डॉ. मधुबाला* Show अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जो दो भाषाओं, दो संस्कृतियों के बीच सेतु का काम करती है। अनुवाद की प्रक्रिया से हम सब गुजरते हैं, शायद जिस का हमें कभी आभास नहीं होता। अनुवादक के लिए द्विभाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। हम अंग्रेजी लिखते हुए अक्सर अपनी मातृभाषा हिन्दी में सोचते हैं, और फिर अंग्रेजी में उसका अनुवाद करते हैं। वह बच्चे जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी नही है उन्हें अंग्रेजी सिखाने के लिए अंग्रेजी-हिन्दी अनुवाद की प्रविधि अपनाई जाती है। यद्यपि अंग्रेजी-हिन्दी भाषाओं की वाक्य संरचना में पर्याप्त अंतर है, और दो भाषाओं की संरचना जानने के लिए यह प्रविधि उत्तम है, क्योंकि इससे दो भाषाओं की संरचनात्मक समानताओं और असमानताओं का ज्ञान हो जाता है, और यह पता चल जाता है कि वाक्य के किस शब्द का क्या अर्थ है। ‘साधन रूप में अनुवाद का प्रयोग भाषा शिक्षण की एक विधि के रूप में किया जाता है। जबकि साध्य रूप में अनुवाद व्यापार के अनेक क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है। यहां अनुवाद पाठ की अपेक्षा भाषा के आयाम पर होता है। इस रूप में अनुवाद राष्ट्रीय विकास में सहायक होता है। यहां अनुवाद के माध्यम से विकासशील भाषा में आवश्यक और महत्वपूर्ण साहित्य का प्रवेश होता है।’ (पृ. 44) जिस परम्परागत अनुवाद का प्रयोग तुलानात्मक अध्ययन/अध्यापन के लिए किया जाता था आज उसका स्वरूप बदल चुका है। जैसे-जैसे भाषा ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश करती है वैसे अनुवाद का स्वरूप भी बदलता जाता है। अब अनुवाद केवल साहित्य अनुवाद तक ही सीमित नही रह गया, बल्कि तकनीक, विधि, प्रशासनिक और जनसंचार क्षेत्रों ने अनुवाद का दायरा बढ़ाया है। अनुवाद प्रत्येक व्यवसाय की जरूरत बन चुका है। आज अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान की शाखा के रूप में न केवल सिद्धंातिक सीमाओं पर दृष्टिपात करता है बल्कि व्यावहारिक स्तर पर भी अनुवाद की बहुमुखी, बहुप्रकृति से हमारा साक्षात्कार करवाता है। आज भाषा विज्ञान की कई शाखाओं जैसे व्यतिरेकी-विश्लेषण, समाज-भाषा विज्ञान, प्रतीक-सिद्धांत और शैली-विज्ञान ने अनुवाद प्रक्रिया को सैद्धंातिक और व्यावहारिक दृष्टि से व्यापक बनाया है। अनुवाद अध्ययन का अनुप्रयुक्त पक्ष समाज- भाषा विज्ञान, शैली-विज्ञान और अर्थ-विज्ञान से जुड़ता जा रहा है। अनुवाद में व्यापकता, भाषा प्रकार्यो को महत्व मिलने के कारण आई है, क्योंकि आज भाषा के व्यवहारगत प्रकार्यो को अधिक महत्व दिया जा रहा है। अधिकांश क्षेत्र व्यावसायिक हो चुके हैं, और अनुवाद कार्य उन व्यवसायों को विकसित करने का माध्यम बन चुका है। यह सत्य है कि अनुवाद का व्यवसाय साहित्यिक अनुवाद से प्रारंभ हुआ। यह प्रक्रिया अमेरिका, यूरोप में बहुत तेजी से विकसित हुई, इन देशों का साहित्य जब मूल रूप में लाखों लोगों तक पहुँचता है, तो उसका अन्य भाषाओं में तुंरत अनुवाद कर उसकी मार्किटिंग की जाती है। भारत में भी अंग्रेजी का लोकप्रिय साहित्य हिन्दी भाषा में अनुदित हो कर फैलने लगा है। तस्लीमा नसरीन, विक्रम सेठ, खुशवंत सिंह, शोभा अरुंघती रॉय, चेतन भक्त और अन्य लोकप्रिय लेखकों की अंग्रेजी कृतियां, हिन्दी में अनुदित हो कर प्रकशित हुई है, और इन्होंने अच्छा व्यवसाय किया है। बड़े प्रकाशक अनेक कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करवा कर जहां इन्हें विभिन्न वर्ग के पाठकों तक पहुँचा रहे है, वहां वह अपने व्यवसाय को भी बढ़ा रहे हैं। पत्र-पत्रिकाओं के बहुभाषी संस्करण निकाले जाते हैं। इन्डिया टुडे, ब्लिट्ज, रीडर्स डाइजेस्ट मूल रूप से अंग्रेजी में छपते हैं परंतु अब इन्हें हिन्दी में भी छापा जाने लगा है। हिन्दी और अंग्रेजी के समाचार पत्र एक साथ बड़े-बड़े शहरों से निकल रहे हैं। बड़े समाचार पत्रों की अधिकांश सामग्री अंग्रेजी में उपलब्ध होती है। जिसका तुरंत हिन्दी में अनुवाद कर छापा जाता है। शेयर बाजार की खबरें, नए उत्पादों की जानकारी, और व्यवसाय जगत की हलचलों से संबंधित पाठ सामग्री पहले अंग्रेजी में तैयार की जाती है, फिर उसका भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर उपभोक्ता समुदाय तक पहुँचाया जाता है। अनुवाद के माध्यम से जन जागरण का काम किया जा रहा है। समाज-कल्याण, और जन-कल्याण की योजनाएं जन-जन तक पहुँच रही है। विश्वभर में सामाजिक-सांस्कृतिक साहित्यिक दृष्टिकोण, राजनीतिक उथलपुथल प्रतिक्षण हम तक अनुवाद के माध्यम से ही पहुँच रहे हैं। जार्ज स्टीनर अनुवाद के महत्व को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि अनुवाद के कारण ही हम मानव की उस आधारभूत सार्वभौमिक, वंशजीय, ऐतिहासिक तथा सामाजिक एकता को अनुभव करते है जो भाषाओं के बाहृय भेद के बावजूद मानवीय भाषा के प्रत्येक मुहावरे की तह में निहित है। अनुवाद कर्म का आशय है कि दो भाषाओं की बाहृय अंतरों की तह में प्रवेश कर मानवीय अस्तित्व के समान तत्त्वो को प्रकाश में लाए। (पृ. 448) भाषा विकास में अनुवाद की भूमिकाभाषा विकास में अनुवाद की अहम भूमिका रही है। जब किसी भाषा को ऐसे व्यवहार क्षेत्रों में प्रयुक्त होने का अवसर मिलता है, जिसमें पहले उसका प्रयोग नही होता था, तब उसे विषय-वस्तु और अभिव्यक्ति पद्धति दोनो दृष्टियो से विकसित करने की आवश्यकता होती है। फलस्वरूप विषय वस्तु की परिधि के विस्तार के साथ भाषा में अभिव्यक्ति कोश का क्षेत्र भी विस्तृत होता है। अनेक नए शब्द गढ़े जाते हैं, नए सह-प्रयोग विकसित होने लगते हैं। संकर शब्दावली प्रयोग में आने लगती है और भाषा का एक नवीन रूप विकसित होने लगता है। आधुनिक मीडिया और प्रशासनिक हिन्दी इसके अच्छे उदाहरण कहे जा सकते हैं। जनसंचार माध्यमों में अनुवादक ऐसी भाषा का प्रयोग करता है, जो स्पष्ट, सरल, स्वाभाविक और जनमानस के नजदीक हो और उसे प्रभावित कर सके। इस दिशा में न्यूमार्क के सिद्धांत की चर्चा करनी अपेक्षित होगी। उन्होंने अनुवाद प्रणाली के दो पक्ष निर्धारित किए: अर्थ-केन्द्रित अनुवाद प्रणाली और सम्प्रेषण-केंन्द्रित अनुवाद प्रणाली। संप्रेषण-केंद्रित अनुवाद प्रणाली ही जनसंचार माध्यमों के लिए उपयुक्त है। क्योंकि अनुवादक मूलपाठ में सुधार ला सकता है, अभिव्यक्ति को अधिक आकर्षक बना सकता है। वाक्य विन्यास की जटिलता, दुर्बोधता आदि का परिहार कर सकता है। भाषा प्रयोग की असमान्यताओं का उपचार कर सहज भाषा के संदेश की पुनरावृत्ति कर सकता है। इसलिए वाक्य प्रधान लेखन के लिए संप्रेषण केंन्द्रित अनुवाद उपयुक्त होता है। परंतु दर्शन, धर्म, राजनीति आदि के लिए अर्थ केन्द्रित अनुवाद प्रणाली उपयुक्त रहती है। जिसमें भाषा उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितना कथ्य। जनसंचार की भाषा में सुबोधता, लचीलापन होता है जो विषय क्षेत्र को विशिष्टता प्रदान करता है। जनसंचार माध्यमों द्वारा सूचनाएं प्रत्येक वर्ग के लोगों तक पहुँचती है। सूचना संप्रेषण पाठको/दर्शकों की बौद्धिक क्षमता के अनुकूल हो, इसलिए जनसंचार भाषा को सरल और सर्वग्राहृय बनाया जाता है। अनुवाद के द्वारा जहां भाषा में सर्वधन होता है, वही ज्ञान का प्रसार और संस्कृति का संवहन भी होता है। भाषा का सीधा संबंध मानव मन, मानव जीवन और समाज से होता है। भाषा का संबंध यदि एक ओर मन की आंतरिक स्थिति से है तो दूसरी और समाज की संचार व्यवस्था से भी है। परिणाम स्वरूप अनुवाद सामाजिक संप्रेषण और प्रयोक्ता सापेक्ष बनता जा रहा है। जैसे जैसे समाज का व्यापक वर्ग अनुदित पाठ का जाने अनजाने उपभोक्ता बनता है, वैसे वैसे अनुवाद की मंतव्य केंद्रित दृष्टि अभिव्यक्ति की सटीकता, प्रभावशीलता और लक्ष्य भाषा की सृजनात्मक शक्ति पर केंद्रित होने लगती है। इस प्रकार समाज और भाषा, ज्ञान के एक विशेष क्षेत्र का प्रतिपादन करते हैं। जनसंचार माध्यमों में अनुवादसमाचार पत्र, रेडियो और टेलीविजन यह तीनो जनसंचार माध्यम अनुवाद की अनिवार्यता से जुड़े हुए है। समाचार पत्रों में विज्ञापन, अर्थव्यवस्था, संपादकीय, फिल्म समीक्षा, खेल कूद सभी विषयों की अपनी भाषा है। इन में तकनीकी शब्दों का प्रयोग विषय विशेष के अनुसार होता है। समाचार पत्रों में अनुवादक की भाषा क्षमता की अहम भूमिका रहती है। विशिष्ट संदर्भ अनुसार शब्द चयन करना, और जटिल वाक्य संरचना से बचना अनुवादक का गुण माना जाता है। समाचार पत्र, पत्रिकाएं लिखित भाषा, ही नही बल्कि (फोटो, चित्र के माध्यम) उच्चरित भाषा के तत्वों को साथ लेकर चलते है। साक्षात्कार, विज्ञापन, समाचारों मे जो बोलचाल का प्रवाह नजर आता है वह उच्चरित भाषा को लिखित भाषा में समाहित करने से आता है निस्संदेह टेलीविजन और रेडियो की उच्चरित अभिव्यक्ति का आधार लिखित भाषा ही होती है। क्योकि लिखित सामग्री को ही मौखिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। रेडियो और टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले विज्ञापन भी मौखिक भाषा की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। उन में अंग संचालन और शारीरिक प्रतिक्रिया भी भाषा के अनुरूप होती है। संचार माध्यमों में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि संप्रेषण अधिक से अधिक हो, और वह कैसे संभव हो सकता है! अनुवाद एक ऐसा माध्यम है जिसकी वजह से संदेश सभी वर्ग के लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। इसी लिए रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र, पैंफलेट, विज्ञापन, हैंडबिल, होर्डिंग इन सभी जनसंचार माध्यमों में अनुवाद लोकप्रिय है। रेडियो में आवाज के इस्तेमाल द्वारा उच्चरित भाषा को लय, ताल, अनुतान द्वारा गुणात्मक बनाना पड़ता है। परंतु समाचार पत्र में समाचार कैसे लिखा जाए इस बात को महत्व दिया जाता है। रेडियो में हिन्दी में प्रस्तुत किए जाने वाले समाचारों को अंग्रेजी में भी पढ़ा जाता है। टेलीविजन में लिखित और मौखिक भाषा को दृश्यों से जोड़ा जाता है। यदि किसी मंत्री ने हिन्दी भाषा में भाषण दिया है, या हिन्दी भाषा में साक्षात्कार दिया है तो अंग्रेजी समाचारों में उच्चरित अंशो को भाषण के साथ अंग्रेजी में अनुदित कर सक्रीन पर दिखाया जाता है। जनसंचार माध्यमों में पाठ की संप्रेषणीयता, स्वीकार्यता और विषयनुकूलता महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। टी.वी., रेडियो, समाचार पत्रों में अनुवाद पाठकों/दर्शकों को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसलिए ऐसी शैली का प्रयोग किया जाता है। जो बोधगम्य हो और सर्वमान्य हो। समाचार पत्र और अनुवादसमाचार पत्रों में प्रयुक्त होने वाली भाषा में समय के अनुसार काफी परिवर्तन आया है। सूचना और प्रौद्योगिकी के कारण शब्द कोश में तो वृद्धि हुई ही है, इससे संबधित शब्दों का प्रयोग भी समाचार पत्रों में आम होने लगा है। जैसे: मूलपाठ– The basic rate of mobile to mobile call has been increased. अनूदित पाठ- मोबाइल से मोबाइल पर की जाने वाली कॉल का बेसिक रेट बढ़ा दिया गया है। मूलपाठ– Reliance hiked pre-paid call rates by 33% अनूदित पाठ– रिलांयस ने 33 प्रतिशत मंहगी की प्रीपेड कॉल दरें। समाचार पत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी से संबधित शब्दावली जैसे: लैपटॉप, मोबाइल, फोटोशॉप, आई डी मेल, फैक्स, इंटरनेट, अपलोडिंग, प्रीपेड कॉल, पोस्ट कॉल, आनलाईन ट्रॉजेक्शन, ई-मेल, वेबसाइट, का प्रयोग बिना किसी अनुवाद के किया जाता है। वैसे भी समाचार पत्रों में हिंग्लिश भाषा के प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। जैसे: मूलपाठ: Pending cases will be disposed off very soon अनूदित पाठ: पेंडिंग केसो को जल्द लगेंगे पंख। अनुवाद सिद्धांत के अनुसार कोई भी लक्ष्यपाठ, मूलपाठ के समतुलय नही हो सकता। अनुवादक को अनुवाद करते हुए कई बार कुछ छोडऩा और कुछ जोडऩा पड़ता है, परंतु लेखक के संदेश व मंतव्य को बनाए रखना पड़ता है। कई बार विभिन्न विकल्पों में से सटीक विकल्प ढूंढऩा पड़ता है सामाजिक, सांस्कृतिक भोगौलिक संदर्भों के अनुसार शब्दों का चयन करना पड़ता है और उनकी व्याख्या करनी पड़ती है। समाचार पत्रों में शब्दों व वाक्यों को सधारणतया क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। जैसे: मूलापाठ– CBI questions former Railway Minister Pawan Bansal in railway bribery scam. अनुवाद– रेल घूस कांड में सी.बी.आई. ने पूर्व रेलमंत्री पवन कुमार बंसल से की पूछताछ। मूलापाठ– After probing various objects of bribery scam in the railways, the CBI is all set to question former Railway Minister Pawan Kumar Bansal this week. The questioning of Bansal will revolve around his role in the appointment of suspended Railway Board Member (Staff) Mahesh Kumar involving his nephew Vijay Singla who was allegedly caught accepting a bribe of Rs. 90 Lak, Official Sources said. अनूदित पाठ– रेलवे में घूसकांड के विभिन्न पक्षों की छानबीन करने के बाद सी.बी.आई. भूतपूर्व रेलवे मंत्री से इस हफ्ते पूछताछ करेगी। बंसल से पूछताछ में रेलवे बोर्ड के मेम्बर महेश कुमार की नियुक्ति में उनकी भूमिका से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं जिसमें उनके भतीजे को 90 लाख रुपयों की घूस लेते पकड़ा गया था, दफ्तरी सूत्रों ने बताया। उक्त अनूदित पाठ में ‘घूस’ की जगह अन्य शब्द ‘रिश्वत’ का प्रयोग भी किया जा सकता था। मूलापाठ– Ashwani returns to practice, argues before SC bench. अनूदित पाठ– अश्वनी प्रैक्टिस में लौटे, सुप्रीम कोर्ट बैंच के सामने दिया तर्क। टी.वी. और अनुवाद:टेलीविजन में दो तरह के अनुवाद महत्वपूर्ण है: ध्वन्यांतरण और उपशीर्षक लेखन। टेलीविजन, समाचार शीर्षकों के लिखित और उच्चरित दोनों रूप प्रस्तुत करता है। डी.डी. न्यूज चैनल पर अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में शीर्षकों के स्करॉल चलते रहते हैं। समाचारों को भी हिंदी और अंग्रेजी में लगातार प्रस्तुत किया जाता है। अंग्रेजी-हिन्दी खबरों में साउंड बाइट को अनुवाद कर स्क्रीन पर फ्लेश किया जाता है। दूरदर्शन समाचारों में उच्चरित संप्रेषणीयता और दृश्य दोनों पर ध्यान दिया जाता है। किसी विदेशी नेता का भाषण अगर उसकी अपनी भाषा में है तो उसे ध्वन्यांतरण द्वारा अंग्रेजी में प्रस्तुत किया जाता है। जो बात शब्दों में कही जाती है उसे तथ्यात्मक बनाने के लिए दृश्या का सहारा लिया जाता है। छोटे व सरल वाक्यों का प्रयोग किया जाता है ताकि भाषा सहज, स्वाभाविक, स्पष्ट और बोधगम्य हो। जैसे: मूलापाठ – Delhi University (DU) admission open today. अनूदित पाठ – (क) दिल्ली यूनिवर्सिटी में आज से दाखिले शुरू। मूलापाठ – World Environment Day is being observed today. अनूदित पाठ – (क) विश्व पर्यावरण दिवस आज। मूलापाठ – India beat England by 7 wickets अनूदित पाठ – भारत ने इंग्लैंड को सात विकटों से हराया मूलापाठ – Gold import duty hiked अनूदित पाठ – सोने पर आयात शुल्क बढ़ा खेलकूद के समाचारों की अपनी शब्दावली है और अधिकतम शब्दों का हिंदी में भी अंग्रेजी के अनुरूप ही प्रयोग होता है; जैसे: टूर्नामेंट, वल्र्डकप चैम्पियन, सेमी-फाइनल मैच, रन, फाइनल, वनडे, चैम्पियन ट्राफी, प्रीमियर लीग, स्पॉट-फिक्ंिसग, कैम्प, क्वाटर फाइनल, टीम। इन शब्दों का अनुवाद नही किया जाता, हिन्दी में भी इन शब्दों को अंग्रेजी की तरह इस्तेमाल कर लिया जाता है। विज्ञापन और अनुवादव्यवसाय के रूप में अनुवाद को कई गतिविधियों ने बढ़ावा दिया है। व्यापार जगत में राष्ट्र-कम्पनियों के आने से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। और विपणन की रणनीति में भी परिवर्तन आया है। विभिन्न वस्तुओं के विपणन के लिए प्रिट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ढेरों विज्ञापन दिए जाते है, ताकि विभिन्न उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं को जानकारी प्राप्त हो सके। विज्ञापन की भाषा, विज्ञापित वस्तु के अनुसार अपने को ढालती है। विज्ञापनों में हिन्दी-अंग्रेजी कोड मिश्रण का प्रयोग किया जाता है ताकि अधिक से अधिक लोगों पर इसका प्रभाव पड़े। टेलीविजन के विज्ञापन में उत्पाद के सुंदर चित्रों को गीत, संगीत, लय, ताल में बांध कर प्रस्तुत किया जाता है। और जो लम्बे समय तक दर्शकों/श्रोताओं के दिल और दिमाग पर छाये रहता है। जैसे- (क) मैंगो फ्रूटी, फ्रेश और जूसी (ख)
Clear for real Your Natural Choice Trust (Godrej) Add good taste give good health एक ही विज्ञापन में अंग्रेजी और हिंदी दोनों का अनुवाद एक साथ मिलता है, ताकि विज्ञापन अधिक से अधिक प्रभावी हो सके। विज्ञापन अनुवादक का यह दायित्व होता है कि वह जोडऩे और छोडऩे के चक्कर में मूल रूप के संदेश से दूर न हटे। मूल संदेश, व लक्ष्यार्थ को ध्यान में रखकर अनुवाद किया जाना चाहिए। निम्नलिखित विज्ञापन में अभिधात्मक और लक्ष्यार्थ संदेश इस प्रकार है:
संकेतों के प्रतिस्थापन से विज्ञापन का अनुवाद नहीं किया जा सकता। इसे भाव के धरातल पर सबसे पहले अनुभूत करना होगा फिर लक्ष्य भाषा में उसका लक्ष्यार्थ संप्रेषित करना होगा। टेलीविजन पर प्रसारित हिंदी विज्ञापन अब यह भी सिद्ध कर रहे हैं कि अंग्रेजी में प्रसारित विज्ञापन उन वस्तुओं के होते हैं जिनकी खपत अमीर वर्ग के लोगों में होती है। विज्ञापन की भाषा एक अलग प्रयोग के परिदृश्य की मांग करती है। इसमें चयनित भाषा का लोचदार प्रयोग मिलता है। विज्ञापनों में भाव अनुवाद और अनुसृजन के महत्व को नही भुलाया जा सकता, जैसे:
विज्ञापन में अंग्रेजी- हिन्दी कोड मिश्रण की तरह ही लिप्यांतरण का प्रयोग भी अधिक होने लगा है। हिन्दी शब्दों को रोमन लिपि में लिखने की प्रवृति उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। जैसे: जैसे:
हिंदी भाषा के शैलीगत भेदों को विज्ञापन सटीक प्रयोगो में बांध कर रखते हैं। विज्ञापनों का अनुवाद शन्दिक नहीं बल्कि अनुसृजनातमक होता है। कभी-कभी अनुवाद मूल से भी अधिक सर्जनात्मक, काव्यात्मक और सुंदर होता है, अनूदित विज्ञापन को रोचक, प्रभावात्मक बनाता है। संक्षेप में जब एक भाषा की रचनाएं अनूदित रूप में लक्ष्य भाषा के संसार में प्रवेश करती है, तो उस के साथ नई अवधारणाए, नयी भंगिमाएं और मौलिक प्रयोग की पूरी दुनिया स्त्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में आ जाती है। दो भाषाओं के अपने सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश होते है जो एक समान नहए होते। भाषा की विशिष्टाता के ध्यान में रखकर अनुवाद किया जाना चाहिए, अन्यथा स्त्रोत और लक्ष्य भाषा की संप्रेषणीयता और बोधगम्यता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। जनसंचार माध्यमों की भाषा साहित्य की भाषा से बिल्कुल भिन्न होती है, बिल्कुल सरल, स्पष्ट और विषय के अनुकूल होती है। इसलिए अनुवादक को जनसंचार माध्यमों को ध्यान में रखकर अनुवाद करना चाहिए ताकि लाखों लोगों तक संदेश सही अर्थो में पहुँच सके। संदर्भ-ग्रंथ
मीडिया का अनुवाद क्या है?मीडिया- हिंदी में जिसे माध्यम कहते हैं- जनसंचार के समस्त साधनों का पर्याय-संचार शब्द 'चर' (चलना) धातु से बना है। निरंतर आगे बढ़ती रहने वाली प्रक्रिया 'संचरण' कहलाती है। सूचनाओं के आदान-प्रदान की समान भागीदारी करना संचार का उद्देश्य है।
अनुवाद का क्या महत्व है?भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद की उपादेयता स्वयं सिद्ध है। भारत के विभिन्न प्रदेशों के साहित्य में निहित मूलभूत एकता के स्वरूप को निखारने के लिए अनुवाद ही एक मात्र अचूक साधन है। इस तरह अनुवाद द्वारा मानव की एकता को रोकनेवाली भौगोलिक और भाषायी दीवारों को ढहाकर विश्वमैत्री को और सुदृढ़ बना सकते हैं।
अनुवाद से संचार माध्यमों की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ता है?अनुवाद के द्वारा जहां भाषा में सर्वधन होता है, वही ज्ञान का प्रसार और संस्कृति का संवहन भी होता है। भाषा का सीधा संबंध मानव मन, मानव जीवन और समाज से होता है। भाषा का संबंध यदि एक ओर मन की आंतरिक स्थिति से है तो दूसरी और समाज की संचार व्यवस्था से भी है।
अनुवाद से आप क्या समझते हैं इसके महत्व पर सारगर्भित टिप्पणी लिखिए?अनुवाद में मूल भाव-सौंदर्य और विचार-सौष्टव की रक्षा तो हो सकती है, पर भाषा-सौंदर्य की रक्षा इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि भाषाओं में रूप-रचना और प्रयोग की रूढ़ियों की दृष्टि से भिन्नता होती है । सही है कि मौलिक लेखन के बाद ही अनुवाद होता है, इसलिए निश्चित रूप से वह क्रम की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है ।
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