क्या आयुर्वेद में फिस्टुला का इलाज है? - kya aayurved mein phistula ka ilaaj hai?

गुदा फिस्टुला जिसे आम भाषा में भगंदर कहा जाता है. यह आधुनिक सर्जरी के लिए एक चुनौती है. लेकिन आयुर्वेद (भारतीय चिकित्सा प्रणाली) में ग्रेड क्षारसुत्र के साथ ठीक हो सकती है. गुदा फिस्टुला एक ऐसी बीमारी है जिसके लिए उपचार के विभिन्न तरीकों को समय-समय पर वकालत की जा रही है. आज भी जब हम रोबोट सर्जरी के बारे में बात कर रहे हैं, तो इस बीमारी में आधुनिक सर्जरी में इलाज का कोई संतोषजनक तरीका नहीं मिला है. शल्य चिकित्सा के बाद पुनरावृत्ति की उच्च घटनाओं के कारण वीडियो सहायक गुदा फिस्टुला उपचार (वीएएएफएफटी) की नवीनतम विधि संतोषजनक नहीं है.

आयुर्वेद में 2000 साल पहले आचार्य क्षारसुत्र ने फिस्टुला-इन-एनो के इलाज के लिए क्षसरत्र उपचार का संकेत दिया है. इस बीमारी का इलाज करने के लिए एक उपचार मॉड्यूल की स्थापना वर्ष 1990 में भारतीय चिकित्सा परिषद ने एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ समेत हमारे देश के चार प्रीमियर संस्थानों में इस आयुर्वेदिक उपचार मॉड्यूल का नैदानिक मूल्यांकन किया है. इसके बाद यह आईसीएमआर द्वारा निष्कर्ष निकाला गया था. एनो में फिस्टुला के मरीजों में आधुनिक शल्य चिकित्सा की तुलना में क्षारसूत्र उपचार अधिक प्रभावी और सुविधाजनक है.

क्षरसुत्र एक थ्रेड है जो कुछ आयुर्वेदिक दवाओं के साथ लेपित होता है, यह उनके एंटीसेप्टिक, मलबे और उपचार गुणों के लिए जाना जाता है. यू वी नसबंदी के बाद रोगियों में पूर्ण औषधीय सावधानियों के तहत इस औषधीय धागे (क्षसरत) का उपयोग किया जाता है. मरीज को नियमित रूप से उच्च रक्तचाप, मधुमेह मेलिटस, टीबी आदि जैसे किसी भी अन्य संबंधित विकार के विशेष संदर्भ के साथ जांच की जाती है. अगला कदम मुट्ठीदार पथ की उचित पहचान और मूल्यांकन में निहित है. फिस्टुला ट्रैक्ट को अपनी गहराई, दिशा और शाखा पैटर्न को परिभाषित करना अनिवार्य है. यह लचीला जांच का उपयोग कर विशेषज्ञ हाथों के तहत सावधानीपूर्वक जांच करके हासिल किया जा सकता है. यदि आवश्यक जांच एक्स-रे फिस्टुलोग्राम या एमआरआई फिस्टुलोग्राम जैसी अन्य जांचों से की जा सकती है.

एक बार जब ट्रैक्ट को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, तो स्थानीय संज्ञाहरण के तहत कुछ उपकरणों की सहायता से क्षासुत्र को रखा जाता है. यह पूरी प्रक्रिया आम तौर पर दस से पंद्रह मिनट में पूरी होती है. ऊतकों का कोई कटाई नहीं है, इसलिए ब्लीडिंग, कोई दर्द नहीं है और दिन के कमरे में आधे घंटे आराम करने के बाद रोगी घर जा सकते हैं. धागे पर दवा-लेपित धीरे-धीरे पथ में जारी किया जाता है. लेपित दवाओं का संचयी प्रभाव फिस्टुला ट्रैक्ट पर एक शक्तिशाली मलबे का प्रभाव डालता है. ताजा और स्वस्थ ग्रैनुलेशन ऊतकों द्वारा उपचार को प्रेरित करता है. इस प्रकार क्षर्षुत्र ऊतक में ठीक तरह से दवा वितरण का तंत्र है.

प्रत्येक सातवें या दसवें दिन पुराने सूत्र को एक नए क्षत्रुत्र के साथ बदल दिया जाता है, जब तक कि अंतिम कटौती नहीं होती है. यह देखा गया है कि ट्रैक्ट प्रति सप्ताह @ 0.5-1 सेमी ठीक करता है. बीमारी की पुनरावृत्ति, फेकिल असंतुलन, खून बहने जैसी पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं को क्षारत्र उपचार के साथ नहीं देखा जाता है. इसके अलावा यह चिकित्सा एक ओपीडी प्रक्रिया के रूप में किया जाता है. कोई सामान्य संज्ञाहरण नहीं है और कोई अस्पताल में भर्ती नहीं है. रोगी उपचार अवधि के दौरान सामान्य रूप से अपनी सामान्य दिनचर्या गतिविधियों को बनाए रखता है.

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गुदा से जुड़ी बीमारी फिस्टुला को ही अङ्ग्रेज़ी में फिस्टुला कहते हैं. दरअसल बवासीर जब लंबे समय तक ठीक नहीं होता है तो यही पुराना होकर फिस्टुला का रूप ले लेता है. जाहीर है फिस्टुला के रूप में आ जाने पर बवासीर बहुत खतरनाक हो जाता है. इसलिए हमारा सलाह है कि आपको बवासीर को कभी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए. यही नहीं फिस्टुला एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज़ यदि ज्यादा समय तक ना करवाया जाए तो कैंसर का रूप भी ले सकता है.

यहाँ आपको बता दें कि इस कैंसर को रिक्टम कैंसर कहते हें. रिक्टम कैंसर कई बार जानलेवा भी साबित हो सकता है. हालांकि इस बात के सम्भावना बहुत ही कम होती है. इस बीमारी को आप नाड़ी में होने वाला रोग कह सकते हैं, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में स्थित होता है.

फिस्टुला में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं. इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे फिस्टुला कहते हैं. इस घाव का एक मुख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है. फिस्टुला रोग अधिक पुराना होने पर हड्डी में सुराख बना देता है जिससे हडि्डयों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है. कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है. फिस्टुला रोग अधिक कष्टकारी होता है. यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है. इस रोग के होने से रोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है.

आइए इस लेख के माध्यम से हम फिस्टुला के विभिन्न इलाज के बारे में जानें ताकि इस विषय में जागरूक हो सकें.

फिस्टुला का घरेलू उपचार - Fistula Ka Desi Ilaj in Hindi

  1. चोपचीनी और मिस्री
    फिस्टुला का इलाज चोपचीनी और मिस्री के सहयाता से भी किया जा सकता है. इसके लिए आपको इन्हें बारीक पीसकर समान मात्रा में इसमें देशी घी मिलायें. फिर इससे 20-20 ग्राम के लड्डू बना कर इसे सुबह शाम नियमित रूप से खाना होगा. ध्यान रहे इस दौरान आप नमक, तेल, खटाई, चाय, मसाले आदि न खाएं. क्योंकि इसे खाने से इस दवा का असर खत्म हो सकता है. यानि इलाज के दौरान आप फीकी रोटी को घी और शक्कर के साथ खा सकते हैं. इसके अलावा आप दलिया और बिना नमक का हलवा इत्यादि भी खा सकते हैं. यदि आपने नियमित रूप से इसका पालन किया तो लगभग 21 दिन में आपका फिस्टुला सही हो सकता है. आप चाहें तो इसके साथ सुबह शाम 1-1 चम्मच त्रिफला चूर्ण को भी गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं.
  2. पुनर्नवा
    फिस्टुला के कई घरेलू उपचार हैं जिनसे इसे ठीक किया जा सकता है. इसके लिए आपको पुनर्नवा, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, हल्दी, सोंठ, चित्रक मूल, भारंगी और देवदार को एक साथ मिलाकर काढ़ा बनाएँ. फिर इस काढ़े को नियमित रूप से पियें तो सूजनयुक्त फिस्टुला में काफी लाभकारी साबित होता है. पुनर्नवा शोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है.
  3. नीम
    नीम की पत्तियों का इस्तेमाल भी फिस्टुला के उपचार के लिए किया जाता है. इसके लिए इस पत्तियों को घी और तिल की 5-5 ग्राम की मात्रा में लें. फिर उसे कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ का आटा मिलाकर उस पानी की सहायता से इसका लेप तैयार करें. अब इस लेप को किसी साफ कपड़े के टुकड़े पर फैलाकर फिस्टुला पर बांध लें. इससे काफी लाभ मिलता है.
  4. गुड़
    पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा और सिरस की एक समान मात्रा को थोड़े से पानी में घोंटकर इसका मलहम बनाएं. इसके बाद उस मलहम को कपड़े पर लगाकर फिस्टुला के घाव पर कुछ दिनों तक लगातार रखने से यह रोग ठीक हो सकता है.
  5. शहद
    फिस्टुला के इलाज के लिए शहद और सेंधानमक को एकसाथ मिलाकर इसकी एक बत्ती तैयार करें. फिर इस बत्ती को फिस्टुला के नासूर में रखें. यदि आप नियमित रूप से ऐसा करेंगे तो आपको इसका निश्चित लाभ मिलेगा.
  6. केला और कपूर
    एक पके केले और कपूर भी फिस्टुला के उपचार के लिए बहुत सहायक होता है. आप पके हुए केले के बीच में चीरा लगा कर चने के दाने के बराबर कपूर को रख दें और फिर इसको खाए और इसे खाने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद में कुछ भी नहीं खाना पीना चाहिए. यदि फिस्टुला बहुत पुरानी हो गयी हो और इस प्रकार की उपाय से सही नहीं होती है तो कृपया सर्जरी का सहारा लें.
  7. भोजन और परहेज
    आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है. इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है. अत: इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए. इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है. इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए.

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फिस्टुला का सफल इलाज क्या है?

उपचार- सर्जरी इस रोग का एकमात्र उपाय है। फिस्टुला की परंपरागत सर्जरी को फिस्टुलेक्टॅमी कहा जाता है। सर्जन, सर्जरी के जरिये भीतरी मार्ग से लेकर बाहरी मार्ग तक की सम्पूर्ण फिस्टुला को निकाल देते हैं। इसमें आम तौर पर टांके नहीं लगाये जाते हैं और जख्म को धीरे-धीरे और प्राकृतिक तरीके से भरने दिया जाता है।

भगंदर का परमानेंट इलाज क्या है?

आयुर्वेद में भगंदर के इलाज के लिए क्षारसूत्र का विधान है, जिसका परिणाम बहुत अच्छा है। क्षारसूत्र एक मेडिकेटेड थ्रेड होता है। आयुर्वेद की कई औषधियों के योग से इस क्षारसूत्र का निर्माण किया जाता है। 0 मरीज आपरेशन के बाद उसी दिन घर जा सकता है।

फिस्टुला कितने दिन में ठीक होता है?

परम्परागत उपचार विधि में मल त्याग में दिक्कत होती है। फिस्टुला की सर्जरी से होने वाले जख्म को भरने में छह सप्ताह से लेकर तीन माह का समय लग जाता है। वीडियो असिस्टेड एनल फिस्टुला ट्रीटमेंट (वीएएएफटी) सुरक्षित और दर्द रहित उपचार है।

क्या फिस्टुला को प्राकृतिक रूप से ठीक किया जा सकता है?

फिस्टुला आमतौर पर क्रोहन रोग, मोटापे और लंबे समय तक एक स्थान पर बैठे रहने से होता है। आहार में उच्च फाइबर और तरल पदार्थ के अधिक सेवन से तीनों को रोका जा सकता है। इसके अलावा फिस्टुला को शौच के बेहतर और स्वच्छ आदतों का अभ्यास करके रोका जा सकता है। पाइल्स का इलाज काउंटर दवा और घरेलू उपचार द्वारा आसानी से किया जा सकता है।