क्रोध मनुष्य का शत्रु है विषय पर अपने विचार लिखिए - krodh manushy ka shatru hai vishay par apane vichaar likhie

क्रोध या गुस्सा एक भावना है। दैहिक स्तर पर क्रोध करने/होने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; रक्त चाप बढ़ जाता है। यह भय से उपज सकता है। भय व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है जब व्यक्ति भय के कारण को रोकने की कोशिश करता है। क्रोध मानव के लिए हानिकारक है। क्रोध कायरता का चिह्न है।सनकी आदमी को अधिक क्रोध आता है उसमे परिस्थितीयो का बोझ झेलने का साहस और धैर्य नही होता।क्रोध संतापयुक्त विकलता की दशा है। क्रोध मे व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो जाती है और वह समाज की नजरो से गिर जाता है।क्रोध आने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है।उपेक्षित तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोग अधिक क्रोध करते है। क्योंकि वे क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी के द्वारा भी समाज को दिखाना चाहते है कि उनका भी अस्तित्व है।क्रोध का ध्येय किसी व्यक्ति विशेष या समाज से प्रेम की अपेक्षा करना भी होता है।

क्रोध पर नियंत्रण की आवश्यकता[संपादित करें]

क्रोध प्रकट करने से पहले: कार्यालय में तनाव अधिक होना धैर्य क्षमता को कम करता है। जब आपके काम का श्रेय कोई और ले लेता है अथवा आपके काम पर प्रश्न उठाता है तो क्रोध के लक्षण उभरने लगते हैं। पर इससे पहले कि क्रोध हम पर हावी हो जाए हमें इसका प्रबंध करना जरूरी हो जाता है। हमें क्रोध के मूल कारण को जानने और समझने की जरूरत है। आप संबंधित व्यक्ति से बातचीत कर सकते हैं अथवा सीनियर के साथ मीटिंग भी कर सकते हैं। सीनियर द्वारा आपके काम पर प्रश्न बदला लेने के लिए तत्पर न रहें।धैर्य मानव का सबसे बड़ा गुण है। गलती मानवीय स्वभाव है, हमेशा सटीक होना सम्भव नहीं है।गुस्सा एक ऐसी अवस्था है जिसमें विचार तो आतें हैं लेकिन भाव अपनी प्रधानता पर होते हैं और सामने वाला कौन है? हमारा उससे क्या सबंध है? हमें उससे कैसा व्यवहार करना चाहिए ? आदि विचार लुप्त हो जाते हैं!

वास्तविकता यह है कि जब हमें गुस्सा आता है तो हम ज्यादा दूर तक नहीं सोच पाते बल्कि उससे होने वाले परिणाम के बारे में भी नहीं सोच पाते । बस दिमाग में रहता है तो वो है गुस्सा, गुस्सा, और गुस्सा। आपका दिमाग तभी संतुलित होकर सोच सकता है जब आप आपके अन्दर किसी भाव की अधिकता न हो । आपने देखा होगा कि जब हम बहुत खुश रहते हैं तब भी हम सही से नहीं सोच पाते । जब कोई भाव हमारे ऊपर पूरी तरह से हावी होता है तो सबसे ज्यादा हमारी "सोचने की क्षमता"(Ability of thinking) प्रभावित होती है ।

क्रोध आने के प्रमुख कारण हैं:

यह सोच कि हम सबसे समझदार और बुद्धिमान हैं और हमें कोई भी समझा नहीं सकता। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो सावधान हो जाइए! इस तरह की सोच आपको गुस्सैल बनती है। अतः अगर आप भी ऐसी सोच रखते हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। जो आपसे कमजोर होता है पद में और पैसे में आपको गुस्सा भी उन्हीं के ऊपर आता है। अगर ऐसा न होता तो लोग अपने ऑफिस में अपने बॉस से गुस्सा हो जाते। कही आप अपने बॉस से लड़ाई तो नहीं कर चुके हैं?

सोच में दूर दर्शिता का आभाव होना; मान लीजिये आपका एक बहुत प्यारा मित्र है जिससे आपकी दोस्ती एक लम्बे समय से है, उसने आपको बुरा-भला कह दिया! आपने एक पल में ही उससे लड़ाई कर ली और उससे दोस्ती तोड़ ली।

अक्सर दूसरे व्यक्ति के व्यवहार व क्रियाकलापों के कारण ही क्रोध उत्पन्न होता है। व्यक्ति को अधिकांशत: क्रोध तब उत्पन्न होता है जब सामने वाला गलती करता है। क्रोध हमारे शरीर का सहज रूप से उत्पन्न होने वाला लक्षण नहीं है। व्यक्ति के सम्मुख जब दूसरा गलती करता है, अपशब्द बकता है, कहना नहीं मानता, अवज्ञा करता है तब यह विकार क्रोध उत्पन्न करता है। जैविक, शारीरिक दोष, दृष्टिकोण और परिवेशजन्य बदले हुए संस्कारों से भी क्रोध उत्पन्न हो सकता है।क्रोध की अभिव्यक्ति हमारे अंदर की कुंठा, हिंसा व द्वेष के कारण भी हो सकती है। वर्तमान काल में अपराधों के बढ़ने का एक प्रमुख कारण भीषण क्रोध ही है। क्रोध से उत्पन्न हुए अपराधों के औचित्य को सिद्ध करने के लिए क्रोधी व्यक्ति कुतर्क कर दूसरे को ही दोषी सिद्ध करता है। एक दोष को दूर करने के लिए अनेक कुतर्क पेश करता है। क्रोध में व्यक्ति आपा खो देता है। क्रोध में अंतत: बुद्धि निस्तेज हो जाती है और विवेक नष्ट हो जाता है। क्रोध का विकराल रूप जुनून है। आदमी पर जुनून सवार होने पर वह जघन्य से जघन्य अपराध कर बैठता है। जुनून की हालत में उसे मानवीय गुणों का न बोध रह पाता है और न ही ज्ञान। क्रोध मानव का सबसे बड़ा शत्रु है, बहुत बड़ा अभिशाप है। शारीरिक रूप से क्रोध से व्यक्ति व्यथित हो उठता है। स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति कमजोर होने से शरीर रोगी हो जाता है। क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति विभ्रमित होती है और स्मृति के विभ्रम से बुद्धि नष्ट हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को क्रोध उत्पन्न नहीं होने देना चाहिए। यह सही है कि दूसरे के क्रियाकलापों से क्रोध उत्पन्न होता है, लेकिन क्रोध के आवेग को रोकने का तो हम प्रयत्‍‌न कर ही सकते हैं। कहते हैं कि क्रोध आने पर एक गिलास ठंडा पानी पीने से क्रोध की अग्नि शांत हो जाती है। दूसरे उपाय के अनुसार उल्टी गिनती गिनने से मस्तिष्क को अधिक व्यस्त रखने के कारण भी क्रोध शांत होता जाता है। इसके साथ ही एकांत में जाकर ध्यान के माध्यम से क्रोध के विकारों को नष्ट करने का प्रयास करें तो ऋणात्मक ऊर्जा को मोड़कर हम सकारात्मक ऊर्जा से विवेक सम्मत निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं।

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    ब्रह्मांडीय शक्तियाँ 3 श्रेणियों में विभाजित करती हैं हर इंसान को, इस तस्वीर के माध्यम से आप भी अपने भीतर झांक सकते हैं

    क्रोध मनुष्य का शत्रु है कैसे?

    क्रोध मनुष्य को बर्बाद कर देता है और उसे अच्छे बुरे का पता नही चलने देता, जिस कारण मनुष्य का इससे नुक्सान होता है। ... उन्होंने कहा कि क्रोध मनुष्य का प्रथम शत्रु होता है। क्रोधी व्यक्ति आवेश में दूसरे का इतना बुरा नहीं जितना स्वयं का करता है। क्रोध व्यक्ति की बुद्धि को समाप्त करके मन को काला बना देता है।

    क्रोध किस तरह से मनुष्य का शत्रु है इसके क्या क्या दुष्परिणाम होते हैं?

    क्रोध व्यक्ति की बुद्धि को समाप्त करके मन को काला बना देता है। उन्होंने कहा कि क्रोध में व्यक्ति की आखें बंद हो जाती है और मुंह खुल जाता है। इसका परिणाम ये होता है कि उसे पता नहीं चलता की वह सामने वाले के साथ क्या व्यवहार कर रहा है। जिस कारण उसके अपने भी पराए बनते जाते है और वह समाज से एक तरह से कट जाता है।

    मानव का शत्रु कौन है?

    भय मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। विश्वास और विकास दोनों ही इससे कुंठित हो जाते हैं। भय मानसिक कमजोरी है। मन दुर्बल हो जाए तो शरीर भी दुर्बल हो जाता है।

    मनुष्य का दुर्जा शत्रु क्या है?

    युधिष्ठर ने विनम्रता-पूर्वक उत्तर दिया..."मनुष्य का दुर्जय शत्रु स्वयं उस का क्रोध है तथा मनुष्य के लिए स्थिरता का अर्थ उस का स्वधर्म है !"