लकवा में क्या क्या परहेज करना चाहिए? - lakava mein kya kya parahej karana chaahie?

लखनऊ.पैरालिसिस/ लकवा/ फालिश (Paralysis) : पैरालिसिस स्ट्रोक के बाद रोगी अगले 3-4 महीने तक ठीक होता है, सुधार रुकने पर समस्या फिर से उत्पन्न हो जाती है। इसलिए अंगों की खोई हुई गति को वापस उसी तरीके से ट्रेंड करना बहुत जरुरी है। पर क्या आप जानते हैं इसे घर में भी एक अच्छी डाइट के साथ सुधारा जा सकता है| अगर नहीं तो आइये जानते हैं इसके बारे में

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हेल्थ डेस्क. ब्रेन में खून का थक्का जमने के कारण लकवा की शिकायत होती है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि लकवा आने पर शरीर में दोबारा सेन्सेशन नहीं आ पाता है। ना ही पेशेंट अपना काम खुद करने में समर्थ हो पााएगा, जबकि डॉक्टर्स के मुताबिक, लकवा आने के दो से तीन दिन में पेशेंट में सुधार शुरू हो जाता है, तो छह महीने में रिकवरी आना शुरू होती है। डेढ़ साल में पूरी तरह से रिकवरी आ सकती है। इस पीरियड के बाद रिकवरी आने की संभावना खत्म हो जाती है। पेशेंट की घर पर भी ठीक से देखभाल की जाए तो पॉजिटिव रिजल्ट आना संभव है। डॉ. सुनील गोयंका, प्रोफेसर, फिजिकल मेडिसिन एंड रिहेबेलेशन, एसएमएस, जयपुर से जानते हैं इसके बारे में... 

6 प्वाइंट्स : कैसे लाएं सुधार 
1. पेशेंट को करेक्ट पोजिशन (न्यूट्रल पोजिशन) में रखा जाएं। उसे हर घंटे में करवट दिलवाएं। उसे एनॉटोमिकल पोजिशन में रखें।
2.न्यूट्रीशियन से डाइट चार्ट बनवाएं। लो कैलोरी, लो फैट और विटामिंस युक्त डाइट दें। बी-कॉम्पलेक्स देना जरुरी है। यह नर्व के लिए बेहतरीन विटामिन है। जिंक सहित अन्य न्यूट्रीशियन भी दें। ये मेटाबॉलिक एक्टीविटीज में काम आते हैं।
3. जैसे-जैसे दिमाग में थक्के का जोर कम होता है। दिमाग में बची हुई कोशिकाएं रिकवर होना शुरू हो जाती हैं। रिकवरी के हिसाब से एक्सरसाइज करवाएं।
4. पैरों पर उसे धीरे-धीरे खड़ा करवाएं। हाथों से फंक्शनल काम होते हैं। एक्सरसाइज के लिए मशीनें उपलब्ध हैं। वहीं, होममेड तरीके भी हैं। पेशेंट खुद भी एक्सरसाइज कर सकता है। वहीं, अस्सिटेंट भी करवा सकते हैं।
5. पैसिव, अस्सिटेंट एक्टिव और फिर एक्टिव करवाते हैं। हाथों में रिकवरी आने पर ब्रश पकड़ना सिखाएं। हाथों को फंक्शनल बनाने के लिए बड़े से छोटे टास्क काम करवाए जाते हैं। यदि हाथों में रिकवरी आना शुरू हो चुका है। वह बारीक काम नहीं कर पा रहा है। उसे ब्रश पकड़ना सिखाएं।
6. पेशेंट जैसे-जैसे रिकवर करता है। उसे सेल्फ डिपेंडेंट बनाएं, रिकवरी स्टेज में ऐसा करवाने से फायदा मिलेगा। 

रेजिडुअल पैरालिसिस स्टेज 
इस स्टेज में नई टेक्निक से पेशेंट की देखाभाल की जाती है। इसमें न्यूरोप्लास्टिसिटी भी शामिल हैं। अभी तक यह माना जाता था कि एक बार ब्रेन डेमेज होने के बाद वह रिकवर नहीं हो पाता है। जबकि नई थ्योरी के मुताबिक, ब्रेन के न्यूरॉन्स दुबारा भी काम करते हैं। एक्सरसाइज के जरिए चैनल्स को एक्टिव करके बार-बार रिस्पॉन्ड करवाया जाता हैं। बॉडी के किसी भी हिस्से पर बार-बार ब्रश को फिराएं। नए तरीके के टास्क बार-बार करवाने से नए चैनल्स शुरू हो जाते हैं। 

कब ​तक सामने आते हैं रिजल्ट
जितना जल्दी रिहेब शुरू करेंगे। उतने अच्छा रिजल्ट आएंगे। लकवा आते ही दूसरे दिन से रिहेब चालू करवाएं। शुरूआती छह महीनों में रिकवरी आ सकती है। रिहेब से विकलांगता शून्य तक हो सकती है। डेढ़ साल बाद रिकवरी नहीं आती है। 

मिरर थैरेपी से मिलती है राहत
इसी बीमारी में टास्क ऑब्जेक्टिव और मिरर थैरेपी सबसे ज्यादा फायदेमंद हैं। छोटे-छोटे टास्क दिए जाते हैं। वहीं, मिरर थेरेपी के तहत दो मिरर के बीच में एक बॉक्स रखा जाता है। बॉक्स में साधारण हाथ और पैरालाइज लिंब को रखवाया जाता है। साधारण हाथ से जब वह एक्टिविटी करता है। इससे ब्रेन तक स्टीमुलेशन पहुंचते हैं। साधरण हाथ की एक्टीविटीज को देखते हुए दूसरे हाथ में भी स्टीमुलेशन आना शुरू हो जाता है। इसके अलावा रोबोटिक मशीन में उसे बैठा दिया जाता है। वह साधारण व्यक्ति की तरह हाथ-पैर चलाता है। मोटो मेड मशीन के जरिए भी एक्सरसाइज करवाई जाती हैं। इसमें सेंसर होने से पेशेंट को एक्टीविटीज करने में फायदा मिलता है। 

बिगड़ता लाइफस्टाइल, खराब डाइट और तनाव जाने-अनजाने में ही आपको बीमारियों का शिकार बना देता है। लकवा (Paralysis) एक ऐसी बीमारी है जो अचानक से होती है। पक्षाघात तब होता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे ब्लड का सर्कुलेशन रूक जाता है या फिर ब्रेन की कोई रक्त वाहिका फट जाती है।

रक्त वाहिका फट जाने से मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। लकवा की बीमारी आमतौर पर कुछ कारणों की वजह से होती है जैसे ब्रेन हैम्ब्रेज की वजह से, ब्लड पाइप में ब्लॉक हो जाने की वजह से भी लकवा की बीमारी होती है। स्ट्रोक, सिर में चोट लगना, रीढ़ की हड्डी की चोट और मल्टीपल स्क्लेरोसिस की वजह से भी ये बीमारी हो सकती है।

लकवा तब होता है जब बॉडी में विटामिन बी-12 और बी कॉम्प्लेक्स की कमी हो जाती है। यह बीमारी लाइफस्टाइल में आए बदलाव की वजह से होती है। इस बीमारी के लक्षणों की पहचान समय पर कर ली जाए तो तुरंत उसका उपचार कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि क्या लकवा को डाइट के जरिए ठीक किया जा सकता है?

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लकवा के शुरुआती लक्षण: ( symptoms of paralysis)

लकवा की पहचान बहुत आसानी से की जा सकती है। अचानक से बॉडी के एक हिस्से में कमजोरी आना, मुंह का टेडा होना, किसी भी बात को समझने या बोलने में उलझन होना, बिना किसी वजह के सिर दर्द होना इस बीमारी के शुरूआती लक्षण हैं। अगर इस बीमारी के लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो काफी हद तक इस बीमारी को रिकवर किया जा सकता है।

लकवा को ठीक किया जा सकता है:

लकवा के लक्षण दिखने के बाद मरीज में दो से तीन दिनों में सुधार होना शुरू हो जाता है। करीब छह महीने में मरीज में रिकवरी तेज होती है और एक से डेढ़ साल में इस बीमारी से पूरी तरह निजात पाई जा सकती है। डेढ़ साल तक अगर इस बीमारी से रिकवरी नहीं होती तो उसके बाद रिकवरी होना मुश्किल होता है।

लकवा के मरीजों की डाइट कैसी होनी चाहिए: (Diet chart for paralysis patients)

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पोटैशियम से भरपूर फूड्स का सेवन करें:

लकवा के मरीज डाइट में ऐसे फूड्स का सेवन करें जिनमें पोटैशियम भरपूर मात्रा में मौजूद हो। डाइट में फल, सब्‍जि‍यों और म‍िल्‍क उत्‍पाद का सेवन करें। कई फल जैसे केला, एप्रिकोट, संतरा, सेब का सेवन करें। सब्जियों में आलू, शकरकंद, स्‍पीनेच, टमाटर में पोटैश‍ियम भरपूर मात्रा में होता है उसका सेवन करें।

डाइट में करें फाइबर का सेवन:

जिन लोगों को पैरालिसिस है वो डाइट में फाइबर से भरपूर फूड्स का सेवन करें। डाइट में फाइबर का सेवन करने से वजन कंट्रोल रहेगा और दिल की भी सेहत अच्छी रहेगी। पैराल‍िस‍िस के मरीज फाइबर की कमी को पूरा करने के लिए सुबह नाश्ते में फ्रूट्स का सेवन करें।

लकवा के मरीज नमक का करें कम सेवन:

जिन लोगों को लकवा की परेशानी है वो अपने ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करें। इन मरीजों के लिए 120/80 ब्लड होना चाहिए। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए नमक का सेवन कम करें। लकवा के मरीज पूरे दिन में आधा चम्मच नमक से ज्यादा का सेवन नहीं करें।

लकवा में कौन से भोजन से परहेज करें?

तेल और घी के अधिक सेवन से परहेज करें। इसके अलावा सुपारी, ज्यादा नमक, पूरी, समोसा, चाट-पकोड़ा, मक्खन, आइसक्रीम, चाय, काफी से भी परहेज करें। भारी भोजन जैसे छोले, राजमा, उड़द चना मटर सोयाबीन, बैंगन, कटहल जैसी चीजें बिल्कुल नहीं खाएं। ठंडी चीजें, पनीर और चॉकलेट से परहेज़ करें

लकवा के मरीज कितने दिन में ठीक हो जाते हैं?

ना ही पेशेंट अपना काम खुद करने में समर्थ हो पााएगा, जबकि डॉक्टर्स के मुताबिक, लकवा आने के दो से तीन दिन में पेशेंट में सुधार शुरू हो जाता है, तो छह महीने में रिकवरी आना शुरू होती है। डेढ़ साल में पूरी तरह से रिकवरी आ सकती है।

लकवा कौन से विटामिन की कमी से होता है?

ऐसा तब होता है जब शरीर में विटामिन बी-12 और बी कॉम्प्लेक्स की कमी हो जाती है। यह पूरी तरह से जीवनशैली में आए बदलाव का साइड इफेक्ट है। फिलहाल खान-पान में बदलाव इसका कारण माना जा रहा हैं। ठंड के समय में ब्रेन स्ट्रोक और लकवा के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।

क्या लकवा जानलेवा हो सकता है?

रेवाड़ी |लकवा लगना एक गंभीर जानलेवा बीमारी होती है। इसका मतलब हवा लगना नहीं होता है।