किस्से...आखिरी की स्लाइड्स पढ़कर तो शायद आप चौंक ही जाएं!

कौन से राजा की 100 रानी थी? - kaun se raaja kee 100 raanee thee?

भरतपुर के महाराज किशन सिंह-

भरतपुर के महाराजा किशन सिंह अपने विचित्र शौकों के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने एक या दो से शादी नहीं की बल्कि उनकी 40 संगिनियां थीं. उनके शाही शौकों के बारे में सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे...

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दीवान जारामनी दास ने अपनी किताब 'महाराजा' में किशन सिंह के जिंदगी से जुड़े कई वाकयों का जिक्र किया है. किशन सिंह को तैराकी का बहुत शौक था. अपने इस शौक को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते थे.

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महाराजा किशन सिंह ने गुलाबी संगमरमर वाली एक झील बनावायी और उसमें उतरने के लिए चंदन की लकड़ियों वाली सीढ़ियां बनवाई. चंदन की 20 छड़ियां इस तरह से रखी गई थीं कि दो राजा एक छड़ी पर आराम से खड़े हो सकें. उनके स्वागत में उनकी पत्नियां निर्वस्त्र सीढ़ियों पर खड़ी रहती थीं.

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सभी रानियां अपने हाथों में एक मोमबत्ती लिए रहती थीं. इसके अलावा प्रकाश के सभी स्त्रोत बंद कर दिए जाते थे. अपने हाथों में मोबत्तियां लेकर ये रानियां नृत्य करती थीं. जिसकी मोमबत्ती सबसे अंत तक जलती रहती थी, उसे राजा के साथ समय रात्रि बिताने का मौका मिलता था.

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फिरोजशाह तुगलक के राज-
फिरोजशाह तुगलक ने पैलेस कॉम्प्लेक्स का हिसार में निर्माण करवाया था. फिरोजशाह तुगलक ने अपनी प्रेमिका गुजरी के लिए इसका निर्माण करवाया था इसीलिए इस शाही महल को गुजरी महल कहा जाता है.

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फिरोजशाह तुगलक के प्रेम प्रसंग-
बात उस समय की है जब तुगलक राजा नहीं बने थे बल्कि राजकुमार ही थे. फिरोजशाह तुगलक को शिकार का बहुत शौक था. जंगलों के भीतर एक ऐसी जगह थी जहां अपने परिजनों द्वारा परित्यक्त लोग रहते थे. गुजरी नाम की एक महिला वहां रोज दूध बेचने आया करती थी और दूध बेचकर अपनी आजीविका चलाती थी. फिरोज इसी जगह पर गुजरी से मिले थे.

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फिरोज शाह तुगलक गुजरी से मिलने के लिए दीवाने हो गए थे. जल्द ही वह उसकी प्रियतमा बन गई. जब उसने अपने दिल्ली दरबार में एक सम्मानजनक पद का प्रस्ताव दिया तो उसने इनकार कर दिया. इसलिए फिरोजशाह तुगलक ने उससे मिलने के लिए हिसार शहर में एक किले का निर्माण करवाया और अपने लिए गुजरी महल बनवाने का आदेश दिया.

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पटियाला के महाराजा भूपिंदर-
पटियाला के महाराज भूपिंदर के 88 बच्चे थे और उनकी हरम में बहुत सी औरतें थीं. उनके बारे में कहा जाता है कि साल में एक बार वह हरम में निर्वस्त्र होकर परेड करते थे ताकि वह सभी को सुनिश्चित कर सकें कि वह जीवित हैं और पूरी तरह से स्वस्थ हैं!

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मुगल बादशाह शाहजहां-

लोग ताजमहल को प्यार के प्रतीक के तौर पर ही याद करते हैं हालांकि ताजमहल लगातार बच्चों को जन्म देने की वजह से मुमताज की हुई मौत का भी गवाह है. मुमताज की मौत 14वें बच्चे शाहजहां को जन्म देने के बाद हो गई थी. उनकी मृत्यु 39 साल की उम्र में हो गई थी. चूंकि वह शाहजहां के दिल के बहुत ही करीब थीं और मुगल बादशाह उनकी खूबसूरती का कायल था इसलिए शाहजहां ने मुमताज के अलावा किसी और पत्नी से बच्चे पैदा नहीं किए. लगातार बच्चों को जन्म देने की वजह से उसे कई गंभीर समस्याएं हो गई थीं और उसकी मौत हो गई. मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने अपनी कजिन से शादी कर ली. मुमताज की मौत के बाद उसने करीब 8 शादियां और कीं.

सिंध का समुद्री मार्ग पूरे विश्व के साथ व्यापार करने के लिए खुला हुआ था। सिंध के व्यापारी उस काल में भी समुद्र मार्ग से व्यापार करने दूर देशों तक जाया करते थे और अरब, इराक, ईरान से आने वाले जहाज सिंध के देवल बंदर होते हुए अन्य देशों की तरफ जाते थे। जहाज में सवार अरब व्यापारियों के सुरक्षाकर्मियों ने देवल के शहर पर बिना कारण हमला कर दिया और शहर से कुछ बच्चों और औरतों को जहाज में कैद कर लिया। जब इसका समाचार सूबेदार को मिला तो उसने अपने रक्षकों सहित जहाज पर आक्रमण कर अपहृत औरतों ओर बच्चों को बंधनमुक्त कराया। अरबी जान बचाकर अपना जहाज लेकर भाग खड़े हुए।

उन दिनों ईरान में धर्मगुरु खलीफा का शासन था। हजाज उनका मंत्री था। खलीफा के पूर्वजों ने सिंध फतह करने के मंसूबे बनाए थे, लेकिन अब तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली थी। अरब व्यपारी ने खलीफा के सामने उपस्थित होकर सिंध में हुई घटना को लूटपाट की घटना बताकर सहानुभूति प्राप्त करनी चाही। खलीफा स्वयं सिंध पर आक्रमण करने का बहाना ढूंढ रहा था। उसे ऐसे ही अवसर की तलाश थी। उसने अब्दुल्ला नामक व्यक्ति के नेतृत्व में अरबी सैनिकों का दल सिंध विजय करने के लिए रवाना किया। युद्ध में अरब सेनापति अब्दुल्ला को जान से हाथ धोना पड़ा। खलीफा अपनी हार से तिलमिला उठा।

दस हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिंध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया। सिंधी शूरवीरों को सेना में भर्ती होने और मातृभूमि की रक्षा करने के लिए सर्वस्व अर्पण करने का आह्वान किया। कई नवयुवक सेना में भर्ती किए गए। सिंधु वीरों ने डटकर मुकाबला किया और कासिम को सोचने पर मजबूर कर दिया।

सूर्यास्त तक अरबी सेना हार के कगार पर खड़ी थी। सूर्यास्त के समय युद्धविराम हुआ। सभी सिंधुवीर अपने शिविरों में विश्राम हेतु चले गए। ज्ञानबुद्ध और मोक्षवासव नामक दो लोगों ने कासिम की सेना का साथ दिया और ‍रात्रि में सिंधुवीरों के शिविर पर हमला बोल दिया गया।

महाराज की वीरगति और अरबी सेना के अलोर की ओर बढ़ने के समाचार से रानी लाडी अचेत हो गईं। सिंधी वीरांगनाओं ने अरबी सेनाओं का स्वागत अलोर में तीरों और भालों की वर्षा के साथ किया। कई वीरांगनाओं ने अपने प्राण मातृभूमि की रक्षार्थ दे दिए। जब अरबी सेना के सामने सिंधी वीरांगनाएं टिक नहीं पाईं तो उन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर किया।

बच गईं दोनों राजकुमारियां सूरजदेवी और परमाल ने युद्ध क्षेत्र में घायल सैनिकों की सेवा की। तभी उन्हें दुश्मनों ने पकड़कर कैद कर लिया। सेनानायक मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी जीत की खुशी में दोनों राजकन्याओं को भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया। खलीफा दोनों राजकुमारियों की खूबसूरती पर मोहित हो गया और दोनों कन्याओं को अपने जनानखाने में शामिल करने का हुक्म दिया, लेकिन राजकुमारियों ने अपनी चतुराई से कासिम को सजा दिलाई। लेकिन जब राजकुमारियों के इस धोखे का पता चला ‍तो खलीफा ने दोनों को कत्ल करने का आदेश दिया तभी दोनों राजकुमारियों ने खंजर निकाला और अपने पेट में घोंप लिया और इस तरह राजपरिवार की सभी महिलाओं ने अपने देश के लिए बलिदान दे दिया।

कौन से राजा की 365 रानी थी?

पटियाला में पुरानी रियासत के महल आज भी महाराजा भुपिंदर सिंह की 365 रानियों के किस्से बयान करते हैं। महाराजा भूपिंदर सिंह ने यहां वर्ष 1900 से वर्ष 1938 तक राज किया। आगे पढ़ें कैसे रानियों के साथ रातें बिताते थे महाराजा.... -इतिहासकारों के मुताबिक महाराजा भूपिंदर सिहं की की 10 अधिकृत रानियों के समेत कुल 365 रानियां थीं।

राजा इतनी रानियों को कैसे संतुष्ट करते थे?

आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार प्राचीन काल में राजाओं ने 100 रानियों को संतुष्ट करने के लिए जावित्री, जायफल, अश्वगंधा, शिलाजीत, सफेद मूसली का सेवन किया करते थे. इन सभी पदार्थों में ऐसे खनिज और विटामिंस मौजूद होते हैं जो शरीर के परिसंचरण प्रतिरक्षा और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के उत्पादन को तेज करता है.

राजा इतनी शादी क्यों करते थे?

राजा एक राज्य का राजा होता था उसके आदेश पूरे राज्य में सर्वमान्य होते थें। यही कारण है कि राजा को जब अपने राज्य में कोई स्त्री पसंद आती तो वो उससे विवाह प्रस्ताव भेज देते थें। राज्य का राजा होने के चलते उनके पास सभी अधिकार होते थें बिना भय के राजा किसी भी स्त्री को शादी के लिए मजबूर कर सकता था।

पहले के राजा महाराजा क्या खाते थे?

प्राचीन काल के राजा महाराजा शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे । कुछ राजा केवल शाकाहारी और कुछ मांसाहारी व शाकाहार दोनों भोजन करते थे । महल में खाना बनाने के लिए राज्य के सबसे अच्छे रसोइए रखे जाते थे । जो राजाओं को तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खिलाते थे