खो-खो
खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल है। इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो खम्भो के अतिरिक्त किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति और ऊर्जा की माँग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है। Show
परिचय[संपादित करें]खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी। खो-खाे का जन्मस्थान पुणे कहा जाता है। यह खेल महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है, किंतु भारत के अन्य प्रदेशों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है। यह खेल सरल है और इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं। खो-खो खेल में न किसी गेंद की आवश्यकता होती है, न बल्ले की। इसके लिये केवल १११ फुट लंबे और ५१ फुट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे, लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं और इन खंभों के बीच की दूरी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं। प्रत्येक दल को एक-एक पारी के लिए सात सात मिनट दिए जाते हैं और नियत समय में उस दल को अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है। दोनों दलों में से एक-एक खिलाड़ी खड़ा होता है, पीछा करने वाले दल का खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है। विपक्षी दल का खिलाड़ी पंक्ति में बैठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है। जब पीछा करने वाला खिलाड़ी उस भागने वाले खिलाड़ी के निकट आ जाता है, तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर 'खो' शब्द का उच्चारण करता है तो वह उठकर भागने लगता है और पीछा करने वाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दूसरे का पीछा करने लगता है। पहले इस खेल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खेल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते-बिगड़ते रहे। १९१४ ई. में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अनेक मैदानी खेलों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खो-खो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनुसार, थोड़े स्थानीय हेर-फेर के साथ यह खेल खेला जाता है। खो-खो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में १९१८ ई॰ में हुई। फिर सन् १९१९ में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं। खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 27 X 16 मीटर होता है। मैदान के अंत में दो मुक्त आयताकार क्षेत्र होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 1.50 मी॰ होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं। केन्द्रीय गली 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है। शब्दावली[संपादित करें]
खेल के नियम[संपादित करें]
मैच सम्बन्धी नियम[संपादित करें]
मैच के लिए अधिकारी[संपादित करें]मैच की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
अम्पायर[संपादित करें]अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख रेख करेगा। वह अपने अर्द्धक में सभी निर्णय देगा। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता कर सकता है। रैफरी[संपादित करें]रैफरी के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं।
टाइम-कीपर[संपादित करें]टाइम-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है। स्कोरर[संपादित करें]स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क्रम से मैदान में उतरते हैं। वह आऊट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक पारी के अंत में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तैयार करता है। मैच के अंत में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी को सुनाने के लिए देता है। खो-खो स्पर्धाएँ[संपादित करें]भारत में खो-खो की मुख्य स्पर्धाएँ हैं:
संगठनों के नाम[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
खो खो खेल के नियम क्या होते हैं?खो खो खेल को खेलने का तरीका
प्रत्येक पारी में दो टर्न होते हैं, जो नौ मिनट तक खेली जाती है। इसमें टीमें पीछा और बचाव करती हैं। दो पारियों के अंत में सबसे अधिक अंक वाली टीम मैच जीत जाती है। यदि मैच के अंत में दोनों टीमों के अंक बराबर होते हैं, तो विजेता का फैसला करने के लिए एक अतिरिक्त पारी खेली जाती है।
खो खो में कितने लोग बैठते हैं?Solution : खो-खो को पंद्रह में से 12 नामांकित खिलाड़ियों की टीमों द्वारा खेला जाता है, जिनमें से नौ मैदान में प्रवेश करते हैं जो अपने घुटनों के बल (टीम का पीछा करते हुए।
खो खो खेल का समय कितना होता हैं?Kho-Kho Ground Measurement | खो-खो फील्ड का क्षेत्र माप वरिष्ठ खिलाडियों के लिए. खो खो में कितने क्रॉस लाइन होती है?खो-खो में 8 क्रॉस लेन्स होती है और यह बहुत ही रोमांच भर खेल होता है ।
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