कन्यादान कविता में अंतिम पूंजी क्या है? - kanyaadaan kavita mein antim poonjee kya hai?

माँ को अपनी बेटी 'अंतिम पूँजी' क्यों लग रही थी ?

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लिखित उत्तर

Solution : माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटे के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परन्तु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।

कन्यादान कविता में अंतिम पूंजी क्या है? - kanyaadaan kavita mein antim poonjee kya hai?

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Kanyadaan' kavita mein beti ko antim pooji kyo kaha gaya hai??

  • Posted by Deeksha Singh 2 years, 11 months ago

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    क्योकि पुत्री माँ के सबसे निकट थी। वह अपने सुख दुख की बातें उसके साथ ही करती थीं। विवाह से पहले वह अपनी माँ से सुख दुख की बातें करती थीं किन्तु अब बेटी के साथ बाटती है। अतः बेटी का जाना माँ के लिए 'अंतिम पूंजी' के समान है।

    Maa ko apni beti antim punji isliye lag rahi thi kyonki beti hi apni maa ke sukh dukh me sahyog dene wali or uske sath sath chalne wali hoti h.beti apni maa ke sabse najdik rahti h.maa apne jeewan ke sampor sanskaro ko usme bhar dheti h

    isliye kavita me beti ko maa ki antim punji kaha gya hai?

    becoz beti maa ke sbse nikat aur sukh-dukh ki saathi hoti hai....

    कन्यादान कविता में अंतिम पूंजी क्या है? - kanyaadaan kavita mein antim poonjee kya hai?

    Posted by Monika Khichar 1 week ago

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    Posted by Samriddhi Singh 2 days, 10 hours ago

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    Posted by A.K Modi 3 days, 20 hours ago

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    Posted by Saloni Kumari an hour ago

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    Posted by Anshika Sharma 20 hours ago

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    Posted by 🥺 🐼 4 days, 5 hours ago

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    Posted by Pranju Wadaskar 11 hours ago

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    Posted by Ankit Class 10 1 week ago

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    Posted by Sneha Chechani 6 days, 23 hours ago

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    Posted by Ajeet Singh Maurya 6 days, 4 hours ago

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    ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
    जलने के लिए नहीं’
    माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?


    माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा है कि वह भी अनेक अन्य बहुओं की तरह किसी की आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी भी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट देने की कोशिश करने वालों के सामने उठ कर खड़ा हो जाना चाहिए। कोमलता नारी का शाश्वत गुण है पर आज की परिस्थितियों में उसे कठोरता का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि किसी प्रकार की कठिनाई आने की स्थिति में उसका सामना कर सके।

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    पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
    कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
    इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।


    अपने माता-पिता के संस्कारों में बंधी भोली-भाली लड़की उसी रास्ते पर चलना चाहती है जो उसे बचपन से युवावस्था तक दिखाया गया है। उसने माता-पिता की छत्र-छाया में रहते हुए जीवन के दुःखों का सामना नहीं किया। वह नहीं जानती कि आज का समाज कितना बदल गया हैं। उसे दूसरों के द्वारा दी गई पीड़ाओं का कोई अहसास नहीं है। वह तो अज्ञान और अपनी छोटी के धुंधले प्रकाश में जीवन की कुछ तुकों और कुछ लयबद्‌ध पंक्तियों को पढ़ने वाली पाठिका है जो चुपचाप उन्हीं को पड़ती है।

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    आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?


    माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता का गुण विद्‌यभाव है। नारी में ही कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशक्ति, माधुर्य, ममता आदि गुण अधिकता से होते हैं। ये गुण ही परिवार को बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। माँ ने इसीलिए कहा है कि उसका लड़की होना आवश्यक है। उसमें आज की सामाजिक स्थितियों का सामना करने का साहस होना चाहिए। उसमें सहजता सजगता और सचेतता के गुण होने चाहिए। उसे दव्यू और डरपोक नहीं होना चाहिए। इसलिए उसे लड़की जैसी दिखाई नहीं देना चाहिए ताकि कोई सरलता उसे डरा-धमका न सके।

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    ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
    जलने के लिए नहीं’
    इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?


    कवि ने इन पंक्तियों में समाज में विवाहिता र्स्त्रो की बस् के रूप में स्थिति की ओर संकेत किया है। वर्तमान में हमारे भारतीय समाज में दहेज प्रथा और अनैतिक संबंधों की आग बहुओं को बहुत तेजी से जला रही है। लोग दहेज के नाम पर पुत्रवधू के पिता के घर को खाली करके भी चैन नहीं पाते। वे खुले मुँह से धन माँगते हैं और धन न मिलने पर बहू से बुरा व्यवहार करते हैं, उसे मारते-पीटते हैं और अनेक बार लोभ के दैत्य के चंगुल में आ कर उसे आग में धकेल देते हैं। कवियों ने समाज में नारी की इसी स्थिति की ओर संकेत किया है जो निश्चित रूप से अति दुःखदायी है और शोचनीय है। कितना बड़ा आश्चर्य है कि वह आग कभी उस दहेज लोभियों .के घर में उनकी बेटियों को नहीं जलाती। वह सदा बहुओं को ही क्यों जलाती है?

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    माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?


    बेटी ही तो माँ को अपनी अंतिम पूंजी लग रही थी क्योंकि वह अपने जीवन के सारे सुख-दुःख उसी के साथ ही तो बांटती थी। वही उसके सबसे निकट थी, वही उसकी साथी थी।

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    कन्या को अंतिम पूँजी क्यों कहा गया है?

    बेटी उसके खुशियों तथा उसके कष्टों का एकमात्र सहारा होती है। बेटी के चले जाने के पश्चात् माँ के जीवन में खालीपन आ जाएगा। वह बचपन से अपनी पुत्री को सँभालकर उसका पालन-पोषण एक मूल्यवान सम्पत्ति की तरह करती है। इसलिए माँ को उसकी बेटी अंतिम पूँजी लगती है

    कवि ने अंतिम पूंजी किसे कहा है और क्यों?

    Answer: कविता 'कन्यादान' में बेटी को 'अतिम पूँजी' इसलिए कहा है क्योंकि माँ उसको ससुराल भेजने के बाद अकेली हो जाएगी। बेटी ही अब तक उसके सुख-दुख को साथी थी, उसके जीवन भर की कमाई थी।

    कन्यादान कविता में बेटी को अंतिम पूंजी क्यों कहा गया है पूंजी कहकर कहीं उसे वस्तु जैसा तो नहीं समझ लिया गया है?

    क्योकि पुत्री माँ के सबसे निकट थी। वह अपने सुख दुख की बातें उसके साथ ही करती थीं। विवाह से पहले वह अपनी माँ से सुख दुख की बातें करती थीं किन्तु अब बेटी के साथ बाटती है। अतः बेटी का जाना माँ के लिए 'अंतिम पूंजी' के समान है।

    मां को अपनी बेटी अंतिम पूजी ू क्यों लग रही थी?

    माँ को अपनी बेटी अपनी अंतिम पूंजी इसलिए लग रही थी क्योंकि मां अपनी बेटी के साथ अपने जीवन के सभी दुख दर्द बैठती थी वही उसकी सबसे निकट और सच्ची साथी थी। माँ ने अपनी बेटी को बहुत लाड प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया था।