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हमें फॉलो करें भाद्रपदशुक्ल अष्टमी : लक्ष्मी का व्रत > > श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी के दिन से किया जाता है। यह व्रत सोलह दिनों तक चलता है। इस व्रत धन की देवी मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत के दिन क्या करें :- * प्रात:काल में स्नानादि कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। महालक्ष्मी पूजा सामग्री में फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, लौंग, इलायची, बादाम, पान, सुपारी, कलावा, मेहंदी, हल्दी, टीकी, बिछिया, वस्त्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद और सोलह श्रृंगार प्रमुख रूप से रखें. हिंदी न्यूज़ धर्मसुख-समृद्धि से भर देता है महालक्ष्मी व्रत, जानिए क्या है विधि-विधान सुख-समृद्धि से भर देता है महालक्ष्मी व्रत, जानिए क्या है विधि-विधानभाद्रपद शुक्ल अष्टमी से पितृ पक्ष में आश्विन कृष्ण अष्टमी तक के 16 दिन तक महालक्ष्मी का व्रत किया जाता है। यह महालक्ष्मी का रहस्यमयी व्रत है। 16 दिन तक इस व्रत को करने से महालक्ष्मी की कृपा...Praveenज्योतिषाचार्य पं.शिवकुमार शर्मा,मेरठ Mon, 13 Sep 2021 05:18 AM भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से पितृ पक्ष में आश्विन कृष्ण अष्टमी तक के 16 दिन तक महालक्ष्मी का व्रत किया जाता है। यह महालक्ष्मी का रहस्यमयी व्रत है। 16 दिन तक इस व्रत को करने से महालक्ष्मी की कृपा शुरू हो जाती है। घर में धन-धान्य, सुख समृद्धि बढ़ती है। ऐसा शास्त्रीय वचन है। व्रत की विधि: यद्यपि लक्ष्मी जी का व्रत शुक्रवार को किया जाता है, किंतु वर्ष में एक बार महालक्ष्मी की आराधना का पक्ष होता है इसे महालक्ष्मी पक्ष बोलते हैं। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से आश्विन कृष्ण अष्टमी तक महालक्ष्मी को नियमित पूजा करने से लक्ष्मी मां प्रसन्न होती हैं। सर्वप्रथम प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के मंदिर में ही या उसके आसपास लकड़ी के पटरे या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर कलश स्थापना करें। कलश को कलावे से बांधे। कच्चा नारियल और आम के पत्तों के स्थान पर आठ पान के पत्ते नारियल के नीचे रखें जो अष्टलक्ष्मी के प्रतीक हैंऔर महालक्ष्मी की मूर्ति रखें। लक्ष्मी जी के विशेष मंत्रों से मां का आह्वान करें। इन दिनों में मां की अष्ट सिद्धियों की पूजा लक्ष्मी के रूप में होती है। घर में पति-पत्नी दोनों ही पूजा एवं व्रत कर सकते हैं। नियमित रूप से सफेद मिष्ठान्न, किशमिश, मिश्री अथवा पंचमेवा का भोग लगाएं। आरती करें। 16 दिन तक व्रत कर सकते हों तो बहुत अच्छा है और यदि व्रत नहीं कर सकते तो अष्टमी, पूर्णिमा और फिर अष्टमी अर्थात 3 दिन का व्रत करने से ही मां लक्ष्मी के व्रत पूर्ण हो जाते हैं। लेकिन इन दिनों पूरे नियम, संयम, आचार-विचार खान-पान की शुद्धता का ध्यान रखना पड़ता है। मां लक्ष्मी को स्वच्छता प्रिय है। इसलिए घर का वातावरण पवित्र और स्वच्छ हो ऐसा ध्यान रखें। श्री सूक्त का पाठ लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए उत्तम माना गया है। इसके अलावा अष्ट लक्ष्मी के मंत्र ओम् कामलक्ष्म्यैनमः। ओम् आद्यलक्ष्म्यै नमः। ओम् सत्यलक्ष्म्यै नमः। ओम् योगलक्ष्म्यै नमः। ओम भोगलक्ष्म्यै नमः। ओम् विद्यालक्ष्म्यै नमः। ओम् अमृतलक्ष्म्यै नमः। ओम् सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः। इन मंत्रों का नियमित जाप करना चाहिए। भक्तों पर कृपा बरसाती हैं श्री राधा रानी, हर मुराद करती हैं पूरी महालक्ष्मी पूजन के विशेष मुहूर्त: यद्यपि इस वर्ष 13 सितंबर को 15: 10 बजे अष्टमी आरंभ होगी, किंतु इस व्रत में उदय कालीन तिथि का महत्व हैं, इसलिए यह मंगलवार से अर्थात 14 सितंबर से आरंभ होंगे और इनका समापन 28 सितंबर को होगा। लक्ष्मी मां की पूजा प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में करें अथवा मध्यान्ह 11:30 से 12:30 तक अभिजीत मुहूर्त में करनी चाहिए। शाम को भोग, आरती आदि व्यवस्था अवश्य करें। मानसिक जाप भी आवश्यक है। व्रत की इस अवधि में किसी का बुरा ना चाहे। सत्य वचन का पालन करें। किसी की बुराई ना करें और अधिकतर मौन रहें और मन में यह कामना करें कि महालक्ष्मी हाथी पर सवार होकर हमारे घर में पधार चुकी हैं। इस प्रकार व्रत करने से साधक की इच्छाएं निश्चित ही पूर्ण होती हैं। इस 16 दिवसीय महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन आश्विन कृष्ण अष्टमी को होता है। सफेद मिष्ठान्न,खीर, किशमिश आदि से युक्त भोजन बनाकर किसी सौभाग्यशाली महिला को भोजन कराएं। उनको सुंदर वस्त्र,साड़ी, श्रृंगार सामग्री दान करें और महालक्ष्मी की व्रत का समापन करें। महा लक्ष्मी के व्रत के आरंभ करने के साथ-साथ इस दिन राधाष्टमी भी है। राधा अष्टमी व्रत का महत्व: 14 सितंबर को राधा अष्टमी व्रत भी है। राधा-कृष्ण की अनुपम छवि मन में बस जाए तो भक्त उनकी आराधना में लीन हो जाते हैं। उनका जन्म युगो युगो तक ब्रजभूमि में ही होता है। राधा के प्रसन्न
होने से भगवान कृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं इसीलिए राधा की पूजा करने से श्री भगवान कृष्ण दौड़े -दौड़े चले आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि राधा का जन्म भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को हुआ था। अर्थात राधा जी श्रीकृष्ण जी से साढे 11 महीने बड़ी हैं। राधा अष्टमी का व्रत करने से सभी पापों का अंत होता है। राधे-राधे जपने से कृष्ण भक्ति का फल मिलता है। इस वर्ष राधा अष्टमी व्रत 14 सितंबर को होगा। प्रात:काल बाल राधा का श्रृंगार कर उन्हें पालने में बैठाएं। मिश्री,माखन,पंचमेवा खीर आदि से उनका भोग लगाएं। राधा-कृष्ण की आरती
करें। बाला राधा के दिव्य श्रृंगार से अपने नेत्रों को तृप्त करें और कल्पना करें कि मां राधा हमारे मन में बसी हुई है। हमारे घर में सुख संपन्नता कर दे रही हैं। हमारे घर के सदस्यों में परस्पर प्रेम बढ़ रहा है। व्रत जो भी हो उसमें अपनी इच्छाओं को भगवान को मत बताओ। ऐसा सोचें कि भगवान ने मेरी इच्छा पूर्ण कर दी हैं। बस ऐसा सोचने से ही हमारी इच्छाएं साकार हो जाती हैं क्योंकि इसमें सकारात्मकता का भाव प्रकट होता है। इस भाव से हम जो भी पूजा करेंगे हैं तो वह देवपूजा व्यर्थ नहीं जाती है। राधा अष्टमी के पूजन
का मुहूर्त: प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त मे अथवा वृश्चिक लग्न (स्थिर लग्न) प्रातः 10:56 बजे से 13:13 बजे तक देवी राधा का पूजन करने का शुभ मुहूर्त है। महालक्ष्मी व्रत की विधि क्या है?महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि (Mahalaxmi Vrat Puja Vidhi). महालक्ष्मी व्रत कर रहे हैं तो ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें.. एक चौकी में महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.. स्थापना के बाद महालक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराएं.. अब सिंदूर, कुमकुम आदि लगाएं.. धूप और दीपक प्रज्वलित करें.. महालक्ष्मी की पूजा कब और कैसे होती है?महालक्ष्मी व्रत पूजन विधि
अगर आप महालक्ष्मी व्रत करना चाहते हैं तो 17 सितंबर को सुबह उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें. व्रत का संकल्प करने के बाद मंदिर की सफाई करें और वहां एक चैकी पर लाल कपड़ा बिछाएं. इसके बाद चैकी पर मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.
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