Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 9 ऋतुराजRBSE Class 10 Hindi Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 10 Hindi Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न1. कवि ने अंतिम पूँजी किसे बताया था Show
2. दुख बाँचना किसे नहीं आता था RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 3. कवि ने स्त्री जीवन का बंधन किसे बताया है? प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 7. प्रश्न 8. माँ ने सीख दी कि कैसा भी संकट हो, वह कभी आत्महत्या करने की बात न सोचे। धैर्य और साहस से परिस्थितियों का सामना करे। माँ ने बेटी को सावधान किया कि मूल्यवान वस्त्रों और गहनों को पाकर वह बहुत अधिक खुश न हो। ये नारी को बंधन में डालने वाली वस्तुएँ हैं। माँ ने यह सीख भी दी कि वह लड़की होने को अपनी कमजोरी न समझे। स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए। प्रश्न 9. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ‘पति प्रधानों’ और ‘पतिपार्षदों’ के रूप में देखा जा सकता है। वस्त्र और आभूषण स्त्री को भ्रमित करने वाले मोहक शब्द मात्र हैं। इनका स्त्री के जीवन में कोई विशेष महत्व नहीं होना चाहिए। प्रश्न 10. इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है। अपनी सुन्दरता पर मुग्ध न होना, आत्महत्या के विचार से दूर रहना, वस्त्र और आभूषणों के मायाजाल से बचना और लड़की होते हुए भी लड़की जैसी न दिखाई देना; ये सभी शिक्षाएँ माँ की मूल चिन्ता को ही उजागर करती हैं। RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्नप्रश्न 11. सच तो यह है कि कन्या के साथ ‘दान’ शब्द को जोड़ना, ‘नारी की स्थिति पर बड़ा व्यंग्य है और उसकी गरिमा को गिराने वाला है। कन्या क्या कोई निर्जीव वस्तु या पशु-पक्षी है जो उसे किसी को दान में दे दिया जाय? मनुष्य के दान की कल्पना भी सभ्य समाज में उचित प्रतीत नहीं होती।आज इस दान के साथ न वह श्रद्धा है न पुण्य प्राप्ति की इच्छा। ‘कन्यादान’ विवाह का एक औपचारिक अनुष्ठान भर रह गया है। दोन वही सफल माना गया है जो सुपात्र को दिया जाय। क्या इस शर्त का पालन हो पा रहा है? जब स्त्री-स्वावलम्बन और सशक्तिकरण की बातें हो रही हों तब कन्या का दान किया जाना एक मजाक से अधिक क्या कहा जा सकता है?अतः अपने मूलभाव और सार्थकता को खो चुके इस शब्द को या तो व्यवहार से बाहर कर देना चाहिए या फिर इसे समयानुकूल नाम दिया जाना चाहिए। प्रश्न 12. (ख) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह……………पर लड़की जैसी दिखाई मत देना RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर1. ‘कितना प्रामाणिक था उसका दुख’ इस पंक्ति में कवि ने माँ के दुख को माना है 2. माँ अपनी अंतिम पूँजी समझ रही थी 3. ‘दुख बाँचना’ से आशय है 4. माँ के अनुसार आग होती है 5. माँ ने वस्त्र और आभूषणों को बताया है RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. लड़की बिछुड़ते समय हर माँ का दिल भर आता है। वर्षों का साथ, लाड़-प्यार और जीवन में सूनापन आने की भावना उसे आसू बहाने को बाध्य कर देती है। उसे लगता है जैसे उसके पास बेटी के रूप में जीवन की पूँजी शेष थी। वह उस से दूर होने जा रही है। . प्रश्न 2. इसी कारण उसे विवाहित जीवन के सुख का अस्पष्ट-सा आभास था। वह अभी आगामी जीवन की समस्याओं और कष्टों से अपरिचित थी। कवि ने यह संकेत भी किया। है कि माँ को उसका विवाह छोटी आयु में करना पड़ रहा था। प्रश्न 3. उसकी समझ में केवल उतनी ही पंक्तियाँ आ रही थीं, जिनमें तुक और लय का समावेश था। भाव यह है कि वह विवाहित जीवन के सुखमय पक्ष का ही थोड़ा-सा ज्ञान रखती थीं, वह आने वाली कठिनाइयों से अपरिचित थी। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. इससे उनका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास संकट में पड़ जाता है। वस्त्र औरआभूषणों के उपहार देकर पुरुष नारी को अपने अधीन कर लिया करते हैं। प्रश्न 7. आज समय बदल रहा है। लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को कड़ी चुनौती दे रही हैं। हर पेशे में अपनी प्रतिभा का प्रमाण दे रही हैं। अत: अपनी बेटी को दी गई। माँ की यह सीख पूरी तरह समयानुकूल है। RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्नप्रश्न 1. उसके लिए वैवाहिक जीवन ऐसा ही अस्पष्ट था जैसे धुंधले प्रकाश में पढ़ा जाने वाला कोई पाठ हो। उसके मन में विवाहित जीवन की कुछ सुखद कल्पनाएँ मात्र थीं। उसकी वास्तविकता से वह परिचित नहीं थी। इसी कारण कवि उसे सयानी नहीं मानता। प्रश्न 2. उसकी सुन्दरता दूसरों के लिए ईष्र्या का कारण हो सकती थी। इससे द्वेष को वातावरण बन सकता था। माँ ने बेटी को समझाया कि चाहे जैसी कठिन परिस्थिति क्यों न आए, वह कभी भी आत्महत्या करने की बात न सोचे। सूझ-बूझे और धैर्यपूर्वक समस्या का सामना करे। वह सुन्दर वस्त्रों तथा बहुमूल्य आभृणों के मोह में न पड़े। ये स्त्री को भ्रम में डाल देते हैं। उसके स्वाभिमान को वंचित कर देते हैं। माँ ने वर्तमान परिस्थितियों को प्रश्न 3. कन्यादान हिन्दू विवाह का एक परंपरागत अंग रहा है। कन्या कोई निर्जीव वस्तु नहीं कि उसका अन्नदान, वस्त्रदान, गोदान आदि की भाँति दान कर दिया जाय। दान की गई वस्तु का दान प्राप्तकर्ता स्वामी मान लिया जाता है। अतः ‘कन्यादान’ शब्द में स्त्री के पद को हीन करने की गंध आती है।मेरा मत है कि इस शब्द को या तो विवाह पद्धति से निकाल दिया जाय या फिर इसके स्थान पर ‘आशीषदान’, ‘मंगल कामना’ या कोई और उपयुक्त शब्द प्रयोग में लाया जाय। विवाह के लिए पाणिग्रहण’ शब्द भी प्रचलित है। कन्या के माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर को पकड़ाते हैं अर्थात् दाम्पत्य जीवन में दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते हुए उनके मंगलमय जीवन की कामना व्यक्त करते हैं। कन्यादान को यही स्वरूप है और इसके अनुरूप ही नाम भी दिया जाना चाहिए। प्रश्न 4. वह चाहता है कि नारियाँ अपने व्यक्तित्व, अपनी क्षमताओं और अपने गुणों के प्रति जागरूक बने। कवि का संदेश है कि नारी को ससुराल में मिलने वाले गहनों और वस्त्रों से अधिक मोह नहीं रखना चाहिए।ये उसे पुरुष की दासता में बाँध देने वाले बंधनों के समान हो सकते हैं। अपने रूप और सुन्दरता पर मुग्ध होकर रहना, अपने आपको धोखा देने के समान है। स्त्री को अपने स्त्री होने पर गर्व होना चाहिए हर प्रकार की दीनता-हीनता से मुक्त रहना चाहिए साथ ही अपने स्त्रियोचित गुणों को बनाए रखना चाहिए। देखा जाय तो भारतीय नारी के सन्दर्भ में दिये गए ये संदेश सम्पूर्ण विश्व की नारी जाति के लिए हैं। उनके मार्गदर्शक हो सकते हैं। कवि परिचय जीवन परिचय- कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन् 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अँग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अँग्रेजी-अध्यापन किया। ऋतुराज के अब तक प्रकाशित काव्य संग्रहों में ‘पुल पर पानी’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सुरत निरत’ तथा ‘लीला मुखारविन्द’ प्रमुख हैं। अपनी रचनाओं के लिए ऋतुराज परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार आदि से सम्मानित हो चुके हैं। साहित्यिक परिचय-ऋतुराज ने हिन्दी की मुख्य परम्परा से हटकर उन लोगों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। जो प्रायः उपेक्षित रहे हैं। उनके सुख-दु:ख, चिन्ताओं और चुनौतियों को चर्चा में स्थान दिलाया है। सामाजिक जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को कवि ने सच्चाई के साथ शब्दों में उतारा है। आम जीवन में व्याप्त चिन्ताओं, विसंगतियों और सामाजिक जीवन की विडम्बनाओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। लोक प्रचलित भाषा के द्वारा आम जीवन की समस्याओं को विमर्श के केन्द्र में लाकर कवि ने सामाजिक न्याय की भावना को बल प्रदान किया है। पाठ परिचय ‘कन्यादान’ विवाह का एक महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। कवि ने इस कविता में ‘कन्या के दान’ पर प्रश्न उठाते हुए, एक माँ द्वारा अपनी पुत्री को वैवाहिक जीवन से संबंधित गम्भीर शिक्षाएँ दिलवाई हैं। कविता में माँ बेटी को परम्पराओं और आदर्शो से हटकर, कुछ उपयोगी सीखें दे रही है। समाज ने स्त्रियों के लिए आचरण के जो पैमाने गढ़े हैं, वे बड़े आदर्शवादी हैं। स्त्रियों से यही आशा की जाती रही है। कि वे अपना जीवन इन्हीं आदर्शों के अनुरूप ढालें। स्त्रियों को कोमल बताया जाना एक प्रकार से उनके व्यक्तित्व का उपहास है। स्त्री पुरुष की तुलना में कमजोर होती है, यही कोमलता का अर्थ है। कविता में माँ अपनी भोली-भाली कन्या को शिक्षा दे रही है कि वह अपनी सुंदरता पर मुग्ध होने से बचे क्योंकि इससे वह ईर्ष्या का शिकार हो सकती है। चाहे जैसी कठिन परिस्थिति आए वह कभी अपना जीवन समाप्त कर देने की बात न सोचे। सुन्दर और मूल्यवान वस्त्र तथा आभूषण पाकर वह भ्रम में न पड़े। ये स्त्री को पराधीन बनाकर रखने वाले बंधन होते हैं। तू लड़की है यह सच है किन्तु इस कारण तू कमजोर या परावलम्बी है, यह बात सपने में भी मत सोचना। इस प्रकार कवि ने बेटी की विदाई पर माँ को भावुक होकर आँसू बहाते नहीं दिखाया है बल्कि अपने जीवन के गम्भीर अनुभवों को उसके साथ साझा किया है। पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ (1) शब्दार्थ-प्रामाणिक = सच्चा, वास्तविक। दान = कन्यादान, विवाह की एक रीति। पूँजी = संपूर्ण संचित धन। सयानी = समझदार, चतुर। आभास = हल्की समझ, अनुमान। बाँचना = पढ़ना, समझ पाना। पाठिका = पढ़ने वाली। धुंधले = अस्पष्ट, कम चमकदार। लयबद्ध = लय में बँधी, स्पष्ट। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने एक नवविवाहिता लड़की के सरल स्वभाव का और जीवन की कठोर वास्तविकता से परिचित। न होने का वर्णन किया है। व्याख्या-बेटी का कन्यादान करते समय माँ दुखी थी। उसे लग रहा था मानो वह अपने जीवन में संचित अंतिम पूँजी से भी बिछुड़ रही हो। माँ का यह दुख दिखावा या रीति निभाना मात्र नहीं था। उसका दुख वास्तविक था जिससे हर कन्या की माता को गुजरना पड़ता है। माँ कन्या को कुछ बड़ी उपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ देना चाहती थी। लड़की अभी भोली और सरल स्वभाव वाली थी। उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन की कठोर सच्चाइयों का ज्ञान नहीं था। उसके मन में वैवाहिक जीवन के सुखों की एक अस्पष्ट-सी तस्वीर तो थी लेकिन उससे जुड़े दु:खों और समस्याओं से वह अपरिचित थी। कम आयु और भोले स्वभाव के कारण आगामी जीवन उसके लिए धुंधले प्रकाश में पढ़ी जाने वाली कविता के समान था। उसकी तुक और लय में बँधी सुखद पंक्तियों को ही वह पढ़ने और समझने में समर्थ थी। अभी उसे जीवन के कड़वे अनुभवों का ज्ञान न था। विशेष- 2. शब्दार्थ-झाँककर = देखकर। चेहरा = मुख। रीझना = मुग्ध होना, अति प्रसन्न होना। जलने के लिए = आग लगाकर आत्महत्या करने के लिए। शाब्दिक भ्रम = भ्रम में डाल देने वाले शब्द। लड़की जैसी = कमजोर या दूसरों पर निर्भर। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में माँ अपनी विवाहित बेटी को आगामी जीवन के लिए उपयोगी सीख दे रही है। व्याख्या-विदा होकर ससुराल जाने वाली बेटी को शिक्षा देते हुए माँ कह रही है-बेटी ! ससुराल में अपनी सुन्दरता पर बहुत प्रसन्न होकर न रहना। तुम्हारी यह सुन्दरता किसी को प्रसन्न करेगी तो किसी के लिए ईर्ष्या का कारण भी हो सकती है। सुन्दरता पर इतराने से अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। ध्यान रखना स्त्री के लिए आग केवल रोटी सेकने के लिए होती हैं। कभी भी आवेश में आकर या हताश होकर आग लगाकर जल मरने की बात मत सोचना। सूझ-बूझ और साहस से समस्याओं का सामना करते हुए जीना। ससुराल में कीमती वस्त्र और आभूषण पाकर बहुत खुश मत होना। ये गहने-कपड़े केवल भ्रम में डालने वाले शब्दों की तरह हुआ करते हैं। ये स्त्री को बंधन में डाल देने वाली हथकड़ियों और बेड़ियों के समान हैं। इनके मोह में फंसकर अपनी सही सोच से दूर मत हो जाना। यह सही है कि तुम एक लड़की हो किन्तु लड़की होना कोई कमजोरी नहीं बल्कि स्वाभिमान की बात है। कभी अन्याय और अपमान से समझौता मत करना। विशेष- RBSE Solution for Class 10 Hindiमां ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए मना क्यों किया?प्रश्न (क)- माँ ने अपनी बेटी को चेहरे पर रीझने से क्यों मना किया ? उत्तर: माँ ने लड़की से स्वयं पर रीझने से इसलिए मना किया ताकि वह अपने रूप सौन्दर्य में खोकर अपने कर्तव्य को न भूल जाए।
अपने चेहरे पर मत रीझना में क्या निहित है?'अपने चेहरे पर मत रीझना' वाक्यांश से तात्पर्य अपनी सुंदरता पर आत्म-मुग्ध ना होना और अपनी सुंदरता पर अभिमान ना करना है। Explanation: यह प्रश्न 'ऋतुराज' द्वारा रचित कविता “कन्यादान” से संबंधित है। इसमें एक मां अपनी बेटी को उपदेश देते हुए कहती है कि उसकी बेटी अपनी सुंदरता पर आत्ममुग्ध ना हो।
पानी में झाँककर कभी अपने चेहरे पर मत रीझना इस पंक्ति के माध्यम से माँ बेटी को क्या सीख देना चाहती है?Solution : माँ ने बेटी को समझाया कि पानी झाँककर जब अपना चेहरा देखो तब उसके रूप-सौंदर्य पर रोझ मत जाना अर्थात् स्वयं को रूप-सुंदरी माल लेने का भ्रमत मत पाल लेना। यदि यह भ्रम पालोगी तो जीवन कष्टमय हो जाएगा।
कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक धम क्यों कहा गया है?Solution : कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा गया है क्योंकि स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र व सुंदर आभूषणों के चमक व लालच में भ्रमित होकर आसानी से अपनी आजादी खो देती हैं और मानसिक रूप से हर बंधन स्वीकारते हुए जुल्मों का शिकार होती हैं।
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