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CBSE Class 11 Hindi Aroh Important Questions Chapter 4 - Bidai Sambhasan - Free PDF DownloadFree PDF download of Important Questions with solutions for CBSE Class 11 Hindi Aroh Chapter 4 - Bidai Sambhasan prepared by expert Hindi teachers from latest edition of CBSE(NCERT) books. Do you need help with your Homework? Are you preparing for Exams? Study without Internet (Offline) Download PDF Download PDF of Important Questions for CBSE Class 11 Hindi Aroh Chapter 4 - Bidai SambhasanFAQs on Important Questions for CBSE Class 11 Hindi Aroh Chapter 4 - Bidai Sambhasan1. You did not pay any heed to the request of eight crore subjects not to break up - which historical event has been referred to here? The author has pointed out here the historical event of the partition of Bengal. Lord Curzon was appointed twice as the Viceroy of India. He did many things to make British rule permanent in India. To crush the nationalist sentiments in India, he planned to partition Bengal. The people of the country understood this move of the viceroy and opposed this plan, but Curzon fulfilled his stubbornness and divided Bengal into two parts. 2. There is another third power between you and the residents here - who is called the third power here? Here the third power refers to the British rulers. England was ruled by Queen Victoria. In India, the orders given by the Queen were followed by the Viceroy. Lord Curzon was also appointed as Viceroy to fulfil the purpose of protecting British interests. When the British rulers felt that Curzon was not working in the interests of the British rulers, he was removed from the post of Viceroy by them. To know more, students can visit the Vedantu app and website. 3. Briefly describe the tenure of Lord Curzon. Lord Curzon was given the position of Viceroy twice by the British Government. Many things were done to establish British rule in India. One among them was the Bengal partition. He had made this plan to crush the nationalist sentiments. People had given a lot of respect to Lord Curzon but the people did not get the same respect back. The people of Bengal understood this plan of Lord Curzon and started opposing it, but Lord Curzon completed his plan and divided Bengal into two parts. The public was very angry with this, so they opposed this plan with great enthusiasm but they could not succeed. 4. With which ruler did the author compare the stubbornness of Lord Curzon? The author compared the stubbornness of Lord Curzon to that of Nadir Shah. Nadir Shah was a dictatorial and very cruel ruler. He slaughtered many people in Delhi and did not listen to anyone. But when Asif Jah pointed with a sword around his neck, Nadir Shah was compelled to stop the slaughter. The partition of Bengal by Lord Curzon was no less than a massacre. 8 crore people prayed to him again and again but he did not give up his stubbornness. Hence Lord Curzon was crueller than Nadir Shah in terms of cruelty. Ultimately it is correct to say that Lord Curzon's stubbornness can be compared to that of Nadir Shah. 5. Do you think governance means following arbitrary orders blindly and not listening to anyone? With reference to these lines, what is a rule? Discuss this. Governance is the management of the economy. Governance is not carried out by the will of anyone. It is the set of rules that constitute a good system. This arrangement should be in accordance with the public interest. The people remain unhappy with the autocratic ruler and after some time the ruler will be removed from the position. People should have freedom of expression. There should be a sense of public welfare in every policy. The story describes the cruelty of Lord Curzon in which he took a big and historic decision like the partition of Bengal and did not consider it necessary to take public opinion which was unfair to the public. To know more, you can visit Vedantu and download the PDF of important questions free of cost to study offline. Share this with your friends Contents
लेखक परिचय● जीवन परिचय-बालमुकुंद गुप्त का जन्म 1865 ई. में हरियाणा के रोहतक जिले के गुड़ियानी गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम लाला पूरनमल था। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में ही उर्दू भाषा में हुई। इन्होंने हिंदी बाद में सीखी। इन्होंने मिडिल कक्षा तक पढ़ाई की, परंतु स्वाध्याय से काफी ज्ञान अर्जित किया। ये खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य को स्थापित करने वाले लेखकों में से एक थे। ● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ पाँच संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं— ● साहित्यिक परिचय-गुप्त जी भारतेंदु युग और द्ववेदी युग के बीच की कड़ी के रूप में
थे। ये राष्ट्रीय नवजागरण के सक्रिय पत्रकार थे। उस दौर के अन्य पत्रकारों की तरह वे साहित्य-सृजन में भी सक्रिय रहे। पत्रकारिता उनके लिए स्वाधीनता-संग्राम का हथियार थी। यही कारण है कि उनके लेखन में निभीकता पूरी तरह मौजूद है। पाठ का साराशविदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वोत्तम उपयोग करना था। कर्जन ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश-विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना है। लेखक कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि आखिरकार आपके शासन का अंत हो ही गया, अन्यथा आप तो यहाँ के स्थाई वायसराय बनने की इच्छा रखते थे। इतनी जल्दी देश को छोड़ने की बात आपको व देशवासियों को पता नहीं थी। इससे ईश्वर-इच्छा का पता चलता है। आपके दूसरी बार आने पर भारतवासी प्रसन्न नहीं थे। वे आपके जाने की प्रतीक्षा करते थे, परंतु आपके जाने से लोग दु:खी हैं। बिछड़न का समय पवित्र, निर्मल व कोमल होता है। यह करुणा पैदा करने वाला होता है। भारत में तो पशु-पक्षी भी ऐसे समय उदास हो जाते हैं। शिवशंभु की दो गाएँ थीं। बलशाली गाय कमजोर को टक्कर मारती रहती थी। एक दिन बलशाली गाय को पुरोहित को दान दे दिया गया, परंतु उसके जाने के बाद कमजोर गाय प्रसन्न नहीं रही। उसने चारा भी नहीं खाया। यहाँ पशु ऐसे हैं तो मानव की दशा का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। इस देश में पहले भी अनेक शासक आए और चले गए। यह परंपरा है, परंतु आपका शासनकाल दु:खों से भरा था। कर्जन ने सारा राजकाज सुखांत समझकर किया था, उसका अंत दु:ख में हुआ। वास्तव में लीलामय की लीला का किसी को पता नहीं चलता। दूसरी बार आने पर आपने ऐसे कार्य करने की सोची थी जिससे आगे के शासकों को परेशानी न हो, परंतु सब कुछ उलट गया। आप स्वयं बेचैन रहे और देश में अशांति फैला दी। आने वाले शासकों को परेशान रहना पड़ेगा। आपने स्वयं भी कष्ट सहे और जनता को भी कष्ट दिए। लेखक कहता है कि आपका स्थान पहले बहुत ऊँचा था। आज आपकी दशा बहुत खराब है। दिल्ली दरबार में ईश्वर और एडवर्ड के बाद आपका सर्वोच्च स्थान था। आपकी कुर्सी सोने की थी। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे व ऊँचा था, परंतु जंगी लाट के मुकाबले में आपको नीचा देखना पड़ा। आप धीर व गंभीर थे, परंतु कौंसिल में गैरकानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता का दिवाला निकाल दिया। आपके इस्तीफे की धमकी को स्वीकार कर लिया गया। आपके इशारों पर राजा, महाराजा, अफसर नाचते थे, परंतु इस इशारे में देश की शिक्षा और स्वाधीनता समाप्त हो गई। आपने देश में बंगाल विभाजन किया, परंतु आप अपनी मजी से एक फौजी को इच्छित पद पर नहीं बैठा सके। अत: आपको इस्तीफा देना पड़ा। लेखक कहता है कि आपका मनमाना शासन लोगों को याद रहेगा। आप ऊँचे चढ़कर गिरे हैं, परंतु गिरकर पड़े रहना अधिक दुखी करता है। ऐसे समय में व्यक्ति स्वयं से घृणा करने लगता है। आपने कभी प्रजा के हित की नहीं सोची। आपने आँख बंदकर हुक्म चलाए और किसी की नहीं सुनी। यह शासन का तरीका नहीं है। आपने हर काम अपनी जिद से पूरे किए। कैसर और जार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुनते थे। आपने कभी प्रजा को अपने समीप ही नहीं आने दिया। नादिरशाह ने भी आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर कत्लेआम रोक दिया था, परंतु आपने आठ करोड़ जनता की प्रार्थना पर बंग-भंग रद्द करने का फैसला नहीं लिया। अब आपका जाना निश्चित है, परंतु आप बंग-भंग करके अपनी जिद पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में प्रजा कहाँ जाकर अपना दु:ख जताए। यहाँ की जनता ने आपकी जिद का फल देख लिया। जिद ने जनता को दु:खी किया, साथ ही आपको भी जिसके कारण आपको भी पद छोड़ना पड़ा। भारत की जनता दु:ख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। उन्हें भगवान पर विश्वास है। वे दु:ख सहकर भी पराधीनता का कष्ट झेल रहे हैं। आप ऐसी जनता की श्रद्धा-भक्ति नहीं जीत सके। कर्जन अनपढ़ प्रजा का नाम एकाध बार लेते थे। यह जनता नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाती है। यह राजकुमार संकट में नरवरगढ़ नामक स्थान पर कई साल रहा। उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद तक काम किया। जाते समय उसने नगर का अभिवादन किया कि वह यहाँ की जनता, भूमि का अहसान नहीं चुका सकता। अगर उससे सेवा में कोई भूल न हुई हो तो उसे प्रसन्न होकर जाने की इजाजत दें। जनता आज भी उसे याद करती है। आप इस देश के पढ़े-लिखों को देख नहीं सकते। लेखक कर्जन को कहता है कि राजकुमार की तरह आपका विदाई-संभाषण भी ऐसा हो सकता है जिसमें आप-अपने स्वार्थी स्वभाव व धूर्तता का उल्लेख करें और भारत की भोली जनता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कह सकेंगे कि आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त कर। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे। आपकी इस बात पर देश आपके पिछले कार्यों को भूल सकता है, परंतु आप में इतनी उदारता कहाँ? शब्दार्थ पृष्ठ
संख्या 46 पृष्ठ संख्या 47 पृष्ठ संख्या 48 पृष्ठ संख्या 49 पृष्ठ संख्या 50 पृष्ठ संख्या 51 अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न1.बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुख है। माइ लॉर्ड। आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। वैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है। (पृष्ठ-46) प्रश्न
उत्तर-
2.आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ। किंतु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं। (पृष्ठ-47) प्रश्न
उत्तर-
3.विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे! अलिफ़ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था, हौदा, चवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का एक दर्जा था। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीच आ रहे! आपके स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ़ नीचा देखना पड़ा! पद-त्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके। (पृष्ठ-48) प्रश्न
उत्तर-
4.आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गंभीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाज़िर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह, इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा, उलटा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला! (पृष्ठ-48) प्रश्न
उत्तर-
5.जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है-यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों की अवसर नहीं मिला, पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा। (पृष्ठ-49) प्रश्न
उत्तर-
6. क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और ज़ार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी क्षण रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या समझते हैं कि आपकी जिद्द से प्रजा के जी में दुख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देश को छोड़ न जाती? (पृष्ठ-49-50) प्रश्न
उत्तर-
7. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माइ लॉर्ड! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है। (पृष्ठ-50) प्रश्न
उत्तर-
8.‘अभागे भारत! मैंने तुमसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिएँ कुछ कर सकूं। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे।’ आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ? (पृष्ठ-51) प्रश्न
उत्तर-
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नपाठ के साथप्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न
3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: पाठ के आस-पासप्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: गौर करने की बात(क) इससे आपका जाना भी परपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वय
सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। भाषा की बात प्रश्न 1: प्रश्न 2: (क) आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अत को उनकी जाना पड़ा। उत्तर- अन्य हल प्रश्न● बोधात्मक प्रशन प्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न
3: प्रश्न 4:‘विदाई-संभाषण’ तत्कालीन साहसिक लेखन का नमूना है। सिदध कीजिए। प्रश्न 5: (क) प्रेस पर प्रतिबंध। NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience लार्ड कर्जन वापस इंग्लैंड क्यों गए?वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज़ सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश - विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए।
लॉर्ड कर्जन के पतन के क्या कारण है?Lord Curzon लॉर्ड एल्गिन के बाद भारत के वायसराय बने। वह भारत में नियुक्त होने वाले सबसे कम उम्र के वायसराय थे और उन्होंने 1899 और 1905 के बीच वायसराय के रूप में कार्य किया। वह औपनिवेशिक सरकार के सबसे प्रभावशाली और सबसे विवादित वायसराय में से एक थे।
लॉर्ड कर्जन के शासन का अंत कैसे हुआ?लार्ड कर्जन की मृत्यु (Lord Curzon Death)
9 मार्च 1925 को कर्जन का किसी समस्या के कारण ओपरेशन हुआ था,जिसके कुछ दिनों बाद ब्लीडिंग के कारण लंदन में 20 मार्च 1925 को उनको देहांत हो गया.
लॉर्ड कर्जन ने शासन की कौन सी नीति अपनाई थी?कर्ज़न ने जुलाई 1905 में बंगाल प्रेसीडेंसी के विभाजन की घोषणा की।
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