मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंधमनोरंजन के साधन पर निबंध - मनोरंजन के आधुनिक साधन का अर्थ - मनोरंजन के आधुनिक साधन फायदे एवं नुकसान - Essay on Means of Entertainment in Hindi - Means of Entertainment Essay in Hindi - Manoranjan ke Aadhunik Sadhan par Hindi Nibandh रुपरेखा: मनोरंजन का अर्थ - मनोरंजन के बिना स्वास्थ्य - प्राचीन काल में मनोरंजन - मनोरंजन के आधुनिक साधन - अनेक आधुनिक साधन - उपसंहार। Show मनोरंजन का अर्थ मनुष्य के मन को प्रसन्न करने की क्रिया या भाव को मनोरंजन कहते है । ऐसा कोई कार्य या बात जिससे मनुष्य का समय बहुत ही आनंदपूर्वक व्यतीत होता है, उसे मनोरंजन कहते है। मनोविनोद, दिल-बहलाव तथा इन्टरटेनमेंट, इसके रूप हैं। मनोरंजन मात्र मन की रचन-क्रिया ही नहीं, जीवन दर्शन भी है। जीवन जीने की एक कला है। जीवन-मूल्यों के प्रति आस्था है। मनुष्य की विचारधारा की नजर से अस्थिर मनमें कमल विकसित करता है। फिल्म में कही हुए - दिल दे तो इस मिजाज का परवर दिगार दे। जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे।। मानव की स्वभावगत मोहक प्रकति है मनोरंजन | जीवन को हँसकर जीने की औषधि है तो स्वास्थ्य का अनोखा मंत्र है मनोरं॑जन। मनोरंजन का अर्थ है मन को प्रसन्न रखना। इसी को मनोविनोद भी कहते हैं। मन के प्रसन्न रहने से शरीर व मन, दोनों को लाभ मिलता है तथा प्रसन्न रहने से आयु बढ़ती है। मनोरंजन के क्षणों में शरीर के तनाव-ग्रस्त तन्तु ढीले पड़ जाते हैं और अतिरिक्त शक्ति का ढेर होने लगता है। मनोरंजन के बिना स्वास्थ्य मनोरंजन के बिना मनुष्य का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। कार्यों में मन नहीं लगता है। इच्छा-शक्ति कमजोर पड़ जाता है। मानसिक चेतना ही जागृति के अभाव में जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। मनुष्य के स्वभाव में चिंड़चिड़ापन आ जाता है। निर्मल भाव समाप्त हो जाता है तथा जीवन नीरसता से भर जाता है । इस कारन मनुष्य का मानसिक चेतना ख़राब हो जाता है और वह अपना स्वास्थ्य को ख़राब कर बैठता है। इसीलिए मनुष्य मनोरंजन के लिए कुछ समय निकलता है तथा अपने मन जीवन में आनंदमय क्षणों की वास्तविक अनुभूति प्राप्त करना आवश्यक समझता है। प्राचीन काल में मनोरंजन प्राचीन काल में खान-पान, सरकस जैसे साधन थे। प्राचीन भारत में नाटक और पुत्तलिका-नृत्य, काव्य- ग्रन्थों का अध्ययन, शतरंज और ताश, शिकार आदि प्राचीन काल में मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। मनोरंजन के आधुनिक साधन वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों का भी विकास होता गया। आज मनोरंजन के लिए सबसे प्रिय साधन हैं टेलीविजन (दूरदर्शन) और रेडियो (आकाशवाणी) हो गया है। आधुनिक काल में घर-घर में टेलीविजन और रेडियो हैं । टेलीविजन में फीचर फिल्में तथा नृत्य एवं संगीत के विविध मनोरंजक कार्यक्रम लोग पसंद करने लगे है । गणतंत्र दिवस का आनंद लेते तथा क्रिकेट-मैच से मनोरंजन करना लोगों का शौक बन गया है । यह अनेक धारावाहिकों द्वारा अनेक रूप प्रतिदिन मनोरंजन कराने वाला बिना वेतन का सेवा है। अनेक आधुनिक साधन मनोरंजन का सबसे पुराना आधुनिक साधन है ध्वनि कार्यक्रमों पर आधारित मानव का स्वस्थ मनोरंजन का साधन है। अनेक भारती के कार्यक्रम, मनोरंजक प्रायोजित कार्यक्रम, गीत, नाटक, प्रसारण लोकरुचि के कार्यक्रम, कहानियाँ तथा कविताएँ, क्रिकेट कॉमेंट्री आदि कार्यक्रम मानव को स्वस्थ और चुस्त बना देते हैं। मानव का प्रिय आधुनिक साधन है चलचित्र या सिनेमा। कम पैसों में हॉल में बैठकर फिल्म देखते देखते कब तीन घंटे बीत जायेंगे आपको पता महि चलेगा। इसी तरह मनोरंजन के अन्य आधुनिक साधन भी है जैसे सरकस, रंगमंचीय नाटक, ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम तथा नृत्य और संगीत जैसे कार्यक्रम। सरकस में जोकर हँसाकर एवं पशुओं और युवक-युवतियों के साहसिक कृत्य दिखाकर जनता का स्वस्थ मनोरंजन कराते है। इसी प्रकार नृत्य संगीत नाटक में संगीत की धुन पर नृत्य और अभिनय का संगम बहुत दिलचस्प कार्यक्रम होता है। रंगमंचीय नाटक और ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम मानव मन को जयकार करते हैं। ताश, कैरम, शतरंज, बैडमिंटन, फुटबॉल, क्रिकेट, कबड़ी, आदि खेल भी आधुनिक युग में मनोरंजन के अच्छे साधन हैं। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार युवक इस मनोरंजन का लाभ उठाते है। मनोरंजन के कुछ अन्य साधन जैसे पिकनिक पर जाना। मित्रों के संग जब पिकनिक पर जाते है, तो अनेक दिनों तक वहा का ख़ुशी हम नहीं भूल पाते है। कवि-सम्मेलन, काव्य-गोष्ठियाँ, सांस्कृतिक-कार्यक्रम जैसे मनोरंजन जीवन में आनंद प्रदान करते हैं। उपसंहार विज्ञान की प्रगति के साथ आज का मानव जीवन अधिक व्यस्त होता जा रहा है। जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं को जुटाने और अधिक महँगाई के कारण आज का मानव घुटन का जीवन जी रहा है। चेहरे पर मुस्कान रहते भी वह अंदर से परेशानी लिए जीता है। जीवन से जूझने में समयाभाव दीवार बनकर खड़ा है । समय की कमी होने के कारण मानवीय मनोरंजन के साधनों में भी उसी मात्रा में विकास हो रहा है। दिन-भर कठोर श्रम करने वाला श्रमिक जब घर लौटता है, तो रेडियो या दूरदर्शन उनका मनोरंजन करते हैं अथवा उनके रखने का साधन बनते है। Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 7 किशोरों को कुछ विशेष आवश्यकताएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes. Bihar Board Class 11 Home Science किशोरों को कुछ विशेष आवश्यकताएँ Text Book Questions and Answersवस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न 14.
प्रश्न 15. प्रश्न 16.
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1.
प्रश्न 2. किशोरों का पोषण स्तर निम्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
प्रश्न 3. 1. व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance): किशोर की व्यक्तिगत समस्याओं की खोज और समाधान से सम्बन्धित निर्देशन । 2. सामूहिक निर्देशन (Group Guidance): यह सामूहिक क्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य समूह में प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार व्यक्तिगत सहायता पहुँचाना होता है कि वह अपनी समस्याओं को सुलझा सके और समायोजन स्थापित कर सके। कई बार कोई समस्या एक किशोर की नहीं बल्कि पूरे समूह की होती है। तब इस प्रकार के निर्देशन की आवश्यकता होती है। 3. शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance): वह सहायता जो किशोरों को इसलिए प्रदान की जाती है कि वे अपने लिए उपयुक्त विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य-विषय तथा अन्य क्रियाओं का चयन कर सकें और उनसे समायोजन स्थापित कर सकें। 4. व्यावसायिक निर्देशन (Occupational Guidance): वह निर्देशन जिसके द्वारा किशोर अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चुनाव कर पाता है, उसके लिए तैयारी करता है और उस व्यवसाय में प्रवेश करके उन्नति करता है। 5. स्वास्थ्य निर्देशन (Health Guidance): स्वास्थ्य निर्माण तथा उसकी रक्षा के लिए दिया गया निर्देशन जिसका पालन करके किशोर शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है। प्रश्न 4. स्वयं को. सम्मिलित करके उनके आत्मविश्वास को दृढ़ किया जा सकता है। साधारणतया लड़कियों के रजःस्राव के कारण वे मानसिक रूप से खिन्न तथा चिंतित हो जाती हैं और बाहर निकल कर अपने साथीसमूह में मिलकर खेलों में भाग नहीं ले पातीं और स्वयं को एकान्त में कैद करने की कोशिश करती हैं। उचित मार्ग प्रशस्त करके तथा उनकी सुविधाओं का आवश्यकतानुसार ध्यान रखकर उन्हें इस तनाव की स्थिति से बाहर निकालने में माता तथा शिक्षिका का अद्भुत योगदान हो सकता है। खेल के द्वारा व्यायाम होता है इसमें कोई शंका नहीं, परन्तु सक्रिय खेल ही व्यायाम करा पाते हैं। निष्क्रिय या मन बहलाव के खेल ज्यादा श्रम नहीं कराते तथा उनमें बालक कम से कम गतियाँ करके न्यूनतम ऊर्जा खर्च करता है । अतः उन्हें सक्रिय खेलों में भाग लेने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय उन्हें उनके मनपसंद कार्य में संलग्न कर देना है जैसे कुछ किशोरों को बाजार जाकर वयस्कों की भाँति खरीदारी करना आदि। प्रश्न 5. मनोरंजन जिनमें अधिक शक्ति व्यय होती है के स्थान पर ऐसे मनोरंजन पसंद किये जाने लगते हैं जिनमें खिलाड़ी निष्क्रिय दर्शक होता है। मनोरंजन के तीन स्रोत जो अधिक रुचिकर लगते हैं वे हैं पढ़ना, सिनेमा और रेडियो व टेलीविजन सुनना व देखना आदि। पढ़ने में लड़कियाँ रोमांस वाली व लड़के विज्ञान और आविष्कारों की पुस्तकें एढ़ना पसन्द करते हैं। प्रेमप्रधान, साहसिक तथा हँसी-मजाक वाले सिनेमा पसन्द किये जाते हैं। रेडियो व टेलीविजन.सबसे प्रिय मनोरंजन का साधन बन गये हैं क्योंकि ये सभी आर्थिक स्थिति के लोगों के लिए सुविधापूर्ण मनोरंजन के साधन हैं। प्रश्न 6. यदि बच्चे की विज्ञान में रुचि नहीं है तो उसे विज्ञान लेने के लिए कभी भी बाध्य नहीं करना चाहिए। माता-पिता उनकी अभिवृत्तियों को प्रोत्साहित करके उनकी योग्यताओं और कुशलताओं में वृद्धि कर सकते हैं। माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वह किशोरों के मित्रों के बारे में पूर्ण जानकारी रखें। उस गुट की भी पूर्ण जानकारी रखें जिसमें किशोर उठता-बैठता है और अपने अवकाश का समय बिताता है। किशोर अपराध को रोकने के लिए माता-पिता को अपने किशोरों की आवश्यकताओं को समझना अति आवश्यक है। प्रश्न 7. जैसे-सबसे तर्क करना, सबकी बातों की नुक्ताचीनी करते रहना, कर्त्तव्यों का पालन न करना, माता-पिता की आज्ञाओं का उल्लंघन करना आदि। इस कारण माता-पिता उसे टोकते हैं, या बिना सजा दिये स्वीकार नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप किशोरावस्था में संघर्ष और अधिक बढ़ जाता है। माता-पिता व नवकिशोर के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो जाते हैं। परन्तु यदि अभिभावक समझदारी का रवैया अपनाएँ तो किशोरों की उन्नति का :मार्ग स्वयं ही प्रशस्त हो जाता है। प्रश्न 8.
सुझाव (Suggestion)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. (क) पुष्टिकर प्रभाव: नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर के समस्त अंग समान रूप से पुष्ट होते हैं। शरीर में शीघ्र ऊष्मा उत्पन्न होने के कारण रक्त प्रवाह में तीव्रता आती है। तन्तुओं को ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलते हैं, परिणामस्वरूप मांसपेशियों में दृढ़ता आती है। इतना ही नहीं पाचन संस्थान, शक्ति संस्थान शक्तिशाली होता है जिससे भोजन के पाचन, अवशोषण और निष्कासन में तीव्रता आती है। (ख) सुधारात्मक प्रभाव (Improvemental Effect): व्यायाम से मानसिक थकान कम होती है। अनुचित आसन की आदत में सुधार होता है। व्यायाम से अनुचित शरीर जैसे कन्धों का झुका होना, पैर की हड्डी का झुकाव इत्यादि में सुधार लाया जा सकता है। (ग) विकासात्मक प्रभाव (Developmental Effect): निरन्तर व्यायाम से चहुँमुखी विकास पर प्रभाव पड़ता है। शारीरिक वृद्धि सामान्य होती है, मानसिक शक्ति बढ़ती है, इच्छाओं पर नियन्त्रण होता है और व्यक्ति नियमों का पालन कर अनुशासित होकर जीना सीखता है। प्रश्न 2.
1. पूर्व किशोरावस्था-पूर्व किशोरावस्था 12 से 15 वर्ष की आयु की व्युवटि पिरीयड कहते है इस अवधि में शारीरिक परिवर्तन शुरू होता है क्या किशोर इन परिवर्तन के कारण सजग हो जाते है। इस अवस्था में हार्मोनल परिवर्तन के कारण लैंगिक परिपक्वता आरंभ होती है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का विकास तीव्र गति से होता है। यही कारण कि वे लड़कों के मुकाबले बड़ी होती है। पूर्व किशोरावस्था को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –
2. मध्य किशोरावस्था: 15 से 16 वर्ष की आयु को मध्य किशोरावस्था कहते हैं। इस अवस्था में हो रहे परिवर्तन को जल्दी स्वीकार नहीं किया जाता है। इस अवस्था को. ‘टिन्स’ अवस्था भी कहते हैं। टीन्स अवस्था में हो रहे परिवर्तन का असर किशोरों की सोच सामाजिक संबंध पर पड़ता है। यह उनके नए व्यक्तित्व की नींव का आधार बनता है। 3. उत्तर किशोरावस्था: इस अवस्था में किशोर की आयु 16 से 18 वर्ष की होती है तथा परिवर्तन लगभग पूर्ण हो जाते हैं। इस आयु में सभी प्रकार के विकास, शारीरिक मानसिक, संवेगात्मक विकास एक साथ चलते हैं। 16 से 18 वर्ष की आयु को ‘सुनहरी अवस्था’ भी कहतें हैं। लड़कियों के परिपक्व होने की अधिकतम आयु सीमा 18 वर्ष एवं लड़कों की 21 वर्ष निध रिक्त की गई है। प्रश्न 3. किशोरावस्था की. दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएँ – 1. ऊर्जा की आवश्यकता (Requirement of Energy): किशोरावस्था में शारीरिक वृद्धि एवं अधिक क्रियाशीलता के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 13-14 वर्ष के लड़कों को 2450 कैलोरी तथा 16-18 वर्ष के लड़कों को 2640 कैलोरी की आवश्यकता होती है। लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किशोर लड़कियों को केवल 2060 कैलोरी की आवश्यकता होती है। 2. प्रोटीन की आवश्यकता (Requirement of Protein): किशोरावस्था में प्रोटीन की आवश्यकता अत्यधिक होती है। 13-15 वर्ष के लड़कों को 70 ग्राम तथा 16-18 वर्ष के लड़कों को 78 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। 13-15 वर्ष की लड़कियों के लिए 65 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है, जो 16-18 वर्ष की लड़कियों के लिए घट कर 63 ग्राम हो जाती है। 3.विटामिनों की आवश्यकता (Requirement of vitamins): ‘बी’ समूह के विटामिनों के अतिरिक्त अन्य विटामिनों की आवश्यकता किशोरों को वयस्कों के समान होती है। किशोरावस्था में कैलोरी की मात्रा बढ़ने के कारण थायमिन, राइबोफ्लेविन एवं निकोटिनिक अम्ल की आवश्यकता बढ़ जाती है। 4. खनिज लवणों की आवश्यकता (Requirement of Minerals): किशोरावस्था में लड़के और लड़कियाँ दोनों के लिए कैल्शियम की आवश्यकता अधिक होती है। हड्डियों के बढ़ने, दांतों की पुष्टता और अनेक शारीरिक क्रियाओं के लिए उचित मात्रा में कैल्शियम की प्राप्ति अनिवार्य है। ऐसा विश्वास किया गया है कि किशोरों में मानसिक द्वन्द्व एवं तनावों के कारण शरीर में कैल्शियम संचित नहीं हो पाता है। अतः आहार में प्रतिदिन कैल्शियमयुक्त पदार्थ सम्मिलित करना अति आवश्यक है। 13-15 वर्ष के किशोरों को 600 मिग्रा कैल्शियम तथा 1618 वर्ष के किशोरों को 500 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता होती है। कैल्शियम की पूर्ति के साथ फास्फोरस की पूर्ति स्वतः हो जाती है। न किशोरावस्था में ऊतकों के निर्माण एवं रक्त की बढ़ोत्तरी के लिए लोहे की आवश्यकता वयस्कों से अधिक होती है। किशोर लड़के को लड़कियों की अपेक्षा अधिक लोहे की आवश्यकता होती है क्योंकि इनमें शारीरिक वृद्धि तीव्र गति से होती है। 13-15 वर्ष के लड़कों को 41 मिग्रा. तथा 16-18 वर्ष के लड़कों को 50 मिग्रा. लोहे की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार 13-15 वर्ष की लड़कियों को 28 मिग्रा. तथा 16-18 वर्ष की लड़कियों को 30 मिग्रा. लोहे की आवश्यकता होती है। प्रश्न 4.
प्रश्न 5. (क) पुष्टिकर प्रभाव (Health Effect): नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर के समस्त अंग समान रूप से पुष्ट होते हैं। इससे शरीर में शीघ्र ही ऊष्मा उत्पन्न हो जाती है। हृदय गति तीव्र हो जाती है। इस प्रकार रक्त प्रवाह में तीव्रता आ जाती है। समस्त शरीर के तन्तुओं को ऑक्सीजन और ग्लाइकोजन अधिक मात्रा में प्राप्त होता रहता है। परिणामस्वरूप मांसपेशियों में दृढ़ता आती है। व्यायाम करते समय श्वास की गति तेज हो जाती है जिससे फेफड़े अधिक स्वस्थ रहते हैं और शरीर की शक्ति में वृद्धि होती है। शरीर अधिक मात्रा में श्वसन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा अशुद्धियों का कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में निष्कासन करता है। व्यायाम से पाचन संस्थान शक्तिशाली होता है, पाचन शक्ति बढ़ती है तथा शरीर के मल निष्कासन में सहायता मिलती है और अपच, कब्ज आदि रोग दूर हो जाते हैं। (ख) सुधारात्मक प्रभाव (Improvement Effect): व्यायाम से मानसिक थकान कम होती है, अनुचित आसन की आदत में सुधार होता है और शारीरिक विकृतियों जैसे झुके कन्धे, रीढ़ की हड्डी का झुकाव व चपटे पैर आदि में पूर्णतः सुधार लाया जा सकता है। (ग) विकासात्मक प्रभाव (Development Effect): निरन्तर नियमित रूप से व्यायाम करने से मांसपेशियों के आकार तथा शक्ति में विकास होता है और मांसपेशियों पर इच्छा-शक्ति का नियंत्रण बढ़ जाता है। व्यायाम सम्बन्धी कुछ नियम (Laws of
Exercise):
प्रश्न 6. 1. माता-पिता द्वारा किशोरों की समस्याओं को समझना (Understanding the problems of adolescents by the parents): किशोरों की समस्याओं का समाधान केवल तभी सम्भव है जब माता-पिता उनकी समस्याओं को समझें तथा उनके समाधान में सहायता करें। किशोरावस्था में किशोरों को अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक समस्याएँ घेरती हैं जिनका उचित समाधान करना आवश्यक है। माता-पिता ही अपने बच्चों के सबसे बड़े शुभचिन्तक होते हैं और वे ही उनकी समस्याओं को भली प्रकार समझकर उनका समाधान निकाल सकते हैं। कई बार माता-पिता की नासमझी के कारण किशोर अपनी समस्याओं के समाधान हेतु गलत व्यक्तियों का सहरा लेते हैं और अनेक उलझनों में फंस जाते हैं। 2. माता-पिता को किशोरों के मित्रों व उसके समूह को समझना (Understanding the friends and their group of adolescents): माता-पिता के लिए आवश्यक है कि वह किशोरों के मित्रों के बारे में पूर्ण जानकारी रखें तथा उस गुट की भी जानकारी रखें जिसमें किशोर उठता-बैठता है और अपने अवकाश का समय बिताता है । कई बार किशोर गलत मित्रों का चयन करके अनेक असामाजिक तत्त्वों से प्रभावित हो जाते हैं जिससे उनमें अपराध की प्रवृत्ति आती है। किशोर-अपराध को रोकने के लिए माता-पिता को अपने किशोरों की आवश्यकताओं को समझना अति आवश्यक है। 3. माता-पिता द्वारा किशोरों की रुचियों, अभिवृत्तियों एवं विश्वासों को समझना (Understanding the interest, taste and confidence of adolescents): माता-पिता को अपने किशोर बच्चों की रुचियों एवं विश्वासों को भली प्रकार समझना बहुत आवश्यक है क्योंकि इन्हीं के आधार पर किशोर अपने भविष्य का निर्माण करता है। कई बार माता-पिता बिना सोचे-समझे किशोरों के भविष्य के बारे में ऐसे निर्णय ले लेते हैं जो उनकी रुचियों, अभिवृत्तियों आदि से भिन्न होते हैं जिससे किशोरों के सामने समायोजन की समस्याएँ आती हैं। उदाहरण के लिए कई बार विज्ञान में रुचि न होते हुए भी माता-पिता की नासमझी के कारण बच्चे को विज्ञान पढ़ना पड़ता है जिससे किशोर कक्षा में पिछड़ा हुआ रहता है तथा हीनभावना से ग्रस्त भी हो सकता है। माता-पिता को किशोरों की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त करके उन्हें उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऐसा घर व वातावरण प्रयुक्त करवाना चाहिए जिसमें परिवार के सदस्यों में परस्पर स्नेह, मैत्री, सभी के अधिकारों व आवश्यकताओं को समझने की क्षमता हो, जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास हो सके। घर ऐसा होना चाहिए जिसमें प्रजातांत्रिक वातावरण तथा माता-पिता के मध्य उचित समायोजन हो। किशोरों के मनोरंजन के साधन कैसे होने चाहिए?रेडियो, टेलीविजन और चित्रपट आज के श्रेष्ठ मनोरंजन के साधन है। लेकिन कुछ मनोरंजन ऐसे हैं जिनके लिए घर से बाहर जाना पड़ता है जैसे क्रिकेट, टेनिस, सर्कस, थियेटर, फुटबॉल आदि. घर बैठे मनोरंजन के लिए आज बहुत तरीके हैं इनमें टीवी, वीडियो, लेखन कार्य, चेस, पेंटिंग जैसे कई तरीके।
मनोरंजन के साधन कौन कौन से हैं?मनोरंजन के साधन. टेलिविज़न. चलचित्र. रेडियो. नौटंकी. डिस्को. मनोरंजन हमारे जीवन में क्यों जरूरी है?मनोरंजन (Manoranjan) हमारे जीवन में एक बहुत ही अहम् भूमिका निभाता है। जब हम भागदौड़ करके एक दम थक जाते हैं तो हमारे अंदर एक बार फिर से ऊर्जा भरता है। फिर से सोचने और काम करने की शक्ति प्रदान करता है। किसी भी तरह का अच्छा मनोरंजन हमारे अंदर नया उत्साह पैदा करता है।
मनोरंजन के क्या लाभ हैं?अच्छा मनोरंजन हमारी विचार-शक्ति को धार देता है। मनोरंजन के बिना जीवन में कोई भी रंग, ऊर्जा नहीं सकते। जब हम कोई कॉमेडी फिल्म देखते हैं और खुलकर हंसते है तो हमारे शरीर के अंदरूनी तत्व स्वस्थ और मजबूत होते हैं। इसी प्रकार जब हम कोई गम्भीर फिल्म देखते है तो हम भी रोने लगते है जिससे हमारा भी दु:ख व कम कम होता हैं।
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