लेखक इस कथा के द्वारा क्या संदेश देना चाहते हैं? - lekhak is katha ke dvaara kya sandesh dena chaahate hain?

इस कहानी से क्या संदेश मिलता है?


मनुष्य को बहादुर और साहसी बनकर जीवन में स्वतंत्रता और प्रकाश हेतु संघर्ष करना चाहिए। साँप की तरह कायर न बनकर बाज की तरह वीर बनने का प्रयास करना चाहिए।

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लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो पात्रों के आधार पर रखा है। लेखक ने बाज और साँप को ही क्यों चुना होगा? आपस में चर्चा कीजिए।


इस कहानी में दो नायक हैं साँप और बाज। इन दोनों नायकों का लेखक ने कुशलता से चुनाव किया है। आकाश असीम है और बाज उस असीम का प्रतीक है जो स्वतंत्र भाव से आकाश की ऊँचाइयों को पा जाना चाहता है। दूसरी और साँप है जो अपनी ही बनाई सीमाओं में बंद है, उसने स्वयं ही अपने लिए परतंत्रता का दायरा कायम किया है। साथ ही लेखक ने यह भी दर्शाया है कि बाज वीर है घायल होने पर भी लंबी उड़ान की चाह रखता है जबकि साँप कायर है जो गुफा से बाहर निकलना ही नहीं चाहता।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि लेखक ने इन दोनों नायकों के माध्यम से स्वतंत्रता-परतंत्रता एवं वीरता-कायरता के भावों को प्रकट करना चाहा है।
यही कहानी बंदर और मगरमच्छ के द्वारा भी प्रस्तुत की जा सकती है क्योंकि बंदर स्वतंत्र व निरंतर विचरण करने वाला प्राणी है। उसके लिए कोई सीमा रेखा नहीं जबकि मगरमच्छ अपने सीमित दायरे में कभी धरती व कभी पानी में जीवन व्यतीत करता है, आलसी व धीमी गति से चलने वाला प्राणी है।

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यदि स कहानी के पात्र बाज और साँप न होकर कोई और होते तब कहानी कैसी होती? अपनी कल्पना से लिखिए।


यदि इस कहानी के नायक बंदर और मगरमच्छ होते तो कहानी निम्न संकेत बिंदुओं कै आधार पर होती-
● बंदर का एक बरगद के पेड़ पर रहना।
● मगरमच्छ का तालाब के किनारे निवास।
● बंदर का पेड़ों की डालियाँ फाँदना, लंबी छलाँगे मारना, अपने मन से दूर जंगलों में घूमकर आना, मन चाहे व मनभावन फल खाना।
● मगरमच्छ का घंटों एक ही स्थान पर पड़े रहना, छोटा-मोटा शिकार करना, कभी-कभार तालाब में जाना, सीमित दायरे में रहना।
● एक दिन बंदर का लंगूर द्वारा घायल हो जाना, बिल्कुल चल न पाना, थककर एक पेड़ के नीचे बैठ जाना।
● मगरमच्छ का वहीं पर बैठे होना। बंदर को देखकर सहानुभूति दिखाना व लंबी छलाँगों को बेकार बताना।
● बंदर का उसकी बातें सुनकर परेशान हो जाना व हर संभव प्रयत्न करना कि वहाँ से किसी तरह भागे और पेड़ों की डालियों पर जाकर बैठे।
● बंदर का जोर से पेड़ की डाली की ओर छलाँग लगाना।
● धप्प से नदी में गिर जाना।
● नदी की लहरों द्वारा आखों से ओझल हो जाना।
● मगरमच्छ का उस पर हैरान होना व उसे मूर्ख बताना, लेकिन यह सोचना कि पेड़ों की स्वच्छता कैसी होगी?
● मगरमच्छ द्वारा छलाँग लगाने का प्रयास लेकिन भारी शरीर का ऊपर न उठना और चोट खाकर गिरना।
● अपने सीमित दायरे को बेहतर कहना।
● नदी द्वारा बंदर की प्रशंसा का गीत गूँजना।
● मगरमच्छ का अपना-सा मुँह लेकर रह जाना।

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क्या पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा या स्वाभाविक कार्य में आनंद का अनुभव होता ही नहीं? विचार प्रकट कीजिए।


प्रकृति ने पक्षियों को पंख इसलिए दिए ताकि वे हवा में उड़ते हुए आकाश के विस्तार को देख सकें व उसकी ऊँचाइयों को पा सकें। पक्षी चहचहाते हुए, कलरव करते हुए जब उड़ते हैं तो उन्हें बहुत आनंद आता है। जबकि पंख होते हुए भी कुछ पक्षी जैसे बतख, शतुरमुर्ग आदि अधिक उड़ान नहीं भर पाते। उनका सुख व आनंद नाममात्र ही होता है।
सभी पक्षी स्वाभाविक क्रियाओं को भी आनंदपूर्वक ही पूरा करते हैं जैसे चिड़िया घोंसला बनाते हुए तिनका-तिनका एकत्रित करने में भी आनंदित होती है। पक्षी अपने बच्चों को दाना खिलाने व सुरक्षित स्थान देने में भी आनंद का ही अनुभव करते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पक्षी भले ही लंबी उड़ान भरने में अधिक आनंदित होते हों लेकिन स्वाभाविक क्रियाएँ भी उन्हे आनंद प्रदान करती हैं।

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घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा, “मुझे कोई शिकायत नहीं है।” विचार प्रकट कीजिए।


बाज को अपने जीवन में विस्तार और वीरता में ही आनंद की प्राप्ति हुई थी इसीलिए तो घायल अवस्था में साँप की गुफा में गिरने पर उसने यही कहा कि भले ही मेरी मृत्यु पास है परंतु मुझे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं। मैंने जिंदगी को जी भरकर जिया है। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को छुआ है। इस प्रकार उसने व्याख्यान दिया कि जीवन भर उसने असीम सुख भोगा है जबकि साँप ने अँधेरी व सीलनभरी गुफा में ही सारा जीवन व्यतीत किया है।

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बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था?


बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा, फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना चाहता था क्योंकि अपने अतीत की ऊँची उड़ान भरने के सुख को वह मरने तक भूलना नहीं चाहता था। इसलिए जीवन के अंतिम क्षणों में भी उसकी उड़ने की इच्छा बलवती थी, वह आकाश के असीम विस्तार को पाना चाहता था।

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इस कहानी से क्या संदेश मिलता है?


इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि मशीनी युग के दौर में हमें हाथ से बनी वस्तुओं को भी अपनाना चाहिए। भारत की धरोहर हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। लोगों को अपने पूर्वजों के उद्योग-धंधों को बंद न करके नवीनीकरण द्वारा उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

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बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलूो काे ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था?


बचपन में जब लेखक गरमी की छुट्टियों में अपने मामा के घर रहने जाता तो उस ‘बदलू काका’ से लाख की रंग-बिरंगी गोलियाँ लेने का चाव होता था। ये गोलियां इतनी सुंदर होती थी कि कोई भी बच्चा इनकी और आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता था।
वह बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ इसलिए कहता था क्योंकि गाँव के सारे बच्चे उस ‘बदलू काका’ के नाम से पुकारते थे।

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बाज़ार में बिकने वाले सामानों की डिज़ाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। आप इन परिवर्तनों को किस प्रकार देखते हैं? आपस में चर्चा कीजिए।


बाज़ार में बिकने वाले सामानों के डिज़ाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है क्योंकि एक ही डिज़ाइन की वस्तु का प्रयोग करते-करते लोग ऊब जाते हैं। कुछ नयापन लाने व रुचि के अनुसार परिवर्तन करने से वस्तुओं का रूप सौंदर्य बदलता रहता है। हम इन परिवर्तनों को केवल फैशन के रूप में ही देखते हैं।
इसी प्रकार की चर्चा आप कक्षा मे कर सकते हैं।

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मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैं। आप अपने आस-पास से इस प्रकार के किसी परिवर्तन का उदाहरण चुनिए और उसके बारे में लिखिए।


मशीनी युग के कारण बड़े से बड़े व छोटे से छोटे उद्योगों में अपार परिवर्तन आए हैं। हमारे घर के पास एक घर में ही लकड़ी का फर्नीचर बनता था। कितने ही कारीगर दिन-रात लकड़ियाँ चीर-चीर कर फर्नीचर बनाया करते थे। पिछले कुछ वर्षो में मैंने देखा कि कारीगर तो निरंतर कम होते जा रहे हैं लेकिन फर्नीचर और भी सुंदर बनने लगा है। मुझे उत्सुकता हुई कि एक बार अंदर जाकर देखकर आऊँ कि फर्नीचर कैसे बनता है। जब मैं उस लकड़ी के कारखाने में गया तो देखा कि लकड़ी काटने, साफ करने व उसे आकार देने का सभी कार्य मशीनें बखूबी कर रही थीं। मुझे देखकर बहुत अच्छा लगा कि काम कितनी जल्दी और सफाई से होता है लेकिन जब एक बढ़ई लकड़ी का सामान बनाने वाला) ने मुझे यह बताया कि एक समय था कि इस कारखाने में बीस लोग काम करते थे लेकिन अब केवल पाँच ही पूरा काम निबटा लेते हैं तो मुझ अफसोस हुआ कि मशीनों के कारण कितने लोग बेरोजगार भी हो जाते हैं। तभी मैने यह सोचा कि मशीनी युग परिवर्तन के साथ-साथ परेशानियाँ भी ला रहा है।

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आपको छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है? वहाँ की दिनचर्या अलग कैसे होती है? लिखिए।


छुट्टियों में मुझे अपनी बड़ी बहन के घर जाना सबसे अच्छा लगता है। मैं अपनी दीदी से बेहद प्यार करता हूँ। अपने घर में तो यही दिनचर्या होती है कि सुबह उठो, तैयार होकर विद्यालय जाओ, घर आकर खाना खाओ, फिर थोड़ी दर सो जाओ। शाम को एक घंटा टी.वी. देखो या खेलकर पड़ने बैठो। रात को पिताजी के आते ही खाना खाकर थोड़ी दर टहलो और फिर सो जाओ। दीदी के घर तो सुबह आराम से उठो। फिर थोड़ी दर टी.वी. देखो और नहा धोकर तैयार हो जाओ। मनपसंद नाश्ता करने के बाद आसपास के दोस्तों के साथ मजे करो। दोपहर को खाना खाओ और टी.वी. देखो, सो जाओ या मनपसंद कंप्यूटर गेम खेलो। मुझे तो इंटरनेट पर नई-नई जानकारियाँ प्राप्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। साथ ही मेरी दीदी भी मुझ इसमें काफी मदद करती हैं। शाम को जीजा जी के साथ घूमने जाना तो मुझे बेहद पसंद है। वे रोज मुझे नई-नई जगह ले जाते हैं व अच्छी-अच्छी चीजें खिलाते हैं। रात को गर्मागर्म खाना खाओ और टहलने के बाद सो जाओ। न कोई पढ़ाई की चिंता न माता-पिताजी की रोक-टोक इसीलिए तो सबसे अच्छा लगता है मुझे दीदी का घर।

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हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के पक्ष-विपक्ष में बातचीत कीजिए और बातचीत के आधार पर लेख तैयार कीजिए।


वर्तमान में दिन-प्रतिदिन आधुनिकता बढ़ती जा रही है। और इसका विशेष प्रभाव पड़ रहा है हमारे खान-पान, रहन-सहन और पहनावे पर। इस आधार पर मैंने बहुत लोगों से बातचीत की। कुछ ने इसके पक्ष में व कुछ ने इसके विपक्ष में अपने विचार रखे अर्थात् कुछ इस बदलाव को सही कहते हैं और कुछ सही नहीं मानते।

लेकिन मैंने सभी के विचारों से यह निष्कर्ष निकाला कि बदलाव भी जीवन का एक विशेष पहलू है। कुछ बड़े-बुजुर्ग आधुनिकता को जल्दी से अपना लेते हैं; रूढ़िवादी विचारों को त्यागने या उनमें बदलाव लाने में वे संकोच नहीं करते। ऐस लोग युवाओं के भी प्रिय हो जाते हैं व समया नुसार उनका मार्ग-दर्शन भी कर सकते हैं लेकिन दूसरी ओर वे बड़े-बुजुर्ग भी हैं जिन्हें समाज में होता बदलाव अच्छा नहीं लगता। वे अपने प्राचीन विचारों के साथ ही जीना चाहते हैं। एेसे में उनका बात-बात पर नवीन वर्ग के विचारों के साथ मतभेद होता है। ऐसा होने पर बच्चे भी उन्हें उतना सम्मान नहीं दे पाते जितना उन्हें देना चाहिए।

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