लैट्रिन जाने का सही समय क्या है? - laitrin jaane ka sahee samay kya hai?

Author: Jitendra SinghPublish Date: Thu, 14 Oct 2021 06:15 AM (IST)Updated Date: Thu, 14 Oct 2021 09:18 AM (IST)

Healthy Toilet Tips आधुनिकता की अंधी दौड़ का सीधा असर हमारे दिनचर्या पर पड़ती है। ना खाने का सही समय होता है और ना ही शौच जाने का। अगर शौच सही नहीं हुआ तो कई बीमारियां होने लगती है। शौच जाने से पहले ये गलतियां की तो पछताना होगा....

जमशेदपुर : अधिकांश लोगों की दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई है। न खाने का समय और न ही उठने का। यहां तक कि शौच भी सही समय पर नहीं जा पाते हैं। इससे बीमारी भी बढ़ रही है। कई बार देखा जाता है कि सुबह में शौच क्लियर नहीं होने से लोग दिनभर परेशान रहते हैं। यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, सुबह के समय शौच जाना बहुत ही जरूरी है और अगर पेट पूरी तरह से साफ न हो तो दिनभर बेचैनी और थकान का अहसास होता है।

हर व्यक्ति के लिए शौच जाने का सही वक्त सुबह पांच बजे से लेकर छह बजे तक का होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय हमारे शरीर में वायु का प्रकोप तेज होता है, जो मल को बाहर निकालने के लिए आवश्यक होता है। सुबह उठने के बाद दो गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। इससे शौच भी क्लियर होता है और दूसरी बीमारी भी नहीं होती है। ऐसे में हर किसी को अपने दिनचर्या में इसे शामिल करना चाहिए।

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चाय पीकर शौच नहीं जाए : आजकल देखा जाता है कि अधिकांश लोग चाय पीकर शौच जाते हैं जो बिल्कुल गलत है। ऐसे नहीं करना चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो इसे बदल लीजिए। विशेषज्ञों के अनुसार, सुबह सूर्योदय होते ही आपके शरीर में एसिड की अधिकता शुरू हो जाती, जिसको संतुलित करने के लिए आपको क्षार की आवश्यकता होती है। चाय पीने से शरीर में एसिड बढ़ता है, जो शरीर का तापमान बढ़ा देता है और उससे पेट खराब होने की नौबत आ जाती है।

सुबह उठते ही नहीं करें टूथपेस्ट : अक्सर देखा जाता है कि लोग सुबह उठते ही टूथपेस्ट कर लेते हैं। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। टूथपेस्ट करने से मुंह में लार बनना अचानक से कम हो जाता है और ये पूरे शरीर की क्रियाओं को प्रभावित करता है। दरअसल, लार नहीं बनने से आपके शरीर में कई तरह की रोग हो सकती है। इसमें मुंह का कैंसर भी शामिल है।

बार-बार शौच जाने से बचें : कई लोगों की आदत होती है कि वे शौचालय जाते और दो से तीन मिनट में ही निकल जाते हैं। इससे पेट साफ नहीं हो पाता और स्थिति यह हो जाती है कि उस व्यक्ति को दिनभर में कई बार शौच करने के लिए जाना पड़ता है, जो हानिकारक है।

शौचालय को साफ न रखना : अक्सर देखा जाता है कि लोग शौच करने के लिए जाते और शौचालय में तंबाकू खाकर थूक देते हैं। यह सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इस दौरान दूसरे लोगों को मुंह बंद कर शौच करना होता है। मुंह बंद नहीं करने से कई तरह की बीमारी होने का डर बना रहता है।

खाना खाने के बाद तुंरत शौच नहीं जाए : बहुत से लोग खाना खाते और उसके तुरंत बाद ही शौच करने के लिए जाते हैं, जो सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है। ऐसे लोगों को चाहिए कि यह बीमारी ठीक करें। इस तरह की परेशानी झेल रहे लोगों का शरीर दुबला पतला होता है और उन्हें बहुत जल्दी थकान होता है।

शौच रोके नहीं : लोगों को प्रेशर आने पर शौच नहीं रोकना चाहिए, यह कब्ज का कारण बन सकता है। इसके अलावा शौच रोकने से शरीर में कई तरह के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। वहीं शौच से आने के बाद हाथ को अच्छी तरह से धोएं। नहीं धोने से शौच का अंश हाथ में ही रह जाता है।

Edited By: Jitendra Singh

गदर एक प्रेम कथा रिलीज़ हुई तो लोगों को एहसास हुआ कि पाकिस्तान से हैंडपंप उखाड़कर लाना इतना भी मुश्किल काम नहीं है, लेकिन जब अक्षय कुमार टॉयलेट: एक प्रेम कथा लेकर आए तो हमारी अपनी पोल खुल गई. जो विषय घर के पिछवाड़े में छिपा हुआ था, वो अचानक ही सामने आ गया.

महिला संगठन, समाजसेवी, बॉलीवुड, खेल जगत और हमारी सरकार सभी के लिए टॉयलेट अहम मुद्दा हो गया. टॉयलेट ट्विटर और फ़ेसबुक तक पहुंच गया. लोग खुले में शौच की मुश्किलों के बारे में बातें करने लगे. कुछ जगह टॉयलेट बन गए, कुछ जगहों पर टॉयलेट के नाम पर घोटाले हो गए.

ख़ैर जो भी है... लोगों को टॉयलेट मिल गया. बावजूद इसके दिक्कत ये है कि अभी भी लोग यह नहीं जानते कि इस टॉयलेट नाम की बला का इस्तेमाल कैसे करें?

ये कोई मज़ाक नहीं, बल्कि 100 फ़ीसदी सत्य है. और तो और, ये सत्य हमारे जैसे बाकी कई देश के लोगों का भी है. ज़्यादातक लोग ये नहीं जानते कि टॉयलेट में किस तरह से बैठना चाहिए. नतीजतन वे गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि टॉयलेट में बैठने का भी तरीका सही या ग़लत हो सकता है? 

लैट्रिन जाने का सही समय क्या है? - laitrin jaane ka sahee samay kya hai?

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लैट्रिन जाने का सही समय क्या है? - laitrin jaane ka sahee samay kya hai?

  • पहले टॉयलेट को जान लें
  • वैज्ञानिकों को रास नहीं आया तरीका
  • तो फिर बेहतर क्या है Western या Indian Toilet?
  • टाइम का ध्यान भी रखें

पहले टॉयलेट को जान लें

पुरातत्व वैज्ञानिकों को पहला साधारण टॉयलेट मेसोपोटामिया में मिला था, जो तक़रीबन 6 हज़ार साल पुराना था. दरअसल सन् 315 तक रोम में 144 सार्वजनिक शौचालय बन चुके थे.

यानि बाथरूम जाना सामाजिक चलन बन चुका था. इसके बाद ब्रिटेन के जॉन हैरिंगटन ने 1592 में पहला फ़्लश वाला टॉयलेट तैयार किया. जिसका नाम था 'द एजैक्स'. इसके बाद हमारी बाथरूम की आदतें हमेशा के लिए बदल गईं.

टॉयलेट पहले एक ‘लग्ज़री’ व्यवस्था का हिस्सा थे, लेकिन जैसे-जैसे प्लंबिंग विकसित हुई, टॉयलेट को बड़े पैमाने पर बनाया जाने लगा. ऐसा होते ही टॉयलेट घर-घर तक पहुंच गए.

भारत और आसपास के पड़ोसी देशों में शौच के लिए उकड़ूं बैठने की व्यवस्था ही रही. जैसे ही पश्चिमी सभ्यता का यहां आगमन हुआ, वैसे ही हमारे होटल्स, मॉल और फिर घरों में टॉयलेट व्यवस्था बदल गई. लोगों को वेस्टर्न पैटर्न टॉयलेट इस्तेमाल करना ज़्यादा सुविधाजनक लगा. हालांकि लोग उन वैज्ञानिकों के तर्क को भूल गए जिन्होंने वेस्टर्न टॉयलेट के डिज़ाइन पर सवाल उठाए थे.

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वैज्ञानिकों को रास नहीं आया तरीका

20वीं सदी के मध्य में यूरोपीय डॉक्टरों की एक टीम अफ़्रीका के ग्रामीण इलाक़ों में लोगों की सेहत जांचने पहुंची. अनुमान था कि वहां के लोगों को खानपान और रहन-सहन का सही तरीका नहीं आता है. इसलिए वे शारीरिक रूप से कमज़ोर होंगे. पर हुआ इसका उल्ट.

वैज्ञानिकों ने पाया कि वहां लोगों को पाचन और पेट से जुड़ी तकलीफ़ें ना के बराबर थीं. जबकि ब्रिटेन जैसे देश में यह समस्या आम बन चुकी थी. अफ्रीका की ही तर्ज पर दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में भी ऐसा ही था. डॉक्टरों ने पता लगाया कि ये सिर्फ़ खाने में अंतर की वजह से नहीं था, बल्कि लोगों के मल त्याग करते समय बैठने के तरीके में अंतर की वजह से था. 

इसके बाद हुए अलग-अलग सर्वे में यह बात सामने आई की पश्चिमी देशों में लोग जब एक बार टॉयलेट जाते हैं, तो 114-130 सेकेंड वहां बिताते हैं. जबकि विकासशील देशों में लोग टॉयलेट में उकड़ूं होकर मल त्याग करते हैं, और महज़ 51 सेकेंड का ही समय लेते हैं.

1960 के मध्य में कोर्नेल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एलेक्ज़ेंडर किरा ने यूरोपीय शैली के टॉयलेट्स को 'सबसे बुरे डिज़ाइन' में बनाई गई चीज़ कहा. डॉ. हेनरी एल. बोकस ने 1964 में अपनी किताब गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी में दावा किया कि जांघों को पेट के पास लाकर उकड़ूं बैठना आदर्श मल त्याग करने का तरीका है. डॉ. एलेक्ज़ेंडर कीरा ने 1966 में अपनी किताब 'द बाथरूम' में तर्क दिया कि दीर्घशंका के लिए उकड़ूं बैठना इंसानी फ़ितरत है. इससे मलत्याग के लिए कम ज़ोर लगाना पड़ता है. 

साल 2003 में डॉ. डोव सिकिरोव ने एक स्टडी की, जिसकी रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि शौच के दौरान उकड़ूं बैठने की तुलना में टांगें नीची करके बैठने पर अत्यधिक ज़ोर लगाना पड़ता है, और समय भी ज़्यादा लगता है. वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि उकड़ूं बैठकर बाथरूम का इस्तेमाल करते समय आपकी टांगें आपके शरीर से 35 डिग्री के कोण पर होनी चाहिए. जबकि, वेस्टर्न टॉयलेट में ऐसा होना मुमकिन नहीं था इसलिए उसका डिज़ाइन नकार दिया गया.

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तो फिर बेहतर क्या है Western या Indian Toilet?

ये मसला ​ब्रिटेन या भारत के तौर-तरीकों पर उंगली उठाने का नहीं है, बल्कि ये सोचने का है कि आखिर टॉयलेट की पोज़िशन इतनी अहम है क्यों? ये सब ज़रूरी है उस प्रक्रिया की वजह से, जो शौच के दौरान हमारे शरीर में घट रही होती है. दरअसल, ‘मलत्याग’ वह प्रक्रिया है, जिसमें पाचन के बाद बचा-खुचा अनुपयोगी वेस्ट मटेरियल शरीर से बाहर निकाला जाता है. एक औसत उम्र वाला व्यक्ति अपनी पूरी ज़िंदगी में छह महीने से ज़्यादा वक़्त टॉयलेट में बिताता है.

इतना ही नहीं, वह हर साल तक़रीबन 145 किलो मल त्याग करता है, यानि अपने शरीर के वज़न से लगभग दोगुना.

मल त्यागने के दौरान आंतरिक तंत्रिका तंत्र और पैरासिंपेथेटिक तंत्र कई प्रक्रियाएं पूरी करवाते हैं. जैसे कि बड़ी आंत (colon) में मल जमाव पर नियंत्रण या बाहरी स्फिंक्टर या प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी (puborectalis muscle) को शिथिल करना. प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी के कारण गुदा (rectum) सही दशा में आ जाता है, जिससे पेट में आंतरिक दबाव बनता है और मल बाहर निकल जाता है. 

वेस्टर्न टॉयलेट सीट पर बैठने के दौरान हमारी 'गुदा नलिका' 90 अंश के कोण पर होती हैं. उकड़ूं बैठकर कर शौच करने से टांगें आपके शरीर से 35 डिग्री के कोण पर होती हैं. ऐसे बैठने से आपकी मांसपेशियां पेट पर दबाव डालती हैं. जबकि पहली वाली स्थिति में पेट और मल का सारा भार मलाशय और उसके आसपास की नसों पर होता है. ज़्यादा जोर लगाने से नसों में सूजन आ जाती है.

उकड़ूं बैठने पर बड़ी आंत (colon)की अंदरूनी गुहाओं (cavities) में दबाव बनता है. जिससे पेट साफ होने में दिक्कत नहीं होती. जबकि दूसरी प्रक्रिया आपको कब्ज़, अमाशय में गड़बड़ी (इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम), हर्निया और बवासीर का शिकार बना सकती है.

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टाइम का ध्यान भी रखें

टॉयलेट में बैठने की पोजिशन के बाद, जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो ये कि यहां ज्यादा से ज्यादा कितना समय बिताना चाहिए? ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि लोग टॉयलेट को ब्रेक की जगह बना लिया है. यहां मोबाइल पर गेम खेले जाते हैं, चैटिंग होती है और अखबार भी पढ़े जाते हैं. जबकि इस बारे में तर्क दिया जाता है कि टॉयलेट में 10 मिनिट से ज़्यादा का समय गुज़ारना ख़तरनाक हो सकता है. 

ख़ासतौर पर टॉयलेट में फ़ोन का इस्तेमाल करने वालों को जानना ज़रूरी है कि टॉयलेट की वजह से आपका फोन और आपके फोन से आपके शरीर तक 18 गुना अधिक बैक्‍टीरिया और जर्म्‍स आप तक पहुंचकर आपको अतिसंवेदनशील बना सकते है.

टॉयलेट में ज्यादा समय बिताने से मलाशय पर दबाव बनता है. जिससे आपके बाउलिंग मूवमेंट पर बुरा असर पड़ सकता है. जितनी देर तक आप बाथरुम में रुककर बैठते हो उतनी देर तक आपको अपने मलाशय की नसों को दबाकर रखना पड़ता है, जिससे मलाशय कमज़ोर हो जाता है और कई बार लोग पाइल्स जैसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं.

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तो इस पूरी खबर को पढ़ने के बाद आप ये ना सोचें कि घर में वेस्टर्न टॉयलेट बनवाकर कोई ग़लती कर बैठे हैं, बल्कि आपको जरूरत है एक्सट्रा बाथरूम एसेसरीज की. यानि आप टॉयलेट में एक छोटा सा पायदान रख सकते हैं और अपने पैर इस पर टिका सकते हैं.

या फिर गोद में मोटी किताबों का एक बंडल या ऐसी ही कोई चीज़ रख सकते हैं. कुल मिलाकर कुछ भी करें लेकिन टॉयलेट में 90 डिग्री के कोण में बैठने से बचें. हां! इसके लिए टॉयलेट सीट के उपर चढ़कर बैठने की गलती कतई ना करें, वरना हादसा हो सकता है!

लैट्रिन करने का सही समय क्या है?

हर व्यक्ति के लिए शौच जाने का सही वक्त सुबह पांच बजे से लेकर छह बजे तक का होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय हमारे शरीर में वायु का प्रकोप तेज होता है, जो मल को बाहर निकालने के लिए आवश्यक होता है। सुबह उठने के बाद दो गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। इससे शौच भी क्लियर होता है और दूसरी बीमारी भी नहीं होती है।

पेट कितनी बार साफ होना चाहिए?

यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है।

लैट्रिन में कितनी देर बैठना चाहिए?

कोशिश करें कि टॉयलेट में 10 मिनट से ज्यादा देर तक न बैठना पड़े. उन्होंने कहा कि गुरुत्वाकर्षण (Gravity) आपका दोस्त नहीं हो सकता है. यह हमेशा चीजों को अपनी ओर खींचता है.

१ दिन में कितनी बार सोच करना चाहिए?

आज हम आपको बताते हैं कि दिनभर में कितनी बार यूरिन जाना सामान्य बात है। विशेषज्ञों के अनुसार हर व्यक्ति को दिन में 6-8 बार यूरिन जाना ही चाहिए

क्या शौच करते समय जोर लगाना चाहिए?

फाइबर न सिर्फ खाने को नरम बनाता है बल्कि इसकी वजह से आप जो भी खाते हैं वो आपकी आंतों और पेट से बड़ी आसानी से पास हो जाता है। इस तरह शौच के वक्त आपको ज्यादा जोर लगाने की आवश्यकता नहीं होती है और कब्ज से राहतमिल जाती है।