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पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे? दिन की रोशनी छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण लेखिका की आंखें कमजोर हो गई थी जिस वजह से डॉक्टरों ने उन्हें चश्मा लगाने को कहा। लेखिका के चश्मा लगाते ही चचेरे भाई ने उनसे मजाक करना शुरू कर दिया। चचेरे
भाई ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘आँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की, यह नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की।’ Haryana State Board HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 बचपन Textbook Exercise Questions and Answers. संस्मरण से पाठ 2 बचपन HBSE 6th Class
Hindi Vasant प्रश्न 1. बचपन HBSE 6th Class Hindi Vasant Chapter 2 प्रश्न 2. बचपन पाठ के प्रश्न उत्तर Vasant Chapter 2 HBSE
6th Class Hindi प्रश्न 3. Bachpan Question Answer HBSE 6th Class Hindi Vasant प्रश्न 4. प्रमुख फलों के नाम संस्मरण से आगे पाठ 2 बचपन के HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant प्रश्न
1. बचपन Question Answer HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant प्रश्न 2. पाठ 2 बचपन Hindi Solutions Vasant HBSE 6th
Class प्रश्न 3. HBSE 6th Class Hindi बचपन Important Questions and Answersपाठ 2 बचपन प्रश्न उत्तर HBSE 6th Class Hindi प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. कुछ बच्चे पुड़िया पर तेज़ मसाला बुरकवाते। पूरा गिरजा मैदान घूमने तक यह पुड़िया चलती। एक-एक चना-पापड़ी मुंह में डालने और कदम उठाने में एक खास ही लय-रफ्तार थी। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9. वहाँ शाम का दृश्य अत्यंत मनमोहक रहता था। सूर्यास्त के समय आसमान पर गुलाबी सुनहरी धारियाँ फैल जाती थी। पहाड़ों के मुखड़े गहराने लगते थे और बत्तियाँ टिमटिमाने लगती थीं। रिज की रौनक और माल की दुकानों की चमक देखते बनती थी। स्केंडल प्वाइंट पर भीड़ का कोलाहल रहता था। उन दिनों शिमला कालका मिनी ट्रेन चलती थी। उसमें सवारी का अपना ही मज़ा रहता था। प्रश्न 10.
बचपन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/आशय स्पष्ट करना 1. हाँ, मैं इन दिनों कुछ बड़ा-बड़ा यानी उम्र में सयाना महसूस करने लगी हूँ। शायद इसलिए कि पिछली शताब्दी में पैदा हुई थी। मेरे पहनने-ओढ़ने में भी काफी बदलाव आए हैं। पहले मैं रंग-बिरंगे कपड़े पहनती रही हूँ। नीला-जामुनी-प्रे काला-चॉकलेटी। अब मन कुछ ऐसा करता है कि सफेद पहनो। गहरे नहीं, हलके रंग। मैंने पिछले दशकों में तरह-तरह की पोशाकें पहनी है। पहले फ्रॉक, फिर निकर-वॉकर, स्कट। लहँगे। गरारे और अब चूड़ीदार और घेरेदार कुत। प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश कृष्णा सोबती द्वारा लिखित पाठ ‘बचपन’ से अवतरित है। इसमें लेखिका अपने बचपन का स्मरण कर रही है। व्याख्या : अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न : बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए 1. इन दिनों लेखिका स्वयं को कैसा महसूस करने लगी 2. किस बात
में काफी बदलाव आए हैं? 3. लेखिका पहले किस रंग के कपड़े पहनती रही है? 4. अब लेखिका का मन कैसे कपड़े पहनने का करता है? 5. ‘दशक’ में कितने वर्ष होते हैं? 2. पिछली सदी में तेज रफ्तार वाली गाड़ी वही थी। कभी-कभी हवाई जहाज भी देखने को मिलते! दिल्ली में जब भी उनकी आवाज आती, बच्चे उन्हें देखने बाहर दौड़ते। दीखता एक भारी-भरकम पक्षी उड़ा जा रहा है पंख फैलाकर। यह देखो और वह गायब। उसकी स्पीड ही इतनी तेज लगती। हाँ, गाड़ी के मॉडलवाली दुकान के साथ एक और ऐसी दुकान थी जो मुझे कभी नहीं भूलती। यह वह दुकान थी जहाँ मेरा पहला चश्मा बना था। वहाँ आँखों के डॉक्टर अंग्रेज थे। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कृष्णा सोबती के संस्मरण ‘बचपन’ से ली गई हैं। इनमें लेखिका अपने बचपन की घटनाओं को याद करती है। व्याख्या : ऐसा लगता था कि कोई भारी-भरकम पक्षी उड़ा जा रहा है। देखते-देखते वह गायब हो जाता था। उसकी गति बहुत अधिक होती थी। जिस दुकान पर इस कालका-शिमला ट्रेन का मॉडल रखा हुआ था. उसके पास ही एक अन्य दुकान थी, जहाँ चश्मे बनाए जाते थे। यहीं मेरा (लेखिका का) पहला चश्मा बना था। वहाँ आँखों की जाँच करने के लिए एक अंग्रेज डॉक्टर होता था। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न : 1. पाठ की
नाम और लेखिका का नाम बताओ। 2. इस गद्यांश में शिमला-कालका ट्रेन की बात कही गई है। उसी का मॉडल एक दुकान में रखा हुआ था। बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए 1. बच्चे किसकी आवाज सुनकर उसे देखने दौड़ पड़ते 2. बच्चों को हवाई जहाज़ कैसा प्रतीत होता था? 3. मॉडल वाली दुकान में किसका मॉडल था? 4. मॉडल वाली दुकान के साथ किसकी दुकान थी? बचपन Summary in Hindiबचपन पाठ का सार लेखिका बताती है कि वह इतनी बड़ी आयु की है कि वह बच्चों की दादी या नानी भी हो सकती है, पर परिवार में उसे लोग जीजी कहकर पुकारते हैं। अब वह स्वयं को सयाना महसूस करती है। पहले वह रंग-बिरंगे कपड़े पहना करती थी, पर अब उसका मन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनने को करता है। अब वह चूड़ीदार पजामे और घेरेदार कुरते पहनना पसंद करती है। सब कुछ बदल गया है। लेखिका को याद है कि बचपन में वह कैसे फ्रॉक पहना करती थी। एक फ्रॉक हल्की नीली धारीवाला था, गोल कॉलर और बाजू पर भी गोल कफ। दुसरा फ्रॉक गुलाबी रंग का चुन्नटों वाला था। दूसरा फ्रॉक गुलाबी रंग का चुन्नटों वालाा था। उन दिनों फ्रॉक के ऊपर की जेब में रूमाल रखने और बालों में रिबन लगाने का फैशन था। लैमन कलर का गर्म फ्रॉक था, जिस पर फर टॅकी थी। लेखिका को तब की दो ट्यूनिकों की भी याद है-एक चॉकलेट रंग की थी और दूसरी ग्रे। बचपन में उसे अपने मोजे खुद धोने पड़ते थे। इतवार इसी काम में लगता था। इसके बाद जूतों को पॉलिश से चमकाया जाता था। उसे अब भी बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है। अब तो नए-नए ढंग के जूते आ गए हैं। नए-नए जूते पैरों को काटते थे, अत: रुई पास रखी जाती थी। हर शनिवार को ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था। उन दिनों कुछ घरों में ग्रामोफोन थे। तब रेडियो और टेलीविजन नहीं थे। तब हम कुलफी खाते थे जो अब आइसक्रीम हो गई है। तब की कचौड़ी-समोसा अब पैटीज में बदल गया है। तब शहतूत, फालसे और खसखस के शरबत पिए जाते थे और अब कोक-पेप्सी। तब शिमला और नई दिल्ली के बच्चों को बैंगर्स और डेविको रेस्तराँ की चॉकलेट और पेस्ट्री मजा देती थी। तब लेखिका और उसके भाई-बहनों की ड्यूटी शिमला मॉल से ब्राउन ब्रेड लाने की लगती थी। उसका घर मॉल से ज्यादा दूर नहीं था। उन्हें हफ्ते में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। उसे वह रात के खाने के बाद मजे ले-लेकर खाती थी। लेखिका को शिमला के काफल भी बहुत याद आते हैंखट्टे-मीठे। चेस्टनट एक और गजब की चीज थी। इसे आग पर भूनकर और छीलकर खाया जाता था। अनारदाने का चूर्ण भी उसे खूब याद आता है। लेखिका ने छुटपन में शिमला रिज पर बहुत मजे किए। वहीं घुड़सवारी भी की। शिमला का प्राकृतिक सौंदर्य भी लुभावना होता था। स्कैंडल प्वाइंट पर खूब भीड़ उमड़ती थी। उसके सामने एक दुकान हुआ करती थी, जिसके शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का मॉडल बना हुआ था। पिछली सदी में तेज रफ्तार वाली गाड़ी वही थी। कभी-कभी हवाई जहाज भी देखने को मिलते थे। वहीं एक दुकान थी, जहाँ लेखिका का पहला चश्मा बना था। वहाँ आँखों के अंग्रेज डॉक्टर थे। शुरू-शुरू में यह अटपटा-सा लगता था। मुझे चचेरे भाई चिढ़ाते भी थे। उनके जाने के बाद मैं शीशे के सामने अपनी शक्ल देखती थी। अब तो यह चश्मा चेहरे के साथ घुल-मिल गया है। अब मैं टोपी लगाना भी पसंद करती हूँ। मैंने कई रंगों की टोपियाँ जमा कर ली हैं। बचपन शब्दार्थ फ्रिल-झालर (Frill)। ऑलिव ऑयल-जैतून का तेल (Olive oil)। कैस्टर ऑयल-अरंडी का तेल (Castor oil)। खुराक-निश्चित मात्रा (Dose)। स्टॉक-संग्रह, भंडार (Stock)। बुरकना-चूर्ण जैसी वस्तु को छिड़कना (To sprinkle)। छुटपन-बचपन (Childhood)। हृष्ट-पुष्ट-तगड़ा, हट्टा-कट्टा (Healthy)। कोलाहल-शोर, हंगामा, हल्ला (Noise)। अटपटा-टेढ़ा, कठिन, ऊटपटाँग (Strange)। आश्वासन-भरोसा (Belief)। खीजना-झुंझलाना, क्रुद्ध होना (Annoyed)। सहल-आसान (Simple)। पाठ के अनुसार लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा?लेखिका को रात में टेबल लैंप के सामने बैठकर पढ़ने के कारण उनकी नजर कमजोर हो गई थी, इस वजह से उन्हें चश्मा लगाना पड़ा। उनके चचेरे भाई चश्मा लगाने पर उन्हें छेड़ते हुए कहते थेआँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की यह नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की! प्रश्न 4. लेखिका अपने बचपन में कौन-कौन सी चीजें मज़ा ले-लेकर खाती थीं?
3 पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा चश्म पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे?'तुम्हें बताऊँगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है ।
लेखिका ने चश्मा न उतरने का जिम्मेदार किसे माना है और क्यों?लेखिका इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानती है। दिन की रोशनी छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण उसका चश्मा कभी नहीं उतरा, बस नंबर कम होता रहा।
चश्मा लगाने पर सब लेखिका को क्या कहकर चिढ़ाते थे?लेखिका बचपन में रात में टेबल लैंप की रोशनी में काम करती थी जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी और उन्हें चश्मा लगाना पड़ा । चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें लंगूर कहकर चिढ़ाते थे ।
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